10 साल बाद कॉलेज का प्यार सड़क किनारे चाय बेचती हुई मिली… फिर जो हुआ |.
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10 साल बाद कॉलेज का प्यार सड़क किनारे चाय बेचती हुई मिला — एक अधूरी मोहब्बत की कहानी
सुबह का वक्त था। वाराणसी शहर की 80 घाट वाली सड़क पर भीड़भाड़ के बीच सड़क किनारे एक छोटी सी चाय की दुकान थी। टीन की छत, लकड़ी की बेंचे और चूल्हे पर उबलती हुई केतली से उठती भाप। उस दुकान में खड़ी थी राधिका। साधारण सी साड़ी में माथे पर बिंदी, चेहरे पर थकान की हल्की लकीरें, लेकिन आंखों में अजीब सी दृढ़ता और सादगी। उसके हाथ लगातार चल रहे थे—चाय बनाना, कुल्हड़ सजाना, ग्राहकों को चाय थमाना। उसकी थकी हुई उंगलियां मेहनत का बोझ ढो रही थीं, पर चेहरे पर आत्मसम्मान का भाव अब भी जिंदा था।
इसी बीच सड़क पर एक चमचमाती काली Mercedes रेड सिग्नल पर आकर रुकी। गाड़ी के शीशे के पीछे बैठा था किशन। आज वह करोड़ों का बिजनेसमैन था, लाखों की गाड़ियों और करोड़ों के बिजनेस का मालिक। पर उस वक्त उसकी आंखें गहरी सोच में डूबी हुई थीं। उसने अनजाने में बाहर देखा और नजर उस चाय की दुकान पर जाकर ठहर गई। जैसे ही उसकी आंखें राधिका पर पड़ीं, उसका दिल जोर से धड़क उठा। होंठ कांप गए और उसने अनजाने में बुदबुदाया, “राधिका।”
सिग्नल हरा हुआ तो बाकी गाड़ियां आगे बढ़ गईं, लेकिन किशन ने ड्राइवर से कहा, “गाड़ी यहीं साइड में लगाओ।” ड्राइवर ने चौंक कर पूछा, “सर, सब ठीक है?” किशन ने धीमी आवाज में कहा, “बस दो मिनट।” गाड़ी किनारे लग गई और किशन उतरा। सूट और चमकते जूतों में उसकी पहचान साफ झलक रही थी, पर चेहरा तनाव और बेचैनी से भरा हुआ था। उसके कदम धीरे-धीरे उस चाय की दुकान की ओर बढ़ रहे थे, जैसे बरसों का बोझ पैरों में बंध गया हो।
राधिका ने सिर उठाया। उसकी नजर सामने खड़े शख्स पर पड़ी। हाथ में पकड़ी चम्मच ठहर गई। आंखें फैल गईं। चेहरा सन रह गया। बरसों बाद सामने वही चेहरा था, वही किशन। होंठ कांप उठे और धीमे स्वर में उसके मुंह से निकला, “क-किशन।” किशन ने कुछ कदम और बढ़ाए। उसकी आंखों में बरसों की जुदाई का सैलाब उमड़ पड़ा। “हाँ राधिका, मैं ही हूं। सोचा नहीं था कि किस्मत मुझे यहां ले आएगी।”
राधिका ने अपनी पलकों को झुका लिया। दिल कांप रहा था, पर आवाज को संभालते हुए बोली, “चाय बना दूं?” उसकी आवाज में वही सादगी थी, लेकिन भीतर का दर्द साफ झलक रहा था। किशन ने सिर हिलाया। राधिका ने केतली से चाय निकाली, कुल्हड़ में डालकर उसके सामने रख दी। किशन ने कांपते हाथों से कुल्हड़ थामा। जैसे ही पहला घूंट गले से उतरा, उसके दिल में भूली-बिसरी यादों का सैलाब उमड़ पड़ा।
यादें वापस ले गईं उस वक्त, जब उनकी कहानी ने पहली बार सांस ली थी। वाराणसी का डीएवी कॉलेज, बड़ा सा कैंपस, बड़े-बड़े क्लासरूम। नया सेशन शुरू हुआ था। भीड़ में कई नए चेहरे थे, लेकिन किशन की नजर सिर्फ एक पर टिकी थी—राधिका पर। वह सफेद सलवार कुर्ते में, हाथों में किताबों का ढेर लिए, तेज-तेज कदमों से क्लास की ओर भाग रही थी। माथे पर हल्का पसीना, चेहरे पर मासूमियत।
तभी अचानक उसकी किताबें जमीन पर बिखर गईं। सब लोग आगे बढ़ते गए, कोई पलट कर रुका तक नहीं। किशन आगे झुका, किताबें उठाईं और मुस्कुरा कर बोला, “यह आपकी हैं।” राधिका ने नजर उठाई। उसकी आंखों में झिझक थी, पर होठों पर हल्की सी मुस्कान भी थी, “थैंक यू।” बस उसी पल से किशन के दिल में कुछ नया अंकुर फूटा।
