25 साल बाद दोस्ती का कर्ज चुकाने आया करोड़पति दोस्त
क्या आप जानते हैं कि दुनिया का सबसे सफल इंसान भी अंदर से सबसे खाली हो सकता है? क्या आप जानते हैं कि एक इंसान करोड़ों की दौलत कमाने के बाद भी एक छोटे से गांव की धूल में खोई अपनी दोस्ती को वापस पाने के लिए तरसता है? यह कहानी है रोहन खन्ना की, भारत के सबसे सफल उद्योगपतियों में से एक। उसकी एक आवाज पर करोड़ों के सौदे हो जाते हैं, लेकिन उसकी आत्मा आज भी उसी गांव की पगडंडियों पर भटक रही है, जहां उसने अपनी जिंदगी का सबसे कीमती हीरा खो दिया था—अपनी दोस्ती, अपना श्याम।
शुरुआत
आज सुबह एक अंतरराष्ट्रीय सौदे को अंतिम रूप देते हुए जब विदेशी प्रतिनिधियों ने उसकी कामयाबी के लिए तालियां बजाई, तो उन तालियों की गूंज में उसे श्याम का कहकहा सुनाई दिया। एक पल के लिए सब कुछ धुंधला गया। करोड़ों की डील का जश्न फीका पड़ गया था। उसे याद आया था कि कैसे बचपन में जब वे दोनों कंचे का खेल जीतते थे, तो श्याम ऐसे ही जोर से हंसता था। उसकी हंसी में एक अजीब सी खनक थी जो आज दुनिया के किसी भी संगीत में नहीं थी।
रोहन ने अपनी आंखों पर जोर दिया और अतीत के उन पन्नों को पलटने लगा जहां उसकी जिंदगी की असली कहानी लिखी थी। उत्तर प्रदेश का एक छोटा सा अनजाना गांव, बिसरक। यही वो जगह थी जहां रोहन और श्याम की दोस्ती ने जन्म लिया था। रोहन गांव के मुनीम का बेटा था, जबकि श्याम एक गरीब किसान का। लेकिन उनकी दोस्ती इन सामाजिक दीवारों को नहीं मानती थी।
दोस्ती की नींव
उनकी दुनिया एक थी—स्कूल की टूटी हुई टाट पट्टी, आम के बाग में चोरी करना, बरसात में कीचड़ में लौटना और एक ही थाली में रोटी बांट कर खाना। श्याम पढ़ाई में औसत था, लेकिन उसका दिल सोने का था। वह साहसी था, निडर था और रोहन के लिए कुछ भी कर सकता था। वहीं रोहन पढ़ने में बहुत तेज था। उसकी आंखों में बड़े-बड़े सपने थे।
वह हमेशा कहता, “देखना श्याम, एक दिन मैं बहुत बड़ा आदमी बनूंगा। फिर तुझे इस गरीबी से निकाल कर अपने साथ शहर ले जाऊंगा।” श्याम मुस्कुराता और कहता, “अरे पगले, तू बस बड़ा आदमी बन जा। मैं तो यहीं ठीक हूं अपनी मिट्टी में। तेरी कामयाबी में ही मेरी खुशी है।”
सपनों का टूटना
उनके सपने जितने बड़े थे, गांव की हकीकत उतनी ही कड़वी। रोहन के पिता चाहते थे कि वह शहर जाकर पढ़े, लेकिन उनके पास इतने पैसे नहीं थे। जब रोहन की 12वीं की परीक्षा के नतीजे आए, तो उसने पूरे जिले में टॉप किया था। गांव के मास्टर जी ने उसके पिता से कहा, “मुनीम जी, यह लड़का हीरा है। इसे शहर भेजो। देखना, एक दिन आपका नाम रोशन करेगा।”
लेकिन शहर भेजने का खर्चा एक पहाड़ जैसा था। रोहन को कई रातें नींद नहीं आई। उसे अपने सपने टूटते हुए दिख रहे थे। एक रात वह उदास मन से नदी किनारे बैठा था। तभी श्याम उसके पास आया। “क्या हुआ रोहन? इतना परेशान क्यों है?”
