हेमा मालिनी हाथ-पैर जोड़ती रहीं, सनी ने उन्हें अंतिम संस्कार में वापस नहीं आने दिया। Dharmendra Deol

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धर्मेंद्र के अंतिम संस्कार में परिवार की दरारें, वसीयत का रहस्य और एकजुटता की नई शुरुआत

हर इंसान की जिंदगी में कुछ कहानियां ऐसी होती हैं जिन्हें समय चाहे कितनी भी दूरी बना दे, लोग भूल नहीं पाते। धर्मेंद्र देओल सिर्फ एक अभिनेता नहीं थे, वे एक ऐसा चेहरा थे जिसके साथ पूरा भारत बड़ा हुआ। उनकी आवाज, चाल, गुस्सा और मुस्कुराहट सब कुछ लोगों के दिलों में इस तरह बस गया था जैसे कोई अपना परिवार का हिस्सा हो। लेकिन उनके जाने वाले दिन की कहानी किसी फिल्म जैसी नहीं थी। यह हकीकत थी—दर्द, टूटन, रिश्तों की दरारें और वर्षों से छुपे हुए राज सब एक साथ सामने आने वाले थे।

मुंबई का जूहू बंगला – अंतिम रात का माहौल

वो रात, मुंबई का जूहू बंगला, आधी रात होने वाली थी। लेकिन बंगले की हर लाइट जल रही थी। बाहर भीड़ खड़ी थी, मीडिया का शोर था और अंदर पूरा घर चीखती हुई खामोशी में डूबा था। घर के हॉल में बीचों-बीच धर्मेंद्र साहब की तस्वीर रखी थी। चारों तरफ सफेद फूलों की महक थी, लेकिन उस महक में भी अजीब सा डर मिला हुआ था। हर चेहरा ऐसा लग रहा था जैसे कोई तूफान अभी फटने वाला हो।

दीवार से टेक लगाकर चुपचाप बैठी थी प्रकाश कौर, धर्मेंद्र जी की पहली पत्नी। उनका चेहरा देखकर साफ पता चलता था कि यह सिर्फ दुख नहीं है, यह उन चोटों का दर्द भी है जो उन्होंने सालों पहले सहा था। दूसरी तरफ हेमा मालिनी बैठी थी, आंखों के नीचे काली लकीरें, चेहरे पर थकान और नजरों में बेचैनी। रोने से आंखें सूज चुकी थी। उनकी आंखों में एक और भाव भी था—सवाल का। जैसे वह सोच रही हो, अब आगे क्या?

सनी देओल, चेहरा सुर्ख, आंखें लाल और शरीर में गुस्सा खौलता हुआ। दीवार को घूरते हुए वह जैसे खुद से लड़ रहे थे। उनकी सांसों में भी आग थी। बॉबी देओल पास बैठे थे, शांत दिख रहे थे, पर शरीर कांप रहा था। ईशा और अहाना दोनों मां हेमा के पास बैठी थी। दोनों की आंखों में डर था—डर इस बात का कि एक पिता को खोने के बाद अब इस घर में क्या बचने वाला है?

वसीयत का खुलासा – विरासत की जंग

कमरा खामोश था, लेकिन हर व्यक्ति के अंदर शोर चल रहा था। इसी बीच कमरे का दरवाजा धीरे से खुला। अंदर आए वकील अविनाश मेहरा, सालों से धर्मेंद्र जी के लीगल मामले देखते रहे थे। उनके हाथ में एक पुराना लकड़ी का बक्सा और एक मोटी सी फाइल थी। दो सुरक्षा गार्ड उनके पीछे खड़े थे। सभी की नजर उस बक्से पर टिक गई। अविनाश ने भारी आवाज में कहा, “सब लोग बैठ जाएं। आज धर्मेंद्र जी की वसीयत खोली जाएगी।”

कमरे का माहौल और भारी हो गया। किसी ने कुछ नहीं कहा। बस सब धीरे-धीरे सोफों पर बैठ गए। सांसे रुक चुकी थी। क्योंकि अगले कुछ मिनटों में यह तय होने वाला था कि विरासत किसे मिलेगी। कौन राजा बनेगा? कौन रंक रह जाएगा? अविनाश ने फाइल खोली, कागजों की आवाज कमरे में गूंजने लगी।