धीरे-धीरे उनकी मुलाकातें बढ़ने लगीं—कभी लाइब्रेरी में, कभी गलियारे में, कभी कैंटीन में। एक बार कैंटीन में राधिका अकेली बैठी थी। उसने चाय का कप उठाया तो देखा, बगल में किशन पहले से खड़ा था। “कब खाली है? अगर बुरा ना मानो तो साथ बैठ सकता हूं,” किशन ने सहज भाव से कहा। राधिका ने सिर झुका लिया पर होठों पर मुस्कान आ गई। उस दिन से दोनों अक्सर साथ चाय पीने लगे।
राधिका पढ़ाई में अच्छी थी, पर मंच पर जाने से डरती थी। एक बार कॉलेज में डिबेट प्रतियोगिता हुई। उसका नाम लिखा गया था, लेकिन मंच पर कदम रखते ही उसकी आवाज कांपने लगी। लोग हंसने लगे। तभी पीछे से किशन ने जोर से ताली बजाई और कहा, “तुम बोल सकती हो, राधिका। मुझे पता है तुम सबसे अच्छी हो।” वे शब्द राधिका के लिए जादू बन गए। उसने कांपते होठ खोले और धीरे-धीरे बोलना शुरू किया। पूरी ऑडियंस खामोश हो गई। जब उसका भाषण खत्म हुआ, तालियों की गड़गड़ाहट गूंज उठी। वह प्रतियोगिता जीत गई।
मंच से उतरते समय उसने सबसे पहले किशन की तरफ देखा। उसकी आंखों में गर्व साफ झलक रहा था। उस नजर ने राधिका को पहली बार यह यकीन दिलाया कि कोई है जो उस पर भरोसा करता है।
दिन बीतते गए। अब उनकी बातें किताबों से निकलकर सपनों तक पहुंच गईं। गंगा किनारे बैठना उनकी आदत बन गया था। राधिका अक्सर पानी की लहरों में कंकड़ फेंकती और पूछती, “किशन, तुम्हारे सपने क्या हैं?” किशन आसमान की तरफ देखता और कहता, “सपने बड़े हैं, लेकिन अगर तुम साथ हो तो हर सपना पूरा कर लूंगा।” राधिका मुस्कुरा कर चुप हो जाती। उसकी आंखों की चमक बहुत कुछ कह जाती थी।
धीरे-धीरे यह दोस्ती मोहब्बत में बदल गई। मगर दोनों ने कभी सीधे-सीधे इजहार नहीं किया। वे सिर्फ आंखों से बातें करते, मुस्कानों से एहसास जताते। बरगद की छांव, क्लास की खिड़कियां, कैंटीन की चाय—हर जगह उनकी खामोश मोहब्बत गूंजती थी।
लेकिन जिंदगी हमेशा एक जैसी नहीं रहती। किशन का परिवार गरीब था। पिता ने साफ कह दिया, “अब पढ़ाई छोड़कर कमाने जा। घर चलाने के लिए पैसे चाहिए।” किशन का दिल टूट गया। उसे पता था कि हालात के आगे वह बेबस है। एक शाम गंगा किनारे जब सूरज ढल रहा था, उसने राधिका से कहा, “अगर कभी मैं दूर चला जाऊं, तो याद रखना, लौट कर जरूर आऊंगा।” राधिका की आंखें भर आईं। उसने पहली बार उसका हाथ थाम कर कहा, “कभी मत कहना कि हमारी राहें अलग हो सकती हैं। मैं इंतजार करूंगी, चाहे जितना वक्त लगे।”
हवा भारी हो गई थी। गंगा की लहरें जैसे उनकी कस्मों को अपने साथ बहा ले गईं। पर किस्मत ने बेरहम मोड़ लिया। कुछ महीनों बाद राधिका की शादी गांव में कर दी गई। किशन दूसरे शहर चला गया था, संघर्ष और सपनों की उस दुनिया में जहां रिश्तों की जगह जिम्मेदारियों ने ले ली थी।
समय ने रफ्तार पकड़ी। देखते-देखते 10 साल बीत गए।
खैर, अब किशन की चाय खत्म हो चुकी थी। स्वाद जुबान से मिट गया था और उसकी आंखों में नमी उतर आई थी। उसने धीरे से नजरें उठाकर देखा। सामने वही राधिका थी, पर अब कॉलेज की लड़की नहीं बल्कि सड़क किनारे चाय बेचती मजबूत औरत। तभी दुकान के भीतर से एक मासूम आवाज आई, “मां।”
किशन का दिल धक से रह गया। वह उस आवाज को सुनकर जैसे पत्थर का हो गया। उसके कानों में ‘मां’ शब्द बार-बार गूंज रहा था। धीरे-धीरे उसकी नजर दुकान के भीतर की ओर गई। वहां खड़ा था 8-9 साल का एक बच्चा। दुबला-पतला शरीर, साफ लेकिन पुराने कपड़े, पीठ पर किताबों से भरा बैग। उसकी आंखों में मासूम चमक थी। चेहरे पर वही निश्चल मुस्कान जो कभी राधिका के चेहरे पर दिखा करती थी।
बच्चा दौड़कर राधिका के पास आया और उसका आंचल पकड़ते हुए बोला, “मां, स्कूल देर हो रही है। चलो ना।” किशन की सांसें थम सी गईं। उसने कांपती आवाज में पूछा, “राधिका, यह तुम्हारा बेटा है?”
