10 साल के लड़के ने करोड़पति से कहा अंकल, आपकी बेटी को मैं घुमा दूं।फिर जो हुआ, Heart touching story

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सागर की हिम्मत – गरीब लड़के की कहानी जिसने अमीर परिवार की किस्मत बदल दी

वाराणसी की गलियों में सागर नाम का एक छोटा सा लड़का रहता था। उसकी उम्र सिर्फ 10 साल थी, लेकिन उसके चेहरे पर मासूमियत और आंखों में सपनों की चमक थी। आठ साल की उम्र तक सागर की जिंदगी खुशियों से भरी थी। उसके माता-पिता उसे बहुत प्यार करते थे। वे मेहनत करके उसे अच्छे प्राइवेट स्कूल में पढ़ाते थे, ताकि वह बड़ा होकर कुछ बन सके। सागर अपने दोस्तों के साथ मस्ती करता, खेलता और सपने देखता था।

लेकिन जिंदगी हमेशा वैसी नहीं रहती जैसी हम चाहते हैं। एक दिन अचानक एक भयानक हादसे ने सागर की दुनिया उजाड़ दी। उसके माता-पिता एक सड़क दुर्घटना में हमेशा के लिए चले गए। सागर की छोटी सी दुनिया टूट गई। अब वह बिल्कुल अकेला था। उसके पास कोई नहीं था, सिवाय उसके चाचा के। चाचा शराब के नशे में डूबा रहता था। उसका दिल पत्थर का था। उसे सागर से नहीं, बल्कि सागर के पापा की छोड़ी हुई जायदाद की फिक्र थी।

चाचा ने सागर को अपने घर ले लिया, लेकिन यह घर सागर के लिए जेल से कम नहीं था। चाचा के अपने दो बच्चे थे, जिन्हें वह अच्छे स्कूल में पढ़ाता, अच्छे कपड़े पहनाता और प्यार से रखता, लेकिन सागर के लिए सबकुछ बदल गया। चाचा ने उसे प्राइवेट स्कूल से निकालकर सरकारी स्कूल में डाल दिया, जहां कोई उसकी परवाह नहीं करता था। घर में उसे रूखा-सूखा खाना मिलता और स्कूल से लौटते ही चाचा उसे पास की एक चाय की दुकान पर काम करने भेज देता।

चाय की दुकान का मालिक, जिसे सागर पासी चाचा कहता था, बहुत दयालु था। उसे सागर की कहानी पता थी। वह सागर को अपने बेटे की तरह प्यार करता था और उस पर ज्यादा काम का बोझ नहीं डालता था। स्कूल के बाद सागर दुकान पर कुछ देर काम करता, फिर पार्क में चला जाता। वहां वह बच्चों को खेलते देखता और अपने अकेलेपन को भूलने की कोशिश करता।

एक दिन पार्क में कुछ खास हुआ। एक व्हीलचेयर पर लड़की आई, जिसकी उम्र सागर जितनी ही थी। उसके दोनों पैरों में चोट थी और उसकी मां उसे व्हीलचेयर पर धकेल रही थी। सागर की नजर उस व्हीलचेयर पर पड़ी। उसका मन मचल उठा। वह लड़की के पास गया और उसकी मां से बोला, “आंटी, क्या मैं इसे थोड़ा घुमा सकता हूं?” लड़की की मां ने सागर की मासूमियत देखी, मुस्कुराई और बोली, “हां बेटा, क्यों नहीं। बस ध्यान रखना, मेरी बेटी को पार्क के अंदर ही घुमाना।”

सागर की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसने व्हीलचेयर पकड़ी और लड़की को पार्क में इधर-उधर घुमाने लगा। लड़की का नाम था नाशा। नाशा को सागर का साथ अच्छा लगा। वह हंस रही थी, बातें कर रही थी। सागर ने उसे फूल दिखाए, पेड़ों की छांव में ले गया और उसे हंसाने की कोशिश की। नाशा की मां दूर से दोनों को देख रही थी और उसके चेहरे पर सुकून था।

शाम होने पर नाशा की मां आई और बोली, “बेटा, अब हमें जाना है।” सागर ने व्हीलचेयर उन्हें सौंप दी और पूछा, “आंटी, क्या आप कल फिर आएंगी?” मां ने हंसकर कहा, “हां बेटा, कल फिर आएंगे। तू भी आ जाना।” सागर का दिल बागबाग हो गया।