वसीयत में लिखा था कि धर्मेंद्र जी की कुल संपत्ति—जूहू का बंगला, पंजाब की जमीनें, लोनावला का फार्म हाउस, फिल्म प्रोडक्शन कंपनी, बैंक बैलेंस, शेयर्स—कुल मिलाकर लगभग 2700 करोड़ की दौलत पांच हिस्सों में बांटी जाएगी: सनी, बॉबी, ईशा, अहाना और परिवार के बीच से चुने गए एक खास व्यक्ति के नाम। लेकिन अविनाश ने पेज पलटा और जैसे ही अगला वाक्य पढ़ा, सभी के चेहरों पर तनाव बढ़ गया। “परंतु, अंतिम फैसला एक गुप्त चिट्ठी के आधार पर होगा, जिसे मैंने अपने हाथों से लिखकर अलमारी में बंद किया है।”

कमरा एक पल के लिए जम गया। सनी ने तेज आवाज में कहा, “कौन सी चिट्ठी? कहां है वो?” अविनाश ने ऊपर की मंजिल की तरफ इशारा किया। “आपके पिता के प्राइवेट रूम की अलमारी में।” इतना सुनते ही घर में पहली चिंगारी फूट पड़ी। ईशा खड़ी हुई, “अलमारी की चाबी हमारे पास है। हम लेकर आते हैं।” लेकिन उससे पहले ही सनी ने उसका हाथ पकड़ लिया। “कोई कहीं नहीं जाएगा। यह हमारा घर है। चाबी मेरे पास होगी।” उसकी आवाज में गुस्सा था, अधिकार था और एक दबी हुई लड़ाई भी।

हेमा मालिनी खड़ी हो गई। “सनी, विरासत सिर्फ तुम्हारी नहीं है। हम सबका हक है।” प्रकाश कौर ने धीरे से कहा, “बेटा, यह समय लड़ने का नहीं। धर्म का साथ देने का है।” लेकिन सनी का गुस्सा अब बढ़ चुका था। उसने टेबल पर जोर से हाथ मारा। “मेरे पापा ने यह सब बनाया। मैंने अपनी आंखों से उनकी मेहनत देखी है। किसी को भी इस घर में बराबरी का हक नहीं।” ईशा चीख कर बोली, “हम भी उन्हीं की बेटियां हैं। खून अलग होने से हक कम नहीं हो जाता।”

कमरा चीखपकार से भर गया। हर शब्द जैसे रिश्तों को काट रहा था। वकील अविनाश चिल्लाए, “बस कीजिए। अगर आप लोग ऐसे ही लड़ते रहे तो वसीयत की प्रक्रिया रोकनी पड़ेगी।” लेकिन इससे पहले कि कोई शांत होता, अचानक बंगले की सारी लाइट चली गई। पूरा घर अंधेरे में डूब गया। किसी ने चिल्लाया, “ऊपर वाले कमरे की अलमारी का ताला टूट गया है।” हर कोई घबराकर सीढ़ियों की ओर भागा।

ऊपर पहुंचकर देखा, अलमारी का ताला टूटा पड़ा था। कागज जमीन पर बिखरे हुए थे। दराज खुली हुई थी। लेकिन एक चीज गायब थी—वो गुप्त चिट्ठी। सनी गरज उठा, “यह अंदर का काम है। घर में ही किसी ने चोरी की है। चिट्ठी कौन ले गया?” सब एक दूसरे को शक की नजर से देखने लगे। रात गहराती जा रही थी और घर का माहौल और खतरनाक।

मौत का रहस्य और पुलिस जांच

तभी बॉबी ने धीमी आवाज में कहा, “शायद पापा की मौत नेचुरल नहीं थी।” हेमा के हाथ कांपे। प्रकाश की आंखें भर आई। ईशा रोते-रोते बोली, “तुम क्या कह रहे हो बॉबी?” सनी ने उसकी कॉलर पकड़ ली। “तुम पापा पर शक कर रहे हो?” बॉबी ने कांपते हुए कहा, “उनके कमरे में एक डॉक्टर रोज आता था। कुछ रिपोर्ट्स थी जो मुझे अजीब लगी थी। लग रहा था जैसे वह कुछ छुपा रहे थे।”

अविनाश ने भारी आवाज में कहा, “अगर वह चिट्ठी नहीं मिली, तो वसीयत फ्रीज हो जाएगी और मामला पुलिस के पास जाएगा।” घर पर जैसे आसमान टूट पड़ा। अब यह सिर्फ विरासत की लड़ाई नहीं थी, यह एक युद्ध था—शक, डर और रहस्यों का।

हॉल के नीचे उतरे सभी चेहरे तनाव से भरे थे। कमरे की हवा भारी हो चुकी थी। वकील अविनाश ने गहरी सांस ली और बोले, “जब तक वह चिट्ठी नहीं मिलती, धर्मेंद्र जी की वसीयत पर कोई फैसला नहीं लिया जा सकता। कानून के अनुसार दस्तावेज गायब होने पर संपत्ति फ्रीज हो जाती है और यह चोरी घर के किसी व्यक्ति ने की है।”

