“सब्जीवाली के साथ हुई गंदी हरकत का IPS ने लिया खौफनाक बदला 🔥

शहर की सुबह थी, चारों ओर शोरगुल था। लोग मोलभाव कर रहे थे, मजदूर ठेले खींचते नजर आ रहे थे। लेकिन इस सामान्य भीड़ में आज कोई खास शख्स मौजूद था। देखने वालों को लगा जैसे यह कोई बाहर की महिला है, पर किसी को अंदाजा नहीं था कि यह इस जिले अशोकनगर की नई आईपीएस रीना गुप्ता हैं। साधारण कपड़ों में, बिना किसी सरकारी गाड़ी या सिक्योरिटी गार्ड के, वह आम इंसान की तरह वहां खड़ी थीं। उनकी उम्र लगभग 30 साल थी। चेहरा शांत था, लेकिन आत्मविश्वास से भरा हुआ।

बुजुर्ग महिला से मुलाकात

आईपीएस रीना गुप्ता धीरे-धीरे चलते हुए एक ठेले के पास जा रुकी, जहां एक बुजुर्ग महिला सब्जी बेच रही थी। रीना ने हल्की मुस्कान के साथ पूछा, “अम्मा, गोभी क्या भाव दे रही हो?” महिला ने तराजू संभालते हुए जवाब दिया, “बेटी, आज गोभी ₹40 किलो है। आपको कितना चाहिए?” तभी सब्जी मंडी के शोर के बीच एक मोटरसाइकिल की तेज आवाज सुनाई दी। बाइक पर इंस्पेक्टर आकाश राणा मंडी में दाखिल हुआ। उम्र लगभग 45 साल, चेहरे पर रब और वर्दी का घमंड साफ झलक रहा था।

वह सीधे उसी बुजुर्ग महिला के ठेले पर रुका। इंस्पेक्टर को देखते ही महिला के चेहरे पर घबराहट छा गई। उसने सिर झुका कर धीमे स्वर में कहा, “आज क्या चाहिए आपको, इंस्पेक्टर साहब? जो भी चाहिए ले लीजिए।” इंस्पेक्टर ने हुक्म के लहजे में कहा, “1 किलो टमाटर दे और 1 किलो तोरई भी देना।” महिला ने बिना कोई सवाल किए तुरंत सब्जियां तोल कर दे दीं। इंस्पेक्टर ने सब्जियां लीं और बिना एक भी पैसा दिए अपनी मोटरसाइकिल पर बैठा और वहां से चला गया।

रीना का आक्रोश

यह सब देखकर आईपीएस रीना गुप्ता हैरान रह गईं। उन्होंने बुजुर्ग महिला से गंभीर स्वर में पूछा, “अम्मा, उस इंस्पेक्टर ने आपको सब्जियों के पैसे क्यों नहीं दिए? आपने उससे पैसे क्यों नहीं मांगे?” महिला की आंखों में लाचारी साफ झलक रही थी। दर्द भरे स्वर में उसने कहा, “बेटी, क्या कहूं? इसका तो रोज का यही काम है। यह इंस्पेक्टर हर दिन ऐसे ही बिना पैसे दिए सब्जियां ले जाता है। जब मैं मना करती हूं तो मुझे धमकाता है। कहता है, ‘मुझसे पैसे मांगेगी तू? तेरी इतनी हिम्मत, अभी तेरा ठेला उठवाकर नाले में फेंकवा दूंगा।’ बेटा, मुझे डर लगता है। अगर ठेला चला गया तो घर कैसे चलेगा? मेरे पति विकलांग हैं। उनका इलाज चल रहा है। हर हफ्ते उनकी दवाई लेनी पड़ती है। इसलिए मजबूरी में चुपचाप मैं इसे सब्जी दे देती हूं।”

रीना यह सुनकर भीतर तक हिल गईं। उन्हें यकीन नहीं हो रहा था कि जो लोग कानून के रखवाले हैं, वही कानून का मजाक बना रहे हैं। उन्होंने गहरी सांस ली और बुजुर्ग महिला से कहा, “अम्मा, इस इंस्पेक्टर को तो आपकी मदद करनी चाहिए थी। आप इस उम्र में भी मेहनत करके अपना घर चला रही हैं और ऊपर से यह आपको डराता धमकाता है। बिना पैसे दिए सब्जियां ले जाता है। सच में कलयुग आ गया है। लेकिन अब आपको डरने की जरूरत नहीं है।”

