“मैं आपको एक राज़ बताऊँगी” – एक टॉफी के बदले अरबपति से की गई एक बेघर बच्ची की फुसफुसाहट Hindi Story

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एक टॉफी के बदले अरबपति से की गई एक बेघर बच्ची की फुसफुसाहट

भूमिका

कहते हैं कि दुनिया में सबसे महंगी चीज विश्वास होती है और सबसे सस्ती चीज धोखा। लेकिन कभी-कभी सच की कीमत बस एक छोटी सी टॉफी होती है। यह कहानी है मुंबई की, जहां एक बेघर बच्ची ने अपनी मासूमियत और साहस से एक अरबपति की जिंदगी बदल दी।

शहर की चमक-धमक

मुंबई की शाम थी, बारिश की बूंदें शहर के शोर को ढकने की कोशिश कर रही थीं। रॉयल प्लाज़ा होटल के बाहर हरिशंकर वर्मा अपनी महंगी घड़ी पर नजरें गड़ाए खड़े थे। हरिशंकर, जो 60 के पार थे, शहर के सबसे बड़े रियल एस्टेट टकून माने जाते थे। आज ही उन्होंने अपनी जिंदगी की सबसे बड़ी डील साइन की थी—500 करोड़ का स्काई प्रोजेक्ट। लेकिन अजीब बात थी, इतनी बड़ी सफलता के बाद भी उनके चेहरे पर खुशी नहीं थी; बल्कि एक अजीब सी थकान और चिंता थी।

बच्ची की नजरें

हरिशंकर अपनी लिमोज़िन का इंतजार कर रहे थे, तभी उनकी नजर एक खंभे के पीछे छिपी एक छोटी सी बच्ची पर पड़ी। उसके कपड़े फटे हुए थे, बाल बिखरे हुए थे और चेहरे पर भूख की साफ झलक थी। वह शायद सात या आठ साल की रही होगी। उस बच्ची की आंखों में एक अजीब सी चमक थी, जो डर और उम्मीद के बीच झूल रही थी। हरिशंकर ने अपनी नजरें फेर लीं, उन्हें लगा कि वह भीख मांगने आएगी।

टॉफी की मांग

बच्ची धीरे-धीरे डरते हुए उनके पास आई। “साहब,” एक बहुत ही धीमी और कांपती हुई आवाज आई। हरिशंकर ने बिना उसकी तरफ देखे अपनी जेब से 10 का नोट निकाला और उसकी तरफ बढ़ा दिया। “ले लो और जाओ यहां से। मुझे परेशान मत करो।” उनकी आवाज में अमीरी का रब और दिन भर की थकान झलक रही थी।

लेकिन उस बच्ची ने नोट नहीं लिया। उसने कहा, “साहब, मुझे पैसे नहीं चाहिए। बस वो एक नारंगी वाली टॉफी दिला दो। मुझे बहुत भूख लगी है और मीठा खाने का मन है।” हरिशंकर को हंसी आ गई, लेकिन वह हंसी व्यंग से भरी थी। 500 करोड़ का मालिक एक भिखारी को टॉफी दिलाएगा?

राज़ की पेशकश

बच्ची ने हार नहीं मानी। वह एक कदम और आगे बढ़ी और हरिशंकर के महंगे कोट को हल्का सा खींचा। “साहब, अगर आप मुझे वो एक टॉफी दिला देंगे तो मैं आपको एक ऐसा राज बताऊंगी जो आपकी जान बचा सकता है।” हरिशंकर चौंक गए। एक सड़क पर रहने वाली कचरा बिनने वाली बच्ची उनकी जान बचाने की बात कर रही थी। यह मजाक जैसा लगा, लेकिन उस बच्ची की आंखों में गंभीरता ने हरिशंकर के रोंगटे खड़े कर दिए।