सन्नाटा ऐसा उतर गया कि दीवारें भी रो पड़ी हो। सनी ने कुर्सी पर जोर से मुक्का मारा। “किसे क्या मिलेगा उस चिट्ठी में? जो भी है सामने आए। हम यह खेल नहीं खेलेंगे।” हेमा मालिनी उठी, आवाज कांप रही थी लेकिन शब्द दृढ़ थे। “सनी, हर बात का मतलब पैसा ही नहीं होता। तुम्हारे पिताजी ने वह चिट्ठी शायद किसी दर्द, पछतावे या अधूरे सच को बताने के लिए लिखी होगी। तुम्हें क्यों डर लग रहा है इसे सामने आने से?”

ईशा आगे आई, आंखों में गुस्सा भी था और दुख भी। “हम भी उसी पापा की औलाद हैं। अगर तुम हमें अलग समझते हो तो तुम्हें रिश्तों से प्यार था ही नहीं।” बॉबी चुप था, पर उसकी उंगलियां लगातार कांप रही थी। जैसे अंदर कोई रहस्य उसे खा रहा हो।

अचानक बाहर से पुलिस सायरन की आवाज गूंजी। बंगले के दरवाजे खुले और अंदर आए इंस्पेक्टर कबीर मल्होत्रा। उनके चेहरे पर गंभीरता थी। पीछे दो कांस्टेबल और एक महिला अधिकारी थी। कबीर ने तेज आवाज में कहा, “हमें एक शिकायत मिली है कि मृत्यु संदिग्ध है और वसीयत चोरी हो गई है। अब यह मामला पुलिस जांच में जाएगा।”

सनी चिल्लाया, “किसने किया है केस? कौन हमें बदनाम करना चाहता है?” कबीर ने मुड़कर देखा और जवाब ने पूरे घर में बम गिरा दिया। “शिकायत बॉबी देओल ने की है।” हॉल में जैसे बिजली गिर गई। सनी ने गुस्से में बॉबी की कॉलर पकड़ ली। “तूने अपने ही घर पर पुलिस बुला दी। क्या चाहता है तू?” बॉबी रोते हुए बोला, “मैंने अपने पिता के लिए केस किया क्योंकि उनकी मौत से कुछ घंटे पहले मैंने उन्हें बेचैन, डरे हुए और किसी बात से परेशान देखा था। वह कुछ कहना चाहते थे पर कह नहीं पाए। अगर यहां कुछ गलत हुआ है तो हमें जानना होगा।”

गुप्त चिट्ठी का रहस्य और परिवार का सच

कबीर ने पूछताछ शुरू की। सबसे पहले जिस दिन धर्मेंद्र जी की तबीयत बिगड़ी, कौन-कौन उनके कमरे में गया था? हेमा मालिनी ने हिचकते हुए कहा, “मैं गई थी, आखिरी बार, उनके हाथ बर्फ जैसे ठंडे थे। वह कुछ लिखने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन लिख नहीं पाए।” प्रकाश कौर ने धीरे से कहा, “मैं भी 2 घंटे पहले गई थी। वह बहुत बेचैन थे।” ईशा बोली, “उन्होंने मुझसे कहा था—बेटा, जो आने वाला है उसके लिए मजबूत रहना।”

कबीर ने तेजी से सब नोट किया। फिर पूछा, “घर का डॉक्टर कौन था?” पर्दे के पीछे से आवाज आई, “डॉ. विश्वजीत राणा।” उसी वक्त नौकरानी कविता रोती हुई अंदर आई। कविता इस घर में 20 साल से थी। धर्मेंद्र जी उसके लिए पिता जैसे और वह उनके लिए बेटी जैसी। उसके हाथ कांप रहे थे। “साहब, मुझे सच्चाई पता है लेकिन अगर मैंने बता दिया तो मैं बचूंगी नहीं।” कबीर की आवाज नरम हो गई, “कविता, डर मत, यह सच बताने का समय है। तुम्हें कुछ नहीं होगा।”

कविता रोते हुए बोली, “जिस रात सर की मौत हुई, मैंने उन्हें किसी से बहस करते सुना था।” सनी चौंक गया, “बहस किससे?” कविता की आवाज कांप रही थी, “मैंने चेहरा नहीं देखा। लेकिन किसी की आवाज सुनी जो कह रहा था—अगर तुमने वह चिट्ठी खोली तो सब खत्म कर दूंगा।” कमरा एक पल में पत्थर बन गया। सबकी आंखें एक दूसरे पर टिक गई। दिमाग में एक ही सवाल—वो आवाज किसकी थी?

