विदेश के डॉक्टर हार गए थे, पर एक भिखारी बच्चे ने कहा —साहब, मैं आपकी पत्नी को ठीक कर सकता हूँ।
कहते हैं, दुनिया में इलाज बहुत है पर दुआ सिर्फ कुछ दिलों में होती है। एक एयरपोर्ट के कोने में एक अमीर आदमी, संजय सिंघानिया, अपनी बीमार पत्नी रीमा को व्हीलचेयर पर बैठाए खड़ा था। लंदन के हॉस्पिटल, बड़े डॉक्टर, लाखों का इलाज—सभी कोशिशें कर चुका था वह। पर आज उसकी आंखों में बस एक सवाल था, “क्या अभी कोई उम्मीद बची है?”
रीमा की हालत दिन-ब-दिन बिगड़ती जा रही थी। उसकी आंखों में रोशनी नहीं थी, चेहरा पीला और सूखा, जैसे बस सांस ले रही हो। संजय उसके बालों को धीरे-धीरे ठीक करता है, लेकिन उसकी आंखों में छिपी चिंता उसे और भी परेशान कर रही थी। फोन उसके हाथ में कंपन कर रहा था। वह कॉल उठाता है, “हां डॉक्टर, लंदन भी ले गया और स्विट्जरलैंड भी। सब कह रहे हैं, उम्मीद कम है।” उसकी आवाज भारी और टूटती हुई थी, जैसे कोई अंदर से लड़ रहा हो।
भाग 2: मासूमियत की दुआ
फोन काटते ही संजय के हाथ कांप जाते हैं। वह झुककर रीमा के हाथ पकड़ता है, “रीमा, मुझसे हार मत मानो। एक न एक दिन मैं तुम्हें खड़ा करूंगा।” लेकिन रीमा कुछ नहीं बोलती, बस आंखें बंद कर लेती है, जैसे दर्द और थकान दोनों साथ सो गए हों। तभी पास एक छोटा सा बच्चा आता है, नंगे पैर, फटे कपड़े, हाथ में स्टील की कटोरी लिए।
“साहब, मैं आपकी मैडम को ठीक कर सकता हूं,” वह मासूमियत से कहता है। लोग हंसने लगते हैं, लेकिन उस बच्चे की आंखों में दवा नहीं, बल्कि दुआ चमक रही थी। संजय ने पहले तो समझा नहीं, फिर चौंक गया।
“क्या बेटा, जाओ, यह खेल का समय नहीं है।”
छोटू ने गर्दन नहीं झुकाई, बस धीरे से बोला, “साहब, मैं ठीक कर सकता हूं। सब जगह कोशिश की ना, एक बार यहां भी कर लो, मुफ्त में। उम्मीद मिलती है, साहब।”
भाग 3: चमत्कार की शुरुआत
संजय खामोश रह गया। वह पल ऐसा था जैसे किस्मत दरवाजे पर खड़ी हो और दस्तक दे रही हो। छोटू ने अपनी छोटी सी स्टील की कटोरी जमीन पर रखी और रीमा के पास बैठ गया। “5 मिनट बस, अगर कुछ ना हुआ, मैं खुद चला जाऊंगा।”
संजय ने एक लंबी सांस ली, आंखें बंद कीं और भीतर की आवाज ने कहा, “कभी-कभी चमत्कार सबसे छोटे हाथों से होता है।” संजय सिंघानिया जिंदगी में कभी किसी के आगे नहीं झुका था, लेकिन उस वक्त उसकी आंखों में हार और दिल में एक आखिरी उम्मीद थी।
छोटू ने रीमा के हाथ को छूने की कोशिश की। संजय ने उसे देखा, उस बच्चे की आंखों में ना लालच था, ना झूठ। बस वह भाव जो सिर्फ वे लोग समझते हैं जिन्होंने खोया हो, पर फिर भी किसी के लिए दुआ दिल में बचाए रखी हो। संजय ने धीमे से सिर हिलाया, जैसे कह रहा हो, “कर लो। अब खोने को है ही क्या?”