राधिका ने चुपचाप बेटे के सिर पर हाथ फेरा और धीमी आवाज में बोली, “हाँ, यही मेरी दुनिया है।” उसकी आंखें नम थीं, लेकिन चेहरे पर आत्मसम्मान की वही रेखा बनी हुई थी।
किशन की आंखों में बरसों की मोहब्बत, जुदाई और अब दर्द एक साथ उमड़ आए। वह कुछ पल चुप रहा। फिर धीमे स्वर में बोला, “पर राधिका, तुम्हें यह सब अकेले क्यों झेलना पड़ा? शादी तो हुई थी ना?”
राधिका ने एक गहरी सांस ली। उसकी नजरें दूर सड़क की ओर चली गईं, जैसे वहां उसे अपने जवाब मिल रहे हों। “हाँ, शादी हुई थी गांव में। लेकिन पति शराबी था। घर में मारपीट, अपमान और लानत ही मिली। मैंने बहुत सहा, सिर्फ अपने बच्चे के लिए। पर जब लगा कि अब उसकी मासूमियत भी उस जहर में डूब जाएगी, तब मैं सब छोड़कर शहर चली आई। दूसरी शादी का सहारा ले सकती थी, मगर मैं नहीं चाहती थी कि मेरा बच्चा सौतेलेपन की चोट खाए। इसलिए इस चूल्हे को, इस धुएं को ही अपनी इज्जत बना लिया।”
किशन का गला भर आया। उसके होंठ कांपे, आंखें लाल हो गईं। “राधिका, तुमने यह सब अकेले झेला और मैं कहीं और दुनिया जीतने में लगा रहा।” राधिका ने उसकी ओर देखा। उसकी आंखों में न शिकायत थी, न इल्जाम, बस एक थकी हुई सच्चाई थी।
“जिंदगी हमेशा हमारी चाहतों के हिसाब से नहीं चलती। मैंने जो रास्ता चुना, वो सिर्फ अपने बेटे के लिए था। मुझे किसी से हमदर्दी नहीं चाहिए। मैं बस इतनी चाहती हूं कि मेरा बच्चा पढ़े-लिखे और कभी किसी के सामने हाथ ना फैलाए।”
बच्चा मासूमियत से किशन की ओर देख रहा था। वह कुछ समझ नहीं पा रहा था, पर उसकी आंखों में अनकही उम्मीद थी। शायद उसे महसूस हो गया था कि यह अंकल उसकी मां की आंखों में आंसू ला रहे हैं।
किशन झुककर बच्चे के पास गया और उसके सिर पर हाथ फेरा। “क्या नाम है तुम्हारा?” “आरव,” बच्चे ने मासूम मुस्कान दी। “मैं बड़ा होकर डॉक्टर बनूंगा ताकि मम्मी को कभी तकलीफ ना हो।”
यह सुनकर किशन की आंखों से आंसू छलक पड़े। उसने राधिका की ओर देखा, “राधिका, मैं करोड़ों का मालिक हूं, पर आज मुझे लग रहा है कि असली दौलत तुम्हारे पास है। यह बेटा, जिसकी आंखों में सपने हैं और दिल में मां का भरोसा।”
राधिका चुप रही। उसके होंठ कांपे, लेकिन कुछ कह न पाई। कुछ देर का सन्नाटा छाया रहा। सड़क पर शोर था, गाड़ियों की रफ्तार थी, पर इस छोटे से चाय के ठेले पर खड़ा हर पल किसी अधूरी दास्तान की तरह भारी था।
किशन ने धीरे से कहा, “राधिका, तुम्हें अकेले यह सब और नहीं सहना चाहिए। अगर तुम इजाजत दो तो मैं तुम्हारे और आरव के लिए…” वह रुक गया। उसकी आवाज में सच्चाई थी, पर राधिका की आंखों में शंका और डर।
