10वीं फेल लडकी ने करोडपति को कहा मुजे नोकरी दो 90 दिनो में कंपनी का नक्शा बदल दूँगी फिर जो हुआ!

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इसी शहर के दूसरे छोर पर, डोमबिवली की एक भीड़भाड़ वाली कॉलोनी में साधारण परिवार रहता था। उस परिवार की 23 वर्षीय बेटी थी—अनाया, जिसके नाम के आगे “10वीं फेल” का ठप्पा लगा हुआ था। अनाया पढ़ाई में कभी अच्छी नहीं रही। उसे रटे-रटाए आंकड़े, तारीखें और फार्मूले याद करना पसंद नहीं था। लेकिन उसकी आंखें तेज थीं और दिमाग किसी मशीन की तरह चलता था। वह चीजों को वैसे नहीं देखती थी जैसी वो दिखती थीं, बल्कि जैसी वो हो सकती थीं। पिता का कई साल पहले देहांत हो चुका था, घर की जिम्मेदारी मां और अनाया पर थी। मां स्टेशन के पास छोटी सी चाय की दुकान चलाती थी, अनाया दिनभर हाथ बंटाती थी।

चाय बनाते हुए, कप धोते हुए, उसका ध्यान अक्सर बगल में बने शर्मा इंडस्ट्रीज की फैक्ट्री पर रहता था। वहां से निकलते ट्रक, गेट पर खड़े ड्राइवर, उदास कर्मचारी, सिक्योरिटी गार्ड की लापरवाही, मैनेजरों का घमंड—सब उसकी तेज नजर में कैद हो जाता था। फैक्ट्री की छोटी-बड़ी गड़बड़ियां उसे साफ दिखती थीं, जितनी अंदर बैठे मैनेजर्स को भी नहीं दिखती थीं।

एक दिन अनाया की मां की तबियत अचानक बिगड़ गई। डॉक्टर ने बताया कि दिल का ऑपरेशन करना पड़ेगा। ऑपरेशन और दवाइयों का खर्च लाखों रुपये था। चाय की दुकान से दो वक्त की रोटी तो चल सकती थी, लेकिन इतना बड़ा खर्च उठाना नामुमकिन था। उस रात अनाया ने नींद खो दी। मां को खोने का ख्याल भी नहीं कर सकती थी। तभी उसके दिमाग में एक ख्याल आया—वह खुद सीधे अरविंद शर्मा से मिलेगी और मदद मांगेगी। लेकिन मदद भीख मांगकर नहीं, अपनी काबिलियत दिखाकर।

अगली सुबह, साधारण कपड़े पहनकर, वह शर्मा टावर्स के गेट पर जा पहुंची। आंखों में आत्मविश्वास था। सिक्योरिटी गार्ड ने हंसकर बोला, “क्यों आई हो? शर्मा साहब से मिलना है? पागल हो क्या?” अनाया ने शांत स्वर में कहा, “मुझे उनसे मिलना है।” गार्ड ने मजाक उड़ाया, “अपॉइंटमेंट है?” जब अनाया ने ‘नहीं’ कहा, तो उसने डपटते हुए कहा, “यहां टाइम खराब मत कर।” लेकिन अनाया वहीं कोने में जाकर खड़ी हो गई। पूरे दिन, फिर अगले दिन, फिर उसके अगले दिन—एक हफ्ता गुजर गया। धूप, बारिश, भूख, प्यास सब सहते हुए वह डटी रही। उसकी जिद को देखकर गार्ड भी परेशान हो गए। आखिरकार बात सिक्योरिटी हेड तक पहुंची, फिर अरविंद शर्मा तक।