टॉफी की खरीद

हरिशंकर ने कौतूहलवश पास के वेंडर को इशारा किया और ₹1 की नारंगी टॉफी खरीद कर उस बच्ची की हथेली पर रख दी। “यह लो। अब बताओ, क्या है तुम्हारा राज़?” बच्ची ने जल्दी से टॉफी का रैपर खोला और उसे मुंह में डाल लिया। उसके चेहरे पर एक सुकून छा गया जैसे उसे दुनिया की सारी दौलत मिल गई हो। फिर उसने हरिशंकर को झुकने का इशारा किया।

सच की आवाज़

बच्ची ने उनके कान के पास आकर कानाफूसी की, “वह जो आदमी अभी आपकी गाड़ी लेकर आ रहा है, उसने फोन पर किसी साहब से कहा है कि आज रात की बारिश में ब्रेक फेल होने का नाटक बहुत असली लगेगा। काम तमाम हो जाएगा।” यह सुनते ही हरिशंकर के पैरों तले जमीन खिसक गई।

ड्राइवर पर शक

उनका ड्राइवर सोमेश, जिसे वह अपने परिवार का हिस्सा मानते थे। क्या यह सच हो सकता है? इससे पहले कि वह उस बच्ची से और कुछ पूछ पाते, उनकी काली चमचमाती कार आकर रुकी। ड्राइवर सोमेश ने शीशा नीचे किया और मुस्कुराते हुए कहा, “मालिक, बैठिए, देर हो गई, ट्रैफिक बहुत था।”

निर्णय का क्षण

हरिशंकर की नजरें उस बच्ची को ढूंढने लगीं, लेकिन वह टॉफी का रैपर सड़क पर फेंक कर अंधेरे में कहीं गायब हो चुकी थी। अब हरिशंकर के सामने दो रास्ते थे: या तो उस मासूम की बात पर यकीन करें या उस वफादार ड्राइवर पर, जिसे वह बरसों से जानते थे। बारिश और तेज हो गई जैसे आसमान भी हरिशंकर के साथ रोने को तैयार था।

संदेह और डर

हरिशंकर का हाथ कार के दरवाजे के हैंडल पर था, लेकिन वह बच्ची के शब्द उनके कानों में हथौड़े की तरह बज रहे थे। उन्होंने सोमेश की आंखों में देखा, वही सोमेश जिसने 20 साल तक उनकी सेवा की थी। आज उसकी आंखों में एक अजीब सी बेचैनी थी।

सच का सामना

हरिशंकर ने एक पल के लिए अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनी और अपना हाथ हैंडल से हटा लिया। “मुझे अचानक चक्कर आ रहे हैं। मेरी दवा होटल के कमरे में ही छूट गई है। तुम यहीं रुको, मैं अभी मंगाता हूं।” सोमेश का चेहरा पीला पड़ गया।

छिपने का फैसला

हरिशंकर ने तेजी से होटल की लॉबी की तरफ मुड़ने का फैसला किया, लेकिन वह लॉबी में नहीं गए। वह प्रवेश द्वार के पास एक बड़े खंभे के पीछे छिप गए। वहां से उन्होंने सोमेश को साफ देखा। सोमेश ने जेब से अपना फोन निकाला।

साजिश का खुलासा

हरिशंकर ने अपनी सांसे रोककर सुनने की कोशिश की। बारिश के शोर के बावजूद सोमेश की ऊंची आवाज उनके कानों तक पहुंच गई। “हां बॉस, बुड्ढा बच गया अभी। दवाई लेने गया है अंदर। नहीं, आज रात ही काम तमाम करना होगा। हाईवे वाले मोड़ पर गाड़ी खाई में गिरा दूंगा। सबको लगेगा हादसा था।”

दर्द और गुस्सा

हरिशंकर को लगा जैसे किसी ने उनके सीने में खंजर घोंप दिया हो। जिस इंसान पर उन्होंने आंख मूंदकर भरोसा किया, वह चंद पैसों के लिए उनकी मौत का सौदा कर चुका था। उनकी आंखों से आंसू बह निकले, लेकिन यह दुख के नहीं, गुस्से के आंसू थे।

