👉 IPS madam took revenge | Taught a lesson to the police inspector who slapped an old mother in p…
शहर का सदर बाज़ार हमेशा की तरह उस सुबह भी रौनक से भरा हुआ था। ताज़ी सब्ज़ियों की महक, ग्राहकों की आवाजाही, दुकानदारों की पुकार और मोलभाव की गूंज हर तरफ़ सुनाई दे रही थी। इन्हीं दुकानों के बीच एक कोने में मीना देवी की छोटी-सी सब्ज़ी की दुकान लगी थी। उम्र ढल चुकी थी, चेहरे पर झुर्रियों की लकीरें साफ दिखती थीं, लेकिन हाथों में मेहनत की ताक़त और आंखों में आत्मसम्मान की चमक अब भी थी।
मीना देवी कई सालों से इसी दुकान से अपनी जीविका चला रही थीं। सुबह-सुबह मंडी से सब्ज़ियां लाना, उन्हें साफ करना और दुकान पर सजाना – यही उनकी दिनचर्या थी। लेकिन उनकी इस ईमानदार मेहनत पर हर रोज़ धब्बा लगा देता था स्थानीय पुलिस के दो जवान – राजेश और संजय।
हर सुबह जब दुकान सजती भी नहीं थी, तभी वे दोनों आ धमकते। अकड़ते हुए राजेश कहता, “ओए बुढ़िया, जल्दी से सबसे ताज़ी भिंडी और परवल निकाल।” जब भी मीना देवी पैसे मांगतीं, संजय आंखें दिखाकर कहता, “एएसपी साहब के आदमी हैं हम। पैसे नहीं देंगे। ज्यादा जुबान चलाई तो कल से तेरी दुकान यहीं नहीं दिखेगी।”
ये रोज़ की बेइज़्ज़ती मीना देवी को भीतर तक तोड़ रही थी। पर वह चुप रहतीं। चुप्पी की वजह सिर्फ उनकी बेटी नेहा थी। मीना देवी ने कड़ी मेहनत करके उसे पढ़ाया-लिखाया था। नेहा अब आईपीएस अधिकारी बन चुकी थी और पास ही एक जिले में तैनात थी। मां कभी नहीं चाहती थीं कि उनकी छोटी-सी परेशानी बेटी के सपनों और उसके फ़र्ज़ में बाधा बने।
नेहा जब भी फोन करती, हमेशा पूछती – “मां, सब ठीक है न? कोई दिक्कत तो नहीं?” और हर बार मीना देवी मुस्कुराकर कह देतीं – “हां बेटी, सब अच्छा है।” लेकिन एक दिन उनकी आवाज़ की उदासी नेहा से छुप न सकी। बहुत पूछने पर आखिरकार मीना देवी ने पूरा सच बता दिया।
बेटी का खून खौल उठा। उसने तुरंत छुट्टी ली और अगले ही दिन गांव पहुंच गई। मां को गले लगाकर कहा – “मां, अब चिंता मत करो। मैं सब ठीक कर दूंगी।” लेकिन मीना देवी ने टालने की कोशिश की – “तू अभी-अभी आई है, आराम कर।” नेहा ने धीरे से कहा – “अगर आप इजाज़त दें तो कल आपकी जगह मैं दुकान लगाऊं। देखती हूं, उन दोनों की हिम्मत कैसे होती है।”
अगली सुबह नेहा ने अपनी वर्दी उतारकर एक साधारण सलवार-सूट पहना। सिर पर पल्लू डाला और खुद को बिल्कुल आम औरत की तरह तैयार कर लिया। उसने मां की जगह दुकान सजाई और ग्राहकों का मुस्कुराकर स्वागत करने लगी। किसी को अंदाज़ा भी न था कि यह साधारण सी दिखने वाली युवती दरअसल आईपीएस अधिकारी है।
दोपहर तक नेहा इंतज़ार करती रही। तभी एक पुरानी काली बाइक आकर रुकी। उस पर वही दो पुलिसकर्मी थे – राजेश और संजय। राजेश ने अकड़कर कहा – “अरे, नया चेहरा! बुढ़िया कहां है?” नेहा ने शांत स्वर में कहा – “वह आज आराम कर रही हैं। आप बताइए क्या चाहिए?”
