👉 बुज़ुर्ग पर हाथ उठाने वाले दरोगा को SP मैडम ने सरेआम सिखाया सबक फिर जो हुआ..

सुबह का समय था, जब जिला पुलिस की आईपीएस अधिकारी दिव्या शर्मा एक साधारण लाल रंग की सलवार सूट पहनकर बाजार घूमने निकली थीं। कोई नहीं जानता था कि यह महिला कोई और नहीं बल्कि जिले की एसपी हैं। उन्होंने सोचा, आज कुछ समय अपने लिए निकालेंगी और बाजार की चहल-पहल का आनंद लेंगी।

एक साधारण दिन

चलते-चलते उनकी नजर सड़क किनारे खड़े एक 55 साल के बुजुर्ग पर पड़ी, जो एक छोटे से खिलौने के ठेले के पास खड़ा था। दिव्या को बचपन से ही लकड़ी के खिलौने बहुत पसंद थे। उन्होंने बिना सोचे-समझे ठेले वाले अंकल के पास जाकर कहा, “अंकल, एक लकड़ी की गुड़िया देना।”

बूढ़े अंकल ने मुस्कुराते हुए उन्हें एक सुंदर सी गुड़िया दी। दिव्या अभी उसकी बारीक कारीगरी देख ही रही थी कि तभी पास में एक बाइक आकर रुकी। बाइक पर थाने का इंस्पेक्टर विकास था। उसने हेलमेट उतारकर ठेले वाले से रूखेपन से कहा, “अरे ओ बूढ़े, जल्दी एक गुड़िया निकाल।”

अंकल ने घबराते हुए तुरंत उसे एक गुड़िया दे दी। विकास वहीं खड़े-खड़े उसे देखने लगा। तभी उसकी नजर दिव्या पर पड़ी। उसे जरा भी अंदाजा नहीं था कि वह कोई साधारण लड़की नहीं बल्कि जिले की एसपी हैं। विकास ने हंसते हुए कहा, “क्या बात है? खिलौने तो बड़े ध्यान से देख रही हो। बहुत पसंद है क्या? कभी हमें भी पसंद कर लो। हम भी तो तुम्हारे प्यार के दीवाने हो सकते हैं।”

संघर्ष की शुरुआत

दिव्या ने उसकी बात को अनदेखा कर दिया और अपना ध्यान खिलौने पर लगाए रखा। विकास फिर बोला, “अरे शर्मा, क्यों रही हो? और खिलौने चाहिए तो बोल देना, मंगवा दूंगा।” गुड़िया को देखने के बाद वह बिना पैसे दिए बाइक पर बैठ गया और इंजन स्टार्ट कर लिया।

बूढ़े अंकल ने हिम्मत करके कहा, “सर, गुड़िया के पैसे तो दे दीजिए।” बस इतना सुनते ही विकास का चेहरा गुस्से से लाल हो गया। “किस बात के पैसे? ज्यादा होशियार बनेगा तो तेरे ठेले का सारा सामान यहीं फेंक दूंगा।” यह कहते-कहते उसने गुस्से में अंकल के गाल पर एक जोरदार थप्पड़ मार दिया।

अंकल की आंखों में आंसू आ गए और होंठ कांपने लगे। लेकिन वह चुप रहे। यह सब देखकर दिव्या से रहा नहीं गया। वह बीच में आकर बोली, “इंस्पेक्टर साहब, आपने अंकल पर हाथ क्यों उठाया? आपको किसी गरीब पर हाथ उठाने का कोई हक नहीं है। उन्होंने तो बस अपने हक के पैसे मांगे हैं। आपने खिलौना लिया है तो पैसे देना आपका फर्ज है।”

विकास ने घूरते हुए कहा, “तुम बीच में मत बोलो, समझी?” और अगले ही पल उसने दिव्या को भी एक थप्पड़ मार दिया। दिव्या थोड़ी लड़खड़ाई, लेकिन खुद को संभालते हुए बोली, “आप अपनी हद पार कर रहे हैं। इंस्पेक्टर होने का मतलब यह नहीं कि आप गरीबों का हक मारे। आप कानून के रक्षक हैं लेकिन खुद कानून तोड़ रहे हैं। सुधर जाइए वरना आपको इसका अंजाम भुगतना पड़ेगा।”

प्रतिरोध का समय

विकास और भड़क गया। उसने फिर से दिव्या के गाल पर एक जोरदार थप्पड़ मारा और गुस्से में खिलौने के ठेले पर लात मार दी। ठेला पलट गया और दर्जनों खिलौने सड़क पर बिखर गए। भीड़ यह सब देख रही थी, लेकिन डर के मारे कोई आगे नहीं आया।