भागने का प्रयास

हरिशंकर ने अपनी महंगी घड़ी और कोट को ठीक किया और होटल के पिछले दरवाजे यानी सर्विस एग्जिट की तरफ भागे। एक अरबपति जो हमेशा सुरक्षा घेरे में चलता था, आज अपनी ही गाड़ी और ड्राइवर से छिपकर एक चोर की तरह भाग रहा था।

कजरी की मदद

हरिशंकर ने उसी जगह वापस आने का फैसला किया जहां वह बच्ची मिली थी। उन्होंने देखा कि वह बच्ची सड़क के उस पार एक टूटी हुई दुकान के छज्जे के नीचे बैठी थी। उसके साथ एक महिला जमीन पर लेटी हुई थी, जो शायद उसकी मां थी। हरिशंकर का दिल पिघल गया।

भूख का त्याग

बच्ची ने वह नारंगी टॉफी खुद नहीं खाई थी। वह उस टॉफी को अपनी बीमार मां के सूखे होठों पर रगड़ रही थी और कह रही थी, “मां, थोड़ा मीठा खा ले। कड़वी दवाई का स्वाद चला जाएगा। फिर तुझे भूख भी लगेगी।”

हरिशंकर का निर्णय

हरिशंकर ने महसूस किया कि उस नन्ही सी जान ने अपनी भूख मिटाने के लिए नहीं, बल्कि अपनी बीमार मां को एक पल की खुशी देने के लिए उनसे भीख मांगी थी। हरिशंकर को अपनी 500 करोड़ की डील उस ₹1 की टॉफी के सामने मिट्टी के बराबर लगने लगी।

रमन का आगमन

तभी एक काली एसयूवी तेज रफ्तार में आई और सोमेश की कार के पास रुकी। उस एसयूवी से एक आदमी उतरा। हरिशंकर ने उसे पहचानने की कोशिश की। जैसे ही उस आदमी का चेहरा स्ट्रीट लाइट की रोशनी में आया, हरिशंकर ने अपना मुंह हाथ से दबा लिया। वह आदमी कोई और नहीं, उनका अपना दामाद रमन था।

साजिश का खुलासा

रमन ने सोमेश को गाल पर थप्पड़ मारा और कहा, “दवाई लेने गया या पुलिस को बुलाने? 15 मिनट हो गए। अगर आज रात वह बुड्ढा नहीं मरा तो कल सुबह वह अपनी सारी जायदाद उस चैरिटी ट्रस्ट के नाम कर देगा। फिर हम क्या करेंगे?”

हरिशंकर की रणनीति

हरिशंकर ने समझ लिया कि रमन ने उनकी जान के लिए साजिश रची है। उन्होंने झुककर कजरी और उसकी मां की तरफ देखा। “बेटा, मुझे छिपा लो। वो लोग मुझे मार डालेंगे।” बच्ची ने तुरंत अपनी बीमार मां के ऊपर उड़ा हुआ एक पुराना कंबल उठाया।

छिपने का प्रयास

“जल्दी इसके नीचे घुस जाओ,” बच्ची ने कहा। हरिशंकर ने बिना कुछ सोचे उस गंदे कंबल के नीचे कूदकर खुद को छिपा लिया। तभी भारी जूतों की आवाज सुनाई दी। “यह छोकरी,” रमन की आवाज थी। “यहां किसी बुरे आदमी को देखा है क्या?”

