12वीं में फेल होने पर गरीब पिता ने बेटे को स्कूल से निकाल दिया, कुछ साल बाद जो हुआ…

गांव के एक छोटे से घर में, रामदयाल अपनी पत्नी और बेटे अजय के साथ रहते थे। रामदयाल एक गरीब मजदूर थे, जिनके हाथों में मेहनत की वजह से छाले थे। उनका सपना था कि उनका बेटा अजय पढ़ाई करके एक सफल इंसान बने और उनका परिवार गरीबी के अंधेरे कुएं से बाहर निकले। लेकिन आज सब कुछ उल्टा हो गया था। अजय के कांपते हाथों में 12वीं की मार्कशीट थी, जिस पर बड़े काले अक्षरों में लिखा था: “फेल्ड।”

“मैंने अपने बाप की आखिरी जमीन बेच दी। खेत गिरवी रखे, मजदूरी में हड्डी तोड़ी ताकि तुझे पढ़ा सकूं और तूने सब कुछ बर्बाद कर दिया,” रामदयाल की आवाज में दर्द और गुस्सा था। अजय ने सिर झुका लिया। उसकी आंखों में क्रिकेट की गेंद की चमक थी। उसने धीरे से कहा, “बाबा, मुझे लगता है कि मेरी मंजिल किताबों में नहीं, मैदान में है। मुझे क्रिकेट में मौका दो।”

भाग 2: संघर्ष की शुरुआत

रामदयाल का गुस्सा फट पड़ा। “क्रिकेट? हां क्रिकेट से कभी किसी गरीब का घर चला है? तू समझता है यह सब खिलवाड़ है। तुझे पढ़ाई करनी है, सम्मान के लिए। बिना पढ़ाई के तू कुछ नहीं। जा, अभी निकल जा मेरे घर से और वापस तब आना जब कुछ बन जाए।”

अजय ने अपने पिता के पैर छुए और फटे हुए बैग को कंधे पर लादकर घर से निकल पड़ा। उसके पास ना पैसे थे, ना कोई रिश्तेदार जो सहारा दे सकता। शुरुआती दिन बहुत कठिन थे। दिन में वह मोहल्ले के मैदान में क्रिकेट खेलता और रात को किसी दुकान के बाहर पार्क की बेंच पर या ढाबे के पीछे सो जाता। भूख से पेट में ऐंठन होती, लेकिन कभी-कभी दोस्त या दुकानदार खाना दे देते। कई बार तो खाली पेट ही सो जाना पड़ता।

लोग अजय को देखकर तरह-तरह की बातें करते। “देखो, रामदयाल का बेटा कहता था क्रिकेटर बनेगा। अब सड़कों पर घूम रहा है।” लेकिन अजय ने हार नहीं मानी। जब भी नकारात्मक विचार आते, वह अपने बैट को देखता और मन में कहता, “एक दिन मैं साबित करूंगा कि क्रिकेट मेरी सच्ची मंजिल है।”

भाग 3: एक नई उम्मीद

छह महीने बाद, एक गर्म दोपहर में अजय मोहल्ले के छोटे से मैदान में अकेले प्रैक्टिस कर रहा था। उसके पास ना कोच था, ना सही उपकरण। बस एक टेनिस बॉल और अपना पुराना बैट। तभी वहां सफेद कुर्ता पायजामा पहने एक व्यक्ति आकर खड़ा हो गया। वह गौर से अजय के हर शॉट को देख रहा था।

मैच खत्म होने पर उन्होंने अजय को बुलाया, “बेटा, तुम्हारा नाम क्या है?” “अजय। अजय सिंह।” “मैं कोच नरेंद्र मिश्रा हूं। मैंने रणजी के कई खिलाड़ियों को ट्रेन किया है। तुम्हारे अंदर बहुत टैलेंट है।”

अजय की आंखों में चमक आ गई। “सच में सर?” “हां बेटा। लेकिन टैलेंट अकेला काफी नहीं होता। सही ट्रेनिंग, अनुशासन और लगातार मेहनत चाहिए। अगर तुम तैयार हो तो मैं तुम्हें ट्रेन कर सकता हूं।”

