विदेश से वापस घर आ रहा था पति, स्टेशन पर भीख मांगती मिली पत्नी और फिर…
दोस्तों, यह कहानी है महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले की। विक्रम नाम का एक साधारण लड़का, जो एक ठीक-ठाक परिवार से था, दो साल विदेश में मेहनत करके पैसा कमाने गया था। उसे लगा था कि विदेश में रहकर खूब पैसा कमाएगा और लौटकर अपने परिवार को सुख-सुविधाएं देगा। लेकिन जब वह दो साल बाद अपने देश भारत लौटा और अपने गांव पहुँचा, तो उसकी आँखों के सामने ऐसा मंजर आया जिसने उसके दिल को चीरकर रख दिया।
हवाई जहाज से मुंबई उतरकर विक्रम ट्रेन पकड़ता है और अपने शहर औरंगाबाद की ओर रवाना होता है। रास्ते में ट्रेन एक स्टेशन पर करीब तीस मिनट के लिए रुकती है। विक्रम सोचा कि चलो इस बीच कुछ खाने-पीने का सामान ले आता हूँ। जैसे ही वह स्टेशन पर उतरकर आगे बढ़ता है, उसकी नज़र एक दृश्य पर जम जाती है। वहां उसने अपने बूढ़े मां-बाप और पत्नी प्रिया को देखा—वे सब रेलवे स्टेशन पर भीख मांग रहे थे।
विक्रम की आँखें फटी रह गईं। उसके मां-बाप, जिनके लिए वह विदेश गया था, जिनके लिए वह सपने बुन रहा था, वे आज भूख से तड़पकर लोगों से कह रहे थे—“साहब, कुछ पैसे दे दीजिए, दो दिन से कुछ नहीं खाया।” और उसकी पत्नी, प्रिया, जिसे उसने कभी पत्नी का सम्मान नहीं दिया, वह भी उसी हाल में थी। विक्रम का दिल टूट गया। जब प्रिया ने उसे देखा तो स्टेशन पर ही फूट-फूटकर रो पड़ी और उसके चरणों से लिपट गई।
अब सवाल उठता है—आखिर ऐसी नौबत क्यों आई? क्यों विक्रम के घर के लोग भीख मांगने पर मजबूर हो गए?
कहानी यहीं से शुरू होती है।
विक्रम के परिवार में उसके अलावा उसका बड़ा भाई रमेश और भाभी भी रहते थे। रमेश की पत्नी तेजतर्रार और चालाक किस्म की औरत थी। जब तक विक्रम अविवाहित था, उसकी भाभी ने उसे अपनी मीठी बातों और नजरों के जाल में फंसा लिया था। विक्रम उसकी बातों में ऐसा बहक गया कि अपनी असली पत्नी प्रिया की ओर कभी ध्यान ही नहीं दिया।
प्रिया गरीब घर की मगर बहुत नेकदिल लड़की थी। उसने हमेशा अपने पति विक्रम का सम्मान किया, मगर विक्रम अपनी भाभी के इशारों पर इतना नाचता रहा कि पत्नी को कभी प्यार नहीं दिया। अगर प्रिया हक जताने की कोशिश करती तो विक्रम उसे डांट देता या मार भी देता।
आखिरकार प्रिया तंग आकर अपने चचेरे भाई के साथ मायके चली गई।
इसी बीच विक्रम की भाभी का लालच और बढ़ गया। उसने विक्रम से कहा—“देवर जी, विदेश जाओ। वहाँ बहुत पैसा मिलेगा। जब पैसा होगा तो हम दोनों मजे करेंगे। मुझे भी साथ ले जाना।” भाभी की बातों में आकर विक्रम विदेश चला गया।
जाने से पहले उसने अपने माता-पिता को बड़े भाई और भाभी की जिम्मेदारी में छोड़ दिया और कहा कि वह विदेश से पैसा भेजता रहेगा। लेकिन जैसे ही विक्रम विदेश गया, उसकी भाभी और रमेश ने चाल चली। उन्होंने बूढ़े मां-बाप को तहसील ले जाकर कहा कि सरकारी योजना आई है, पेंशन मिलेगी। भोले-भाले मां-बाप ने कागजों पर अंगूठा लगा दिया और अपनी सारी जमीन-जायदाद बड़े बेटे के नाम कर दी।
संपत्ति हाथ आते ही रमेश और उसकी पत्नी ने बूढ़े मां-बाप को घर से निकाल दिया। बेचारे मजबूर होकर रेलवे स्टेशन पर भीख मांगने लगे।
इधर प्रिया भी घर छोड़कर भटक रही थी। कुछ दिनों तक रिश्तेदारों ने सहारा दिया, फिर ताने देने लगे। तंग आकर वह भी अकेली निकल पड़ी। जब उसने स्टेशन पर अपने बूढ़े सास-ससुर को देखा तो उनसे लिपटकर रोने लगी और बोली—“मां, बाबूजी, मैं भी आपके साथ रहूंगी।” प्रिया ने अपने सास-ससुर का सहारा बनना तय किया। कभी भीख मांगती, कभी मूंगफली बेचती और जैसे-तैसे गुज़ारा करती।
दो साल गुजर गए। उधर विदेश में विक्रम खूब मेहनत करता रहा, मगर उसका सारा पैसा भाभी के अकाउंट में जाता रहा। जब वह लौटा तो देखा घर पर ताला लगा है। पड़ोसियों ने बताया कि उसके भाई-भाभी सब बेचकर भाग गए और मां-बाप को धक्के देकर घर से निकाल दिया। यह सुनकर विक्रम का दिल दहल गया।
वह स्टेशन पहुँचा और अपने मां-बाप व पत्नी को देखकर टूटकर रोने लगा। प्रिया ने आज भी उसे उतना ही सम्मान दिया जितना पहले। विक्रम ने रोते हुए कहा—“प्रिया, मैंने तुम्हारे साथ बहुत गलत किया, मुझे माफ कर दो।” प्रिया बोली—“आपकी गलती नहीं थी, भाभी ने आपको बहकाया था। अब जब आपको सब समझ आ गया है, तो यही सबसे बड़ी बात है।”
विक्रम अपनी पत्नी और मां-बाप को लेकर शहर चला आया। मजदूरी करने लगा, फिर सब्जी की दुकान खोली। धीरे-धीरे मेहनत और ईमानदारी से उसने अच्छा कारोबार खड़ा कर लिया। प्रिया और माता-पिता की मदद से उसका काम बढ़ता गया। कुछ ही सालों में उसने अपनी खोई हुई इज्जत और संपत्ति दोनों से ज्यादा कमा लिया।
इधर रमेश और उसकी पत्नी, जिन्होंने लालच में सब किया था, जब पैसा खत्म हुआ तो अपने ससुराल में भी ठुकरा दिए गए। लोग कहने लगे—“जो अपने मां-बाप का ना हो सका, वह हमारा क्या होगा?” वे दर-दर की ठोकरें खाने लगे।
आखिर एक दिन वे विक्रम की सब्ज़ी मंडी में आ पहुँचे। वहाँ विक्रम मालिक बन चुका था। रमेश और उसकी पत्नी को देखकर विक्रम गुस्से से भर उठा, मगर उसके मां-बाप और प्रिया ने कहा—“बेटा, माफ कर दो। गलती इनसे भी हुई है, जैसे पहले तुमसे हुई थी। परिवार को जोड़ना ही असली धर्म है।”
विक्रम ने सोचा और आखिरकार अपने भाई का छोटा-मोटा काम शुरू करवा दिया। धीरे-धीरे दोनों भाई फिर से साथ हो गए।
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