एसपी दिव्या शर्मा का गुस्सा अब चरम पर था। मगर वह जानती थी कि कानून को अपने हाथ में लेना उनके पद और सिद्धांतों के खिलाफ है। चाहती तो वहीं उसी समय इंस्पेक्टर को सबक सिखा सकती थी। लेकिन उन्होंने खुद को काबू में रखा।

संभलते हुए उन्होंने सख्त आवाज में कहा, “आप कानून के खिलाफ जा रहे हैं। आपने जो किया वह बहुत गलत है। मैं आपके खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करवाऊंगी और आपको निलंबित करा कर रहूंगी। आप नहीं जानते मैं कौन हूं। आपको यह थप्पड़ बहुत भारी पड़ेगा।”

एक नई योजना

इंस्पेक्टर विकास ने घमंड से हंसते हुए जवाब दिया, “तेरी औकात है कि तू मुझ पर रिपोर्ट दर्ज करवाए। मैं इस थाने का इंस्पेक्टर हूं। चाहूं तो अभी के अभी तुझे गिरफ्तार कर सकता हूं। इसीलिए ज्यादा जुबान मत चला वरना जेल में चक्की पीसते-पीसते जिंदगी कट जाएगी।” यह कहकर विकास बाइक पर बैठा, इंजन स्टार्ट किया और वहां से निकल गया।

उधर ठेले पर बिखरे खिलौनों को बूढ़े अंकल कांपते हाथों से समेट रहे थे। उनकी आंखें लाल थी और होठ थरथरा रहे थे। उन्होंने दिव्या से कहा, “बेटी, तुमने यह क्यों किया? तुम्हारी वजह से उस इंस्पेक्टर ने तुम्हें भी मारा। वह बहुत दबंग है। कई दिनों से ऐसे ही मुझसे खिलौने लेता है और पैसे नहीं देता। हम दिन भर मेहनत करते हैं। तभी घर का चूल्हा जलता है। पैसे नहीं मिलेंगे तो हम खाएंगे क्या?”

दिव्या ने उनकी आंखों में देखते हुए कहा, “अंकल, आपके साथ जो हुआ वह बहुत गलत है और मैं इसका बदला लेकर रहूंगी। मैं उस इंस्पेक्टर को निलंबित करवाऊंगी। चाहे कुछ भी हो जाए।”

दृढ़ संकल्प

अंकल ने धीरे से सिर हिलाया और कहा, “नहीं बेटी, तुम नहीं कर सकती। वह थाने का इंस्पेक्टर है। उसके खिलाफ कोई गया तो वह उल्टा उसी पर केस कर देता है। तुम घर चली जाओ।”

दिव्या ने दृढ़ स्वर में कहा, “अंकल, मैं घर तो जा रही हूं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वह इंस्पेक्टर बच जाएगा। उसे पता भी नहीं कि मैं कौन हूं और जब पता चलेगा, तब तक बहुत देर हो चुकी होगी।”

घर पहुंचकर दिव्या कुछ देर तक सोचती रही। फिर अचानक उनके मन में एक विचार आया। “अगर इंस्पेक्टर ऐसा है तो थाने के बाकी लोग, सिपाही और थानेदार किस तरह का व्यवहार करते होंगे, यह जानना जरूरी था ताकि पूरे सिस्टम का सच सामने लाया जा सके।”

थाने में छानबीन

अपना चेहरा साधारण महिला की तरह रखा और बिना सरकारी पहचान के सीधे थाने पहुंच गई। वहां मौजूद सिपाही और अधिकारी नहीं जानते थे कि यह कोई साधारण महिला नहीं बल्कि जिले की एएसपी हैं। थाने में कदम रखते ही उनकी नजर अंदर बैठे थानेदार संदीप पर पड़ी।

दिव्या सीधे उनके पास गई और बोली, “इंस्पेक्टर विकास कहां है? मुझे उनके खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करानी है। उन्होंने सड़क पर खिलौने बेचने वाले एक बूढ़े आदमी पर अत्याचार किया। उसका ठेला गिरा दिया और पैसे नहीं दिए। जब मैंने विरोध किया तो मुझे भी थप्पड़ मारा और गंदी बातें कही। जो उन्होंने किया वह कानून के खिलाफ है। इसलिए मैं यहां रिपोर्ट लिखवाने आई हूं। आप तुरंत कार्यवाही कीजिए।”

