15 साल की बेटी ने अपाहिज जज से कहा की मेरे पिता को छोड़ दें, मै आपको कुछ ऐसा बताउंगी कि आप चलने

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15 साल की बेटी, अपाहिज जज और इंसाफ का चमत्कार

दिल्ली की भीड़भाड़ और शोरगुल के बीच 30 हजारी कोर्ट का कमरा नंबर चार उस दिन कुछ ज्यादा ही भारी था। कटघरे में खड़ा था रवि शर्मा, एक सरकारी स्कूल का लाइब्रेरियन, साधारण सा इंसान, जिसकी पूरी जिंदगी किताबों और ईमानदारी के इर्द-गिर्द घूमती थी। आज उस पर करोड़ों के बैंक घोटाले का इल्जाम था। सारे दस्तावेज, गवाह, सबूत उसके खिलाफ थे। अदालत की सबसे ऊंची कुर्सी पर बैठे थे जस्टिस आनंद सिन्हा, जिनका नाम सुनते ही बड़े-बड़े वकीलों की रूह कांप जाती थी। लेकिन तीन साल पहले हुए एक भयानक हादसे ने उन्हें व्हीलचेयर तक सीमित कर दिया था। उनका शरीर ही नहीं, आत्मा भी जैसे कैद हो गई थी।

कोर्ट के आखिरी कोने में बैठी थी रवि शर्मा की 15 साल की बेटी अनन्या। उसकी आंखों में आंसू नहीं, एक अजीब सा विश्वास था—उसके पिता निर्दोष हैं। जब से उसके पिता गिरफ्तार हुए थे, उसकी दुनिया बदल गई थी। स्कूल के दोस्त दूर हो गए, मां सदमे से बीमार हो गईं। वह दिन-रात केस की फाइलें पढ़ती, शायद कोई सुराग मिल जाए। उसे याद था, जिस दिन बैंक में गबन हुआ, वह अपने पिता के साथ घर पर थी, स्कूल प्रोजेक्ट पर काम कर रही थी। लेकिन उसके पास सबूत नहीं था।

मुकदमा अंतिम चरण में था। सरकारी वकील ने अपनी दलीलें दीं, लग रहा था कि रवि शर्मा को दस साल की सजा होगी। जस्टिस सिन्हा ने फैसला सुरक्षित रख लिया। अनन्या के लिए वह रात कयामत जैसी थी। उसने ठान लिया—एक आखिरी कोशिश करेगी। उसने पिता के वकील से जज साहब के घर का पता मालूम किया और शाम को उनके बंगले पर पहुंच गई। जस्टिस सिन्हा का काफिला आया, सहायक ने उन्हें व्हीलचेयर पर बिठाया। अनन्या दौड़कर सामने आई, गार्डों ने रोकना चाहा, लेकिन वह डटी रही। जस्टिस सिन्हा ने कठोर स्वर में कहा, “यह अदालत की अवमानना है!” अनन्या ने कांपती आवाज में कहा, “मेरे पिता को छोड़ दीजिए। मैं आपको ऐसा राज बताऊंगी कि आप फिर से चलने लगेंगे।”

जस्टिस सिन्हा चौंक गए। उन्हें लगा, यह लड़की उनके जख्मों का मजाक उड़ा रही है। “दफा हो जाओ, इससे पहले कि गिरफ्तार करवा दूं!” अनन्या की आंखों में आंसू आ गए, लेकिन वह बोली, “कल कोर्ट में आपका इंतजार करूंगी।”

उस रात जस्टिस सिन्हा सो नहीं पाए। “आप फिर से चलने लगेंगे”—यह शब्द उनके मन में हथौड़े की तरह बजते रहे। दुनिया के सबसे बड़े डॉक्टरों ने जवाब दे दिया था, उनकी चोट लाइलाज है। लेकिन अनन्या के शब्दों ने उम्मीद की चिंगारी जगा दी थी।

उधर, अनन्या अपने पिता के पुराने सामान को टटोल रही थी। उसे एक धूल भरा संदूक मिला—कॉलेज की तस्वीरें, डायरियां। एक तस्वीर में रवि शर्मा अपने दोस्त गिरीश के साथ थे। वही गिरीश, जो इस केस का मुख्य गवाह था और जिसकी गवाही ने रवि शर्मा को मुजरिम बना दिया था। डायरी के पन्ने पलटे तो पता चला—रवि और गिरीश कॉलेज के साथी थे, बाद में दोनों ने मिलकर कंपनी खोली थी। लेकिन गिरीश ने धोखा दिया, पैसे हड़प लिए, रवि को बर्बाद कर गायब हो गया। गिरीश के पास रवि को फंसाने का पुराना मकसद था।