खतरे का सामना

कंबल के नीचे हरिशंकर की सांसे अटक गईं। रमन के जूतों की आवाज बिल्कुल उनके सिर के पास आकर रुक गई थी। हरिशंकर अपनी सांस रोककर पट रहे थे। “मैंने पूछा, यहां किसी को देखा है?” रमन चिल्लाया। बच्ची ने रमन की आंखों में आंखें डालकर देखा।

मासूमियत का नाटक

बच्ची ने अपने मैले हाथ आगे फैला दिए और अपनी फटी हुई आवाज में कहा, “साहब, दो दिन से कुछ नहीं खाया। ₹10 दे दोगे तो याद करने की कोशिश करूंगी।” रमन ने हिकारत से पीछे कदम हटाया। “बदबूदार भिखारी मुफ्त में कुछ नहीं बता सकती।”

सच्चाई का सामना

बच्ची ने सिक्के को झपटकर उठाया और उसे चूमा। “वो बूढ़ा कहां गया?” रमन ने पूछा। बच्ची ने इशारा किया। “वह कूड़ेदान के पास से भाग रहा था।” रमन ने उस दिशा में देखा और तेजी से उधर भाग गया।

सुरक्षित स्थान

हरिशंकर ने राहत की सांस ली। वह कांपते हुए उस गंदे कंबल से बाहर निकले। उनकी आंखों में आंसू थे। “बेटा, तुम जानती हो वह कौन था? अगर उसे पता चलता कि मैंने झूठ बोला है तो वह तुम्हें मार देता।”

कजरी की समझदारी

बच्ची ने कहा, “साहब, सदा पर हम रोज मरते हैं। कभी भूख से, कभी ठंड से, कभी अमीर गाड़ियों की टक्कर से। मौत से हमें डर नहीं लगता।” हरिशंकर का सिर शर्म से झुक गया।

नई पहचान

“मेरा नाम हरिशंकर है,” उन्होंने धीरे से कहा। “तुम्हारा नाम क्या है गुड़िया?” “कजरी,” बच्ची ने जवाब दिया। हरिशंकर ने अपनी जेब टटोली लेकिन खाली थी। “कजरी, मुझे तुम्हारी मदद चाहिए। मैं अपने घर नहीं जा सकता। वहां मौत मेरा इंतजार कर रही है।”

मां की हालत

तभी कजरी की मां जोर से खांसने लगी और उसके मुंह से हल्का खून आ गया। कजरी घबरा गई। “मां, मां, आंखें खोल।” हरिशंकर ने तुरंत उस महिला की नब्ज़ पकड़ी। “इसे तुरंत डॉक्टर की जरूरत है।”

डॉक्टर की तलाश

“मेरे पास डॉक्टर के पैसे नहीं हैं साहब,” कजरी ने कहा। “सरकारी अस्पताल वाले भी बिना पर्ची के दवाई नहीं देते।” हरिशंकर ने सोचा, उनके पास दौलत थी लेकिन बैंक में पैसे नहीं थे। तभी उनकी नजर अपनी कलाई पर पड़ी।

साहस का फैसला

हरिशंकर ने कलाई से अपनी रोलेक्स घड़ी खोली। “कजरी, इस शहर में एक जगह है जहां डॉक्टर पैसे नहीं, इंसानियत देखते हैं। और अगर पैसे मांगे भी तो यह घड़ी पूरा अस्पताल खरीद सकती है। चलो, तुम्हारी मां को बचाते हैं।”

कठिन यात्रा

हरिशंकर ने बीमार महिला को अपनी पीठ पर लादने की कोशिश की। “साहब, आपके कपड़े खराब हो जाएंगे,” कजरी ने कहा। “यह कपड़े अब मेरे किसी काम के नहीं बेटा।”

एक नई शुरुआत

अंधेरी रात में एक अरबपति और एक सड़क की बच्ची एक बीमार औरत को बचाने के लिए शहर की सुनसान गलियों में निकल पड़े। हरिशंकर का सफर उनके जीवन का सबसे लंबा और कठिन सफर था।

जीवन क्लीनिक

“बस आ गए साहब,” कजरी ने एक छोटे से नीले दरवाजे की तरफ इशारा किया। “जीवन क्लीनिक।” हरिशंकर ने अपनी आखिरी ताकत बटोर कर दरवाजे पर दस्तक दी। “डॉक्टर साहब, दरवाजा खोलिए। इमरजेंसी है।”

