10 साल बाद मंदिर में मिली कॉलेज की प्रेमिका… एक पल में छलक पड़ा दर्द, फिर जो हुआ |.
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10 साल बाद मंदिर में मिली कॉलेज की प्रेमिका… एक पल में छलक पड़ा दर्द, फिर जो हुआ
सुबह की पहली किरणें जब शहर की सड़कों पर पड़ रही थीं, तब आशीष अपनी महंगी कार में बैठकर ऑफिस जाने के लिए तैयार था। ड्राइवर ने दरवाजा खोला और पूछा, “सर, क्या सीधे ऑफिस चलना है?” लेकिन आशीष की नजरें सड़क पर भागती भीड़ पर टिक गईं। हर कोई अपने काम में व्यस्त था, भाग-दौड़ में लगा था। अचानक उसके मन में एक आवाज़ आई, “पहले ऊपर वाले को धन्यवाद देना जरूरी है।” उसने ड्राइवर से कहा, “नहीं, पहले मंदिर चलो।”
कार मंदिर के सामने रुकी। हल्की धूप मंदिर की सीढ़ियों पर पड़ रही थी। घंटियों की मधुर आवाज़ और अगरबत्ती की खुशबू पूरे माहौल को भक्ति से भर रही थी। आशीष कार से उतरा और धीरे-धीरे मंदिर की सीढ़ियां चढ़ने लगा। हर कदम के साथ उसके दिल में पुरानी यादें ताज़ा होने लगीं—वो दिन जब जेब में फीस भरने तक के पैसे नहीं होते थे, जब मां भूखी रहकर भी उसे पढ़ाई के लिए तैयार करती थी, जब पिता अपने खुरदुरे हाथों से मजदूरी करता था ताकि उसके सपने पूरे हो सकें। और वो अपमान, जब किसी ने कहा था, “तेरी औकात नहीं है अमीर लोगों के साथ चलने की।”
आज वह करोड़पति था, लेकिन उस दर्द की यादें उसकी रग-रग में बसी थीं।
अचानक हुई मुलाकात
जैसे ही आशीष मंदिर की सीढ़ियां चढ़ रहा था, मंदिर के भीतर से एक महिला पूजा करके नीचे उतर रही थी। वह साधारण कपड़ों में थी, चेहरे पर थकान, आंखों में गहरी उदासी और चाल में भारीपन था। उसके हाथों में पूजा की थाली थी, लेकिन उसका चेहरा बता रहा था कि उसके मन में सिर्फ शांति नहीं, टूटी हुई उम्मीदें भी हैं।
महिला ने जैसे ही अपना चेहरा ऊपर उठाया, उसकी नजर आशीष से मिली। वक्त थम गया। महिला की आंखें भर आईं और आंसू उसके गालों पर बहने लगे। आशीष भी वहीं रुक गया। उसकी सांसें तेज हो गईं, लेकिन शब्द उसके होठों तक नहीं पहुंच पाए। यह कोई अनजानी मुलाकात नहीं थी, बल्कि बरसों पुराने रिश्ते का टकराव था, जो समय और हालात की आग में जल चुका था, लेकिन दिल की गहराई में अब भी जिंदा था।
मंदिर में लोग आते-जाते रहे, घंटियों की आवाज़ गूंजती रही, लेकिन दोनों की नजरें एक-दूसरे से हट नहीं सकीं। बरसों बाद अचानक हुई इस मुलाकात ने उनके दिलों के जख्म ताजा कर दिए। मंदिर की सीढ़ियों पर ठहरे उस पल ने जैसे उनकी सांसें रोक दी थीं।
पहली बातचीत
महिला ने थाली को संभाला, लेकिन उसके हाथ कांप रहे थे। आशीष ने एक कदम आगे बढ़ाने की कोशिश की, पर पैर मानो जमीन से चिपक गए थे। भीड़-भाड़ के बीच वे दोनों एक-दूसरे को देखते रह गए। कुछ सेकंड ऐसे बीते जैसे एक उम्र निकल गई हो। फिर महिला ने नजरें झुका लीं और धीरे-धीरे सीढ़ियां उतरने लगी।
आशीष ने उसके जाते कदमों को देखा और उसका दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। वह चेहरा, वही आंखें, वही चाल—सब कुछ तो वही था। वे यादें जिन्हें उसने मजबूरी में अपने दिल के सबसे गहरे कोने में दबा दिया था। अचानक सामने आंख खड़ी हुई। आशीष वहीं सीढ़ियों पर खड़ा रहा, उसकी आंखें नम थीं और गला भारी था। उसके मन में सवालों का तूफान उमड़ रहा था—क्या यह वही है? क्या यही राधिका है जिसने कभी उसके साथ सपने देखे थे? क्या किस्मत उसे बरसों बाद इसी जगह ले आई है?