न्याय की उम्मीद

उन्होंने बुजुर्ग महिला का हाथ थामते हुए कहा, “अम्मा, अब मैं आपके साथ हूं। इस इंस्पेक्टर की दादागिरी अब और नहीं चलेगी। आप ऐसा कीजिए, मेरा नंबर ले लीजिए। कल जब आप ठेला लगाएंगी तो मुझे कॉल करना। कल आपके ठेले पर आप नहीं, बल्कि मैं रहूंगी। मैं खुद देखूंगी कि वह पैसे दिए बिना कैसे जाता है। अगर उसने फिर ऐसा किया तो मैं उसके खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई करूंगी और उसे कानून की असली ताकत दिखाकर रहूंगी।”

बुजुर्ग महिला की आंखों में कुछ उम्मीद जागी। उसे लगा कि शायद यह महिला मुझे उस इंस्पेक्टर से छुटकारा दिला सकती है। अगले दिन सुबह आईपीएस रीना गुप्ता ने गांव की एक साधारण औरत का रूप धारण किया। उसने एक साधारण साड़ी पहनी और वह सब्जी वाली बुजुर्ग औरत के ठेले पर आकर खड़ी हो गई। ठेले पर सब्जियां तरीके से सजी हुई थीं। ताजी गोभी, गाजर, भिंडी, हरी मिर्च और आलू टमाटर। चारों ओर वही रोज का सामान्य माहौल था। लोग आते-जाते मोलभाव करते।

इंस्पेक्टर का आगमन

कुछ ही देर में वही इंस्पेक्टर आकाश राणा अपनी मोटरसाइकिल पर वहां आ पहुंचा। उसने बाइक सीधे रीना के ठेले के पास रोकी और घूरते हुए बोला, “क्या बात है? आज फिर तू यहीं? वैसे तू उस औरत की क्या लगती है? कल भी तुझे यहीं देखा था और आज भी तू यहीं है।”

रीना ने सहजता से जवाब दिया, “मैं उनकी बेटी हूं। आज उनकी तबीयत खराब थी, इसलिए मैंने कहा कि आज ठेले पर मैं बैठ जाती हूं।” इंस्पेक्टर ने चालाकी भरी मुस्कान के साथ कहा, “ओह, तो तू उनकी बेटी है। उस बुढ़िया ने कभी बताया नहीं कि उसकी इतनी खूबसूरत बेटी भी है। सच कहूं तो बहुत प्यारी लग रही है।” उसने ठिठोली करते हुए पूछा, “और बता, शादी हो गई क्या तेरी?”

रीना ने शांत स्वर में कहा, “नहीं, अभी नहीं हुई।” इंस्पेक्टर ने हंसते हुए कहा, “ओह, अच्छा, मेरी भी शादी नहीं हुई है। मुझसे शादी करेगी?”

रीना ने दृढ़ स्वर में कहा, “नहीं, मुझे अभी शादी नहीं करनी।” इंस्पेक्टर हंसकर बोला, “अरे, मैं तो मजाक कर रहा था। छोड़ो यह सब। मुझे 1 किलो गोभी चाहिए। साथ में थोड़ा धनिया भी देना।”

पैसों की मांग

रीना ने बिना कुछ कहे चुपचाप सब्जियां तौल कर उसके हाथ में दे दीं। इंस्पेक्टर बोला, “अच्छा ठीक है, तो मैं चलता हूं।” जैसे ही इंस्पेक्टर सब्जियां लेकर जाने को हुआ, रीना ने तेज और सख्त आवाज में कहा, “रुकिए, इंस्पेक्टर साहब। आपने अभी तक सब्जियों के पैसे नहीं दिए।”

इंस्पेक्टर ठिठक गया। रीना फिर बोली, “सब्जियों के पैसे दीजिए। ऐसे नहीं चलेगा। यहां हमने कोई फ्री का भंडारा नहीं लगाया हुआ है।” इंस्पेक्टर झुंझुलाकर गुस्से में बोला, “कौन से पैसे? मैं तो रोज सब्जियां फ्री में लेता हूं। अपनी मां से पूछ लेना। वह तो मुझे कुछ नहीं कहती। और तू ज्यादा जुबान मत चला मेरे सामने।”