संजय हंसते हुए बोला – “क्या चाहिए? हमें तो बस मुफ्त की सब्ज़ियां चाहिए। डाल पांच किलो आलू, दो किलो प्याज़ और तोरई भी।”
नेहा ने दृढ़ता से कहा – “सर, पहले पैसे दीजिए।”
यह सुनते ही दोनों ठठाकर हंस पड़े। राजेश गरजते हुए बोला – “हम थानेदार साहब के खास आदमी हैं। तेरी मां से पूछ ले, कभी पैसे लिए हैं?” और धमकी दी – “ज्यादा होशियारी दिखाई तो कल से तेरी दुकान गायब होगी।”
नेहा अब भी संयमित रही। उसने आंखों में आंखें डालकर कहा – “अकल तो आप लगाइए। जनता की सेवा के लिए मिली वर्दी का आप गलत इस्तेमाल कर रहे हैं। आप जैसे लोगों की वजह से ही पुलिस की इज्ज़त घटती है।”
यह सुनकर राजेश आगबबूला हो गया। वह बाइक से उतरकर हाथ उठाने ही वाला था कि नेहा ने उसका हाथ पकड़कर मरोड़ दिया और उसे ज़मीन पर गिरा दिया। चारों तरफ़ लोग सन्न रह गए। संजय घबरा गया। तभी नेहा ने जेब से मोबाइल निकाला और साफ़ आवाज़ में कहा – “मैं आईपीएस नेहा वर्मा बोल रही हूं। सदर बाजार में दो पुलिसकर्मी वर्दी का दुरुपयोग कर रहे हैं। मैंने सबूत भी इकट्ठा कर लिए हैं। तुरंत टीम भेजिए।”
कुछ ही मिनटों में पुलिस की गाड़ी सायरन बजाती हुई पहुंची। डीएसपी खुद उतरे और नेहा को सलाम किया। बाजार में भीड़ जमा हो चुकी थी। नेहा ने सबूत दिखाए और मां के साथ बीते हर अपमान की कहानी सुनाई। भरे बाजार में ही राजेश और संजय को हथकड़ियां पहनाई गईं। लोग तालियां बजाने लगे।
ख़बर मीडिया तक पहुंची। अगले दिन अख़बारों और चैनलों में हेडलाइन थी – “आईपीएस अफसर ने मां का सम्मान दिलाया, वर्दीधारी गुंडों का भंडाफोड़।”
मामला कोर्ट तक पहुंचा। गवाही में मीना देवी के आंसू थे, दुकानदारों की आवाज़ थी और सबसे बड़ा सबूत नेहा के रिकॉर्ड किए वीडियो और ऑडियो थे। राजेश और संजय के सारे दावे ढह गए। जज ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा – “पुलिस जनता की सुरक्षा के लिए होती है, उनके शोषण के लिए नहीं।” और दोनों को दो साल की सज़ा के साथ नौकरी से बर्खास्त कर दिया।
उस दिन मीना देवी की आंखों में आंसू थे, लेकिन यह अपमान के नहीं बल्कि गर्व और राहत के आंसू थे। अब वे पहले की तरह दुकान लगाती थीं, पर उनके चेहरे पर आत्मविश्वास की मुस्कान लौट आई थी।
कुछ दिनों बाद एक नया पुलिस अफसर उनकी दुकान पर आया और सम्मान से सब्ज़ियां खरीदने लगा। तभी एक जीप आकर रुकी। उसमें से नेहा उतरी और मुस्कुराते हुए बोली – “आज से हमारी टीम का पहला नियम है – मां का सम्मान ही सबसे बड़ी ड्यूटी है।”
मीना देवी ने बेटी को गले लगाया। उनके आंसू बह रहे थे, लेकिन अब वे हार के नहीं, जीत के थे।
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