भाग 4: दुआ का असर
छोटू ने अपना नन्हा हाथ रीमा की हथेली पर रखा। उसका हाथ ठंडा था, लेकिन उस बच्चे के हाथ में एक अनकही गर्माहट थी। आसपास से लोग गुजर रहे थे, कुछ रुक कर देखने लगे। कोई मुस्कुराया, कोई हंस दिया। लेकिन छोटू ने आंखें बंद की। होंठ ढिले, मगर कोई आवाज नहीं आई। जैसे वह किसी से बात कर रहा हो।
उसकी सांसें थोड़ी भारी हुईं और उसने धीरे-धीरे रीमा के पैरों को हल्के से रगड़ा। बहुत हल्के से। जैसे कोई मां अपने घायल बच्चे को सहला रही हो। संजय की आंखें टिक गईं। दिल कह रहा था, “कुछ होगा।” दिमाग कह रहा था, “यह बस बच्चा है।” कभी-कभी इंसान के सबसे बड़े दुश्मन उसके खुद के सवाल होते हैं।
भाग 5: एक नई रोशनी
रीमा का चेहरा स्थिर था। कोई हलचल नहीं। ठंडी हवा उसके बालों को छू रही थी। पास कहीं किसी बच्चे की हंसी गूंजी और फिर सन्नाटा। छोटू ने फिर धीरे से फुसफुसाया, “मैडम, उठिए ना। साहब बहुत रोते हैं रात को।” यह सुनकर संजय की आंखें भर आईं। उसने सिर मोड़ लिया, जैसे दुनिया उसकी कमजोरी ना देख ले।
उसी पल रीमा की उंगलियों में हल्की सी कंपन हुई। बहुत हल्की, जैसे कोई बंद दरवाजा धीरे से खुला हो और उम्मीद की रोशनी अंदर आई हो। संजय ने पलट कर देखा। सांस अटक गई। दिल जोर से धड़कने लगा। फिर एक और छोटी हरकत, रीमा की आंखों की पलकों में थोड़ी सी कंपन।
भाग 6: चमत्कार की पुष्टि
छोटू ने मुस्कुराते हुए आंख खोली, जैसे उसे मालूम था कि किसी ने उसकी बात सुन ली है। देखा, साहब, दुआ खाली नहीं जाती। बस दिल सच्चा होना चाहिए। संजय का गला भर आया। वह पास झुक कर बोला, “रीमा, सुन सकती हो?”
रीमा की पलकों ने धीरे से कांपते हुए जवाब दिया। दुनिया का सबसे महंगा इलाज, जिसे नहीं कर पाया, वो एक गरीब बच्चे की दुआ कर रही थी। आज पहली बार संजय को लगा कि शायद चमत्कार अस्पतालों में नहीं, कभी-कभी फुटपाथ पर भी मिल जाते हैं।
भाग 7: एक नया अध्याय
एयरपोर्ट की भीड़ के बीच, रीमा की पलकों में हलचल थी। संजय का दिल धड़क रहा था जैसे सालों बाद उम्मीद ने दरवाजा खटखटाया हो। वह धीरे से झुका। उसका हाथ रीमा के हाथ पर। “रीमा, सुन रही हो?” रीमा ने आंखें पूरी नहीं खोलीं, पर जैसे किसी भीतर के अंधेरे में एक चिंगारी जली हो।
छोटू मुस्कुरा रहा था। उसकी आंखों में वह चमक थी, जैसे कोई बच्चा जानता हो कि भगवान अभी यहीं है और सुन रहा है। भीड़ में से कुछ लोग रुक कर देखने लगे। कोई फुसफुसाया, “क्या हुआ?” दूसरा बोला, “लड़का झाड़फूं कर रहा है शायद।”
भाग 8: दुआ का असर
संजय को कोई आवाज नहीं सुनाई दे रही थी। उसके कानों में बस रीमा की हल्की सांस और दिल की धड़कन थी। छोटू ने फिर रीमा के हाथों को धीरे से सहलाया। जैसे कह रहा हो, “वापस आ जाओ मैडम। अब बहुत रुकी। बस अब चलो।”