धमकी का सामना

वह जाने के लिए मुड़ा ही था कि रीना की आवाज और तेज हो गई। “रुकिए! आप मेरी मां से चाहे जैसे लेते हो, लेकिन मुझसे नहीं ले सकते। सब्जियों के पैसे तो देने होंगे आपको।” रीना ने फिर से कहा, “इंस्पेक्टर साहब, हमें भी पैसे खर्च करके ही यह सब्जियां लानी पड़ती हैं। और अगर हम एक दिन भी सब्जी ना बेचें, तो हमारे घर में चूल्हा नहीं जलता।”

रीना की आंखों में गुस्सा और आवाज में सख्ती थी। “आप जैसे लोग फ्री में सब्जी लेकर हमारे पेट पर लात मारते हैं।” इंस्पेक्टर साहब, इतना सुनते ही इंस्पेक्टर आकाश राणा का गुस्से का पारा और भी चढ़ गया। उसकी आंखें गुस्से से लाल हो गईं। बिना कुछ सोचे-समझे उसने अचानक आईपीएस रीना गुप्ता के गाल पर एक जोरदार थप्पड़ जड़ दिया।

आत्मसम्मान की लड़ाई

थप्पड़ इतना तेज था कि रीना एक कदम पीछे लड़खड़ा गई। उसे समझ ही नहीं आया कि यह अचानक उसके साथ क्या हो गया। उसकी आंखों से आंसू आ गए लेकिन उसने खुद को संभाल लिया। चेहरे पर दर्द साफ झलक रहा था, मगर उससे कहीं गहरी चोट उसके आत्मसम्मान पर लगी थी। अब चुप रहने का समय नहीं था। कांपती लेकिन दृढ़ आवाज में रीना बोली, “आपने एक महिला पर हाथ उठाकर बहुत बड़ी गलती की है। आपको अभी अंदाजा भी नहीं है कि आपने किस पर हाथ उठाया है। इसका अंजाम बहुत जल्द भुगतना पड़ेगा आपको।”

इंस्पेक्टर का पारा और चढ़ गया। वह गुर्रा कर चिल्लाया, “अबे तू क्या समझती है खुद को? कोई बड़ी रईस है, कोई कलेक्टर है, मंत्री है, तू है क्या? तेरी इतनी औकात कि मुझे आंख दिखा रही है।” गुस्से में बेकाबू होकर उसने रीना के बाल कसकर खींच लिए।

जोया दर्द से कराह उठी, मगर उसने हिम्मत नहीं हारी। किसी तरह झटके से अपने बाल छुड़ाए। उसकी सांसे तेज हो चुकी थीं। चेहरा लाल था। लेकिन हिम्मत पत्थर की तरह मजबूत खड़ी थी। कड़क आवाज में जोया बोली, “यह सब बहुत गलत हो रहा है। मैं तुम्हारे खिलाफ रिपोर्ट करूंगी। तुमने जो किया है, उसका हिसाब तो तुम्हें देना ही पड़ेगा।”

डर का अंत

पर इंस्पेक्टर तो अपनी वर्दी और रुतबे के नशे में चूर था। वह जोर से हंसता हुआ बोला, “मेरी खिलाफ रिपोर्ट करेगी तू? तेरी इतनी औकात है। तू एक मामूली ठेले पर सब्जी बेचने वाली और मैं इस इलाके का थानेदार। मैं तुझे यहीं खड़े-खड़े खरीद सकता हूं। ज्यादा जुबान चलाई तो उल्टा तुझे ही झूठे केस में फंसा कर जेल में डाल दूंगा।” इतना कहकर उसने अपनी मोटरसाइकिल स्टार्ट की और वहां से निकल गया।

जोया वहीं ठेले के पास खड़ी थी। उसके भीतर गुस्से का ज्वालामुखी फूटने को तैयार था। लेकिन उसने अपने आप पर काबू रखा। उसने मन ही मन ठान लिया था कि इस इंस्पेक्टर को ऐसा सबक सिखाएगी कि उसकी सात पुश्तें भी किसी महिला पर हाथ उठाने से पहले हजार बार सोचेंगी।

