10 साल के गरीब क्लीनर ने अरबपति की गूंगी बेटी को बोलना सिखा दिया 😱❤️
मुंबई के सिटी केयर हॉस्पिटल की तीसरी मंजिल पर हर सुबह एक छोटा सा लड़का झाड़ू और पोछा लेकर नजर आता था। उसका नाम राजू वर्मा था, उम्र सिर्फ 10 साल। उसके फटे हुए लाल यूनिफार्म से साफ झलकता था कि वह गरीब है। लेकिन उसके चेहरे की मुस्कान हमेशा जिंदा रहती थी। पूरे हॉस्पिटल में वही सबसे छोटा स्टाफ था। कोई ध्यान नहीं देता था, पर वह सबको ध्यान से देखता था। कैसे डॉक्टर अपने मरीजों से बात करते हैं? कैसे लोग अपनी उम्मीदें लेकर यहां आते हैं? राजू के पास ना पैसे थे, ना पढ़ाई, ना कोई परिवार। रात को वह हॉस्पिटल के स्टोर रूम में पुराने गत्तों के ऊपर सो जाता था और सुबह सबसे पहले उठकर फर्श चमका देता था।
पहली मुलाकात
आज उसकी नजर किसी पर टिक गई। एक आठ साल की प्यारी सी लड़की, जिसका नाम आराध्या मेहता था। वह अरबपति राजेश मेहता की इकलौती बेटी थी। पूरे हॉस्पिटल में सबको पता था कि आराध्या जन्म से गूंगी है। करोड़ों रुपए खर्च हो गए, बड़े-बड़े डॉक्टर हार गए, लेकिन उसकी जुबान से कभी आवाज नहीं निकली। राजू ने उसे पहली बार देखा जब वह खिड़की के पास बैठी आसमान की तरफ देख रही थी। उसके हाथ में एक गुड़िया थी, लेकिन चेहरे पर गहरी उदासी। राजू कुछ पल उसे देखता रहा। फिर हिम्मत जुटाकर बोला, “दीदी, आपको बारिश पसंद है? मेरी अम्मा कहती थी जब बारिश होती है तो भगवान लोगों का दुख धो देता है।”
आराध्या ने उसकी तरफ देखा। कुछ बोली नहीं, बस धीरे से पलकें झपकाई। राजू मुस्कुराया। “कोई बात नहीं, आप बोलो या ना बोलो। मैं तो रोज मिलने आऊंगा।”
दोस्ती की शुरुआत
अगले दिन राजू फिर आया। उसने पुराने अखबार से एक छोटा सा फूल बनाया और उसे दिया। “यह फूल कभी मुरझाएगा नहीं दीदी। जैसे हमारी दोस्ती।” आराध्या ने फूल लिया और हल्की सी मुस्कान दी। पहली बार किसी ने उसे मुस्कुराते देखा था। धीरे-धीरे यह उसकी आदत बन गई। सफाई के बाद वह आराध्या के कमरे की खिड़की के पास बैठकर बातें करता। उसे छोटी-छोटी कहानियां सुनाता कि कैसे वह भी कभी स्कूल जाना चाहता है। कैसे उसके सपनों में मां आती है और कहती है, “बेटा कभी हार मत मानना।” कभी वह उसे चौक से दीवार पर जानवरों की तस्वीरें बनाकर दिखाता, तो कभी कॉटन से छोटे-छोटे खिलौने बनाता। आराध्या चुपचाप उसे देखती, कभी हंस देती, कभी सिर हिला देती।
कठिनाई का सामना
एक दिन नर्स ने राजू को डांट दिया। “अरे तुम सफाई वाले हो। मरीज के कमरे में बार-बार क्यों आते हो?” राजू ने सिर झुका लिया। बोला, “मैडम, मैं उसे परेशान नहीं करता। वो बस हंसती है जब मैं आता हूं।” नर्स कुछ नहीं बोली, बस चली गई। लेकिन डॉक्टर शर्मा ने यह सब देखा। उन्होंने मुस्कुराकर कहा, “शायद यह बच्चा वो कर रहा है जो हम नहीं कर पाए। आराध्या को जीना सिखाना।”
उम्मीद की किरण