संजय ने कांपती आवाज में कहा, “तुम कैसे कर रहे हो यह?” छोटू ने ऊपर देखा। उसकी आंखों में कोई किताबों वाला ज्ञान नहीं था। बस दर्द से पका हुआ भरोसा। “साहब, जब मेरी मां नहीं चल पाती थी, मैं उनके पैर ऐसे ही दबाता था। पापा कहते थे, दवा वहां से ठीक करती है जहां शरीर टूटे। दुआ वहां से जहां दिल टूटे।”
भाग 9: एक सच्ची कहानी
संजय की आंखें भीग गईं। उसने पूछा, “तुम्हारे पापा कहां हैं?” छोटू ने थोड़ी देर चुप रहकर कहा, हल्की हंसी में दर्द छुपाते हुए, “ऊपर। लेकिन मैं उनसे रोज बात करता हूं। वह सुनते हैं। आज भी सुनी।”
संजय का दिल भर आया। वह सोच रहा था, जिस बच्चे के पास रहने की जगह नहीं, खाने की गारंटी नहीं, उम्र खेल की है और जिंदगी ने उसे सड़क पर ला दिया। वह कैसे इतना मजबूत है? उसी पल रीमा की उंगलियां फिर हिली। इस बार थोड़ा ज्यादा, जैसे कोई नींद में करवट लेता है।
भाग 10: उम्मीद की किरण
संजय ने महसूस किया कि उसकी पत्नी की उंगलियों ने उसकी उंगलियों को हल्का सा दबाया। वह हिल गया। आंखें चौड़ी, सांसें तेज। “रीमा, रीमा तुम सुन रही हो?” रीमा की आंखें धीरे से खुली। धुंधली, थकी हुई, लेकिन खुली। उसके होठों पर बहुत धीमी, बहुत कमजोर पर साफ सुनाई देने वाली आवाज आई, “संजय।”
संजय की दुनिया जैसे भर आई। वह रो पड़ा, सार्वजनिक जगह पर, सूट में लोगों के बीच फिर भी रो पड़ा। उसने रीमा के माथे को चूमा। “रीमा, तुम वापस आ रही हो।”

भाग 11: चमत्कार का जश्न
भीड़ का शोर अब अप्लॉस में बदल गया। कुछ लोग रो दिए, कुछ हैरान थे। कुछ ने छोटे को भगवान का भेजा कहा। और छोटू, वो बस चुपचाप, धीमी मुस्कान के साथ अपनी कटोरी उठाकर खड़ा हो गया। जैसे उसका काम पूरा हो चुका हो।
संजय ने उसका हाथ पकड़ा। आंखों में कृतज्ञता समाई हुई थी। “छोटू, तुमने मेरी दुनिया लौटा दी।” छोटू ने सिर झुका कर बस इतना कहा, “साहब, मैंने नहीं, ऊपर वाले ने किया। मैं तो बस हाथ बना था।”
भाग 12: नई शुरुआत
उस पल एयरपोर्ट की चकाचौंध में एक सच्चा चमत्कार हुआ था और संजय को पहली बार लगा। दुआ असल में पंख होती है। रीमा की आंखें आधी खुली थीं, जैसे किसी गहरी नींद से लौट रही हो। संजय उसके हाथ पकड़े, डरा हुआ, रोता हुआ पर उम्मीद से भरा।
चारों तरफ भीड़ थी। एयरपोर्ट सिक्योरिटी के गार्ड भी रुक गए थे। लोग रिकॉर्ड करने लगे। पर संजय को कुछ सुनाई नहीं दे रहा था। उसके अंदर सिर्फ एक धड़कन थी, “रीमा, तुम वापस आ रही हो।”
भाग 13: एक नया जीवन
छोटू खड़ा था शांति से। जैसे उसे पहले से पता था कि यह होना ही था। संजय ने उसका हाथ पकड़ कर कहा, “छोटू, तू कहां रहता है? कौन है तेरा?” छोटू ने कटोरी को दोनों हाथों से पकड़ कर सीने से लगाया। जैसे उसका यही घर हो।
