10 साल की बच्ची करोड़पति की फैक्ट्री में सफाई करने गई… फिर जो हुआ
कानपुर के पास बसे एक औद्योगिक क्षेत्र में फैली धूल, मशीनों की गड़गड़ाहट और मजदूरों की आवाज़ों के बीच खड़ी थी मेहरा इंडस्ट्रीज़—एक बड़ी फैक्ट्री जिसका मालिक था अर्जुन मेहरा। उम्र सिर्फ 32 साल, पर मेहनत और ईमानदारी से उसने यह फैक्ट्री खड़ी की थी। बाहर से लोग उसे करोड़पति मालिक कहते, मगर भीतर से वह बेहद अकेला था। माँ-बाप बचपन में ही गुजर गए थे, शादी की बात उसने कभी सोची नहीं, और उसके लिए पूरी दुनिया बस उसकी फैक्ट्री ही थी।
उस दिन सुबह ठीक दस बजे अर्जुन अपने कैबिन में बैठा था। सामने फाइलों का ढेर और ऑर्डर लिस्ट, लेकिन मन कहीं और भटक रहा था। तभी दरवाज़ा धीरे-धीरे खुला। अर्जुन ने नज़र उठाई और चौक पड़ा। सामने खड़ी थी सिर्फ दस साल की एक बच्ची—फटी हुई फ्रॉक, टूटी चप्पलें, मगर आँखों में चमक और हिम्मत।
“तुम कौन हो?” अर्जुन ने हैरानी से पूछा।
बच्ची ने सीधा जवाब दिया—
“मेरा नाम आन्या है। मैं मम्मी की जगह काम करने आई हूँ।”
अर्जुन और चौंक गया—“इतनी छोटी उम्र? तुम्हारी मम्मी कौन?”
“मम्मी का नाम पम्मी है। वो यहाँ सफाई करती हैं। आज बीमार हैं, इसलिए मैंने सोचा काम मैं कर लूँ।”
अर्जुन का दिल पिघल गया। उसने नरम स्वर में कहा—“बेटा, तुम्हें तो स्कूल जाना चाहिए।”
आन्या बोली—“मम्मी कहती हैं काम छोटा-बड़ा नहीं होता। बस ईमानदारी से करना चाहिए।”
ये सुनकर अर्जुन गहरी सोच में डूब गया। उसने कैंटीन से खाना मंगवाया। बच्ची ने मासूमियत से कहा—“पैसे मैं दे दूँगी।” अर्जुन मुस्कुराया—“यह तुम्हारा हक है।”
छोटे हाथों में झाड़ू लेकर वह सफाई करने लगी। कभी फाइल गीली कर देती, कभी कागज खिसका देती, पर हर कोशिश सच्चाई से भरी थी। अर्जुन ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा—“यह गलती नहीं, कोशिश है।”
पम्मी की बीमारी और डर
दोपहर तक बच्ची थक गई। धीरे से बोली—“मम्मी रात भर खांस रही थीं। मैंने उनकी पीठ सहलाई थी। उन्होंने कहा, डर मत बेटा, सब ठीक होगा।”
अर्जुन का दिल भर आया। उसने तुरंत आदेश दिया—“पम्मी को अस्पताल ले जाओ। सारा खर्च कंपनी उठाएगी।”
शाम को जाते-जाते अर्जुन ने आन्या को एक बैग दिया—कॉपी, पेंसिल और किताबें। बोला—“कल से स्कूल मिस मत करना।” आन्या मुस्कुराई—“मैं पढ़ूँगी भी और मम्मी की मदद भी करूँगी।”
अगली सुबह अर्जुन अस्पताल पहुँचा। वार्ड के कोने में लेटी थी पम्मी—पतली, पीली सी औरत, चेहरा थका हुआ, पर आँखों में हिम्मत। अर्जुन ने पूछा—“कैसी हैं आप?”
पम्मी ने हल्की मुस्कान दी—“ठीक हूँ, बस थोड़ी खाँसी है।”
लेकिन नर्स ने फाइल दिखाकर बताया—इंफेक्शन गहरा है, इलाज जरूरी है। अर्जुन ने कहा—“पूरा इलाज होगा। चिंता मत कीजिए।”
पर पम्मी की आँखों में एक अजीब डर झलक रहा था, जैसे कोई राज दिल में दबा हो। रात में नर्स ने सुना—वह बड़बड़ा रही थी—“नहीं, मत आओ… मेरी बच्ची को मत छीनो।”
अतीत की दस्तक
कुछ दिन बाद जब पम्मी थोड़ा ठीक हो रही थी, फैक्ट्री के गेट पर अर्जुन का सामना हुआ एक अनजान आदमी से। लंबा कद, चमकदार कपड़े, होंठों पर बनावटी मुस्कान।
“क्या हाल है अर्जुन बाबू?” वह बोला। “सुना है आजकल सफाई कर्मी आपके दिल के करीब है?”
अर्जुन चौंक गया। तभी पम्मी फैक्ट्री से बाहर आई। उस आदमी को देखते ही उसका चेहरा सफेद पड़ गया। पीछे से दौड़ती आई आन्या डर से काँपने लगी।
“तुम यहाँ क्यों आए हो?” पम्मी की आवाज़ कांपी।
वह आदमी—दुष्यंत—हँसते हुए बोला—“अपना हक लेने आया हूँ। आन्या मेरी बेटी है। अगर पैसे नहीं दिए तो कोर्ट में केस कर दूँगा। कस्टडी ले लूँगा।”
पम्मी के पैरों तले ज़मीन खिसक गई। आँसू छलक पड़े—“जब मैंने अकेले बेटी को जन्म दिया, तब कहाँ थे तुम?”
दुष्यंत ने ताना मारा—“अतीत की बातें छोड़ो। मुझे बस आज का फायदा चाहिए।”
अर्जुन अब तक चुप था। लेकिन उसकी आँखों में आग थी। वह आगे बढ़ा—“जो आदमी अपनी औरत और बच्ची को छोड़कर भागा हो, उसे अब कोई हक नहीं। निकल जाओ यहाँ से।”
दुष्यंत गुर्राया—“ठीक है। कोर्ट में देख लूँगा।” और चला गया।
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