साधारण लड़का समझकर अमीर लड़की मज़ाक उड़ाती थी | सच सामने आते ही पूरा कॉलेज हिल गया | फिर जो हुआ
दिल्ली की ठंडी शाम थी। जामिया नगर की गलियों में हल्की ठंडी हवा चल रही थी और सड़क किनारे चाय की दुकानों पर लोगों की भीड़ लगी थी। इन्हीं दुकानों में से एक पर 22 वर्षीय आरव अक्सर आया करता था। वह पास के कॉलेज से पत्रकारिता की पढ़ाई कर रहा था और खाली समय में लोगों को देखना, उनकी बातें सुनना उसे अच्छा लगता था।
आरव के जीवन में सब कुछ सामान्य था। मध्यमवर्गीय परिवार, पढ़ाई का दबाव, और भविष्य को लेकर सपने। लेकिन उस शाम उसकी नज़रें एक अनजाने चेहरे पर टिक गईं। एक लड़की हल्के पीले रंग का दुपट्टा ओढ़े चाय की दुकान पर आई। उसकी आँखों में अजीब-सी चमक थी, मानो वह भीड़ में भी अलग दिखाई दे रही हो।
आरव ने पहली बार उसे देखा और मन ही मन सोचने लगा—”कौन है यह?”
लड़की ने चाय ली और पास वाली बेंच पर बैठकर धीरे-धीरे पीने लगी। उसके व्यवहार में संयम और सादगी थी। वह किसी से बात नहीं कर रही थी, पर उसकी चुप्पी भी बहुत कुछ कह रही थी। आरव के लिए यह एक अजीब अनुभव था। कुछ ही मिनटों बाद वह लड़की चली गई।
अगले दिन फिर वही दृश्य दोहराया गया। वही लड़की, वही चाय की दुकान, वही सादगी। आरव ने हिम्मत जुटाई और दुकानदार से पूछा—”भाई, यह लड़की रोज़ आती है क्या?”
दुकानदार मुस्कुराया, “हाँ, बेटा। उसका नाम सना है। पास के हॉस्टल में रहती है। बहुत सीधी-सादी है, लेकिन ज्यादा किसी से मिलती-जुलती नहीं।”
आरव का मन और बेचैन हो गया। उसने तय कर लिया कि अगली बार उससे बात करेगा।
पहली मुलाकात
तीसरे दिन जब सना आई, तो आरव ने साहस जुटाकर कहा—”नमस्ते, मैं आरव। क्या मैं यहाँ बैठ सकता हूँ?”
सना ने हल्की मुस्कान के साथ कहा—”हाँ, क्यों नहीं।”
कुछ पल दोनों के बीच चुप्पी रही। फिर आरव ने पूछा—”आप भी कॉलेज में पढ़ती हैं?”
सना ने सिर हिलाया, “हाँ, समाजशास्त्र में एम.ए कर रही हूँ।”
धीरे-धीरे बातचीत शुरू हुई। आरव ने जाना कि सना उत्तर प्रदेश के छोटे से कस्बे से आई थी। परिवार साधारण था, पिता की छोटी नौकरी थी। सना पढ़ाई में हमेशा आगे रही थी और बड़े सपने लेकर दिल्ली आई थी।
उस दिन के बाद से दोनों की मुलाकातें रोज़ होने लगीं। कभी चाय की दुकान पर, कभी कॉलेज की लाइब्रेरी में, तो कभी यमुना किनारे टहलते हुए।
दोस्ती से रिश्ते तक
समय बीतता गया और दोनों की दोस्ती गहरी होती गई। आरव को सना की सादगी, उसकी सोच, और उसकी ईमानदारी बहुत पसंद आने लगी। वहीं, सना को आरव का आत्मविश्वास और उसकी साफ नीयत अच्छी लगने लगी।
एक दिन यमुना किनारे बैठे-बैठे आरव ने कहा—”सना, मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ।”
सना ने उसकी ओर देखा, “क्या?”
