सोने की दुकान से भिखारी समझकर निकाली गई महिला — जब सच्चाई सामने आई तो पूरा इलाका चुप हो गया

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सोने की दुकान से भिखारी समझकर निकाली गई महिला — जब सच्चाई सामने आई तो पूरा इलाका चुप हो गया

इंदौर शहर की भीड़भाड़ वाली एमजी रोड पर एक सर्दियों की दोपहर थी। दिसंबर 2022 का समय था। सूरज की किरणें हल्की चुभन पैदा कर रही थीं। उसी तपती धूप में एक दुबली-पतली बुजुर्ग महिला, सविता देवी, अपनी पुरानी लेकिन साफ साड़ी और घिसी हुई चप्पलों में राजमहल ज्वेलर्स की भव्य इमारत की ओर बढ़ रही थी। उसके हाथों में हल्की थरथराहट थी और चेहरे पर गहरी झुर्रियां, लेकिन आंखों में आत्मसम्मान की चमक थी।

सविता देवी ने बरसों तक छोटे-मोटे काम करके, कबाड़ चुनकर हर रुपया इकट्ठा किया था। उसका सपना था कि अपनी बेटी प्रिया शर्मा, जो अब प्रदेश की पुलिस अधीक्षक थी, को एक अनमोल तोहफा दे — एक हीरे की माला, जो मां के प्यार और त्याग का प्रतीक बन सके।

वह दुकान में दाखिल हुई, एसी की ठंडी हवा से साड़ी का पल्लू कसकर पकड़ लिया। दुकान में खड़े लोग उसकी ओर मुड़े — कुछ के चेहरे पर हंसी, कुछ की नजरों में तिरस्कार। किसी ने कहा, “यह यहां क्या कर रही है? लगता है भिखारण है।” सविता देवी ने सब सुना, मगर अनसुना करने की कोशिश की। वह काउंटर पर पहुंची और बोली, “बेटा, सबसे खूबसूरत हीरे की माला दिखाना।”

काउंटर पर खड़ा युवक विकास ताना मारते हुए बोला, “माई, यहां लाखों की मालाएं बिकती हैं। यह आपके देखने की जगह नहीं है।” पास खड़ी नेहा वर्मा बोली, “आप बस देखने आई हैं ना? तो जल्दी करिए, अमीर ग्राहक इंतजार कर रहे हैं।” सविता देवी ने संयमित स्वर में कहा, “बेटा, मैं खरीदने आई हूं। कई सालों से पैसे जोड़ रही हूं।”

इतना सुनते ही दुकान का मालिक रमेश अग्रवाल बाहर आया। उसने गुस्से में सिक्योरिटी गार्ड्स को इशारा किया, “निकालो इसे बाहर, दुकान की इज्जत गिर रही है।” दोनों गार्ड्स ने सविता के बाजुओं को पकड़कर बाहर कर दिया। भीड़ में खड़े लोग हंस रहे थे, कोई आगे नहीं बढ़ा। सविता की आंखों से आंसू छलक पड़े। उसने कहा, “मैंने भिक्षा नहीं मांगी, मैं तो बेटी के लिए तोहफा लेना चाहती थी।” उसकी आवाज भीड़ के शोर में खो गई।

वह फुटपाथ पर बैठ गई। चाय बेचने वाले राहुल ने यह सब देखा, उसका दिल भी कसक उठा। सविता वहीं बैठी रही, पुरानी यादें तैरने लगीं — कबाड़ बिनकर बेटी की किताबें खरीदना, भूखे पेट भी प्रिया को पढ़ाई छोड़ने नहीं देना। आज जब बेटी प्रदेश की बड़ी अधिकारी बन गई है, तब भी मां को कोई इस तरह नीचा दिखा सकता है।