अब हर दिन आराध्या उसका इंतजार करती थी। जैसे ही राजू की झाड़ू की आवाज पास आती, वो मुस्कुराने लगती। हॉस्पिटल में जहां हर जगह डर और दुख था, वहां इन दोनों की दोस्ती एक उम्मीद बन गई थी। राजू को यकीन था कि एक दिन आराध्या बोलेगी। वो रोज कहता, “दीदी, एक दिन आप बोलोगे, मैं सुनूंगा और सबको बताऊंगा कि मेरी दोस्त आराध्या बोलती है।” कोई उस पर विश्वास नहीं करता था, लेकिन वह मानता था कि प्यार और सच्चाई की ताकत वो कर सकती है जो दवा नहीं कर पाती।
चमत्कार का आगाज़
अगले ही हफ्ते की बात थी। सुबह-सुबह हॉस्पिटल में हलचल थी। वार्ड बॉय भाग रहे थे, नर्सें फाइलें संभाल रही थीं, और डॉक्टर किसी इमरजेंसी की तैयारी में थे। राजू हमेशा की तरह झाड़ू लेकर आया था, लेकिन उसका ध्यान सिर्फ एक कमरे पर था। कमरा नंबर 309, जहां आराध्या भरती थी। जैसे ही वह वहां पहुंचा, देखा कि दरवाजा आधा खुला है। अंदर आराध्या अपने बिस्तर पर बैठी थी। हाथ में वही गुड़िया थी जो उसकी मां ने उसे दी थी।
गुड़िया का टूटना
राजू धीरे से अंदर गया। “दीदी, आज मैं आपके लिए एक नई कहानी लाया हूं।” आराध्या ने उसकी तरफ देखा, हल्का सा मुस्कुराई। फिर सिर झुका लिया। राजू ने देखा कि उसकी गुड़िया का हाथ टूटा हुआ है। उसने तुरंत कहा, “अरे, इसका हाथ टूट गया। कोई बात नहीं, मैं इसे ठीक कर देता हूं।” वह अपने जेब से टेप निकालने लगा। लेकिन तभी आराध्या के हाथ से गुड़िया फिसलकर जमीन पर गिर पड़ी और उसका सिर भी टूट गया। आराध्या एकदम सन्न रह गई। उसके चेहरे का रंग उड़ गया। फिर धीरे-धीरे उसकी आंखों से आंसू गिरने लगे। उसके होठ कांप रहे थे, लेकिन आवाज नहीं निकल रही थी।

राजू की चिंता
राजू घबरा गया। जल्दी से झुका और गुड़िया के टुकड़े उठाने लगा। “दीदी, रोइए मत। मैं इसे ठीक कर दूंगा। देखिए, बस एक मिनट हो जाएगा।” वो टेप लगाता रहा, जोड़ने की कोशिश करता रहा, पर सिर बार-बार गिरता रहा। उसने थक कर कहा, “माफ कीजिए दीदी। मैं इसे नहीं जोड़ पा रहा।” आराध्या की सांसे तेज चलने लगीं। उसका चेहरा लाल हो गया। राजू ने उसकी आंखों में देखा। वो बस रो रही थी, पर आवाज अब भी नहीं थी। वह बोला, “दीदी, अगर गुड़िया टूट गई तो क्या हुआ? मैं आपको नहीं बना दूंगा। बस, प्लीज मत रोइए। मैं हूं ना।” इतना कहते-कहते उसकी आंखों में भी आंसू आ गए। “दीदी, आप बोल नहीं सकती, लेकिन मैं जानता हूं आप सब समझती हैं। अगर आपको दर्द है तो भगवान से कहो। अगर मुझसे नाराज हो तो मुझे डांटो। बस कुछ बोलो ना दीदी।” वो कमरे में झुक कर बैठ गया, जैसे किसी अपने से माफी मांग रहा हो।
आराध्या की आवाज
और तभी चुप्पी टूट गई। आराध्या के होठ हिले। बहुत धीरे से एक टूटी हुई आवाज निकली, “राजू।” का दिल जैसे रुक गया। वो ठिठक गया, उसकी आंखें फैल गईं। “क्या? क्या आपने मेरा नाम लिया दीदी?” आराध्या फिर बोली, “थोड़ा जोर से।” राजू की आवाज कांप रही थी लेकिन साफ थी। राजू के मुंह से कोई शब्द नहीं निकला, उसकी आंखों से आंसू निकल पड़े। “आप बोल रही हैं? अब सच-सच में बोल रही हैं?”