लेकिन किशन की आंखों में आंसू थे। आवाज कांप रही थी, पर दिल से निकली बात सच्चाई से भरी थी। “राधिका, बरसों से मैं सिर्फ दौलत और शोहरत कमाता रहा, पर आज मुझे एहसास हो रहा है कि मैंने असली जिंदगी खो दी। अगर तुम इजाजत दो तो मैं तुम्हारे और आरव के लिए सब कुछ बदल सकता हूं। तुम अकेली क्यों लड़ो? मैं हूं ना तुम्हारे साथ।”
राधिका का दिल एक पल के लिए धक से रह गया। बरसों पहले जिस आवाज को उसने अपने दिल में कैद कर लिया था, वही आवाज आज फिर उसके सामने खड़ी थी। उसकी आंखें भर आईं। होंठ कांपे, लेकिन उसने तुरंत खुद को संभाला। धीरे से बोली, “किशन, तुम्हारे शब्द मीठे हैं, पर जिंदगी इतनी आसान नहीं है। मैं सिर्फ अपने लिए नहीं जी रही, मेरे बेटे के लिए जी रही हूं। और उसके लिए मुझे डर है। अगर समाज ने सवाल उठाए, अगर उसने एक दिन मुझसे पूछा कि मम्मी, आपने दोबारा क्यों शादी की? क्या तुम्हें यकीन है कि वह सौतेलेपन की छाया से बच पाएगा?”
किशन ने तुरंत कहा, “मैं तो उसका बाप बनना चाहता हूं, राधिका। दिल से अपनाना चाहता हूं। उसे अपना बेटा कहकर दुनिया के सामने खड़ा करना चाहता हूं। क्या यह सौतेलापन होगा?”
राधिका की आंखों से आंसू गिर पड़े। उसने कांपते स्वर में कहा, “तुम्हारी नियत पर मुझे शक नहीं, पर दुनिया की नियत पर है। लोग मेरे बेटे को उंगलियों से दिखाएंगे, ताने देंगे। कहेंगे कि उसकी मां ने करोड़पति से शादी कर ली ताकि आराम पा सके। मैं अपने बेटे की नजरों में कभी गिरना नहीं चाहती। मैं चाहती हूं कि वह अपनी मां को मजबूत देखे, चाहे टूटी हुई क्यों न हो।”
किशन का दिल चीर गया। उसने आगे बढ़कर कहा, “राधिका, क्या सचमुच तुम्हें लगता है कि मैं सिर्फ सहारा देना चाहता हूं? नहीं, मैं तुम्हें वापस पाना चाहता हूं। मैंने दौलत, शोहरत सब पा लिया, लेकिन जब रात को अकेला होता हूं तो खालीपन मुझे खा जाता है। और आज जब तुम्हें देखा, तुम्हारे बेटे को देखा, मुझे लगा मेरी अधूरी दुनिया पूरी हो सकती है।”
राधिका ने कांपते हाथ से आंसू पोंछे। उसकी आंखों में वही पुराना प्यार झलक रहा था, लेकिन आवाज में कड़वाहट घुली हुई थी। “किशन, तुम्हारी बात सुनकर दिल तो मान जाता है, पर दिमाग नहीं। मैंने समाज की चोटें खाई हैं, रिश्तों की गालियां सुनी हैं। मैं अपने बेटे को दोबारा उसी दलदल में नहीं झोंक सकती। अगर मुझे अपने आंसू पीने पड़े तो पी लूंगी, पर अपने बच्चे की हंसी पर कोई दाग नहीं लगने दूंगी।”
कुछ पल दोनों खामोश खड़े रहे। सड़क का शोर, हॉर्न, भीड़ सब कुछ फीका पड़ गया था, जैसे दुनिया ने उनके लिए सांसें थाम ली हों। आरव मां का आंचल पकड़े मासूमियत से देख रहा था। उसे समझ नहीं था कि ये दोनों बड़े लोग क्यों इतने भारी शब्द बोल रहे हैं। उसने धीरे से मां का हाथ खींचा, “मम्मी, स्कूल जाना है ना?”