थानेदार का प्रतिरोध

संदीप कुर्सी से उठते हुए सख्त लहजे में बोले, “तुम क्या कह रही हो? मैं अपने इंस्पेक्टर के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करूं। वह इस थाने का इंस्पेक्टर है और उसने कोई बड़ा गुनाह नहीं किया है। अगर उसने एक खिलौना ले लिया और पैसे नहीं दिए तो क्या हुआ? 10 रुपये की चीज है। इस पर इतना बवाल मचाने की क्या जरूरत है? जाओ यहां से वरना धक्के मारकर निकाल दूंगा।”

दिव्या ने शांत लेकिन दृढ़ स्वर में कहा, “देखिए सर, आपको रिपोर्ट लिखनी ही पड़ेगी। मुझे कानून मत सिखाइए। कानून कहता है कि किसी पर भी हाथ उठाना और उसकी रोजी रोटी पर चोट करना अपराध है। आपने अगर कार्यवाही नहीं की तो मैं आप पर भी कार्यवाही करवाऊंगी।”

सख्त कार्रवाई

संदीप यह सुनकर तिलमिला उठा। “क्या कहा तुमने? तुम मेरे ऊपर कार्यवाही करोगी? तुम्हारी इतनी औकात है?” उसकी आंखों में गुस्से की लाली थी। वह मेज पर हाथ मारते हुए बोला, “मैं इस थाने का थानेदार हूं। चाहूं तो अभी के अभी तुम्हें अंदर डाल सकता हूं। इसलिए मुझे गुस्सा मत दिलाओ। चुपचाप यहां से निकल जाओ। वरना अंजाम बहुत बुरा होगा, समझी?” इतना कहकर उसने गुस्से में एक जोरदार थप्पड़ दिव्या शर्मा के गाल पर दे मारा।

दिव्या थोड़ी लड़खड़ाई लेकिन खुद को संभाल लिया। अब वह पूरी तरह समझ चुकी थी कि इन दोनों अफसरों को निलंबित करना जरूरी है। वह दरवाजे की तरफ बढ़ी लेकिन जाते-जाते दरवाजे पर रुक कर पलटी और ठंडी सख्त आवाज में बोली, “आप लोग जानते नहीं कि मैं आपके साथ क्या कर सकती हूं। मैं आप दोनों को निलंबित करवा कर रहूंगी और याद रखिए मेरी बात को हल्के में मत लेना।” इतना कहकर दिव्या थाने से बाहर निकल गई।

सबूत इकट्ठा करना

थाने में मौजूद सिपाही और थानेदार संदीप एक दूसरे को देखने लगे। संदीप के मन में हल्का सा शक आया। “आखिर यह औरत है कौन? जिस अंदाज में बात कर रही थी, कहीं कोई बड़ी हस्ती तो नहीं।” लेकिन अगले ही पल उसने खुद से कहा, “अरे छोड़ो, आजकल की लड़कियां बस अकड़ में रहती हैं।” और उसने बात को टाल दिया।

उधर दिव्या शर्मा पहले ही चालाकी से खेल चुकी थी। जब वह थाने में दाखिल हुई थी, उसी समय उन्होंने अपने मोबाइल की रिकॉर्डिंग ऑन कर दी थी। थाने में हुई हर बात, हर धमकी, हर थप्पड़ की आवाज सब उनके फोन में रिकॉर्ड हो चुका था। यह अब उनका पहला सबूत था।

प्रेस कॉन्फ्रेंस की तैयारी

सुबह होते ही दिव्या ने तुरंत एएसपी, डीएसपी और आईपीएस अधिकारियों को अपने ऑफिस बुलाया। उन्होंने सीधा कहा, “कल जिले के सबसे बड़े हॉल में प्रेस कॉन्फ्रेंस होगी। मैं इंस्पेक्टर विकास और थानेदार संदीप के खिलाफ कार्यवाही करूंगी और उन्हें निलंबित कराऊंगी। यह देखिए पहला सबूत।” उन्होंने मोबाइल रिकॉर्डिंग चला दी। कमरे में सन्नाटा छा गया।

आईपीएस अधिकारी रमेश ने गंभीर स्वर में कहा, “मैडम, यह सबूत तो आपने दिखा दिया, मगर इंस्पेक्टर को निलंबित करने के लिए उसके खिलाफ भी ठोस सबूत चाहिए।”

दिव्या ने आत्मविश्वास से कहा, “हां, मुझे पता है लेकिन चिंता मत कीजिए, मैं वह सबूत भी लेकर आऊंगी और कल मीडिया के सामने पेश करूंगी।”