चमत्कार का एहसास
इतने में कमरे का दरवाजा खुला। अंदर राजेश मेहता, डॉक्टर शर्मा और दो नर्सें दाखिल हुए। “क्या हुआ यहां?” डॉक्टर ने पूछा। राजू कांपती आवाज में बोला, “सर, दीदी ने बोला!” सबकी नजर आराध्या पर गई। वो अपने बिस्तर से उठने की कोशिश कर रही थी और फिर उसने अपने पापा की तरफ देखा। “पापा!” पूरा कमरा सुन्न हो गया। राजेश मेहता की आंखें भर आईं। वह दौड़कर अपनी बेटी के पास पहुंचे और उसे गले लगा लिया। “बोलो बेटा, फिर से बोलो।” उन्होंने कहा। कांपती आवाज में आराध्या रोते हुए बोली, “पापा!” डॉक्टर शर्मा हैरान थे। नर्सें रो पड़ीं। किसी को यकीन नहीं हो रहा था। राजू खड़ा था दूर, अपने फटे लाल यूनिफार्म में आंखों में चमक लिए। वो बस देख रहा था कि उसकी दीदी अब बोल रही है।
अस्पताल का माहौल
उस पल हॉस्पिटल का हर दिल पिघल गया। डॉक्टर भी मान गए। कभी-कभी इलाज दवा से नहीं, इंसानियत से होता है। अगले दिन सुबह हॉस्पिटल का माहौल अलग था। हर जगह बस एक ही बात हो रही थी कि अरबपति राजेश मेहता की बेटी आराध्या ने बोलना शुरू कर दिया। कमरे के बाहर मीडिया, डॉक्टर और स्टाफ सब इकट्ठा थे। राजेश मेहता ने सबको रोकते हुए कहा, “कृपया पहले मुझे उस बच्चे से मिलने दीजिए जिसने यह चमत्कार किया।”
राजू का सम्मान
थोड़ी देर बाद दरवाजा खुला। वही 10 साल का सफाई करने वाला लड़का राजू लाल फटे यूनिफार्म में झिझकता हुआ अंदर आया। उसने आंखें झुका ली। राजेश मेहता उसकी तरफ बढ़े और सबके सामने झुक कर बोले, “बेटा, तूने मेरी बेटी को जिंदगी वापस दी है। आज से तू इस हॉस्पिटल का सफाई कर्मी नहीं, मेरा बेटा है।” पूरा कमरा तालियों से गूंज उठा। आराध्या ने आगे बढ़कर राजू का हाथ पकड़ा और मुस्कुराई। “राजू भाई!” राजू की आंखों में आंसू थे। उसने बस इतना कहा, “दीदी, अब बोल रही हैं। बस यही मेरी जीत है।”
अंत में
राजेश ने उसे गले लगा लिया। उस पल डॉक्टर, नर्सें और पूरा स्टाफ खड़ा होकर तालियां बजा रहा था। एक गरीब लड़के ने वह कर दिखाया जो लाखों की दवा नहीं कर सकी। राजू और आराध्या की दोस्ती ने साबित कर दिया कि सच्चा प्यार और दोस्ती किसी भी मुश्किल को पार कर सकती है। इस कहानी ने हमें यह सिखाया कि उम्मीद की किरण कभी भी जल सकती है, बस हमें उस पर विश्वास करना चाहिए।
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