अरविंद शर्मा ने आदेश दिया, “उसे अंदर बुलाओ। देखता हूं किस हिम्मत से मेरा वक्त खराब कर रही है।” जब अनाया शर्मा टावर्स के आलीशान कैबिन में दाखिल हुई, वहां की भव्यता देखकर भी उसकी आंखों में कोई डर या आश्चर्य नहीं था। वह सब कुछ ऐसे देख रही थी जैसे किसी समस्या का विश्लेषण कर रही हो। अरविंद शर्मा ने पूछा, “क्या चाहती हो? क्यों मेरा वक्त खराब कर रही हो?” अनाया ने सीधे कहा, “मुझे आपकी कंपनी में नौकरी चाहिए।” शर्मा हंस पड़े, “नौकरी चाहिए? कौन सी डिग्री है तुम्हारे पास?” अनाया ने जवाब दिया, “मैं दसवीं फेल हूं।”

यह सुनकर शर्मा का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया, “दसवीं फेल और तुम मेरी कंपनी में नौकरी मांगने आई हो? निकलो यहां से।” लेकिन अनाया हिली नहीं। उसने दृढ़ स्वर में कहा, “साहब, मुझे सिर्फ 3 महीने का वक्त दीजिए। अगर 3 महीने में मैंने आपकी कंपनी का नक्शा नहीं बदल दिया, तो आप मुझे जेल भिजवा दीजिए।”

अरविंद शर्मा हक्का-बक्का रह गए। अपनी जिंदगी में ऐसा दुस्साहस भरा प्रस्ताव कभी नहीं सुना था। एक साधारण 10वीं फेल लड़की अरबों की कंपनी का नक्शा बदलने की बात कर रही थी। उन्हें लगा, यह लड़की या तो पागल है या इसमें कुछ खास है। उन्होंने पूछा, “तुम्हें ऐसा क्यों लगता है कि तुम वो कर सकती हो जो मेरे मैनेजर्स नहीं कर पा रहे?” अनाया ने कहा, “आपके मैनेजर्स कंपनी को ऊपर से देखते हैं, मैं नीचे से देखती हूं। आपकी फैक्ट्री के गेट नंबर तीन से रोज हजारों लीटर डीजल चोरी होता है, गार्ड ट्रक ड्राइवरों से मिला हुआ है। साबुन के गोदाम में लाखों की बर्बादी होती है क्योंकि छत टूटी है। राजा बिस्किट अब बाज़ार में नहीं बिकता, प्रतियोगी कम दाम में बेहतर क्वालिटी बेच रहे हैं। आपके मैनेजर आपको नहीं बताते क्योंकि वे अपनी नौकरी बचाने में लगे हैं।”

उसकी बातें इतनी सटीक और सच्ची थीं कि शर्मा हैरान रह गए। यह वही बातें थीं जो उन तक कभी नहीं पहुंची थीं। उन्हें उसकी आंखों में वही जुनून दिखा जिसकी तलाश उन्हें बरसों से थी। उन्होंने गहरी सांस ली और फैसला लिया, “ठीक है, मैं तुम्हें 3 महीने का वक्त देता हूं। तनख्वाह ₹10,000 महीना। कोई पद नहीं मिलेगा, तुम सिर्फ ऑब्जर्वर होगी। कहीं भी जा सकती हो, किसी से भी बात कर सकती हो। अगर 3 महीने में तुमने कुछ खास नहीं किया, तो सच में जेल भिजवा दूंगा।”

अनाया ने मुस्कुराकर कहा, “मंजूर है साहब।”

शर्मा इंडस्ट्रीज के भीतर अपनी पहली सुबह बिताई तो उसे साफ महसूस हुआ कि बाहर की चमक-धमक के पीछे कितना सन्नाटा छिपा है। ऊपर ऑफिस में महंगे सूट वाले मैनेजर एक दूसरे से मुस्कुराकर हाथ मिलाते थे, लेकिन उनकी आंखों में डर और झिचक थी। नीचे फैक्ट्री फ्लोर पर मजदूर धूल, पसीने और शोर के बीच टूटी मशीनों से जूझ रहे थे। उनके चेहरे पर थकान और लाचारी थी।

