मुझे शक था कि मेरी माँ का 60 साल की उम्र में एक युवा प्रेमी है, हर दिन वह चुपके से पैसे लेती थी और रात 10 बजे घर से निकल जाती थी, एक दिन मैं चुपके से उसका पीछा करता था और जब मैंने होटल का दरवाजा खोला और अपनी आँखों के सामने दृश्य देखा तो मैं चौंक गया, मैं अंदर भागा और जब मुझे पता चला कि यह…

रात के दस बजे माँ का राज़

दिल्ली की हलचल भरी ज़िन्दगी में, मीरा की माँ, सुमित्रा देवी, अब साठ साल की हो चुकी थीं। उम्र के इस पड़ाव पर जहाँ ज़्यादातर महिलाएँ घर-परिवार में ही सिमट जाती हैं, वहीं सुमित्रा देवी में एक अजीब सा बदलाव आ गया था। पिछले कुछ महीनों से मीरा देख रही थी कि माँ अब पहले से ज़्यादा सजने-संवरने लगी हैं, अच्छे कपड़े पहनती हैं, हल्का मेकअप करती हैं और हर रात ठीक दस बजे घर से निकल जाती हैं। बहाना हमेशा एक ही रहता—“स्वस्थ रहने के लिए रात में टहलने जा रही हूँ।” लेकिन मीरा को माँ के इस व्यवहार में कुछ तो अजीब लगने लगा था।

मीरा ने कई बार देखा कि माँ उसकी बचत की अलमारी से चुपके से कुछ हज़ार रुपये निकाल लेती हैं। जब उसने माँ से पूछा, तो उन्होंने टाल दिया। मीरा का शक बढ़ता गया—क्या माँ का कोई प्रेमी है? क्या वे परिवार से छुपकर किसी से मिलने जाती हैं? क्या वे किसी गलत राह पर चल पड़ी हैं? इन सवालों ने मीरा को बेचैन कर दिया।

एक दिन मीरा ने ठान लिया कि वह माँ का पीछा करेगी और सच का पता लगाएगी।

रात के दस बजे, सुमित्रा देवी ने अपना सबसे अच्छा सलवार-कुर्ता पहना, बाल संवारे, हल्का गुलाबी लिपस्टिक लगाई और ऑटो-रिक्शा लेकर घर से निकल गईं। मीरा चुपचाप उनके पीछे-पीछे चलने लगी। उसका दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था, जैसे कोई बड़ा राज़ खुलने वाला हो। सुमित्रा देवी ने लाजपत नगर से ऑटो लिया और नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के पास, पहाड़गंज की एक सुनसान गली में उतर गईं। वहाँ एक सस्ते से लॉज के सामने वे रुक गईं।

मीरा का शक और गहरा हो गया। उसने देखा कि माँ ने एक थैला उठाया जिसमें दवाइयाँ और दूध के डिब्बे थे। माँ ने लॉज के अंदर प्रवेश किया। मीरा ने हिम्मत जुटाई और उनके पीछे-पीछे लॉज के दरवाज़े तक पहुँची। उसने दरवाज़ा थोड़ा सा खोला और अंदर झाँका।

जो दृश्य मीरा ने देखा, वह उसकी कल्पना से बिलकुल अलग था। कमरे के बीचों-बीच उसकी माँ बैठी थीं, उनके हाथ में दवाइयों का थैला और दूध के डिब्बे थे। उनके सामने एक दुबला-पतला, बूढ़ा आदमी एक पतले कंबल से ढकी अस्थायी बिस्तर पर लेटा हुआ था। मीरा की आँखें फटी की फटी रह गईं। माँ का चेहरा पकड़े जाने के डर से सफेद पड़ गया।

“बेटा… तुम यहाँ क्यों आई?” माँ ने काँपती आवाज़ में पूछा।

मीरा ने घबराकर पूछा, “माँ, आप यहाँ क्या कर रही हैं? ये कौन हैं?”

माँ ने कुछ देर चुप रहने के बाद कहा, “ये… मेरे पिता हैं। तुम्हारे नाना।”

मीरा और भी हैरान हो गई। उसने कभी अपने नाना को देखा नहीं था। माँ ने हमेशा कहा था कि उनके पिता बहुत पहले ही परिवार छोड़कर चले गए थे। मीरा को याद था कि माँ ने कभी अपने बचपन की बातें नहीं कीं, न ही अपने पिता के बारे में कुछ बताया।

माँ ने आँखों में आँसू लिए कहा, “जब मैं छोटी थी, मेरे पिता ने मेरी माँ और हम बच्चों को छोड़ दिया था। उन्होंने दूसरी शादी कर ली थी और हम सबको अकेला छोड़ दिया था। मैंने कसम खाई थी कि मैं कभी उन्हें माफ़ नहीं करूँगी। लेकिन कुछ महीने पहले मुझे खबर मिली कि वे बहुत बीमार हैं, उनके अपने बच्चों ने भी उन्हें त्याग दिया है। वे इस लॉज में अकेले रहते हैं, कोई उनकी देखभाल नहीं करता।”

मीरा की आँखों में आँसू आ गए। उसे अपने माँ पर शक करने का अफसोस हुआ। माँ ने कहा, “मैं जानती हूँ कि उन्होंने बहुत गलत किया। लेकिन चाहे कुछ भी हो, वे मेरे पिता हैं। मैं उन्हें मरने के लिए अकेला नहीं छोड़ सकती।”

मीरा ने देखा कि माँ नाना के लिए दवाइयाँ निकाल रही थीं, दूध का डिब्बा मेज़ पर रख रही थीं और उनके बिस्तर पर कंबल ठीक कर रही थीं। नाना बहुत कमजोर हो गए थे, उनकी आँखों में पछतावा साफ़ दिखता था। उन्होंने मीरा की ओर देखा, जैसे अपनी गलती की माफी माँग रहे हों।

मीरा ने माँ का हाथ पकड़ा और कहा, “माँ, आपने बहुत बड़ा दिल दिखाया है। मैं शर्मिंदा हूँ कि मैंने आप पर शक किया।”

माँ ने मुस्कुराते हुए कहा, “बेटा, इंसान की सबसे बड़ी ताकत उसकी ममता और सहनशीलता है। चाहे कोई कितना भी गलत क्यों न हो, अगर हम माफ़ करना सीख जाएँ तो ज़िन्दगी आसान हो जाती है।”

उस रात मीरा ने माँ के साथ नाना की देखभाल की। उसने महसूस किया कि माँ के कदम पाप की ओर नहीं, बल्कि सहनशीलता और ममता की ओर थे। अगले दिन मीरा ने अपने परिवार को सब कुछ बता दिया। शुरू में सब हैरान हुए, लेकिन धीरे-धीरे सबने माँ की सोच को समझा और नाना को अपना लिया।

अब सुमित्रा देवी हर रात चुपके से नहीं जातीं, बल्कि पूरे परिवार के साथ नाना की देखभाल करती हैं। मीरा को अपनी माँ पर गर्व है। उसने सीखा कि शक और गुस्से से ज़्यादा ज़रूरी है समझदारी और सहनशीलता।