रेलवे स्टेशन पर मिला गुमशुदा बच्चा कुली ने 4 दिन में उसके घर पहुँचाया तो उन्होंने जो किया वो देखकर आ

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श्यामू: एक कुली की असाधारण इंसानियत

कोलकाता का हावड़ा स्टेशन, एक ऐसा स्थान जहाँ हर दिन हजारों लोग आते-जाते हैं, अपने-अपने सफर में व्यस्त। इसी भीड़-भाड़ के बीच एक साधारण सा कुली था – श्यामू। उसकी पहचान उसके लाल वर्दी और सिर पर रखे बोझ से नहीं, बल्कि उसके दिल में धड़कती इंसानियत से थी।

श्यामू पिछले 15 सालों से स्टेशन पर कुली का काम कर रहा था। उसकी दुनिया स्टेशन की भीड़ से शुरू होकर पास की झुग्गी बस्ती की एक तंग खोली में खत्म हो जाती थी। उसकी पत्नी राधा और आठ साल की बेटी मुनिया, उसके जीवन का केंद्र थी। राधा घरों में चौका-बर्तन करती थी और मुनिया पढ़ने में तेज थी। श्यामू का सपना था कि मुनिया पढ़ लिखकर अफसर बने और उसे इस कुली की जिंदगी से छुटकारा मिल जाए।

एक दिन, गर्मी की दोपहर में, दिल्ली से आई पूर्वा एक्सप्रेस प्लेटफार्म नंबर नौ पर आकर रुकी। यात्रियों का सैलाब उमड़ पड़ा। श्यामू भी रोजी-रोटी की तलाश में उसी भीड़ का हिस्सा था। तभी उसकी नजर एक छह-सात साल के बच्चे पर पड़ी, जो महंगे कपड़े और ब्रांडेड जूते पहने हुए था। उसकी आँखों में डर और घबराहट थी। उसके कंधे पर स्पाइडरमैन वाला नीला बैग था। श्यामू को अपनी बेटी की याद आ गई। वह बच्चे के पास गया और नरमी से पूछा, “क्या हुआ बेटा? तुम्हारा नाम क्या है?”

बच्चा डरकर पीछे हट गया, लेकिन श्यामू ने उसे अपनी बेटी की तस्वीर दिखाकर भरोसा दिलाया। बच्चे ने धीरे से कहा, “मम्मा-पापा… ट्रेन में थे, भीड़ में हाथ छूट गया।” श्यामू ने चारों तरफ देखा, ट्रेन खाली हो चुकी थी। उसने बच्चे का हाथ पकड़ा और उसे जीआरपी चौकी ले गया। वहाँ हवलदार पांडे ने आलस से कहा, “इसे यहीं छोड़ दे, जब इसके मां-बाप आएंगे तो ले जाएंगे।” लेकिन चौकी का माहौल देखकर श्यामू का दिल बैठ गया। उसने फैसला किया कि वह बच्चे को चौकी में नहीं छोड़ेगा, बल्कि खुद उसके मां-बाप को ढूंढेगा।

शाम को वह रोहन को लेकर अपनी खोली में गया। मोहल्ले वालों ने ताने मारे, लेकिन श्यामू ने किसी की परवाह नहीं की। राधा ने चिंता जताई, “हम खुद मुश्किल से गुजारा करते हैं, एक और पेट कहां से पालेंगे?” लेकिन मुनिया ने रोहन को अपना खिलौना दे दिया और उसकी मुस्कान देखकर राधा का दिल भी पिघल गया। उस रात गरीबी नहीं, इंसानियत की चादर बिछी थी।

अगले दिन श्यामू रोहन को साथ लेकर स्टेशन गया, शायद कोई पहचान ले। उसने स्टेशन मास्टर, कुलियों, चाय वालों, बुक स्टॉल वालों से पूछा, लेकिन कहीं से कोई खबर नहीं मिली। उसकी कमाई भी आधी रह गई। राधा ने अपनी मां की दी हुई पायल गिरवी रखने को दी, ताकि घर में राशन आ सके।

तीसरे दिन, श्यामू ने रोहन से पूछा, “तुम ट्रेन में चढ़ने से पहले कहाँ थे?” रोहन ने कहा, “झूला, बड़ा वाला झूला।” श्यामू को लगा, शायद कोई सुराग है। उसने पायल गिरवी रखकर बस का टिकट खरीदा और रोहन को लेकर शहर के बड़े पार्कों में गया – ईडन गार्डन्स, निको पार्क, साइंस सिटी। लेकिन कहीं से कोई खबर नहीं मिली। शाम तक वह थक गया, पैसे खत्म हो गए और उम्मीद भी टूटने लगी। उसने तय किया कि कल रोहन को पुलिस चौकी में छोड़ आएगा।