आरव ने हल्की हिचकिचाहट के बाद कहा—”मुझे लगता है कि मैं तुमसे… तुम्हारी दोस्ती से कहीं ज्यादा महसूस करने लगा हूँ।”
सना कुछ पल चुप रही। उसकी आँखों में हल्की नमी थी। फिर उसने कहा—”आरव, मैं भी ऐसा ही महसूस करती हूँ। लेकिन हमारे रास्ते आसान नहीं होंगे। मेरा परिवार बहुत परंपरागत है। उन्हें यह सब मंज़ूर नहीं होगा।”
आरव ने उसका हाथ थामते हुए कहा—”अगर सच्चाई और इरादा साफ हो तो कोई भी मुश्किल बड़ी नहीं होती। हम साथ रहेंगे।”
मुश्किलों की शुरुआत
कुछ महीनों बाद सना के पिता को उनके रिश्ते की खबर लग गई। उन्होंने सना को फोन करके कड़े शब्दों में कहा—”यह सब तुरंत खत्म करो। हम अपने समाज में ऐसी बातें बर्दाश्त नहीं कर सकते।”
सना टूटी-सी आवाज़ में बोली—”पापा, आरव बुरा इंसान नहीं है। वह मेहनती है, ईमानदार है।”
लेकिन पिता ने उसकी एक न सुनी। सना पर घर लौटने का दबाव बढ़ गया।
आरव यह सब देख रहा था। उसने सना से कहा—”अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हारे परिवार से मिलने जाऊँगा।”
सना ने डरी हुई आवाज़ में कहा—”नहीं, अभी नहीं। पापा बहुत गुस्से में हैं।”
स्थिति दिन-प्रतिदिन कठिन होती गई। सना का परिवार लगातार दबाव डाल रहा था। एक दिन उसके पिता और चाचा दिल्ली आए और हॉस्टल पहुँच गए। उन्होंने सना को डांटते हुए कहा—”तुम्हें अभी हमारे साथ चलना होगा।”
सना रोने लगी, “प्लीज़ पापा, मेरी बात सुनिए…”
लेकिन किसी ने उसकी बात नहीं सुनी।
संघर्ष
उस रात सना ने आरव को फोन किया। उसकी आवाज़ काँप रही थी—”आरव, मुझे कल गाँव ले जाया जाएगा। शायद मैं तुमसे फिर कभी न मिल सकूँ।”
आरव का दिल बैठ गया। उसने कहा—”सना, तुम अकेली नहीं हो। मैं तुम्हारे साथ खड़ा हूँ।”
आरव ने तुरंत योजना बनाई। अगले दिन सुबह-सुबह वह हॉस्टल पहुँचा और सना को लेकर भाग निकला। दोनों सीधे कोर्ट पहुँचे और शादी करने का निर्णय लिया।
वहाँ उन्हें बहुत मुश्किलें आईं। कागज़ी कार्यवाही, पुलिस की पूछताछ, और परिवार का दबाव। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। दो दोस्तों की मदद से शादी पूरी हुई।
नया सफ़र
शादी के बाद जीवन आसान नहीं था। न तो सना के परिवार ने उन्हें स्वीकार किया और न ही आरव का परिवार खुश था। आर्थिक परेशानियाँ भी सामने थीं। छोटे से किराए के कमरे में दोनों ने नई ज़िंदगी शुरू की।
आरव दिन में पढ़ाई करता और रात को फ्रीलांस लिखकर पैसे कमाता। सना ट्यूशन पढ़ाने लगी। धीरे-धीरे उनकी जिंदगी पटरी पर आने लगी।
कठिनाइयों के बावजूद उनके रिश्ते की डोर और मजबूत होती गई। दोनों एक-दूसरे का सहारा बने।
जीत
दो साल बाद आरव को एक बड़े अखबार में नौकरी मिल गई। उसकी मेहनत रंग लाई। वहीं, सना ने अपनी पढ़ाई पूरी कर विश्वविद्यालय में लेक्चरर की नौकरी पाई।
जब यह खबर उनके परिवारों तक पहुँची, तो धीरे-धीरे विरोध कम होने लगा। आखिरकार एक दिन सना के पिता दिल्ली आए। उन्होंने आँसुओं से भरी आँखों से कहा—”बेटी, शायद हम गलत थे। हमें तुम्हारे फैसले पर भरोसा करना चाहिए था।”
सना उनके गले लगकर रो पड़ी। आरव ने झुककर उनके पैर छुए।
अंत
आज पाँच साल बाद, आरव और सना का अपना घर है। उनकी छोटी-सी बेटी आर्या जब खिलखिलाकर हँसती है, तो दोनों के सारे संघर्ष भूल जाते हैं।
एक शाम बालकनी में बैठी सना ने कहा—”याद है आरव, वही चाय की दुकान? अगर उस दिन तुमने बात न की होती तो शायद हमारी कहानी शुरू ही न होती।”
आरव मुस्कुराया, “कहानी शुरू करना किस्मत का काम था, लेकिन उसे निभाना हमारा। और हमने साथ मिलकर निभाया।”
सना ने उसका हाथ थामा और आसमान की ओर देखते हुए बोली—”सच्चा प्रेम हमेशा जीतता है।”
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