न्याय की तैयारी

उसने तुरंत सब्जी बेचने वाली बुजुर्ग महिला को बुलाया और चुपचाप वहां से निकल गई। वह सीधे अपने घर लौटी। साधारण साड़ी उतार कर अब उसने दूसरे कपड़े पहन लिए थे। उसके चेहरे पर एक तेज था और उसकी आंखों में न्याय की आग जल रही थी।

अगले दिन सुबह आईपीएस जोया सिंह अब अपने असली रूप में आ चुकी थी। वह सरकारी गाड़ी और सुरक्षा कर्मियों के साथ उस थाने के लिए निकल पड़ी। जैसे ही वह थाने में अंदर पहुंची, थाने में खलबली मच गई। जो स्टाफ कल तक उन्हें एक आम औरत समझ रहा था, आज उन्हें इस रूप में देखकर सन्न रह गया।

सच्चाई का सामना

मुख्य हॉल में उनकी नजर सीधे इंस्पेक्टर विजय राणा और एसएओ प्रीतम नायक पर पड़ी। कल तक रुतबे में रहने वाले दोनों के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं। विजय राणा सहमा हुआ बोला, “मैडम, आप कौन हैं?” प्रीतम नायक बोला, “आप तो कल भी आई थीं रिपोर्ट लिखवाने।”

जोया ने सख्त स्वर में कहा, “हां, मैं ही थी। मैं हूं इस जिले की नई आईपीएस अधिकारी जोया सिंह और अब मुझे सब पता है कि तुम दोनों किस तरह गरीबों को डराते हो। रिश्वत मांगते हो और वर्दी की आड़ में गलत काम करते हो।”

दंड की घोषणा

दोनों का रंग उड़ गया। प्रीतम नायक घबरा कर बोला, “मैडम, अगर आप सच में आईपीएस हैं तो कृपया आईडी दिखाइए।” जोया ने सरकारी आईडी निकाली और दोनों को दिखाया। आईडी देखते ही एसएओ प्रीतम नायक और इंस्पेक्टर विजय राणा के हाथ-पांव कांपने लगे।

प्रीतम नायक ने घबराकर कहा, “माफ कीजिए मैडम, हमसे बहुत बड़ी गलती हो गई।” विजय राणा भी सिर झुका कर बोला, “मैडम, जो कुछ हुआ वह दोबारा नहीं होगा।” लेकिन जोया अब पूरी सख्ती में थी। उन्होंने ठोस आवाज में कहा, “यह गलती नहीं, अपराध है और इसकी सजा जरूर मिलेगी।”

फिर उन्होंने दोनों की आंखों में सीधा देखते हुए कहा, “तुम दोनों माफी के लायक नहीं हो। तुम दोनों ने जो किया, वह किसी जिम्मेदार अधिकारी का काम नहीं था। वह तो सिर्फ एक अपराधी ही कर सकता है। अगर मैं आज तुम्हें माफ कर दूंगी, तो शायद कल तुम फिर किसी गरीब की आवाज दबाओगे। फिर किसी मजबूर मजदूर पर जुल्म करोगे।”

सच्चाई की गूंज

इतना कहकर उन्होंने तुरंत अपना मोबाइल फोन निकाला और जिले के एएसपी को कॉल लगाया। आदेश दिया, “फला थाने के एसएओ प्रीतम नायक और इंस्पेक्टर विजय राणा को तुरंत प्रभाव से निलंबित किया जाए। इनके खिलाफ विभागीय जांच शुरू की जाए। पूरी रिपोर्ट कल तक मेरी टेबल पर होनी चाहिए।”

एसपी ने आदेश मानते हुए तुरंत कार्रवाई शुरू कर दी। जोया ने थाने के बाकी स्टाफ की ओर देखा और दृढ़ स्वर में बोली, “अब इस थाने में गरीबों का शोषण नहीं होगा। वर्दी की आड़ में कोई भी अत्याचार बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।” पूरा थाना सन्नाटे में डूब गया। आज पहली बार वहां सच में इंसाफ की गूंज सुनाई दी।

