हेमा मालिनी चिल्लाती रही लेकिन नहीं करने दी अंतिम रस्मे पूरी रोते हुए वापस लौटी HemaMaliniDeolfamily
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धर्मेंद्र की वसीयत, परिवार का दर्द और एक नई शुरुआत: एक भावुक कहानी
मुंबई। कहते हैं जब कोई महान इंसान इस दुनिया से जाता है, तो उसके पीछे सिर्फ यादें ही नहीं, कई सवाल, रहस्य और टूटे हुए रिश्ते भी छोड़ जाता है। ठीक यही हुआ जब बॉलीवुड के शेर, लाखों दिलों के बादशाह धर्मेंद्र साहब ने 24 नवंबर 2025 को इस दुनिया को अलविदा कहा। पूरे देश में शोक की लहर दौड़ गई, फैंस सड़कों पर रो रहे थे, हर न्यूज़ चैनल श्रद्धांजलि चला रहा था। लेकिन उनके घर के भीतर एक ऐसा तूफान उठ रहा था, जिसे सुनकर हर कोई हैरान रह गया।
परिवार में उठता भावनाओं का तूफान
धर्मेंद्र के जाने के बाद सबको लगा था कि अब परिवार एकजुट हो जाएगा, एक दूसरे को सहारा देगा। लेकिन हुआ इसका उल्टा। उनके निधन के कुछ ही घंटे बाद वसीयत, दौलत, प्रॉपर्टी और एक रहस्यमय लिफाफा ने रिश्तों में दरार डाल दी। उसी रात घर में एक ऐसी घटना घटी जिसका सच जानकर पूरी इंडस्ट्री दहल उठी।
शाम के सात बजे का समय, बरसात की हल्की बूंदें, सन्नाटा और घड़ी की टिकटिक। सनी देओल आंखों में गुस्सा, दुख और जिम्मेदारी का तूफान लिए बैठे थे। हेमा मालिनी की आंखों में खामोशी का समंदर था और दूर कुर्सी पर बैठी प्रकाश कौर के चेहरे पर बरसों की चुप्पी का लावा। पंडित जी ने अंतिम पूजा खत्म कर कहा—अब वसीयत पढ़नी होगी, वरना सब कुछ कानूनी मुश्किल में पड़ सकता है।

वसीयत और पुराना रहस्य
सनी ने विरोध जताया, “अभी वसीयत की जरूरत नहीं, पापा को गए अभी दो दिन हुए हैं।” हेमा मालिनी ने ठंडे स्वर में कहा, “सच जितना देर से खुलेगा उतना ज्यादा जलेगा।” बॉबी देओल दीवार पकड़े खड़ा था, उसकी आंखों में आंसू थे, तनाव की लकीरें उग आई थीं। प्रकाश कौर की आंखें लाल हो चुकी थीं, “अब सच सामने आएगा। अब पता चलेगा कौन कितना अपना था।”
धर्मेंद्र साहब के पुराने कमरे में सब पहुंचे। अलमारी खोली गई, तिजोरी निकाली गई। चाबी ईशा देओल ने दी। तिजोरी खुली तो उसमें सिर्फ वसीयत नहीं थी, बल्कि एक पुराना पीला लिफाफा था जिस पर लिखा था—”यह तब खोला जाए जब सच जानने की ताकत रखो।”
सच का खुलासा: धर्मेंद्र की आखिरी इच्छा
पहले वसीयत पढ़ी गई, लेकिन प्रकाश कौर ने जोर दिया कि पहले लिफाफा खोला जाए। लिफाफा खोला गया, उसमें एक पुरानी डायरी का पन्ना था जिस पर कांपती लिखावट में लिखा था:
“अगर यह पन्ना पढ़ रहे हो तो समझो मैंने अपनी आखिरी सांस ले ली है। मेरी गलती ने दो परिवारों को बांट दिया। मेरी संपत्ति पर मत लड़ना, असली खजाना उस अलमारी के पीछे छुपा है।”
अलमारी को पीछे हटाया गया, दीवार में एक गुप्त दरवाजा मिला। अंदर एक बॉक्स था, जिसमें धर्मेंद्र साहब की वीडियो रिकॉर्डिंग थी। वीडियो में धर्मेंद्र ने कहा:
“अगर यह वीडियो देख रहे हो तो समझ लो, मैंने जिंदगी में कई गलतियां की। दो परिवार बनाए, दो औरतों को दर्द दिया, बच्चों को बांट दिया। अब मेरी आखिरी इच्छा है—मेरी पूरी संपत्ति, जमीन, दौलत सब एक ट्रस्ट के नाम होगी, जो गरीब बच्चों की शिक्षा और इलाज पर खर्च होगा। तुम सबको कुछ नहीं मिलेगा, असली लड़ाई देश के उन बच्चों की है जो रोज भूख से मरते हैं। अगर सच में मुझसे प्यार था तो आज एक दूसरे का हाथ पकड़ कर खड़े होना, क्योंकि मरकर भी मैं तुम्हें टूटते हुए नहीं देख सकता।”