रात को रोहन ने अपने बैग से ड्राइंग बुक निकाली और एक पन्ना पलटा, “चाचा, देखो यह मेरा घर है।” उसमें एक बड़ा सा घर, लाल गाड़ी और घर के ऊपर पंख जैसा निशान था। रोहन बोला, “पापा के ऑफिस पर भी ऐसा ही है।” श्यामू को याद आया – शहर के बिजनेस डिस्ट्रिक्ट पार्क स्ट्रीट में फिनिक्स टावर्स है, जिसके ऊपर पंख जैसा लोगो बना है। उसने फैसला किया, कल वह रोहन को लेकर वहाँ जाएगा।

चौथे दिन, श्यामू और रोहन फिनिक्स टावर्स पहुंचे। गार्ड्स ने उन्हें अंदर जाने से रोक दिया। श्यामू ने बहुत समझाया, लेकिन गार्ड ने धक्का देकर बाहर कर दिया। श्यामू निराश होकर सड़क किनारे बैठ गया। तभी ऑफिस के बाहर हलचल हुई, और श्री अर्जुन खन्ना – देश के टॉप बिजनेसमैन – वहाँ आए। रोहन ने उन्हें देखते ही चीख मारी, “पापा!” अर्जुन खन्ना ने अपने बेटे को गले लगा लिया, दोनों की आँखों में आंसू थे।

अर्जुन खन्ना ने श्यामू से पूछा, “तुम कौन हो भाई? मेरा बेटा तुम्हारे पास कैसे?” श्यामू ने पिछले चार दिनों की पूरी कहानी सुनाई – कैसे उसे रोहन मिला, कैसे पुलिस ने मदद नहीं की, कैसे उसने अपनी पत्नी के गहने गिरवी रखे, कैसे पार्कों में ढूंढा, और कैसे यहाँ तक पहुँचा। अर्जुन खन्ना भावुक हो गए। उन्होंने अपने असिस्टेंट से श्यामू के बारे में सब पता करने को कहा। फिर अपनी चेकबुक निकाली और ₹1 करोड़ का चेक श्यामू को दिया। श्यामू ने लेने से मना किया, लेकिन अर्जुन खन्ना ने कहा, “इसे अपनी बेटी मुनिया की पढ़ाई के लिए एक पिता का आशीर्वाद समझकर रख लो।”

अर्जुन खन्ना ने यहीं नहीं रुके। उन्होंने कहा, “आज से तुम कुली का काम नहीं करोगे। मेरी कंपनी फिनिक्स ग्रुप में काम करोगे। तुम्हें सम्मानजनक पद और अच्छी तनख्वाह मिलेगी। तुम्हारे परिवार को एक सुंदर फ्लैट मिलेगा, राधा का इलाज अच्छे डॉक्टर करेंगे, और मुनिया की पढ़ाई की पूरी जिम्मेदारी मेरी।” उन्होंने ऐलान किया कि फिनिक्स ग्रुप श्यामू के नाम पर “श्यामू सहारा फाउंडेशन” बनाएगा, जो देश के बड़े रेलवे स्टेशनों पर हेल्प डेस्क बनाएगा, खोए हुए बच्चों को उनके परिवारों से मिलाने का काम करेगा और श्यामू इसके पहले अध्यक्ष होंगे।

उस दिन के बाद श्यामू की जिंदगी बदल गई। वह झुग्गी से सुंदर फ्लैट में आ गया, राधा स्वस्थ हो गई, मुनिया अच्छे स्कूल में पढ़ने लगी, और श्यामू एक कुली से फाउंडेशन का अध्यक्ष बन गया। उसका काम था – हजारों रोहन जैसे बच्चों को उनके परिवारों से मिलाना।

यह कहानी हमें सिखाती है कि इंसानियत का कोई पद या पहचान नहीं होती। एक साधारण कुली भी अपने कर्मों से असाधारण बन सकता है। नेकी कभी बेकार नहीं जाती – जब लौटकर आती है तो दुनिया देखती रह जाती है।

अगर श्यामू की इस निस्वार्थ सेवा और इंसानियत ने आपके दिल को छुआ है तो इस कहानी को जरूर साझा करें।

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