महिला धीरे-धीरे नीचे तक पहुंच चुकी थी। वह मंदिर के बाहर खड़ी थी, पर उसके चेहरे पर वही बेचैनी थी। उसके आंसू साफ बता रहे थे कि उसने भी उस नजर को पहचाना है। कदम आगे बढ़ते, लेकिन दिल पीछे मुड़-मुड़कर उस नौजवान की तरफ खींच रहा था।
दिल की बात
आशीष का दिल अब और चुप रहने को तैयार नहीं था। उसने तेज कदमों से नीचे उतरते हुए पुकारा, “राधिका!”
महिला के कदम रुक गए। उसने पलट कर देखा और उस एक आवाज़ ने उसके दिल में दबे बरसों पुराने घाव फिर से खोल दिए। आशीष उसके करीब पहुंचा, लेकिन शब्द अभी भी साथ नहीं दे रहे थे। दोनों आमने-सामने खड़े थे, आंखें भीगी थीं। बरसों का दर्द, दूरी सब एक ही नजर में छलक उठा था।
आशीष ने कांपते हुए स्वर में कहा, “यह सच है ना, तुम राधिका ही हो?”
राधिका ने नजरें झुका लीं। उसकी पलकों से आंसू गिरे और थाली की पूजा की बूंदों में मिल गए। उसने धीरे से सिर हिला दिया।
पुरानी यादों का सफर
आशीष की आंखों में चमक और दर्द दोनों थे। उसका दिल भर आया। उसे याद आया वह कॉलेज, वह लाइब्रेरी, वह छोटी-छोटी बातें जब राधिका उसके साथ होती थी। वह दिन भी याद आए जब सब कुछ अचानक छिन गया था।
वह गरीब बस्ती जहां से उसने सफर शुरू किया था। जहां पिता दिन-रात मजदूरी करते और मां भूखे पेट सोकर उसे पढ़ाई के लिए तैयार करती थी। वह दिन जब अच्छे अंकों से उसने शहर के बड़े कॉलेज में दाखिला लिया। और वहीं पहली बार राधिका से मुलाकात हुई, जो अमीर घराने की बेटी थी। जिसके पास सब कुछ था—शोहरत, पैसे, गाड़ी—फिर भी उसके दिल में जरा भी घमंड नहीं था। उसकी मुस्कुराहट सच्ची थी और दिल सबके लिए साफ था।
आशीष ने कभी सोचा भी नहीं था कि वह उससे इतनी जल्दी दोस्ती कर लेगी और दोस्ती से आगे वह रिश्ता धीरे-धीरे प्यार में बदल जाएगा।
टूटे रिश्ते की वजह
आशीष का दिल कसक उठा, काश वह दिन कभी खत्म न होते, काश हालात ने उन्हें जुदा न किया होता। मंदिर के बाहर भीड़ बढ़ रही थी, लेकिन उनकी आंखों में सिर्फ एक-दूसरे की तस्वीर थी। समय जैसे रुक गया था।
आशीष ने गहरी सांस ली और बोला, “राधिका, इतने सालों बाद आज फिर से भगवान के घर में मिलना कोई संयोग नहीं हो सकता। तुम कहां चली गई थी? क्यों हमें अलग होना पड़ा? और तुम्हारी यह हालत, क्यों?”