डॉक्टर की अनदेखी

एक बूढ़े डॉक्टर ने झांका। “सरकारी अस्पताल जाओ। यहां खैरात नहीं मिलती।” हरिशंकर ने चिल्लाकर खिड़की के पल्ले को पकड़ लिया। “पैसे नहीं चाहिए तुम्हें। मुंह मांगी कीमत दूंगा।”

घड़ी की कीमत

हरिशंकर ने झटके से महिला को एक बेंच पर लिटाया और अपनी कलाई से कीचड़ में सनी रोलेक्स घड़ी खोली। “यह घड़ी 50 लाख की है।” डॉक्टर की आंखें फटी की फटी रह गईं।

डॉक्टर का निर्णय

“अंदर लाओ जल्दी,” डॉक्टर ने दरवाजा खोल दिया। अगले 1 घंटे तक हरिशंकर और कजरी क्लिनिक के बाहर बेंच पर बैठे रहे। “हरिशंकर, रो मत गुड़िया, तेरी मां ठीक हो जाएगी।”

खुशखबरी

“साहब, आपने अपनी इतनी महंगी घड़ी दे दी,” कजरी ने कहा। “वो तो बहुत कीमती थी ना।” हरिशंकर ने फीका मुस्कुराते हुए कहा, “कीमती हां, बहुत कीमती थी। लेकिन आज मुझे पता चला कि उस घड़ी की सुइयों ने मुझे सिर्फ भागना सिखाया। जीना नहीं।”

संकट का समय

“तबाही होती है। क्या बकवास कर रहे हो?” रमन ने हंसते हुए कहा। “यहां कोई नहीं है ना पुलिस ना तुम्हारे बॉडीगार्ड।”

सच्चाई का सामना

“रमन, तुम चारों तरफ से घिर चुके हो। हथियार डाल दो,” एक भारी लाउडस्पीकर की आवाज गूंजी। हरिशंकर ने रिसीवर को अपनी पीठ के पीछे छिपा लिया।

अंतिम मुकाबला

“हरिशंकर ने एक गहरी सांस ली। “मेरी आखिरी इच्छा यह है, रमन, तुम एक बार पीछे मुड़कर देखो। क्योंकि पाप का घड़ा जब भरता है तो आवाज नहीं होती।”

पुलिस का आगमन

“बंदूक सीधा हरिशंकर के माथे पर तान दी।” तभी पुलिस की आवाज आई। “रमन, तुम चारों तरफ से घिर चुके हो।”

कजरी की बहादुरी

“नहीं, कजरी चिल्लाई और हरिशंकर के आगे कूद पड़ी। एक जोरदार धमाका हुआ। गोली हरिशंकर या कजरी को नहीं बल्कि रमन की कलाई पर लगी थी।”

नया जीवन

“हरिशंकर ने राहत की सांस ली। उन्होंने कजरी को अपने सीने से लगा रखा था।”

नई शुरुआत

“हरिशंकर ने कहा, ‘तुम जानती हो, तुमने मेरी जान बचाई।’ कजरी ने मुस्कुराते हुए कहा, ‘साहब, जो हमारी जान बचाता है, उसके लिए जान देना सौदा नहीं, फर्ज होता है।’”

समापन

“हरिशंकर ने कहा, ‘आज मैं अपनी संपत्ति का वारिस कजरी को घोषित करता हूं।’ हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। कजरी ने मुस्कुराते हुए हरिशंकर का हाथ थाम लिया।”

सीख

“उस दिन दुनिया ने देखा कि एक टॉफी की कीमत 500 करोड़ से भी ज्यादा हो सकती है।”

यह कहानी एक छोटे से बच्चे की मासूमियत और साहस को दर्शाती है, जिसने एक अरबपति की जिंदगी को बदल दिया। हरिशंकर ने सीखा कि असली धन केवल दौलत में नहीं, बल्कि इंसानियत में होता है।

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