फुटेज की खोज

अगली सुबह दिव्या उसी बाजार में पहुंची जहां बूढ़े अंकल खिलौने बेचते थे। वहां एक छोटी सी मोबाइल की दुकान थी जिसके बाहर सीसीटीवी कैमरा लगा था। उन्होंने दुकान मालिक से बात की और उस दिन की फुटेज चेक करने को कहा।

और हां, कैमरे में सब कैद था। इंस्पेक्टर विकास का ठेले पर लात मारना, अंकल को थप्पड़ मारना और भीड़ का सन्नाटा। दिव्या ने वह फुटेज अपने मोबाइल में सेव कर ली और सीधे ऑफिस लौट आई।

प्रेस कॉन्फ्रेंस का समय

प्रेस कॉन्फ्रेंस का समय हो चुका था। जिले के सबसे बड़े हॉल के बाहर मीडिया की गाड़ियां लाइन से खड़ी थीं। अंदर बड़े-बड़े नेता, पत्रकार और पुलिस अफसर मौजूद थे। सबके चेहरों पर एक ही सवाल था। “आज आखिर क्या होने वाला है?” तभी हॉल का माहौल शांत हो गया।

स्टेज पर एसपी दिव्या शर्मा माइक के पास पहुंची। उनकी नजर पूरे हॉल पर घूमी और फिर उन्होंने गहरी आवाज में कहा, “आज मैं यहां एक सच्चाई उजागर करने आई हूं और दो ऐसे अफसरों का चेहरा बेनकाब करने आई हूं जो कानून के रक्षक बनकर कानून का मजाक उड़ा रहे हैं।”

खुलासा

हॉल में कैमरों के फ्लैश चमके। दिव्या ने आगे कहा, “हम सब मानते हैं कि पुलिस जनता की रक्षा के लिए है। लेकिन जब यही पुलिस जनता को डराने लगे, उनके अधिकार छीनने लगे, तो यह ना केवल शर्म की बात है बल्कि अपराध है। मैं आज आपको ऐसे ही दो अधिकारियों के कारनामे दिखाने जा रही हूं।”

दिव्या ने अपने पीछे लगे बड़े स्क्रीन की तरफ इशारा किया। एक टेक्निशियन ने लैपटॉप से वीडियो कनेक्ट किया। वीडियो शुरू होते ही हॉल में सन्नाटा छा गया। रिकॉर्डिंग में थाने के अंदर की बातचीत सुनाई दे रही थी। संदीप का अहंकारी स्वर, “मैं अपने इंस्पेक्टर के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करूं। तुझ में इतनी औकात है? निकल यहां से वरना धक्के मार कर निकाल दूंगा।” फिर थप्पड़ की तेज आवाज गूंजी।

लोगों की प्रतिक्रिया

हॉल में मौजूद लोग चौंक गए। रिकॉर्डिंग साफ थी। हर धमकी, हर बदतमीजी सब कुछ कैद था। दिव्या ने कहा, “यह हैं हमारे थानेदार संदीप। यह व्यक्ति जो कानून का पालन करवाने की शपथ लेकर आया था, उसने कानून को अपने जूतों तले रौंद दिया।”

अब दिव्या ने दूसरा वीडियो चलवाया। यह बाजार का फुटेज था। भीड़ के बीच इंस्पेक्टर विकास बूढ़े अंकल के ठेले के पास खड़ा था। उसने खिलौना लिया, पैसे नहीं दिए। अंकल को थप्पड़ मारा और फिर ठेले पर लात मार दी। सड़क पर खिलौने बिखर गए। अंकल घुटनों के बल बैठकर उन्हें समेटने लगे।

न्याय की स्थापना

यह नजारा देखकर हॉल में बैठे कई लोग खुद को रोक नहीं पाए। कुछ की आंखों में गुस्सा था। कुछ की आंखें नम हो गईं। दिव्या ने कहा, “यह हैं इंस्पेक्टर विकास। इनकी वर्दी का मतलब जनता की सेवा नहीं बल्कि जनता का शोषण है। यह वह लोग हैं जो अपने पद का इस्तेमाल गरीबों को डराने और उनका हक मारने में करते हैं।”

दिव्या के यह शब्द सुनकर आगे की पंक्ति में बैठे कुछ वरिष्ठ पुलिस अफसर बेचैन हो उठे। एसएपी रमेश ने माइक मांगकर कहा, “मैडम, यह आरोप गंभीर हैं और सबूत साफ-साफ दिखाई दे रहे हैं। कानून के मुताबिक हमें तत्काल विभागीय जांच शुरू करनी होगी और अगर जांच में यह सही पाया गया तो दोनों अधिकारियों का निलंबन तय है।”