राधिका ने आंखें पोंछीं। उसकी आवाज भारी हो चुकी थी। “आशीष, बहुत कुछ बदल गया है। बहुत कुछ खो चुका हूं। मेरी जिंदगी वैसी नहीं रही जैसी तुम छोड़ कर गई थी।” इतना कहकर वह चुप हो गई, लेकिन उसकी चुप्पी ही सब कुछ बयां कर रही थी।
आशीष ने उसकी तरफ हाथ बढ़ाया, “आओ कहीं बैठकर बात करते हैं। बरसों का दर्द अब और दिल में दबा नहीं सकते।”
राधिका ने उसकी सच्ची नजर देखकर सिर हिला दिया। दोनों मंदिर के पास बने पत्थर के चबूतरे पर जाकर बैठे।
दर्द की कहानी
कुछ पल तक चुप रहने के बाद राधिका ने गहरी सांस ली और बोली, “आशीष, तुम सोच भी नहीं सकते कि इन सालों में मैंने क्या-क्या झेला है।”
उसकी आवाज कांप रही थी, लेकिन हर शब्द दिल से निकल रहा था। उसकी आंखें फिर से भीग गईं और उसने अपना चेहरा झुका लिया।
“जिस दिन तुम्हें मेरे पिता ने अपमानित किया था, उसी दिन मेरी जिंदगी ने करवट ली। मैंने बहुत रोकर पापा से कहा कि तुम सच्चे हो, तुम्हारा दिल साफ है। लेकिन उन्होंने मेरी एक न सुनी। उन्होंने मेरे लिए रिश्ता पक्का कर दिया और मैं चाहकर भी तुम्हें खोज न सकी क्योंकि तुमने खुद को गायब कर दिया था।”
आशीष की आंखों में पीड़ा तैरने लगी। उसने चाहा कि बीच में बोल पड़े, पर राधिका के टूटे शब्द उसे रोकते रहे।
“शादी के दिन मैं हजारों लोगों के बीच थी, लेकिन मेरे दिल में सिर्फ तुम्हारा चेहरा था। मैंने खुद से पूछा क्या यही मेरी किस्मत है?”
दुख भरा जीवन
राधिका ने आगे कहा, “जिस घर में मैं दुल्हन बनकर गई थी, वहां कभी सुकून नहीं मिला। पति की आदतें जहरीली थीं—शराब, गलत संगत, गुस्सा। मैंने बहुत समझाया, बहुत सहा, लेकिन हर कोशिश बेकार गई। कई बार लगा कि शायद मैं ही गलत हूं। पर जब उसने पहली बार हाथ उठाया, तब समझ आई कि गलती मेरी नहीं थी।”
“चार साल तक वह नर्क सहा। फिर नशे में गाड़ी चलाते हुए उसका एक्सीडेंट हो गया और सब खत्म हो गया। मैं अकेली रह गई। पति की मौत के बाद भी दुख खत्म नहीं हुआ। ससुराल वालों ने मुझे बोझ समझा और घर से निकाल दिया।”
“मैंने पापा का दरवाजा खटखटाया, तो उन्होंने मुझे गले तो लगाया, लेकिन पड़ोसियों की बातें सुनकर वह भी टूट गए। लोग कहते थे, ‘विधवा बेटी को घर पर क्यों रखा है?’ मैं जिंदा रही, लेकिन अंदर से रोज मरती रही।”
आशीष के गालों पर भी आंसू बह निकले। उसने हाथ बढ़ाकर राधिका की आंखों के आंसू पोंछ दिए। उसकी आवाज भारी थी, “राधिका, मुझे नहीं पता कि भगवान ने यह सब क्यों होने दिया, लेकिन एक बात कहूंगा—तुम अकेली नहीं हो। आज मैं हूं और हमेशा रहूंगा।”
राधिका ने उसकी तरफ देखा। बरसों बाद उसके चेहरे पर हल्की राहत आई, लेकिन दिल के कोने में अब भी डर था—क्या बीते हुए कल की जंजीरें कभी टूट पाएंगी?
