वैष्णो देवी का दर्शन करने गया था पति… फूल बेचती मिली तलाकशुदा पत्नी, फिर जो हुआ…
कटरा की पवित्र घाटी में भोर का समय था। आसमान हल्की सुनहरी रोशनी से नहा रहा था और वातावरण में “जय माता दी” के गूंजते स्वर सुनाई दे रहे थे। जगह-जगह प्रसाद, नारियल और फूल-मालाओं की दुकानें सजी थीं। श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही थी, हर कोई माता वैष्णो देवी के दर्शन के लिए उत्साह से भरा हुआ था। उस भीड़ के बीच एक साधारण सी महिला भी खड़ी थी। चेहरे पर थकान, कपड़ों पर मैलेपन की परत, पर आंखों में एक अजीब सी चमक—जैसे हर दिन वह अपने संघर्षों से लड़ते हुए भी उम्मीद का दिया जलाए रखती हो। हाथ में फूलों की टोकरी थी और वह हर आने-जाने वाले से गुजारिश करती—“भैया, दस रुपए की माला ले लो। माता के चरणों में चढ़ा देना, माता खुश होंगी।”
लोग जल्दी-जल्दी निकल रहे थे, पर उसकी आवाज में मजबूरी की झलक साफ महसूस हो रही थी। कोई रुकता, तो कोई बिना ध्यान दिए बढ़ जाता। लेकिन वह महिला, जिसका नाम खुशबू था, हिम्मत नहीं हार रही थी। उसकी आवाज में दर्द भी था और श्रद्धा भी।
उसी समय सोनू मिश्रा अपने दोस्तों के साथ गाड़ी से उतरा। सभी मित्र हंसी-मज़ाक करते हुए मंदिर की ओर बढ़ रहे थे। सोनू के मन में यह विचार था कि माता के दरबार में माथा टेकते ही उसकी जीवन की सारी परेशानियाँ समाप्त हो जाएँगी। वह बेहद उत्साहित था। तभी उसके दोस्त ने फूल माला खरीदने के लिए जेब से पैसे निकाले। जैसे ही सोनू की नजर सामने खड़ी उस महिला के चेहरे पर पड़ी, उसके कदम वहीं थम गए।
सांसें तेज हो गईं, दिल धड़क उठा और आँखों के सामने अतीत की तस्वीरें कौंध गईं। वह महिला कोई और नहीं बल्कि उसकी तलाकशुदा पत्नी खुशबू थी। वही खुशबू, जिसके साथ उसने सात फेरे लिए थे, मगर चार साल पहले रिश्ता टूट गया था।
सोनू ने कांपती आवाज़ में कहा—“खुशबू…”
महिला के हाथ से टोकरी कांप गई। उसने धीरे से सिर उठाया, और दोनों की आंखें मिलीं। उस पल जैसे समय थम गया हो। आंखों में शिकायतें भी थीं, दर्द भी था, और अधूरी मोहब्बत का वह रंग भी, जिसे दोनों कभी भुला नहीं पाए थे।
खुशबू ने धीमी आवाज़ में कहा—“तुम… यहां?”
सोनू का गला भर आया। उसने भीड़ को अनदेखा करते हुए कहा—“हाँ, माता के दरबार आया था। पर यह क्या हाल बना लिया है तुमने? तुम यहां फूल बेच रही हो?”
खुशबू ने नजरें झुका लीं। हाथ कांप रहे थे, पर स्वर में कसक थी—“और क्या करूँ? तलाक के बाद मां और भाई-बहनों का पेट पालना है। किसी ने साथ नहीं दिया। मजबूरी में यही काम करना पड़ा।”
सोनू के दोस्त हतप्रभ होकर यह दृश्य देख रहे थे। एक ने धीरे से पूछा—“सच में यह तेरी पत्नी है?” सोनू ने आंखों में आंसू भरकर सिर हिलाया—“हां… कभी मेरी पत्नी थी। अब तलाकशुदा है।”
खुशबू ने तुरंत कहा—“अब यह बातें छोड़ो सोनू। भीड़ बढ़ रही है, लोग फूल लेने आए हैं। मुझे अपना काम करने दो।”
यह सुनकर सोनू के दिल पर हथौड़े सी चोट लगी। चार साल पहले जिसके साथ उसने सपनों की दुनिया बसाई थी, आज वही उसे पराया बना रही थी। वह आगे बढ़ा और उसका हाथ पकड़ना चाहा, लेकिन खुशबू ने झटके से हाथ खींच लिया—“भीड़ के बीच तमाशा मत बनाओ। लोग देख रहे हैं।”
भीड़ सचमुच रुककर देखने लगी थी। सोनू के दोस्त उसे किनारे ले गए और बोले—“भाई, अगर बात करनी है तो यहां नहीं। थोड़ी दूर जाकर बैठो।”
सोनू ने थरथराती आवाज़ में कहा—“खुशबू, मुझे तुमसे बात करनी ही होगी। चार साल का बोझ है दिल पर। क्या तुम थोड़ी देर मुझे वक्त दोगी?”