शाम को घर लौटकर सविता ने अपनी बेटी को फोन किया। प्रिया ने मां की बात सुनी, उसकी आंखें भर आईं। उसने कहा, “मां, कल सुबह मैं आ रही हूं। यह मामला ऐसे नहीं रहेगा। किसी को हक नहीं है कि आपकी गरिमा छीन ले।”

अगले दिन प्रिया साधारण कपड़ों में मां के साथ दुकान पहुंची। इस बार सविता अकेली नहीं थी। दोनों ने काउंटर पर जाकर हीरे की माला दिखाने को कहा। फिर वही तिरस्कार — “यह दुकान आपके लिए नहीं है।” लेकिन इस बार प्रिया ने शांत स्वर में कहा, “हम ग्राहक हैं, हमें बाहर निकालने का अधिकार आपके पास नहीं।”

मालिक रमेश ने फिर गार्ड्स को इशारा किया, लेकिन प्रिया ने कहा, “अगर आपने हमें सेवा देने से मना किया, तो रजिस्टर में कारण दर्ज कीजिए।” दुकान में माहौल बदलने लगा। कुछ ग्राहकों ने समर्थन किया।

फिर प्रिया ने कैमरा फुटेज चलाने को कहा। वीडियो में साफ दिखा कि कल कैसे सविता को अपमानित किया गया था। भीड़ में खड़े लोग असहज हो गए। मिसेज कपूर बोली, “कपड़ों से नहीं, बर्ताव से इंसान की पहचान होती है।”

प्रिया ने दुकान के मालिक से सार्वजनिक माफी और सुधार की मांग की। नियम तय हुए — हर कर्मचारी को ग्राहक सेवा का प्रशिक्षण मिलेगा, किसी को कपड़े या हालात देखकर नहीं आंका जाएगा, बिना कारण किसी को छुआ या धक्का नहीं दिया जाएगा, दुकान में बोर्ड लगेगा ‘हर ग्राहक सम्मान का हकदार है’, और एक हिस्सा गरीबों की मदद को दिया जाएगा।

कुछ दिनों बाद दुकान में प्रशिक्षण सत्र हुआ। गार्ड्स और कर्मचारी ने शपथ ली। सविता देवी के लिए वही जगह अब गरिमा की प्रदर्शनी बन गई थी।

मगर प्रिया जानती थी कि असली इम्तिहान अभी बाकी है। एक दिन एक गरीब आदमी दुकान में आया, सस्ता छल्ला पूछने पर फिर तिरस्कार झेलना पड़ा। प्रिया ने अधिकारियों को रिपोर्ट किया। नगर निगम ने सभी दुकानों को ग्राहक सम्मान प्रशिक्षण अनिवार्य कर दिया।

सविता देवी को मंच पर बुलाया गया। उन्होंने कहा, “जब कोई इंसान आपकी दुकान में आता है, वह केवल गहना नहीं, इज्जत ढूंढता है।”

समाज में बदलाव की लहर दौड़ गई। अब हर दुकान में बोर्ड लगा था — हर ग्राहक सम्मान का हकदार है।

कुछ हफ्तों बाद सविता अपनी बेटी के साथ नदी किनारे बैठी थी। उन्होंने प्रिया को लकड़ी का ‘धैर्य’ वाला लॉकेट दिया — “यह मेरा सबसे कीमती गहना है।”

प्रिया ने मन ही मन सोचा, लड़ाई अभी पूरी नहीं हुई, लेकिन दिशा सही है। अगर एक दुकान बदल सकती है, तो पूरा समाज भी बदल सकता है।

यह कहानी केवल एक मां या एक पुलिस अधिकारी की नहीं, बल्कि पूरे समाज का आईना है। सम्मान मुफ्त है, लेकिन इसकी शक्ति अनमोल है। आइए, हम सब मिलकर यह ठान लें कि हर किसी को पूरे आदर के साथ पेश आएंगे। तभी कल की पीढ़ियां बेहतर समाज में सांस ले पाएंगी।

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