“साहब, घर तो कभी था। मम्मी-पापा के साथ। पापा गैरेज में काम करते थे। लोग कहते थे, उनके हाथों में जान है। फिर एक दिन दुर्घटना में दोनों चले गए। बस मैं रह गया।”
उसकी आवाज टूटी नहीं। जैसे दर्द उसकी आदत हो चुकी हो। “अब जहां रात मिल जाए, वहीं सो जाता हूं। कभी रेलवे स्टेशन, कभी फुटपाथ।”
भाग 14: एक नई दिशा
संजय सुनता रहा। उस इंसान की तरह नहीं जो अमीर हो, बल्कि उस इंसान की तरह जिसने पहली बार गरीबी की गंध को महसूस किया हो। “खाता कहां है?” संजय ने पूछा।
छोटू ने मुस्कुरा कर कहा, “जितना भगवान भेजता है, उतना खा लेता हूं। ना भेजे तो पापा की याद खा लेता हूं।” यह सुनकर संजय के आंसू बढ़ गए। वह झुक गया, सूट में रोड पर, एक छोटे बच्चे के सामने पहली बार अमीरी घुटने टेक चुकी थी।
भाग 15: एक नया सपना
“आज से तुम्हारी रात फुटपाथ पर नहीं कटेगी, छोटू। तुम मेरे साथ चलोगे। तुम्हें घर मिलेगा, खाना मिलेगा, स्कूल मिलेगा, सब मिलेगा।” छोटू ने हल्के से सिर हिलाया। उसकी आंखों में आंसू नहीं आए, शायद उसका रोना बहुत पहले सूख चुका था।
“साहब, अगर मैं आपके साथ चला गया तो जिनको दुआ चाहिए होगी, उनका क्या?” यह सुनकर भीड़ खामोश हो गई। किसी भी समझदार वाक्य से ज्यादा एक बच्चे की मासूम बात गहरी चुभती है।
भाग 16: दुआ का महत्व
संजय ने उसका चेहरा हाथों में लिया। “बेटा, दुआ देना मत छोड़ना। पर जिंदगी भी जीनी है। तुम्हारे पापा भी यही चाहते होंगे।” छोटू ने आसमान की तरफ देखा, जैसे पूछ रहा हो, “क्या सच में?” फिर धीरे से बोला, “अगर मैं चला जाऊं तो क्या मैं कभी वापस आकर दुआ दे सकता हूं?”
संजय ने सीने से लगा लिया। “छोटू, अब से यह दुनिया तुम्हारा इंतजार करेगी।” रीमा धीमे से मुस्कुराई। कमजोर लेकिन सच्ची मुस्कान, जैसे वह कहना चाहती हो, “हां, यही सही है।”
भाग 17: एक नई शुरुआत
तभी एक एयरपोर्ट कर्मचारी आगे आया। “सर, अगर मैडम की तबीयत अचानक बेहतर हुई है, तो मेडिकल रूम में चेकअप करा लेते हैं।” संजय ने कहा, “हां चलो।” उसने छोटू का हाथ पकड़ा, रीमा की व्हीलचेयर दूसरी हाथ में और तीनों धीरे-धीरे एयरपोर्ट के अंदर चले।
पहली बार संजय सिंघानिया अकेला नहीं था। उसके साथ चल रही थी दुआ और दुआ देने वाला। मेडिकल रूम की सफेद रोशनी, हल्की दवाइयों की खुशबू और बीच में रीमा का स्ट्रेचर। डॉक्टर ने टॉर्च से उसकी आंखों में रोशनी डाली, नब्ज़ चेक की। मशीन से रिपोर्ट निकाली।
भाग 18: उम्मीद की किरण
संजय का दिल धड़क रहा था। छोटू बस खड़ा था। हाथ जोड़े, जैसे किसी अपने की प्रार्थना कर रहा हो। डॉक्टर ने चश्मा उतारा। चेहरा हैरानी से भरा था। “संजय सर, यह कैसे हुआ?”