कबीर ने पूछा, “कविता, आवाज घर के किस तरफ से आई?” कविता ने कांपते हुए सीढ़ियों की तरफ इशारा किया, “ऊपर सर के कमरे के बाहर से।” इससे साफ हो गया कि वह घर के अंदर का ही कोई था। अब पुलिस ने सर्च शुरू की। सीसीटीवी फुटेज चेक किए गए, पर अहम फुटेज डिलीट था। कबीर चीखा, “यह फुटेज कोई बाहर वाला नहीं हटा सकता। यह काम घर के किसी सदस्य ने किया है।”

वकील अविनाश ने एक और रहस्य उजागर किया। “वसीयत में लिखा है—जिस व्यक्ति ने चिट्ठी चुराई, वह हमेशा के लिए विरासत से बेदखल माना जाएगा।” हॉल में मौजूद हर शख्स के पैरों तले जमीन खिसक गई। मतलब जिसने चिट्ठी चुराई, उसने सब कुछ खो दिया और उसी डर ने यह चोरी करवाई।

अंतिम सच और परिवार की एकता

तभी दरवाजा खुला और अंदर आए अकाउंटेंट रघुवीर, उसके हाथ में वही गुप्त चिट्ठी। हॉल में चीखें नहीं, बस खामोशी गिरी। रघुवीर कांपते हुए बोला, “मैं, मैं सच बताने आया हूं।” लेकिन अचानक उसकी सांसे डगमगाई और वह फर्श पर गिर पड़ा। सब दौड़े। उसकी नब्ज़ जा चुकी थी। उसके हाथ से चिट्ठी नीचे सरक गई। रघुवीर का शरीर फर्श पर पड़ा था। उसके हाथ से गिरी हुई चिट्ठी को देखकर पूरा हॉल दंग रह गया।

किसी को समझ नहीं आ रहा था कि पहले किस बात पर हैरान हो—चिट्ठी मिल गई है या उसे चुराने वाला शख्स अब दुनिया में नहीं रहा। सबके कदम लड़खड़ा रहे थे। सनी आगे बढ़ा, चिट्ठी उठाने ही वाला था कि इंस्पेक्टर कबीर ने हाथ रोक लिया। “चिट्ठी किसी परिवार वाले के हाथ नहीं जाएगी क्योंकि मामला अब हत्या, चोरी और साजिश का बन चुका है।”

हेमा की आंखें भर आई। लगता है यह घर शायद फिर कभी वैसा नहीं होगा। कबीर ने चिट्ठी उठाई। सील टूटी हुई थी लेकिन कागज सलामत था। कबीर ने कहा, “इस चिट्ठी को मैं अभी यहीं पढूंगा क्योंकि धर्मेंद्र जी की आखिरी इच्छा थी कि इसे परिवार जाने।”

चिट्ठी का खुलासा – नई शुरुआत

कबीर ने चिट्ठी खोली। अंदर से दो पन्ने निकले। उन्होंने पढ़ना शुरू किया—

“मेरे प्यारे परिवार को, अगर तुम यह चिट्ठी पढ़ रहे हो तो समझ लेना कि मैंने जिन सच्चाइयों को सालों दबाकर रखा, अब उन्हें दुनिया के सामने आना ही था। मेरी गलती, मेरे रिश्ते, मेरे फैसले सब मेरी जिंदगी का हिस्सा थे। लेकिन मैंने हमेशा एक बात को दिल में रखा कि मेरे परिवार में कभी दीवार ना खड़ी हो। मैंने देखा है कि मेरी छोड़ी हुई खामोशियां अब तुम सबको एक दूसरे से दूर ले जा रही हैं। इसलिए आज मैं सब सच लिख रहा हूं।

प्रकाश, तुमने मेरी सबसे बुरी आदतों को झेला। मेरे गुस्से को, मेरी परेशानियों को, मेरी कमियों को सहा। तुमने मुझे घर दिया, परिवार दिया। अगर मैं आज भी जिंदा होता तो तुम्हारे आगे सिर झुकाता।

हेमा, तुमने मेरे जीवन में रोशनी लाई। तुम्हारी वजह से मैं बना रहा। हंसता रहा। लेकिन मैंने तुम्हें भी बहुत दर्द दिया। कभी पति के तौर पर उतना नहीं दे पाया जितना तुम डिजर्व करती थी।

