👉“गरीब ठेले वाले को इंसाफ़ दिलाने के लिए SP ने खोला भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा राज़”

सुबह का समय था। लखनऊ के अमीनाबाद बाज़ार की सड़कों पर हलचल शुरू हो चुकी थी। ठेले वाले अपनी दुकानें सजाने लगे थे, ग्राहक धीरे-धीरे बाहर निकल रहे थे। उसी भीड़ के बीच पीली साड़ी पहने एक साधारण दिखने वाली महिला धीरे-धीरे चल रही थी। किसी को अंदाज़ा भी नहीं था कि यह और कोई नहीं बल्कि जिले की पुलिस अधीक्षक, एसपी अंजलि सिंह थीं। आज उन्होंने जानबूझकर यह वेशभूषा अपनाई थी ताकि उन्हें कोई पहचान न सके।

अंजलि अपने विचारों में खोई हुई थीं। उन्हें अचानक अपने बचपन के दिन याद आ गए, जब वे अक्सर सड़क किनारे लगे ठेलों से मोमोज खाया करती थीं। आज उन्होंने सोचा—“क्यों न पुराने दिनों की तरह सड़क किनारे के ठेले से मोमोज खाए जाएं।” कुछ दूर आगे जाने पर उन्होंने एक छोटा-सा ठेला देखा, जहाँ करीब पचास साल का दुबला-पतला बुज़ुर्ग मोमोज बेच रहा था।

अंजलि ठेले के पास गईं और बोलीं—“अंकल, एक प्लेट मोमोज़ दीजिए।”
बुज़ुर्ग अंकल मुस्कुराए और गरमा-गरम मोमोज प्लेट में डालकर उनके हाथ में दे दिए। जैसे ही अंजलि ने पहला निवाला खाया, उनके चेहरे पर बचपन जैसी मासूम खुशी झलकने लगी। वह शांति से स्वाद का मज़ा ले रही थीं कि तभी अचानक एक इंस्पेक्टर तीन-चार सिपाहियों के साथ वहाँ आ पहुँचा।

इंस्पेक्टर ने ठेले वाले अंकल पर गुस्से में चिल्लाते हुए कहा—“ओए बुड्ढे, जल्दी से पैसे निकाल।”
यह सुनते ही अंकल का चेहरा सफेद पड़ गया। उनके हाथ काँपने लगे और हकलाते हुए बोले—“साहब, अभी तो दिन की शुरुआत है। मैंने कुछ कमाया ही नहीं। शाम को आ जाइएगा, तब दे दूँगा।”

इतना सुनते ही इंस्पेक्टर आग-बबूला हो गया। उसने बिना सोचे-समझे अंकल के गाल पर जोरदार थप्पड़ मार दिया। यह देखकर अंजलि हैरान रह गईं। उन्होंने तुरंत बीच में आकर कहा—“रुकिए इंस्पेक्टर साहब, यह आप क्या कर रहे हैं? किस हक से आपने इन्हें मारा? आपको कोई अधिकार नहीं है कि किसी गरीब पर जुल्म करें।”

इंस्पेक्टर ने घूरते हुए जवाब दिया—“बीच में मत पड़ो, नहीं तो तुझे भी अंदर कर दूँगा। समझी?”
अंजलि ने दृढ़ आवाज़ में कहा—“कानून में कहीं नहीं लिखा कि आप गरीबों से जबरदस्ती वसूली करें। यह सरासर जुल्म है और इसका अंजाम आपको भुगतना पड़ेगा।”

इंस्पेक्टर भड़क गया और गुस्से में अंजलि को भी थप्पड़ जड़ दिया। वह थोड़ी लड़खड़ाईं लेकिन तुरंत संभल गईं। अंजलि ने गुस्से से कहा—“अब आपने हद पार कर दी। मैं आपके खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करवाऊँगी।”
इंस्पेक्टर हंसते हुए बोला—“एफआईआर? तुझे पता भी है मैं कौन हूँ? निकल जा यहाँ से, वरना इतना मारूँगा कि चल भी नहीं पाएगी।”

यह कहकर उसने अंकल का ठेला पलट दिया। सारे मोमोज सड़क पर बिखर गए। अंकल घुटनों के बल बैठकर रोते हुए मोमोज समेटने लगे। इंस्पेक्टर ने डंडा उठाकर उनकी पीठ पर जोर से मारा। अंकल हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाने लगे—“साहब, माफ कर दो। शाम को आकर पैसे ले लेना।”

यह सब देखकर अंजलि से रहा नहीं गया। वह गुस्से में बोलीं—“अंकल, आपको माफी मांगने की कोई ज़रूरत नहीं है। यह लोग गरीबों पर जुल्म ढा रहे हैं। इंस्पेक्टर साहब, अब मैं आपको आपकी औकात दिखाऊँगी।”

इंस्पेक्टर हंसते हुए बोला—“तेरी औकात क्या है मेरे सामने?”
यह कहकर वह धमकी देते हुए वहाँ से चला गया।

अंजलि ने अंकल को दिलासा दिया और बोलीं—“अंकल, चिंता मत कीजिए। अब इन्हें सबक मिलेगा।” अंकल ने रोते हुए कहा—“बेटी, तू क्या कर लेगी? यह पुलिस वाले हैं। सालों से हम पर जुल्म करते आए हैं। कोई इनके खिलाफ खड़ा नहीं हो सकता।”
अंजलि ने दृढ़ता से कहा—“नहीं अंकल, अब बहुत हो गया। आप नहीं जानते मैं कौन हूँ।”

उस शाम अंजलि सीधा थाने पहुँचीं और इंस्पेक्टर राहुल त्यागी के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करवाने की माँग की। थाने के एसएचओ मनोज राय ने तिरछी नजरों से देखा और बोला—“हम अपने इंस्पेक्टर के खिलाफ रिपोर्ट नहीं लिख सकते। और फिर क्या हो गया अगर उसने एक थप्पड़ मार भी दिया?”

अंजलि का खून खौल उठा। उन्होंने कड़क आवाज़ में कहा—“हर नागरिक बराबर है। अगर आप रिपोर्ट दर्ज नहीं करेंगे तो मैं आपके खिलाफ भी कार्यवाही कर सकती हूँ।”
मनोज राय गुस्से में चिल्लाया—“तेरी इतनी औकात कि तू हमें

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