नई शुरुआत की उम्मीद
दोनों चुपचाप बैठे रहे। मंदिर की घंटियां दूर से हल्की सुनाई दे रही थीं, पर उनके दिलों में बरसों का शोर उठ रहा था। आशीष ने राधिका की आंखों में गहराई से देखा और कहा, “राधिका, मैंने जिंदगी भर सिर्फ एक लड़की से प्यार किया है और वह तुम हो। तुम्हारा अतीत चाहे जैसा भी रहा हो, मेरे लिए तुम वही हो जो कॉलेज की लाइब्रेरी में मेरी किताबें संभालती थी, जो मेरी सादगी पर मुस्कुराती थी, और जो मुझे बिना बोले समझ जाती थी।”
राधिका कांप गई। उसके होंठ हिले, “आशीष, मैं अब वैसी नहीं रही। समाज मुझे विधवा कहता है, लोग ताने मारते हैं। मैं तुम्हारे लायक कैसे हो सकती हूं?”
आशीष ने उसका हाथ कसकर थाम लिया, “यह समाज कुछ भी कहे, मेरे लिए तुम वही राधिका हो। अगर उस वक्त तुमने मुझे गरीब जानकर ठुकराया नहीं, तो आज मैं तुम्हें अकेली जानकर कैसे ठुकरा दूं? प्यार कभी परिस्थितियों से छोटा नहीं होता।”
राधिका की आंखें भर आईं। बरसों से दबा हुआ दर्द पिघलकर राहत में बदलने लगा। उसने धीरे से सिर झुका दिया, जैसे कह रही हो, “अब मैं भागना नहीं चाहती।”
परिवार से सामना
आशीष मुस्कुराया, “चलो, तुम्हारे पापा के पास चलते हैं। इस बार मैं झुकने नहीं आया, मैं तुम्हें अपनाने आया हूं। और अगर वह मुझे फिर से ठुकराएंगे, तो मैं भी नहीं बैठूंगा।”
उस शाम दोनों राधिका के पिता के घर पहुंचे। दरवाजे पर खड़े होकर आशीष ने विनम्र आवाज में कहा, “अंकल, मैं आशीष हूं, वही गरीब लड़का जिसे आपने कभी अपनी बेटी के लायक नहीं समझा था। आज मैं करोड़पति हूं, लेकिन मुझे अपनी हैसियत साबित नहीं करनी। मैं बस यह कहना चाहता हूं कि आपकी बेटी अकेली है और मैं उसे अकेला नहीं छोड़ना चाहता।”
राधिका के पिता की आंखों में शर्म और पछतावे के आंसू उमड़ आए। कांपते हुए बोले, “बेटा, उस दिन मैंने बहुत बड़ी गलती की थी। अगर तू मेरी बेटी को अपना ले, तो यह मेरे लिए सबसे बड़ा वरदान होगा।”
आशीष ने उनका हाथ पकड़ लिया, “अंकल, यह वरदान नहीं, मेरा सौभाग्य है।”
नई जिंदगी की शुरुआत
कुछ ही समय बाद आशीष और राधिका का विवाह पूरे रीति-रिवाज से हुआ। मंदिर की वही घंटियां अब उनके नए जीवन की गवाह बनीं। राधिका ने बरसों का अकेलापन भुलाकर नए सिरे से जीना शुरू किया और आशीष ने भी समझ लिया कि असली जीत पैसे की नहीं, प्यार की होती है।
दोस्तों, इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है कि सच्चा प्यार कभी परिस्थितियों का मोहताज नहीं होता। अगर दिल साफ हो और भावनाएं सच्ची हों, तो समाज की हर दीवार गिराई जा सकती है। प्यार का रास्ता कठिन हो सकता है, लेकिन अंत में वही सबसे बड़ी ताकत बनता है।
क्या आपको भी लगता है कि समाज को किसी इंसान का मूल्य उसकी हैसियत या परिस्थितियों से नहीं, बल्कि उसके दिल और कर्मों से आंकना चाहिए? अपनी राय कमेंट में जरूर बताएं।
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