सनी, तुम सोचते हो कि मैं तुम्हारा पक्षधर था। लेकिन सच यह है कि मैं तुम्हें हमेशा काबू में देखना चाहता था क्योंकि तुम्हारा गुस्सा तुम्हारी सबसे बड़ी कमजोरी है। तुम बहुत अच्छे बेटे हो पर बहुत जिद्दी भी। तुम्हारा प्यार गहरा है। लेकिन तुम्हारे गुस्से में कई रिश्ते जल गए।

बॉबी, तुमने हमेशा घर को जोड़ा। तुमने सभी को संभाला। लेकिन तुम्हें कभी भी उतनी तारीफ नहीं मिली जितनी तुम डिजर्व करते हो। मैंने तुम्हें हमेशा कमजोर समझा। लेकिन तुम इस घर के सबसे मजबूत व्यक्ति हो।

ईशा और अहाना, तुम्हें मैंने हमेशा दूर से प्यार किया। लेकिन तुम्हें वह पिता का समय नहीं दिया जिसके तुम हकदार थी। यह मेरी सबसे बड़ी गलती है।

अब बात करता हूं अपनी वसीयत पर। मेरी संपत्ति किसी एक के नाम नहीं होगी। यह घर, यह दौलत, यह नाम मेरी वजह से ही नहीं, तुम सब की वजह से बना है। मेरी आखिरी इच्छा है—मेरी संपत्ति पांच नहीं बल्कि सात हिस्सों में बांटी जाए। पहला हिस्सा मेरी पत्नी प्रकाश को, दूसरा हिस्सा हेमा को, तीसरा हिस्सा सनी को, चौथा हिस्सा बॉबी को, पांचवा हिस्सा ईशा को, छठा हिस्सा अहाना को और सातवां हिस्सा कविता को। कविता मेरे जीवन की सच्चाई जानती थी। उसने मेरा सबसे बुरा समय देखा। वह सिर्फ नौकरानी नहीं, मेरी सबसे विश्वास पात्र थी। मैंने उसे बेटी की तरह माना है।

अगर यह चिट्ठी चोरी की जाए तो जिसने भी चोरी की वह विरासत से हमेशा के लिए हटाया जाए और घर में शांति लाने की जिम्मेदारी मेरे परिवार पर हो ना कि अदालत पर।”

परिवार की एकता और नई शुरुआत

पढ़ते ही पूरा हॉल खामोश हो गया। कोई कुछ बोल नहीं पाया। रघुवीर की चिट्ठी चुराने का मतलब था वह बेदखल था, लेकिन अब वह दुनिया में ही नहीं था। कबीर ने चिट्ठी टेबल पर रखी और कहा, “सच सामने आ चुका है।” अब तुम सब जानते हो कि यह लड़ाई किस बात की थी और किसने इसे आग लगाई।

सनी धीरे-धीरे आगे आया, उसका चेहरा नरम पड़ चुका था। उसने बॉबी को गले लगा लिया। “भाई, तू सही था?” बॉबी फूट-फूट कर रो पड़ा। “मैं बस पापा के लिए उनके सच के लिए लड़ रहा था।” हेमा ने प्रकाश का हाथ पकड़ा। “हम दोनों ने बहुत कुछ सहा है। अब और नहीं।” प्रकाश ने आंसुओं में मुस्कुराते हुए कहा, “आज मेरे धर्म का परिवार सच में एक हो गया है।”

ईशा और अहाना दोनों अपनी दोनों माओं से लिपट गई। कबीर ने कहा, “अब यह घर कानूनी झगड़ों का नहीं बल्कि परिवार का घर बनेगा। धर्मेंद्र जी ने यही चाहा था।” सब धर्मेंद्र की फोटो के आगे खड़े हुए। फूलों की महक अब बोझ नहीं लग रही थी, बल्कि जैसे वर्षों बाद यह घर सांस ले पा रहा था।

सनी ने धीरे से फूल रखा और कहा, “पापा, आज से इस घर में ना छोटा होगा ना बड़ा। सिर्फ हम सब आपकी विरासत।” बॉबी बोला, “हम सब आपके नाम को आगे बढ़ाएंगे, फूट में नहीं, प्यार में।” ईशा ने कहा, “आज पहली बार लगता है इस घर में सिर्फ परिवार है।” कविता रोते हुए बोली, “सर, आप जहां भी हो खुश हो। आपका घर अब टूटा नहीं है।”

सबकी आंखें नम थी, लेकिन दिलों में अब दर्द नहीं बल्कि एक नई शुरुआत का एहसास था। अब मैं शांति से सो सकता हूं क्योंकि मेरा परिवार टूटकर नहीं, जुड़कर खड़ा है।

समाप्त

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