राधिका ने उसकी ओर देखा और उसके बालों को सहलाया। फिर नजरें किशन की तरफ उठाईं। “तुम्हारी बातें मीठी हैं, किशन, पर मेरा सच बहुत कड़वा है। शायद इस जन में हमारी मोहब्बत सिर्फ यादों में ही पूरी होगी।”
किशन की आंखें भीग गईं। उसने कुछ कहना चाहा, पर शब्द गले में अटक गए। उसके दिल पर भारी पत्थर जैसा बोझ उतर आया। वह कुछ देर तक चुप खड़ा रहा। उसकी आंखों में आंसू थे, लेकिन उनमें एक जिद भी झलक रही थी। उसने गहरी सांस ली और सीधे राधिका की आंखों में देखा, “अगर इस जन्म में भी हमारी मोहब्बत अधूरी रही, तो यह दुनिया जीते जी हमें मार देगी। तुम कहती हो समाज ताने देगा, तो मैं चाहता हूं कि समाज के सामने ही तुम्हारा और आरव का हाथ थाम लूं, ताकि कोई उंगली ना उठे, बल्कि सबको दिखे कि मैं तुम दोनों को अपनाया हूं।”
राधिका चौंक गई। “किशन, यह इतना आसान नहीं है।”
किशन ने उसका हाथ पकड़ लिया। उसकी आवाज में ठहराव और सच्चाई थी, “आसान मैं भी जानता हूं नहीं है, लेकिन अगर हम डरते रहे तो कभी जी ही नहीं पाएंगे। राधिका, तुम्हारी आंखों में मैं वह सपना देखता हूं जिसे अधूरा छोड़कर मैं सालों तक भटकता रहा। आज जब किस्मत ने हमें फिर मिलाया है, तो मैं पीछे नहीं हटूंगा। मैं तुम्हें और आरव को दुनिया के सामने अपनाऊंगा।”
भीड़ में खड़े कुछ लोग उन्हें देख रहे थे। कोई फुसफुसा रहा था, कोई मुस्कुरा रहा था। राधिका का चेहरा शर्म और डर से लाल हो गया। “लोग क्या सोचेंगे?” उसने धीमी आवाज में पूछा।
किशन ने दृढ़ स्वर में कहा, “लोग कल भी बोलते थे, आज भी बोलेंगे और कल भी बोलेंगे। लेकिन हमारी जिंदगी उनकी सोच से नहीं चलेगी। मैं चाहता हूं कि आरव कल जब बड़ा हो तो गर्व से कह सके, ‘यह मेरे पापा हैं’ और तुम कह सको, ‘हां, यह मेरे पति हैं।’”
राधिका की आंखें भर आईं। उसकी बरसों की कसमें, डर और समाज की परवाह एक ही पल में टूटने लगी। उसने कांपते होठों से कहा, “अगर तुम सच में इतना साहस रखते हो, तो मैं भी पीछे नहीं हटूंगी। पर याद रखना, यह सिर्फ हमारी मोहब्बत की नहीं, इज्जत की लड़ाई भी होगी।”
किशन ने हल्की मुस्कान दी और अपना हाथ आगे बढ़ाया, “मैं तुम्हें वादा करता हूं, राधिका, अब कोई जुदाई नहीं होगी।”
राधिका ने कुछ पल हिचकिचाकर उसका हाथ थाम लिया। आरव मासूमियत से दोनों को देख रहा था। उसकी आंखों में खुशी की चमक थी, जैसे उसने बिना समझे ही सब कुछ समझ लिया हो।
सड़क किनारे खड़ी उस छोटी सी चाय की दुकान पर लोग ताली बजाने लगे। किसी ने कहा, “सच में यह मोहब्बत की जीत है। बरसों से बिछड़े दो दिल फिर से मिल गए थे। और इस बार सिर्फ अपने लिए नहीं, बल्कि उस छोटे से मासूम के लिए भी, जिसकी आंखों में अब पूरा परिवार होने की चमक थी।”
कभी-कभी जिंदगी हमें दूसरा मौका देती है, लेकिन हिम्मत वही कर पाते हैं जो समाज की परवाह से ऊपर उठकर सच्चाई को अपनाते हैं। राधिका और किशन ने साबित कर दिया कि मोहब्बत सिर्फ इजहार का नाम नहीं, बल्कि संघर्ष, सम्मान और जिम्मेदारी निभाने का नाम भी है।
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