भाग 4: कठिनाईयों का सामना

कोच नरेंद्र मिश्रा ने अजय को अपने क्रिकेट अकादमी में जगह दे दी। यहां अजय की जिंदगी बिल्कुल बदल गई। अब उसके पास रहने की जगह थी, लेकिन असली चुनौती अब शुरू हुई थी। सुबह 4:00 बजे उठना, 5:00 बजे से जॉगिंग, 6:00 बजे से फिटनेस, 8:00 बजे नाश्ता, 9:00 से 12:00 तक बैटिंग प्रैक्टिस, दोपहर का खाना, फिर 2:00 से 5:00 तक फील्डिंग और बॉलिंग प्रैक्टिस, शाम को फिर से फिटनेस, रात 9:00 बजे खाना और 10:00 बजे सो जाना।

यह रूटीन इतना कड़ा था कि शुरुआत में अजय का शरीर साथ देने से इंकार कर देता। हाथों में छाले पड़ गए, मांसपेशियों में दर्द होता रहता। लेकिन वह हार नहीं मानता था। कोच कहते रहते, “अजय, क्रिकेट सिर्फ खेल नहीं है। यह अनुशासन है। तपस्या है। जो लड़का यहां से निकलेगा, वह सिर्फ खिलाड़ी नहीं, एक योद्धा होगा।”

भाग 5: मेहनत का फल

धीरे-धीरे अजय में बदलाव दिखने लगे। उसकी फिटनेस बेहतर हो गई, शॉट्स में पावर आ गया, और फील्डिंग में तेजी दिखने लगी। साल भर की कड़ी मेहनत के बाद कोच ने अजय को एक लोकल क्लब मैच में खेलने का मौका दिया। यह अजय के लिए सबसे बड़ा टेस्ट था। यहां बड़े-बड़े खिलाड़ी आते थे, स्काउट्स आते थे।

मैच का दिन आया। अजय के हाथ कांप रहे थे, दिल जोर से धड़क रहा था। लेकिन जैसे ही वह क्रीज पर गया, उसका आत्मविश्वास वापस आ गया। पहली गेंद पर ही उसने एक खूबसूरत कवर ड्राइव लगाया। बॉल तेजी से बाउंड्री पार हो गई। स्टैंड से तालियां गूंजीं। अजय ने उस दिन कुछ ऐसा कमाल दिखाया कि सब हैरान रह गए। सिर्फ 47 गेंदों में शतक पूरा कर दिया।

भाग 6: सफलता की ओर

उसके शॉट्स इतने खूबसूरत थे कि लोग बार-बार तालियां बजा रहे थे। कोच नरेंद्र मिश्रा की आंखों में गर्व के आंसू थे। मैच के बाद उन्होंने अजय को गले लगाकर कहा, “आज तुमने साबित कर दिया कि तुम में चैंपियन बनने का दम है।”

उस मैच के बाद अजय की जिंदगी तेजी से बदलने लगी। पहले वह जिला टीम में चुना गया। फिर स्टेट टीम में रणजी ट्रॉफी में उसने लगातार रन बनाए और जल्द ही नेशनल सिलेक्टर्स की नजर में आ गया।

भाग 7: आईपीएल का सपना

लेकिन असली तब्दीली तब आई जब आईपीएल की नीलामी का दिन आया। टीवी की स्क्रीन पर उसका नाम चमक रहा था। “अजय सिंह!” अजय के लिए बोली शुरू हुई। बेस प्राइस 20 लाख, मुंबई इंडियंस 50 लाख, चेन्नई सुपर किंग्स 1 करोड़, राजस्थान रॉयल्स 2 करोड़। बोली तेजी से बढ़ रही थी।

अजय के दिल की धड़कन तेज हो गई थी। कोच उसके साथ बैठे मुस्कुरा रहे थे। “दिल्ली कैपिटल्स 4 करोड़, मुंबई इंडियंस 5 करोड़!” और फिर हैमर गिरा, “सोल्ड! अजय सिंह मुंबई इंडियंस की तरफ से ₹5 करोड़ में!” पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा। अजय की आंखों में खुशी के आंसू थे।

भाग 8: गांव की वापसी

पांच साल बाद, गांव की उसी टूटी-फूटी गली में, जहां कभी अजय रोता हुआ निकला था, आज एक सफेद BMW खड़ी थी। गांव वाले हैरान होकर देख रहे थे। “यह किसकी गाड़ी है? अरे, कोई बड़ा आदमी आया होगा!” गाड़ी से एक व्यक्ति उतरा, सूट-बूट में, लेकिन चेहरे पर वही सादगी।