अनाया ने फैसला किया कि उसे अपने तीन महीने यहीं से शुरू करने होंगे। उसने मजदूरों के बीच बैठना शुरू किया, उनकी तकलीफें सुनीं। पाया कि मशीनें इतनी खराब हैं कि हर घंटे में आधा घंटा खराबी के कारण प्रोडक्शन रुक जाता है। लेकिन मैनेजर्स की रिपोर्ट में सब सही बताया जाता है। मजदूरों ने बताया, कई सालों से नई मशीनें खरीदी नहीं गईं। यानी बीच में गड़बड़ है। गार्ड ट्रकों की चेकिंग नाम मात्र की करते थे। एक दिन उसने देखा, दो ट्रक पूरे लदे बाहर जा रहे थे, गार्ड ने बिना रजिस्टर में नाम लिखे जाने दिया। ड्राइवरों से बात की तो वे घबरा कर भाग गए। समझ आ गया, चोरी संगठित तरीके से हो रही है।

अगला कदम था मार्केट में जाकर असली तस्वीर देखना। वह साधारण कपड़े पहनकर दादर मार्केट गई, दुकानदारों से पूछा, “राजा बिस्किट क्यों नहीं रखते?” दुकानदार बोले, “मैडम, कौन खरीदेगा? ₹10 का पैकेट है, स्वाद भी पुराना है। लोग अब कम दाम में अच्छी क्वालिटी चाहते हैं। गुप्ता बेकर्स का ₹8 वाला पैकेट छा गया है।” उसने पैकेट खरीदा, तुलना की, सच में शर्मा इंडस्ट्रीज का बिस्किट बेस्वाद और महंगा था। नए ब्रांड्स सस्ते और स्वादिष्ट थे।

कंपनी की असली लड़ाई अब सिर्फ नाम के भरोसे नहीं लड़ी जा सकती थी। प्रोडक्ट की क्वालिटी सुधारना और कीमत कम करना ही रास्ता था। लेकिन बोर्डरूम में बैठे लोग हर चीज को आंकड़ों और ग्राफ्स में देखते थे। पहली बार बोर्ड मीटिंग में गई तो अफसरों ने उसकी तरफ देखा भी नहीं। किसी ने ताना मारा, “यह कौन है? चपरासी की तरह आई है।” लेकिन अरविंद शर्मा ने कहा, “यह हमारी ऑब्जर्वर है।” अनाया ने बिना झिझक अपनी बात रखी—चोरी, मशीनों की खराब हालत, बिस्किट के स्वाद की हकीकत। अफसरों ने अनदेखा कर दिया, “यह सब छोटा-मोटा मामला है। इससे कंपनी का भविष्य तय नहीं होता।” अनाया ने गुस्से को निगलते हुए कहा, “डिग्री नहीं है लेकिन आंखें हैं और आंखें झूठ नहीं बोलती।”

अगले कुछ हफ्तों में अनाया ने काम करने का तरीका ढूंढ लिया। तय किया, सिर्फ बात नहीं, हल निकाल कर दिखाएगी। मजदूरों के साथ मिलकर मशीनों की मरम्मत शुरू करवाई, पुराने स्क्रैप से पार्ट्स निकाले, मशीनें चालू कीं। मजदूरों को पहली बार लगा कोई उनकी सुन रहा है। चोरी रोकने के लिए गार्डों की ड्यूटी बदलवाने का सुझाव दिया, खुद कई रात फैक्ट्री गेट पर बैठकर निगरानी की। एक रात दो ड्राइवरों को पकड़ा, मामला अरविंद शर्मा तक पहुंचा, जिम्मेदार मैनेजर को निकाल बाहर किया गया। मजदूरों और छोटे कर्मचारियों के बीच अनाया की इज्जत बढ़ गई।

मार्केटिंग टीम में जाकर नया रिसर्च शुरू किया, दुकानदारों के वीडियो इंटरव्यू बोर्ड मीटिंग में चलाए। जब अफसरों ने आम लोगों को कहते सुना, “शर्मा इंडस्ट्रीज का प्रोडक्ट अब काम का नहीं,” तो चेहरे उतर गए। अरविंद शर्मा के भीतर भी हलचल हुई, पहली बार लगा यह लड़की सचमुच वह देख पा रही है जो अफसरों की आंखों से ओझल था।

