👉 IPS मैडम ने अवैध वसूली कर रहे इंस्पेक्टर को सिखाया सबक!! ऐसी घटना…

यह कहानी है उत्तर प्रदेश के एक छोटे से शहर “जनगंज” की, जहां वर्षों से भ्रष्टाचार, डर और अन्याय का अंधेरा फैला हुआ था। हर गली, हर मोहल्ला, और हर दुकान पर एक ही साया मंडराता था — हफ्ता वसूली का।

हर शनिवार को जब घड़ी की सूई शाम के 8 बजे छूती, लोगों के चेहरों पर हवाइयाँ उड़ने लगती थीं। दुकानदारों की सांसें थम जाती थीं। वे जानते थे कि अब आने वाला है सब इंस्पेक्टर विनोद सिंह, अपनी जीप, लाठियों और क्रूर सिपाहियों के साथ।

विनोद सिंह का नाम सुनते ही बच्चों की हँसी बंद हो जाती, और बुज़ुर्ग अपनी दुआओं में खुदा से रहम की भीख माँगते। कोई भी उसके खिलाफ बोलने की हिम्मत नहीं करता था, क्योंकि जो बोला — वो या तो गायब हो गया, या उसकी दुकान किसी दुर्घटना में जल गई।

इसी डर के साम्राज्य में एक नई सुबह की किरण बनी आईपीएस अंकिता चौहान, जिसने हाल ही में शहर में चार्ज संभाला था। 28 साल की यह बहादुर अफसर दिल्ली यूनिवर्सिटी से पढ़ी थी और उसके बाद यूपीएससी क्लियर कर देश सेवा के जुनून में निकली थी। अंकिता का विश्वास था — “सिस्टम के अंदर रहकर, सिस्टम को बदला जा सकता है।”

जब पहली बार उन्होंने फाइलें पलटीं, तो जो मामले सामने आए, वे दिल दहला देने वाले थे। आत्महत्याओं की लंबी लिस्ट, टूटी हुई दुकानों की तस्वीरें, और FIR की अनुपस्थिति। यह सब देख अंकिता की आत्मा काँप उठी। उन्होंने सोचा — “क्या वाकई लोग अब न्याय पर विश्वास नहीं रखते?”

फिर एक रात उन्होंने फैसला किया — अब फाइलों में बैठे रहने का वक्त नहीं, बल्कि मैदान में उतरने का समय है। उन्होंने अपना वर्दी वाला चेहरा उतार फेंका और एक आम महिला की तरह सलवार सूट पहन, सिर पर दुपट्टा डालकर गलियों में निकल पड़ी।

रात के करीब 9 बजे, वह एक चाय की दुकान पर पहुंची। बूढ़ा दुकानदार कांपते हाथों से कुल्हड़ में चाय डाल रहा था।

“बाबा, इतनी रात को दुकान क्यों खुली है?” अंकिता ने पूछा।

बूढ़े ने इधर-उधर देखा और धीरे से फुसफुसाया, “बेटी, हफ्ता देने का टाइम हो गया है…”

यह सुनते ही अंकिता समझ गई कि डर कितना गहरा बैठा है। तभी दूर से एक पुलिस जीप की हेडलाइट चमकी, और विनोद सिंह उतरा — उसकी चाल में घमंड था और चेहरे पर शैतानी मुस्कान।

एक-एक कर दुकानदार लिफाफे देने लगे। लेकिन एक युवक मनोज ने मना कर दिया। विनोद ने उसकी दुकान को तोड़ दिया, उसे पीटा और पूरे मोहल्ले के सामने अपमानित किया।

अंकिता ने यह सब अपने छिपे कैमरे में रिकॉर्ड कर लिया। उसी रात उन्होंने योजना बनाई — यह सिर्फ एक पुलिस अफसर नहीं, बल्कि एक पूरा नेटवर्क है।

उन्होंने अपने भरोसेमंद असिस्टेंट आकाश को बुलाया। आकाश ने जान की बाजी लगाकर विनोद के गोदाम से सबूत इकट्ठा किए, लेकिन इसी दौरान वो बुरी तरह घायल हो गया।

अंकिता टूट गई, लेकिन रुकी नहीं। उन्होंने साजिश के हर धागे को सुलझाया। हार्ड डिस्क, होटल की मीटिंग, नेता और डीसीपी के बीच की बातचीत — सब रिकॉर्ड किया।

“ऑपरेशन सफाया” शुरू हुआ।

गोदाम, डीसीपी ऑफिस और होटल — एक साथ रेड मारी गई। पूरे शहर में सायरन गूंजे और लोगों ने तालियों से सड़कों को भर दिया। विनोद, डीसीपी और नेता गिरफ्तार हो गए।

लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं हुई।

अंकिता ने कहा — “जो लूटा वो गुनहगार हैं, लेकिन जो चुप रहा, वो भी कम दोषी नहीं।”

उन्होंने “ऑन परेशान, चुप्पी तोड़ो” नाम से एक मुहिम चलाई। हेल्पलाइन नंबर जारी किया गया, और लोग धीरे-धीरे बोलने लगे। दुकानदार, महिलाएं, बच्चे — सबने अपनी कहानी बताई।

एक 13 साल की बच्ची जब मंच पर आई और कहा — “मेरे पापा ने कहा था पुलिस भगवान होती है, लेकिन भगवान ने ही हमें जलाया” — तो पूरा मैदान सन्न रह गया।

अंकिता की आंखों में आँसू थे, पर उसमें कमज़ोरी नहीं थी — वो आग थी, जो अब शहर को रौशन करने वाली थी।

उन्होंने हर मोहल्ले में जन सुनवाई की, हर आरोपी पर कार्रवाई की। भ्रष्टाचार का वो मजबूत किला, जिसकी नींव दशकों पुरानी थी, धीरे-धीरे दरकने लगा।

अंत में, अंकिता ने अपनी डायरी में लिखा —
“अंधेरा कितना भी गहरा हो, एक ईमानदार चिंगारी उसे जलाकर राख कर सकती है। मैं वो चिंगारी बन चुकी हूँ, अब रोशनी रुकने नहीं दूंगी।”

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