अगले दिन सागर फिर पार्क पहुंचा। नाशा और उसकी मां आईं। सागर ने फिर व्हीलचेयर ली और नाशा को घुमाया। दोनों बच्चे हंसते-खेलते, बातें करते। धीरे-धीरे यह रोज का नियम बन गया। सागर और नाशा की दोस्ती गहरी होती गई। नाशा को सागर का भरोसा मिला और सागर को नाशा में एक दोस्त, जो उसकी बात सुनता था।

कुछ दिनों बाद एक रविवार को नाशा के पापा भी पार्क आए। वे एक बड़े बिजनेसमैन थे। उनका स्वभाव थोड़ा सख्त था। नाशा ने सागर को पहले ही बता दिया था कि उनके पापा को बिना पूछे कुछ करना पसंद नहीं। सागर डर रहा था, लेकिन उसका मन फिर भी नाशा को घुमाने का था। उसने हिम्मत जुटाई और नाशा के पापा से बोला, “साहब, क्या मैं नाशा दीदी को थोड़ा घुमा सकता हूं?” नाशा के पापा ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा। वे कुछ बोलते उससे पहले नाशा की मां ने कहा, “अरे, कोई बात नहीं। घुमा लो बेटा, बस ध्यान रखना।”

सागर ने राहत की सांस ली और नाशा को घुमाने लगा। नाशा के पापा ने अपनी पत्नी से पूछा, “यह लड़का कौन है? तुमने इसे नाशा को क्यों सौंप दिया?” नाशा की मां ने बताया, “यह यहीं खेलता है, बहुत अच्छा लड़का है। नाशा को खुश रखता है।” नाशा के पापा चुप रहे, लेकिन उनकी नजर सागर और नाशा पर थी। वे देख रहे थे कि नाशा कितनी खुश थी। सागर उसे हंसाता रहा और नाशा की हंसी उनके कानों में गूंजती रही।

कुछ दिन बाद नाशा को अस्पताल ले जाया गया। उसके पैरों का प्लास्टर हट गया और अब वह अपने पैरों पर चल सकती थी। नाशा की मां ने उसे पार्क ले जाना बंद कर दिया, लेकिन नाशा उदास थी। उसे सागर की याद आती थी। वह सागर के साथ खेलना चाहती थी। एक दिन उसने अपनी मां से कहा, “मम्मी, मुझे पार्क जाना है। मुझे सागर से मिलना है।” मां चौकी और बोली, “बेटी, वो तो गरीब लड़का है। तुम्हें उससे क्यों मिलना है?” नाशा की आंखें नम हो गईं, “मम्मी, मेरा कोई भाई तो है नहीं। सागर मेरे भाई की तरह मेरी देखभाल करता है। मुझे उससे मिलना है।” मां की आंखें भी भर आईं। नाशा उनकी इकलौती बेटी थी। वह उसकी भावनाओं को समझ गई और उसे पार्क ले गई।

पार्क में सागर इंतजार कर रहा था। जब उसने नाशा को अपने पैरों पर चलते देखा, उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। वह चिल्लाया, “दीदी, तुम ठीक हो गई!” नाशा ने हंसकर कहा, “हां भाई, अब हम साथ खेलेंगे।” दोनों पार्क में दौड़ने-खेलने लगे। नाशा की मां दूर से उन्हें देख रही थी और उसका दिल भर आया।

उसी रात नाशा की मां ने अपने पति से बात की, “आज नाशा ने मुझे रुला दिया। वो सागर को अपना भाई मानती है। उसके बिना उदास थी।” नाशा के पापा चुप रहे, लेकिन उनके मन में कुछ चल रहा था। उन्हें बेटे की कमी हमेशा खलती थी। वे सोचने लगे कि अगर सागर उनके घर आए, तो नाशा का मन भी लगा रहेगा और सागर को भी अच्छी जिंदगी मिलेगी।

अगली सुबह नाशा के पापा उस चाय की दुकान पर पहुंचे जहां सागर काम करता था। चाय वाले ने सागर की पूरी कहानी बताई। नाशा के पापा का दिल पिघल गया। इतनी छोटी उम्र में सागर ने इतने दुख सहे, फिर भी वह मुस्कुराता था। उन्होंने सागर के चाचा का पता लिया और उनसे मिलने गए।