लोग पहचानने की कोशिश कर रहे थे। “अरे, यह तो अजय है! रामदयाल का बेटा!” “हां, वही जो घर से निकाला गया था। अरे, यह तो आईपीएल में खेलता है!” अजय धीरे-धीरे अपने पुराने घर की तरफ बढ़ा। वहीं टूटा हुआ दरवाजा, वहीं मिट्टी की दीवारें। उसके गले में गांठ बन गई।

भाग 9: पिता से मिलन

दरवाजा खुला। अंदर से रामदयाल निकले, बूढ़े हो गए थे। बाल सफेद हो गए थे, कमर झुक गई थी। वह अजय को देखकर ठगे रह गए। अजय ने झुककर उनके पैर छुए। आवाज में कंपन था, “बाबा, मैंने कर दिखाया। आपने कहा था कि कुछ बनकर वापस आना। मैं वापस आया हूं।”

रामदयाल की आंखें भर आईं। “बेटा, मैंने तुझे गलत समझा था। तू सच में मेरे सपनों से भी बड़ा निकला। मुझे माफ कर दे।” बाप-बेटे गले मिले। गांव के लोग इस भावनात्मक दृश्य को देखकर आंसू पोंछ रहे थे।

भाग 10: प्रेरणा का संदेश

उस शाम गांव के चौपाल में एक छोटी सभा हुई। सारे गांव वाले इकट्ठा हुए। अजय ने माइक उठाया और दिल से बोला, “भाइयों और बहनों, आज मैं यहां एक सफल इंसान के रूप में नहीं, बल्कि इस गांव के एक बेटे के रूप में खड़ा हूं। मैं 12वीं में फेल हुआ था, घर से निकाला गया था। लोग कहते थे कि मैं कुछ नहीं कर सकूंगा। लेकिन मैंने सीखा है कि असफलता कभी अंत नहीं होती। यह तो बस एक नई शुरुआत होती है।”

“जब आपका सपना सच्चा हो, जब आपकी मेहनत पूरी हो, तो कोई भी मंजिल बड़ी नहीं होती। आज मैं सिर्फ एक क्रिकेटर नहीं हूं। मैं उन सभी बच्चों की आवाज हूं जिन्हें कहा जाता है कि तुम कुछ नहीं कर सकते। मैं उन सभी माता-पिता से कहना चाहता हूं, अपने बच्चों के सपनों का सम्मान करें। हो सकता है वह अलग राह चुने, लेकिन वह राह भी सफलता तक ले जा सकती है।”

गांव के बच्चों की आंखों में सपने चमक रहे थे। बूढ़े लोग सिर हिला रहे थे। रामदयाल ने खड़े होकर कहा, “मेरे बेटे ने सिखाया है कि पिता होने का मतलब सिर्फ अपने सपने थोपना नहीं, बल्कि बच्चों के सपनों का साथ देना भी है।”

भाग 11: जीत की कहानी

और इस तरह जिस लड़के को कभी घर से निकाला गया था, वही लड़का आज करोड़पति बनकर लौटा। उसने साबित किया कि गरीबी कोई अभिशाप नहीं है और असफलता कोई अंत नहीं है। जरूरत है तो बस सच्चे सपने और अटूट मेहनत की।

अजय की यह कहानी हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा है जो समाज की बातों से डरकर अपने सपने छोड़ देता है। यह कहानी बताती है कि मंजिल उनकी होती है जो हार के बाद भी हिम्मत नहीं हारते।

भाग 12: एक नई शुरुआत

अजय ने अपने गांव में एक क्रिकेट अकादमी खोली, जहां वह बच्चों को क्रिकेट सिखाने लगे। उन्होंने अपने अनुभवों को साझा किया और बच्चों को यह सिखाया कि मेहनत और समर्पण से कोई भी सपना पूरा किया जा सकता है।

गांव के बच्चे अब अजय को अपना आदर्श मानने लगे थे। उन्होंने सीखा कि असफलता केवल एक कदम है, जो आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है।

अजय की कहानी ने यह साबित कर दिया कि सपने देखने वाले कभी हार नहीं मानते, और मेहनत करने वाले हमेशा अपनी मंजिल पा लेते हैं।

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