राह आसान नहीं थी। अनाया को हर दिन ताने, अपमान, रुकावटें झेलनी पड़ी। मैनेजर्स ने फाइलिंग गायब कर दी, मजदूरों को डराया, धमकी भरा नोट मिला, “बहुत जासूसी कर रही है, चुपचाप काम कर वरना पछताएगी।” लेकिन अनाया रुकी नहीं। मां की तस्वीर बैग में रखती, डर लगने पर देखती और खुद से कहती, “मुझे हार नहीं माननी।”

धीरे-धीरे नतीजे सामने आने लगे। मशीनों की मरम्मत से प्रोडक्शन 15% बढ़ गया, चोरी रुकने से लाखों की बचत हुई, मजदूरों के बीच नया जोश लौटा। सबसे बड़ा बदलाव—छोटे दुकानदार फिर से शर्मा इंडस्ट्रीज का बिस्किट रखने लगे। कंपनी ने दाम घटाकर, स्वाद सुधारकर नया पैकेट लॉन्च किया—”नया राजा”। बाजार में आते ही छा गया।

अखबारों और बिजनेस चैनलों ने खबर चलाना शुरू किया, “गिरती कंपनी शर्मा इंडस्ट्रीज में अचानक जान कैसे आ गई?” लेकिन बोर्डरूम में अफसरों का अहंकार पूरी तरह नहीं टूटा था। वे अब भी अनाया को इत्तेफाक मानते थे।

तीन महीने के आखिरी हफ्ते में अरविंद शर्मा ने अनाया को बुलाया, “जो छोटे-मोटे सुधार तुमने किए हैं, उससे थोड़ा फर्क पड़ा है, लेकिन असली बदलाव तभी होगा जब कंपनी लंबे समय तक मुनाफा कमाएगी।” अनाया ने मुस्कुरा कर कहा, “बिल्कुल साहब, और वही मैं आपको दिखाने वाली हूं। मेरे पास एक आखिरी प्लान है।”

उसने बताया, कंपनी की सबसे बड़ी कमजोरी सप्लाई चेन है। गोदामों में माल पड़ा रहता है, दुकानों तक समय पर नहीं पहुंचता। ड्राइवर और मैनेजर रिश्वत लेकर सामान की डिलीवरी टालते हैं। अगर सिस्टम बदल दें तो कंपनी का खून फिर से तेज दौड़ने लगेगा। उसने फैक्ट्री से दुकानदार तक का सीधा नेटवर्क बनाया, बिचौलियों को हटाकर छोटे ट्रांसपोर्टर से सीधी डील की। मजदूरों की मदद से मोबाइल ऐप डिजाइन करवाया जिसमें हर ट्रक की लोकेशन रियल टाइम दिखती थी, दुकानदार सीधे ऐप से ऑर्डर कर सकते थे। पास के इंजीनियरिंग कॉलेज के स्टूडेंट्स से यह काम करवाया। कुछ ही दिनों में सिस्टम चालू हो गया।

पहले जहां सामान दुकानों तक पहुंचने में 5 दिन लगता था, अब 2 दिन में पहुंचने लगा। बिक्री दोगुनी हो गई, कंपनी का कैश फ्लो सुधर गया। रिपोर्ट बोर्ड मीटिंग में पेश हुई, सारे मैनेजर दंग रह गए। अरविंद शर्मा की आंखों में हल्की चमक आई, मगर अहंकार अब भी था, “ठीक है, तुमने अच्छा काम किया है, लेकिन यह मत समझो कि तुमने कंपनी को बदल दिया है। असली परीक्षा तो आने वाले सालों में होगी।”

अनाया ने शांति से कहा, “साहब, आपने मुझे 3 महीने का मौका दिया था और आज आपकी कंपनी फिर से खड़ी है। अब फैसला आपका है, मुझे बाहर निकालेंगे या आगे बढ़ने देंगे।”

मीटिंग के बाद अरविंद शर्मा देर रात तक अकेले अपने केबिन में बैठे रहे

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