खुशबू चुप रही। आंखों से आंसू छलक पड़े, लेकिन पल्लू से पोंछ लिए। फिर धीरे से बोली—“ठीक है, पास की चाय की दुकान पर चलो।”
दोनों भीड़ से निकलकर एक छोटे से ढाबे पर बैठ गए। वातावरण में खामोशी थी। सोनू ने उसके चेहरे की ओर देखा और कहा—“खुशबू, मुझे बताओ तलाक के बाद तुम्हारे साथ क्या हुआ? तुम इस हाल में कैसे पहुंच गई?”
खुशबू ने गहरी सांस ली और धीमी आवाज़ में बोली—“सोनू, जिस दिन हमारा रिश्ता टूटा था, उसी दिन मेरी जिंदगी नरक बन गई थी। मायके लौटी तो मां अकेली थीं, पापा बीमार। उनके इलाज का खर्च, छोटे भाई-बहनों की पढ़ाई, सब मेरे कंधों पर आ गया। समाज ने ताने मारे—‘शादी टिकाई नहीं, अब घर कैसे संभालेगी?’ कोई मदद को आगे नहीं आया। फिर पापा भी चल बसे। मैं अकेली पड़ गई।”
उसकी आंखों से आंसू बह निकले। उसने आगे कहा—“शुरू में लोगों के घर बर्तन मांझे, कपड़े धोए। मगर उससे खर्च नहीं चलता था। एक पुजारी ने सुझाव दिया कि फूल बेच सकती हूं। मजबूरी में यही काम शुरू किया। रोज सुबह 40 किलोमीटर सफर कर यहां आती हूं। दिन भर भीड़ में खड़ी रहती हूं, फिर शाम को लौटती हूं। लोग मुझे सिर्फ फूल बेचने वाली समझते हैं, कोई मेरी सच्चाई नहीं जानता। तलाकशुदा औरत पर वैसे ही समाज की नजरें अच्छी नहीं होतीं। इसलिए चेहरे पर मुस्कान रखती हूं, मगर अंदर से हर रोज टूटती हूं।”
सोनू का दिल जैसे मरोड़ खा गया। उसने आंसुओं से भरी आंखों से कहा—“खुशबू, तुमने यह सब अकेले कैसे सहा? जब तुम्हें मेरी जरूरत थी, मैं तुम्हारे पास क्यों नहीं था?”
खुशबू ने तुरंत कहा—“क्योंकि तुमने कभी कोशिश ही नहीं की। तुम अपने मां-बाप के दबाव में आकर मुझे छोड़ गए। अगर उस दिन तुम मेरा साथ देते, तो मेरी जिंदगी आज अलग होती।”
सोनू के आंसू रुक नहीं पाए। उसने कांपते स्वर में कहा—“हाँ खुशबू, मैंने गलती की। मैं कायर निकला। लेकिन आज जब तुम्हें इस हाल में देख रहा हूँ तो खुद को कभी माफ नहीं कर पाऊंगा।”
खुशबू ने आंखें मूंद लीं। उसके चेहरे पर नफरत नहीं, सिर्फ दर्द था। वह बोली—“अब पछताने से क्या होगा सोनू? वक्त बीत चुका है। मैंने खुद को अपनी जिम्मेदारियों में डुबो दिया है। अब मेरे लिए तुम बस अतीत हो।”
सन्नाटा छा गया। पास बैठे लोग भी चुप हो गए। तभी सोनू ने धीरे से कहा—“खुशबू, मैं जानता हूँ कि तुम्हें अब मुझसे कोई उम्मीद नहीं है। लेकिन मैं तुम्हें और तुम्हारे परिवार को अकेला नहीं छोड़ सकता। चाहे हमारा रिश्ता टूट चुका हो, लेकिन दिल से तुम आज भी मेरी पत्नी हो। तुम्हारे भाई-बहनों की पढ़ाई, तुम्हारी मां की चिंता—सब मैं संभालूंगा। मुझे अपनी गलती सुधारने का मौका दो।”
खुशबू की आंखों में आंसू भर आए। उसने कांपती आवाज़ में कहा—“अब क्यों? जब मुझे तुम्हारी सबसे ज्यादा जरूरत थी, तब तुम नहीं आए। और अब जब मैं सब झेल चुकी हूं, तब मदद करने चले आए हो।”
सोनू ने सिर झुका लिया। उसके दोस्त भी बोले—“भाभी, इसमें आपकी गलती नहीं थी। गलती हालात की थी। लेकिन अब हालात सुधारे जा सकते हैं। आप अकेली क्यों सब झेलेंगी? हम सब आपके साथ हैं।”
खुशबू ने आंखें पोंछीं और बोली—“ठीक है सोनू। अगर सच में बदल गए हो तो पहले मेरी मां से मिलो। अगर उन्होंने माफ किया, तो शायद मैं भी मान जाऊं।”
अगले दिन सोनू उसके गांव पहुंचा। टूटा-फूटा घर, आंगन में सूखते कपड़े और दरवाजे पर बैठी दुबली पतली महिला—खुशबू की मां। उन्होंने बेटी को देख खुशी जताई, पर सोनू को देखते ही चेहरा कठोर हो गया।
सोनू उनके पैरों में गिर पड़ा—“मां, मैं वही हूं जिसने आपकी बेटी का साथ छोड़ा। मैंने उसकी जिंदगी उजाड़ दी। लेकिन आज आपसे माफी मांगने आया हूं। मुझे एक मौका दीजिए।”
मां की आंखों से आंसू बह निकले। उन्होंने कहा—“चार सालों से मेरी बेटी ने भूख, गरीबी, ताने सब सहा है। तू नहीं था उसके पास। अब अचानक लौट आया है। क्यों मानूं कि तू बदल गया है?”