सागर के चाचा से बात करने पर पता चला कि वह सागर की परवाह नहीं करते। नाशा के पापा ने गुस्से में कहा, “तुम इस बच्चे के साथ गलत कर रहे हो। इसे अच्छी पढ़ाई दो, अच्छी जिंदगी दो।” चाचा ने बेशर्मी से जवाब दिया, “यह मेरा मामला है, तुम बीच में मत पड़ो। मैं इसे खाना-कपड़ा देता हूं।” नाशा के पापा का गुस्सा भड़क उठा। उन्होंने धमकाया, “मैं पुलिस में शिकायत करूंगा।” चाचा डर गया। उसने हाथ जोड़कर माफी मांगी और बोला, “मेरे पास इतना ही सामर्थ्य है। मेरे अपने बच्चे हैं, मैं सागर का और क्या करूं?”

नाशा के पापा ने कहा, “अगर तुम सागर की परवरिश नहीं कर सकते, तो मैं उसे अपने साथ ले जाऊंगा।” चाचा ने पैसे मांगे। नाशा के पापा ने गुस्से में 10,000 रुपये दे दिए और बोले, “मैं सागर को गोद ले रहा हूं, इसे अच्छी जिंदगी दूंगा।”

नाशा के पापा सागर के स्कूल गए। प्रिंसिपल को सब बताया। प्रिंसिपल खुश हुआ। सागर को क्लास से बुलाया गया। सागर ने नाशा के पापा को देखा और डरते हुए पूछा, “साहब, आप यहां क्या कर रहे हैं?” उन्होंने प्यार से कहा, “बेटा, आज से तू मेरे घर रहेगा। तुझे अच्छे स्कूल में पढ़ाएंगे।” सागर की आंखें चमक उठीं। उसे यकीन नहीं हुआ। प्रिंसिपल ने भी कहा, “बेटा, यह सच है।”

सागर अपने दोस्तों की तरफ देखने लगा, जो उसे चिढ़ाया करते थे। वे अब हैरान थे। सागर नाशा के पापा के साथ उनकी महंगी गाड़ी में बैठा और उनके घर पहुंचा। नाशा ने उसे देखा तो खुशी से चिल्लाई, “पापा, आप सागर को ले आए!” पापा ने मुस्कुराकर कहा, “हां, अब यह तेरा भाई है।”

सागर की जिंदगी बदल गई। उसे नया परिवार मिला। वह नाशा के साथ पढ़ता, खेलता। नाशा के मम्मी-पापा उसे बेटा कहते। समय बीता, सागर बड़ा हुआ। वह नाशा की देखभाल करता, मम्मी-पापा का सम्मान करता। उसने अपने पापा का बिजनेस संभाला।

एक दिन कंपनी में एक चपरासी की वैकेंसी आई। आवेदनों में सागर ने अपने चाचा के बेटे प्रवीण का नाम देखा। उसे हैरानी हुई। उसे लगा था कि चाचा के बेटे कामयाब होंगे, लेकिन उनकी हालत खराब थी। सागर ने प्रवीण को बुलाया। प्रवीण ने अपनी मजबूरी बताई। सागर ने उसे नौकरी दे दी, लेकिन उसका मन उदास था।

घर जाकर उसने मम्मी-पापा को बताया। पापा ने कहा, “बेटा, तू अपने चाचा से मिल, अगर चाहे तो उनकी मदद कर।” सागर अपने चाचा से मिला। चाचा ने रोते हुए माफी मांगी। सागर को गुस्सा था, लेकिन पापा ने उसे समझाया। सागर ने प्रवीण को अच्छी पोस्ट पर नौकरी दी और चाचा-चाची का इलाज करवाया।

सागर और नाशा आज भी बचपन की बातें याद कर हंसते हैं। सागर की जिंदगी एक सबक है – मेहनत, हिम्मत और अच्छाई से जिंदगी बदल सकती है। सागर की छोटी सी हिम्मत ने न सिर्फ उसकी, बल्कि एक अमीर परिवार की भी किस्मत बदल दी।

तो दोस्तों, यह थी सागर की कहानी।

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