संजय कांपती आवाज में बोला, “क्या डॉक्टर?” डॉक्टर मुस्कुराया। पहली बार इतने दिनों बाद मुस्कान में उम्मीद थी। “रीमा जी की नसों में फिर से प्रतिक्रिया आ रही है। उनकी ब्रेन एक्टिविटी पहले से बेहतर है। यह मेडिकलली अप्रत्याशित है।”
भाग 19: एक नई जिंदगी
संजय की आंखें भर आईं। उसकी पलकों पर बूंदे इकट्ठी हो गईं। रीमा ने धीमे से हाथ उठाने की कोशिश की। छोटी सी हरकत, लेकिन दुनिया के सबसे बड़े जश्न जैसी। छोटू दौड़ कर उसके पास आया। फिर रुक गया, जैसे सम्मान से दूरी रखना चाहता हो।
रीमा की आंखें खुली। उसने छोटू को देखा। धीरे से हाथ बढ़ाया। छोटू ने हिचकिचाते हुए पकड़ लिया। “धन्यवाद बेटा,” रीमा की पहली साफ आवाज सुनाई दी। संजय फूट-फूट कर रो पड़ा। दुआ पूरी हो चुकी थी।
भाग 20: एक नया अध्याय
आज पैसा नहीं जीत पा रहा था, ना डॉक्टर, ना दुनिया। आज जीत एक भूखे बच्चे की सच्ची दुआ की थी। संजय उठकर छोटू के सामने घुटनों पर आ गया। “बेटा, तूने मुझे वापस जिंदगी दे दी। आज से तू मेरा बच्चा है। चल मेरे साथ, मैं तुझे घर दूंगा, पढ़ाई दूंगा, भविष्य दूंगा।”
छोटू की आंखें चमक उठीं। पहली बार बचपन उसके चेहरे पर लौटा। वो धीरे से बोला, “साहब, अब मैं भी किसी दिन किसी को दुआ दूंगा। और कहूंगा कि हाथ छोटे हो तो क्या? मन बड़ा होना चाहिए।”
भाग 21: एक नई शुरुआत
संजय ने उसे गले से लगा लिया। रीमा ने आंखों में आंसू लिए मुस्कुराया। तीनों साथ खड़े हैं। भीड़ देख रही है। कुछ लोग ताली बजाते हैं। कुछ रो देते हैं। और छोटू अपने छोटे हाथों से एक नई जीवन की दहलीज पर खड़ा है।
वो कटोरी, जिसे वो भीख के लिए पकड़े घूमता था, संजय ने पकड़ ली। धीरे से बंद कर दी और कहा, “अब यह जरूरत किसी और की होगी, तेरी नहीं।” छोटू ने आसमान की तरफ देखा, जैसे कह रहा हो, “पापा, देखो मैंने दुआ निभा दी।”
भाग 22: अंत में
धीरे-धीरे स्क्रीन काली होती है। कभी किसी को छोटा मत समझना। क्योंकि कभी-कभी भगवान सबसे बड़ी मदद सबसे छोटे हाथों से करवाता है। दोस्तों, अगर इस कहानी ने आपके दिल को छू लिया हो तो हमारे चैनल को लाइक करें, सब्सक्राइब करें और इस वीडियो को अपने दोस्तों और परिवार के साथ जरूर शेयर करें।
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