परिवार का भावुक मिलन
वीडियो खत्म होते ही कमरे में सन्नाटा छा गया। हेमा मालिनी जमीन पर बैठ गई, प्रकाश कौर की आंखों से आंसू बह रहे थे। सनी ने रिकॉर्डिंग बंद करने की कोशिश की लेकिन हाथ कांप रहे थे। बॉबी दीवार के सहारे खड़ा था, चेहरे पर दर्द था। प्रकाश कौर और हेमा मालिनी, जिनकी पूरी जिंदगी धर्मेंद्र के लिए दांव पर लगी थी, एक पल में ऐसा महसूस करने लगीं जैसे उनके दिल में कोई तेज खंजर घोंप दिया गया हो।
उस रात घर में किसी ने खाना नहीं खाया, सब अपने-अपने कमरों में लौट गए। सनी अपने कमरे में बैठा, धर्मेंद्र साहब की पुरानी डायरी खोली। उसमें लिखा था—”शुरुआत हमेशा सच्चाई से होनी चाहिए क्योंकि झूठ से बनी इमारत बरसात में टिक नहीं सकती।”
सुबह की नई शुरुआत
सुबह सूरज की हल्की किरणें कमरे में आईं। सभी बैठक में फिर से इकट्ठे हुए। इस बार चेहरों पर गुस्सा नहीं, बल्कि थकान, समझ और पछतावा था। सनी ने धीमी आवाज में कहा, “पापा ने जो कहा वही होगा, कोई विरासत नहीं मांगेगा, सब उनके सपने को आगे बढ़ाएंगे।” बॉबी ने सिर उठाया, “मैं सहमत हूं भैया, अगर पापा चाहते थे कि ट्रस्ट बने तो बनेगा।”
सबसे भावुक पल तब आया जब प्रकाश कौर ने धीरे-धीरे हेमा मालिनी का हाथ पकड़ लिया। दोनों की आंखों में आंसू थे, लेकिन उन आंसुओं में नफरत नहीं, बल्कि समझ और इंसानियत थी। प्रकाश ने कहा, “वसीयत पर लड़ाई नहीं होगी। धर्मेंद्र सिर्फ मेरा ही नहीं, तुम्हारा भी था। हम दोनों उसकी कहानी का हिस्सा हैं।”
सनी, बॉबी, हेमा और प्रकाश एक दूसरे के गले लग गए। पहली बार बिना किसी कैमरे, दुनिया या मजबूरी के सिर्फ पिता की आखिरी इच्छा ने सबको फिर से एक कर दिया।
धर्मेंद्र फाउंडेशन ट्रस्ट: विरासत का नया अध्याय
उस शाम एक ऐलान हुआ—प्रेस, मीडिया, पूरे देश के सामने धर्मेंद्र फाउंडेशन ट्रस्ट आधिकारिक रूप से बनाया जाएगा, जो गरीब बच्चों की शिक्षा, इलाज और बुजुर्ग कलाकारों की मदद करेगा। किसी ने कुछ नहीं मांगा, किसी ने हिस्सा नहीं लिया। वसीयत कागजों में नहीं, दिलों में बंट गई।
सनी देओल ट्रस्ट के अध्यक्ष बने, बॉबी संचालन प्रमुख, हेमा सांस्कृतिक कार्यक्रमों की अध्यक्ष और प्रकाश कौर महिला सशक्तिकरण विभाग की प्रमुख। जब रात को ट्रस्ट की इमारत का पहला पत्थर रखा गया, सब ने आसमान की ओर देखा—कहीं बादलों के पीछे से धर्मेंद्र की मुस्कान चमक रही थी।
निष्कर्ष: लड़ाई घर तोड़ती है, प्यार इतिहास बनाता है
सनी ने धीरे से कहा, “पापा, आज आपने हमें फिर से परिवार बना दिया।” हवा में उनकी आवाज लौट आई—”लड़ाई घर तोड़ती है, प्यार इतिहास बनाता है।” और इसी के साथ एक कहानी खत्म हुई, जो सिर्फ विरासत की नहीं, बल्कि रिश्तों, समझदारी और इंसानियत की थी।
धर्मेंद्र साहब की आखिरी इच्छा ने परिवार को फिर से जोड़ दिया। उनकी संपत्ति अब देश के बच्चों की मदद करेगी। परिवार ने उनके फैसले को दिल से स्वीकार किया। यह कहानी हमें सिखाती है कि असली विरासत संपत्ति नहीं, बल्कि प्यार, समझ और इंसानियत है।
ओम शांति।
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