नए सिरे से शुरुआत

इतना कहकर आईपीएस जोया सिंह वहां से जाने लगी। तभी दोनों अधिकारी, एसएचओ प्रीतम नायक और इंस्पेक्टर विजय राणा घुटनों के बल गिर गए। प्रीतम नायक कांपती आवाज में बोला, “मैडम, आप बिल्कुल सही कह रही हैं। हम सच में माफी के लायक नहीं हैं। लेकिन बस एक मौका दीजिए। हम सब कुछ बदल देंगे। गरीबों का सम्मान करेंगे। रिश्वत नहीं लेंगे और कानून का पालन करेंगे।”

विजय राणा भी सिर झुका कर बोला, “मैडम, माफ कर दीजिए। अगर अब गलती हुई तो आप हमें सस्पेंड मत कीजिएगा। सीधे जेल भेज दीजिएगा।” जोया सिंह ने सख्त आवाज में कहा, “तुम दोनों माफी के लायक नहीं हो। यह गलती नहीं, यह गुनाह है और गुनाह की माफी नहीं होती। तुमने सिर्फ एक आम बुजुर्ग महिला पर अत्याचार नहीं किया, बल्कि तुमने मेरे ऊपर भी एक महिला और एक आईपीएस अधिकारी पर हाथ उठाया। भूल गए क्या? कल अगर तुम किसी की जान लेने के बाद पैरों में गिरकर माफी मांगोगे तो क्या मैं माफ कर दूंगी? नहीं, कानून माफी नहीं देता और मैं भी तुम्हें माफ नहीं करूंगी।”

नए बदलाव की शुरुआत

पूरा थाना सन्नाटे में डूब गया। आज पहली बार हर किसी ने महसूस किया कि वर्दी से बड़ा कानून है और कानून से बड़ा न्याय। जोया सिंह ने आखिर में कहा, “याद रखना, वर्दी पहनने से कोई ईश्वर नहीं बन जाता। अगर वर्दी पहनकर गुनाह करोगे तो यही वर्दी तुम्हें सलाखों के पीछे भी भेज सकती है।”

इसके बाद आईपीएस जोया सिंह थाने से बाहर निकल गईं। पीछे सिर्फ सन्नाटा रह गया। उस दिन के बाद थाना सच में बदल गया। अब कोई रिश्वत नहीं मांगता। हर फरियादी को बराबरी से सुना जाता। गरीबों की एफआईआर बिना पैसे के दर्ज होती। बाजार, गलियों और चौराहों में अब पुलिस लोगों की मदद करती दिखती, डर नहीं फैलाती।

नए सिरे से जीवन

वही सब्जी वाली औरत, जो कभी सहमी रहती थी, अब अपने ठेले पर मुस्कुराती थी क्योंकि अब उसे किसी से डरने की जरूरत नहीं थी। इंस्पेक्टर विजय राणा और एसएओ प्रीतम नायक पर जोया के द्वारा की गई कार्रवाई ने पूरे जिले में एक संदेश भेजा।

अब हर कोई जानता था कि कानून का पालन करना ही असली जिम्मेदारी है और जो भी गलत करेगा, उसे उसकी सजा मिलेगी। जोया सिंह ने साबित कर दिया कि एक महिला की हिम्मत और दृढ़ता से समाज में बदलाव लाया जा सकता है।

संघर्ष का फल

इस तरह, आईपीएस जोया सिंह ने न केवल एक इंस्पेक्टर को सजा दिलाई, बल्कि पूरे सिस्टम में सुधार की नींव रखी। उन्होंने यह साबित कर दिया कि जब एक महिला अपने अधिकारों के लिए खड़ी होती है, तो वह न केवल अपने लिए बल्कि समाज के लिए भी एक मिसाल बन जाती है।

उनकी कहानी हर महिला को प्रेरित करती है कि अगर वे अपने हक के लिए खड़ी हों, तो कोई भी ताकत उन्हें दबा नहीं सकती। इस प्रकार, जोya सिंह का नाम हमेशा याद रखा जाएगा, न केवल एक आईपीएस अधिकारी के रूप में, बल्कि एक ऐसी महिला के रूप में जिसने अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई और समाज में बदलाव लाने की कोशिश की।

यह कहानी हमें यह सिखाती है कि सच्चाई और न्याय की राह कभी आसान नहीं होती, लेकिन अगर इरादा मजबूत हो, तो कोई भी बाधा हमें रोक नहीं सकती।

Play video :