कार्रवाई का आदेश

दिव्या ने तुरंत जवाब दिया, “एएसपी साहब, सबूत साफ हैं और कानून की किताब भी साफ कहती है। धारा 166 के तहत कोई भी सरकारी कर्मचारी अगर अपने अधिकार का दुरुपयोग करता है तो यह दंडनीय अपराध है। इसके अलावा धारा 323, 504, 506 भी इन दोनों पर लागू होती है।”

हॉल में बैठे पत्रकार तेजी से नोट्स लेने लगे। दिव्या ने एक कागज उठाया। “यह है मेरा आधिकारिक आदेश। विभागीय जांच शुरू होने तक थानेदार संदीप और इंस्पेक्टर विकास को तत्काल प्रभाव से निलंबित किया जाता है। साथ ही आज ही दोनों के खिलाफ एफआईआर दर्ज होगी।”

अंत में

उनकी आवाज में इतनी दृढ़ता थी कि हॉल में बैठे दोनों आरोपी अधिकारियों के चेहरे पीले पड़ गए। एसपी ने अपने अधीनस्थ को इशारा किया। दो पुलिसकर्मियों ने आगे बढ़कर विकास और संदीप को खड़े होने के लिए कहा। विकास ने धीमे स्वर में कहा, “मैडम, एक मिनट, हमसे गलती हो गई।”

लेकिन दिव्या ने बीच में रोक दिया। “गलती तब होती है जब अनजाने में कुछ गलत हो जाए। लेकिन आप लोगों ने जानबूझकर गरीब का हक मारा। कानून तोड़ा और फिर उसे धमकाया। यह गलती नहीं, अपराध है।”

जैसे ही दोनों अधिकारियों को पुलिस ने बाहर ले जाया, हॉल में मौजूद पत्रकार उनके पीछे भागे। कैमरे चमकने लगे और सवालों की बौछार हुई। “विकास, क्या आप मानते हैं कि आपने गरीब का शोषण किया?” “संदीप, अब आप क्या कहेंगे?” दोनों ने सिर झुका लिया। कोई जवाब नहीं दिया।

दिव्या ने माइक से आखिरी बात कही, “यह मामला केवल दो अफसरों का नहीं है। यह एक संदेश है कि इस जिले में कानून सबसे ऊपर है। चाहे वह एएसपी हो, थानेदार हो या इंस्पेक्टर। अगर कोई कानून तोड़ेगा तो उसे सजा मिलेगी।”

न्याय की विजय

अगले ही दिन जिला पुलिस मुख्यालय में एक विशेष टीम बनाई गई। विभागीय जांच पुलिस अधीक्षक के अधीन एक टीम ने दोनों अधिकारियों के खिलाफ गवाहों के बयान लिए। खिलौने वाले अंकल ने अपने बयान में सब कुछ विस्तार से बताया। एफआईआर दर्ज हुई लेकिन अलग थाना क्षेत्र में। दोनों के खिलाफ धारा 176, 323, 504, 506 के तहत मामला दर्ज हुआ।

निलंबन आदेश की पुष्टि राज्य पुलिस मुख्यालय से आदेश आया कि जांच पूरी होने तक दोनों को निलंबित रखा जाएगा और वे किसी भी पुलिस ड्यूटी में शामिल नहीं होंगे। कुछ दिन बाद दिव्या खुद बाजार में पहुंची और बूढ़े अंकल के ठेले पर गई।

अंकल ने उन्हें देखते ही हाथ जोड़ दिए। “बेटी, भगवान तुम्हें खुश रखे। तुम्हारी वजह से हमें न्याय मिला।” दिव्या ने मुस्कुराते हुए कहा, “अंकल, यह मेरा फर्ज था। अब आपका ठेला कोई नहीं गिरा पाएगा। और अगर कोई कोशिश करेगा तो सीधा जेल जाएगा।”

निष्कर्ष

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि सच और न्याय के लिए खड़ा होना हमेशा जरूरी है। दिव्या ने साबित कर दिया कि कानून का पालन करना और गरीबों की रक्षा करना ही असली पुलिसिंग है। यह कहानी हमें यह भी याद दिलाती है कि हर व्यक्ति को अपनी आवाज उठाने का हक है, चाहे वह कितना भी कमजोर क्यों न हो।

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