सोनू रो पड़ा—“मां, मैंने गलती की थी। अब मैं उसकी हर जिम्मेदारी निभाना चाहता हूं। भाई-बहनों की पढ़ाई, बहनों की शादी सब मैं करूंगा। बस आप मुझे एक मौका दीजिए।”
मां की नजर बेटी पर गई। खुशबू की आंखों में थकान थी, पर कहीं न कहीं राहत भी। उसने धीमे स्वर में कहा—“शायद भगवान ने चाहा है कि सोनू फिर लौटे। मैं अब उसे दोष नहीं देती। मां, हमें इसे एक मौका देना चाहिए।”
मां का दिल पिघल गया। उन्होंने दोनों के सिर पर हाथ रखकर कहा—“ठीक है बेटा। अगर सच्चे मन से आया है तो मैं तुझे माफ करती हूं। पर याद रखना, अगर फिर कभी मेरी बेटी को तकलीफ दी तो यह मां तुझे कभी माफ नहीं करेगी।”
सोनू ने कसम खाई—“मां, अब ऐसा कभी नहीं होगा।”
उस दिन से सोनू ने खुशबू के परिवार की जिम्मेदारी संभाल ली। छोटे भाई को नौकरी दिलवाई, बहनों की पढ़ाई और शादी का इंतजाम किया। धीरे-धीरे खुशबू की जिंदगी में फिर से मुस्कान लौट आई।
कहते हैं, इंसान गलती कर सकता है। लेकिन अगर सच्चे दिल से पछताए और सुधारने की ठान ले, तो किस्मत भी नए रास्ते खोल देती है। सोनू और खुशबू की कहानी इसका जीता-जागता उदाहरण है।
Play video :
News
होटल के वेट्रेस से करोड़पति बोला– 1 लाख महीना दूंगा, मेरे घर चलो… फिर जो हुआ, इंसानियत रो पड़ी
होटल के वेट्रेस से करोड़पति बोला– 1 लाख महीना दूंगा, मेरे घर चलो… फिर जो हुआ, इंसानियत रो पड़ी यह…
Safai wala Samjh Kr Insult Kr Di Lekin Haqeeqat Jaan kr sb Hairan Reh Gy
Safai wala Samjh Kr Insult Kr Di Lekin Haqeeqat Jaan kr sb Hairan Reh Gy सुबह का समय था। इमारत…
गरीब समझकर किया अपमान ! अगले दिन खुला राज— वही निकला कंपनी का मालिक 😱 फिर जो हुआ…
गरीब समझकर किया अपमान ! अगले दिन खुला राज— वही निकला कंपनी का मालिक 😱 फिर जो हुआ… सुबह ठीक…
जब होटल की मालिकिन साधारण महिला बनकर होटल में गई… मैनेजर ने धक्के मारकर बाहर निकाला, फिर जो हुआ …
जब होटल की मालिकिन साधारण महिला बनकर होटल में गई… मैनेजर ने धक्के मारकर बाहर निकाला, फिर जो हुआ ……
कुली की काम कर रही थी पत्नी, स्टेशन पर मिला तलाकशुदा पति, फिर जो हुआ
कुली की काम कर रही थी पत्नी, स्टेशन पर मिला तलाकशुदा पति, फिर जो हुआ एक छोटे से गाँव में…
End of content
No more pages to load