यह जानते हुए भी कि मैं बांझ हूँ, दूल्हे के परिवार ने शादी के लिए मेरा हाथ माँगा। शादी की रात, जैसे ही मैंने कम्बल उठाया, वजह जानकर मैं दंग रह गई…

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शादी की रात कम्बल के नीचे छुपा सच

मेरा नाम अनन्या शर्मा है, उम्र 30 साल। जब मैं छोटी थी, तो सपनों में अपनी शादी, सुंदर दूल्हा, रंग-बिरंगे कपड़े और अपने बच्चों की कल्पना करती थी। लेकिन किस्मत ने मेरे लिए कुछ और ही सोच रखा था।

माँ बनने का सपना और एक कठोर सच

तीन साल पहले, जब मैं दिल्ली के एम्स अस्पताल में अपनी एक सर्जरी के बाद बेहोशी से उठी, डॉक्टर ने मुझे जो बताया, उसने मेरी ज़िंदगी बदल दी।
“अनन्या, तुम्हारी सेहत अब ठीक है, लेकिन… शायद तुम कभी माँ नहीं बन पाओगी।”
उनकी आवाज़ आज भी मेरे कानों में गूंजती है। उस पल मेरी आँखों के सामने अंधेरा छा गया। मेरे सारे सपने, मेरा भविष्य, सब कुछ जैसे किसी ने छीन लिया हो।

उस समय मेरे जीवन में रोहन था—पाँच साल से मेरा बॉयफ्रेंड। मैंने रोते-रोते उसे सारी सच्चाई बता दी। वह चुप रहा, मेरी आँखों में नहीं देख पाया। अगले दिन बस एक मैसेज आया—


“माफ़ करना, अब आगे नहीं बढ़ सकते।”
मैं समझ गई, मेरी कहानी अब अकेलेपन की कहानी हो जाएगी।

कबीर की मुलाकात और एक नई शुरुआत

समय बीतता गया। मैंने शादी, रिश्ते, माँ बनने के ख्वाब सब छोड़ दिए। अपने काम में खुद को डुबो दिया। फिर एक दिन, मेरी कंपनी की गुरुग्राम ब्रांच में नए ब्रांच मैनेजर आये—कबीर मल्होत्रा। वे मुझसे सात साल बड़े, शांत स्वभाव के, मुस्कुराती आँखों वाले व्यक्ति थे। ऑफ़िस में सब उनकी तारीफ करते, लेकिन मैं उनसे दूरी बनाए रखती। मुझे लगता था, एक बाँझ महिला को कोई क्यों अपनाएगा?

लेकिन कबीर ने मुझमें कुछ देख लिया था। वे जब देर तक ऑफिस में रुकते, तो मेरे लिए गरमागरम खाना लाते। कभी मेरी टेबल पर अदरक वाली चाय रख जाते। धीरे-धीरे, मैं उनकी अच्छाईयों को महसूस करने लगी। एक दिन, उन्होंने मुझे प्रपोज़ कर दिया।
मैं रो पड़ी। मैंने अपनी सच्चाई बताई—”मैं कभी माँ नहीं बन सकती।”
कबीर ने बस हल्की मुस्कान के साथ मेरे सिर पर हाथ रखा—
“मुझे पता है, अनन्या। मुझे फर्क नहीं पड़ता।”

परिवार की स्वीकृति और समाज की सोच

मुझे डर था कि उनके परिवार को यह मंज़ूर नहीं होगा। पर उनकी माँ, सविता मल्होत्रा, खुद मेरे घर आईं, मुझे गले लगाकर बोलीं—
“बच्चे तो भगवान की देन हैं, लेकिन बहू तो अपने मन से चुनते हैं।”

मैंने पहली बार महसूस किया कि शायद भगवान ने मेरे लिए कोई और खुशी छुपा रखी है। शादी की तैयारियों में सब इतने खुश थे कि मैं भूल गई कि कभी खुद को अधूरा मानती थी।

शादी की रात—कम्बल के नीचे छुपा सच

शादी का दिन आया। मैंने लाल लहंगा पहना, कबीर के साथ हौज़ खास के छोटे से हॉल में फेरे लिए। उनकी आँखों में प्यार देखकर मैं खुद को भाग्यशाली समझने लगी।

शादी की रात, मैं आईने के सामने बैठी थी, बालों में लगे सारे फूल और पिन उतार रही थी। कबीर कमरे में आए, मुस्कुराते हुए अपनी शेरवानी उतारी और कुर्सी पर रख दी। वे मेरे पास आए, मुझे पीछे से बाहों में भर लिया।
“थकी हो?”
मैंने सिर हिलाया, दिल ज़ोर से धड़क रहा था।
उन्होंने मेरा हाथ थामा, मुझे बिस्तर तक ले गए। फिर कबीर ने कम्बल उठाया—और मैं हैरान रह गई…

वहाँ, बिस्तर पर एक चार साल का प्यारा सा बच्चा गहरी नींद में सो रहा था। उसके गोल-मटोल गाल, घुँघराले बाल और नन्हीं उंगलियाँ एक पुराने टेडी बियर को कसकर पकड़े थीं।
मैं हकलाते हुए बोली—
“यह… कौन है?”