अनन्या को संदूक में 3 साल पुरानी अखबार की कटिंग भी मिली—एक हिट एंड रन एक्सीडेंट, जिसमें एक तेज सेडान कार ने जज की गाड़ी को टक्कर मारी थी। तारीख और जगह वही, जब जस्टिस सिन्हा का एक्सीडेंट हुआ था। डायरी के एक पन्ने पर लिखा था—”आज गिरीश मिला, बहुत अमीर हो गया है, काले रंग की विदेशी कार चला रहा था, बिल्कुल वैसी जैसी एक्सीडेंट वाली थी। भगवान करे मेरा शक गलत हो।”

अब सारी कड़ियां जुड़ गईं। गिरीश ही वह इंसान था जिसने जज साहब को अपाहिज बनाया और रवि शर्मा को झूठे केस में फंसाया ताकि अगर रवि कभी सच बोले तो कोई यकीन ना करे। अनन्या के पास अब सिर्फ अपने पिता की बेगुनाही का सबूत नहीं था, बल्कि जज साहब के हादसे का राज भी था।

अगली सुबह, कोर्ट की कार्रवाई से ठीक पहले, अनन्या किसी तरह जज साहब के चेंबर में पहुंच गई। जस्टिस सिन्हा डांटने को तैयार थे, लेकिन अनन्या ने चुपचाप तस्वीर, डायरी और अखबार की कटिंग उनकी मेज पर रख दी। “जज साहब, मैं भीख मांगने नहीं आई हूं, आपके मुजरिम का नाम बताने आई हूं।” जज ने कागज देखे, तस्वीर में गिरीश को पहचाना, डायरी पढ़ी, चेहरा सफेद पड़ गया। अनन्या बोली, “जिस गिरीश की गवाही पर आप मेरे पिता को सजा देने वाले हैं, वही इंसान है जिसने आपको अपाहिज बना दिया था।”

जस्टिस सिन्हा के अंदर सालों का गुस्सा, दर्द और सदमा उमड़ पड़ा। डॉक्टरों ने हमेशा कहा था—उनकी चोट जितनी शारीरिक है, उससे ज्यादा मानसिक सदमे की वजह से गंभीर है। आज जब वजह सामने आई, उनके दिमाग के सोए हिस्से जाग उठे। उन्होंने व्हीलचेयर के हैंडल को जोर से पकड़ा—उनके पैरों में हल्की सी हरकत हुई। कई साल बाद उन्होंने झनझनाहट महसूस की। वे हाफ रहे थे, अविश्वास से टांगों की तरफ देख रहे थे।

कोर्ट रूम में सब बेचैनी से इंतजार कर रहे थे। जस्टिस सिन्हा दाखिल हुए, आंखों में आग थी। कांपती आवाज में बोले, “आज का फैसला मुल्तवी किया जाता है।” पुलिस को आदेश दिया—गिरीश को हिरासत में लें, उसकी काली सेडान गाड़ी फॉरेंसिक जांच के लिए जब्त करें। जांच में गाड़ी के बंपर पर तीन साल पुराने खरोंच मिले, पेंट मैच कर गया। दबाव में गिरीश टूट गया—उसने अपना गुनाह कबूल लिया। उसने माना, उसी ने जज साहब को टक्कर मारी थी और रवि शर्मा को फंसाया क्योंकि डर था कि रवि सच जानता है।

अगले दिन, उसी कोर्ट रूम में जस्टिस सिन्हा ने फैसला सुनाया—रवि शर्मा को बाइज्जत बरी किया जाता है। रवि कटघरे से बाहर आया, अनन्या दौड़कर उससे लिपट गई—बाप-बेटी के आंसुओं ने पूरा कोर्ट भावुक कर दिया। लेकिन असली कहानी अब शुरू हुई थी। सदमे के समाधान ने जस्टिस सिन्हा के शरीर पर जादू सा असर किया। उन्होंने फिजियोथैरेपी शुरू की, जीने की नई इच्छाशक्ति जाग उठी। महीनों की मेहनत के बाद पैरों में जान लौटने लगी।

एक साल बाद, रवि शर्मा अपनी लाइब्रेरियन की नौकरी पर लौटे, सम्मान वापस मिला। अनन्या अपनी क्लास में फर्स्ट आई। दोनों जस्टिस सिन्हा से मिलने उनके घर पहुंचे। जस्टिस सिन्हा ने दरवाजा खुद खोला—अब वे व्हीलचेयर पर नहीं थे, बैसाखी के सहारे अपने पैरों पर खड़े थे। चेहरे पर सुकून भरी मुस्कान थी। उन्होंने अनन्या से कहा, “उस दिन तुमने कहा था कि मुझे चलना सिखा दोगी। तुमने मेरे पैर ही नहीं लौटाए, मुझे जीना भी सिखाया। तुमने सिर्फ अपने पिता को नहीं बचाया, मुझे भी मेरी कैद से आजाद किया।”

जस्टिस सिन्हा ने फैसला किया—अनन्या की आगे की पढ़ाई का सारा खर्च वे उठाएंगे। वे चाहते थे कि अनन्या बड़ी होकर वकील बने, क्योंकि जिसमें 15 साल की उम्र में न्याय के लिए इतनी आग हो, वह भविष्य में इंसाफ की सच्ची मशाल बन सकती है।

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