कबीर ने धीरे से मेरे कंधे पर हाथ रखा—
“यह मेरा बेटा है, आरव।”

कबीर की कहानी—एक बाप का दर्द और उम्मीद

कबीर ने गहरी सांस ली, उनकी आँखों में अतीत की परछाईं थी—
“उसकी माँ… मीरा, मेरी कॉलेज की दोस्त थी। हम दोनों प्यार करते थे, लेकिन हालात ऐसे बने कि उसकी शादी मुझसे नहीं हो पाई। मीरा की माँ बीमार थीं, वह पढ़ाई छोड़कर काम करने लगी। जब वह गर्भवती थी, तो उसने मुझे नहीं बताया। दो साल बाद, एक सड़क हादसे में उसकी मौत हो गई। तभी मुझे पता चला कि मेरा एक बेटा है। तब से वह अपनी नानी के पास जयपुर में था। अब जब उसकी नानी भी नहीं रहीं, तो मैं उसे अपने साथ ले आया।”

कबीर की आवाज़ भर्रा गई—
“मैं जानता हूँ, तुम्हें पहले बताना चाहिए था। पर मुझे डर था कि तुम भी मुझे छोड़ दोगी, जैसे सबने किया। लेकिन मुझे तुम्हारी ज़रूरत है, अनन्या। मुझे अपने बेटे के लिए एक माँ चाहिए, और खुद के लिए एक परिवार। मुझे फर्क नहीं पड़ता कि तुम बच्चे को जन्म दे सकती हो या नहीं, बस तुम उससे प्यार करो, यही काफी है।”

एक नई माँ का जन्म

मेरी आँखों में आँसू थे। मैंने बिस्तर पर बैठकर बच्चे के बालों को सहलाया। वह थोड़ी देर कुनमुनाया, फिर अपनी नींद में बुदबुदाया—
“माँ…”

उस एक शब्द ने मेरे भीतर की सारी दीवारें तोड़ दीं। मुझे लगा, जैसे भगवान ने मुझे एक और मौका दिया है—माँ बनने का, भले ही जैविक रूप से नहीं, पर दिल से।

मैंने कबीर की ओर देखा, उसकी आँखों में डर और उम्मीद दोनों थीं।
मैंने सिर हिलाया—
“हाँ, मैं आरव की माँ बनना चाहती हूँ।”

कबीर ने मुझे कसकर गले लगा लिया। खिड़की से चाँद की रोशनी कमरे में आ रही थी, जैसे हमारे नए रिश्ते को आशीर्वाद दे रही हो।

समाज की चुनौतियाँ और परिवार की ताकत

शादी के बाद, लोगों ने सवाल जरूर उठाए—”क्या अनन्या कभी माँ बन पाएगी?” “दूसरे की औलाद को कैसे अपना पाएगी?”
पर कबीर और उनकी माँ हमेशा मेरे साथ खड़े रहे। आरव ने भी मुझे जल्दी ही माँ कहना शुरू कर दिया। उसकी छोटी-छोटी बातें, मासूम मुस्कान और नटखट शरारतें मेरी दुनिया बन गईं।

ऑफिस में भी कई लोग पीठ पीछे बातें करते—”कबीर ने बाँझ लड़की से शादी क्यों की?” लेकिन कबीर हमेशा गर्व से मेरा हाथ थामे चलते।

माँ बनने की परिभाषा

समय के साथ मुझे समझ आया—माँ बनने के लिए सिर्फ़ बच्चे को जन्म देना जरूरी नहीं, दिल से अपनाना जरूरी है। हर रात जब आरव मेरी गोद में सिर रखकर सोता, जब उसकी छोटी उंगलियाँ मेरी उंगलियों में उलझ जातीं, तब मुझे लगता, भगवान ने मुझे सबसे बड़ा तोहफा दिया है।

कबीर के साथ मेरा रिश्ता भी और मजबूत हुआ। हम तीनों मिलकर एक खुशहाल परिवार बन गए। आरव की स्कूल मीटिंग, छुट्टियों की प्लानिंग, हर छोटी-बड़ी खुशी अब मेरी थी।

नया अध्याय—नयी खुशियाँ

आज मेरी शादी को दो साल हो गए हैं। मैं कभी-कभी अपने पुराने दिनों को याद करती हूँ, जब खुद को अधूरा समझती थी। अब समझती हूँ, अधूरापन सिर्फ सोच में होता है, प्यार में नहीं।

अगर कभी कोई महिला खुद को बाँझ कहकर रोती है, तो मैं उसे यही कहना चाहती हूँ—
“माँ बनना सिर्फ़ शरीर से नहीं, दिल से भी होता है।”

मैं जैविक रूप से माँ नहीं बन सकी, लेकिन आज मैं एक बेटे की माँ हूँ, एक पति की पत्नी हूँ, और सबसे बड़ी बात—मैं खुद से खुश हूँ।