रोहन ने अपनी बेबसी बताई। श्याम कुछ देर खामोश रहा। फिर उसका हाथ पकड़ कर बोला, “तू चिंता मत कर। तू शहर जाएगा जरूर जाएगा।” अगले कुछ दिन श्याम बहुत चुप-चुप रहा। रोहन को लगा कि वह भी उसकी परेशानी से दुखी है।
त्याग की मिसाल
लेकिन एक हफ्ते बाद एक सुबह श्याम भागता हुआ रोहन के घर आया। उसके हाथ में नोटों की एक गड्डी थी। उसने वो पैसे रोहन के पिता के हाथों में रख दिए। “काका, यह रोहन की पढ़ाई के लिए है। रख लीजिए।” मुनीम जी और रोहन हैरान रह गए। इतने पैसे कहां से आए श्याम?
श्याम ने नजरें झुका ली। “काका, बाबूजी ने हमारी जो दो बीघा जमीन थी, वो बेच दी।” यह सुनकर रोहन और उसके पिता के पैरों तले जमीन खिसक गई। वो जमीन श्याम के परिवार का एकमात्र सहारा थी। उसके पिता ने सालों की मेहनत से उसे सींचा था।
रोहन ने कांपते हुए कहा, “नहीं श्याम, यह तूने क्या किया? यह पागलपन है। मैं यह पैसे नहीं ले सकता। तुम्हारे बाबूजी तुम्हें मार डालेंगे।” श्याम की आंखों में आंसू थे, लेकिन उसकी आवाज में एक दृढ़ता थी। “बाबूजी को मैंने ही मनाया है। उन्होंने कहा कि एक फसल चली जाएगी, तो अगली आ जाएगी। लेकिन अगर मेरे दोस्त का भविष्य चला गया, तो वह लौट कर नहीं आएगा। तू मेरा दोस्त नहीं, मेरा भाई है और एक भाई के लिए इतना तो मैं कर ही सकता हूं। तू यह पैसे ले और शहर जा। बस, बस हमें भूल मत जाना।”
नया सफर
वो दिन रोहन की जिंदगी का सबसे भारी दिन था। उसने अपने दोस्त के सपनों की लाश पर अपने भविष्य की नींव रखी थी। उसके पिता ने बहुत मना किया। लेकिन श्याम के पिता राम भरोसे काका ने हाथ जोड़कर कहा, “मुनीम जी, इसे मेरे बेटे का स्वार्थ मत समझिए। यह तो दोस्ती का धर्म है। मेरा बेटा पढ़ नहीं पाया। शायद भगवान चाहता है कि रोहन पढ़कर हम सबका नाम ऊंचा करें। आप बस इसे स्वीकार कर लीजिए।”
उस दिन रोहन को एहसास हुआ कि गरीबी केवल अभाव का नाम नहीं है। बल्कि अमीरी का वह रूप है जिसे दौलत से नहीं, दिल से मापा जाता है। गांव के स्टेशन पर जब ट्रेन आई, तो पूरा गांव उसे विदा करने आया था। रोहन की आंखें सिर्फ श्याम को ढूंढ रही थीं।
श्याम भीड़ में सबसे पीछे खड़ा था, अपनी नम आंखों को छिपाने की कोशिश कर रहा था। रोहन भागकर उसके गले लग गया। “मैं तुझे कभी नहीं भूलूंगा श्याम। मैं बहुत जल्दी वापस आऊंगा और तेरी जमीन तुझे वापस दिलाऊंगा।”
शहर की दौड़
शहर की जिंदगी एक दौड़ थी। एक अंधी दौड़। रोहन ने दिन रात एक कर दिया। उसने श्याम के त्याग को अपनी ताकत बना लिया। वो कॉलेज में टॉप करता रहा। स्कॉलरशिप हासिल की और फिर एक छोटी सी नौकरी से अपने करियर की शुरुआत की। शुरुआती कुछ साल उसने श्याम को खत लिखे। हर खत में वो अपने संघर्ष और अपनी छोटी-छोटी कामयाबियों का जिक्र करता।
श्याम का जवाब आता, जिसकी लिखावट टेढ़ी-मेढ़ी होती। लेकिन शब्द शहद से मीठे होते। लेकिन जैसे-जैसे रोहन सफलता की सीढ़ियां चढ़ता गया, खतों का सिलसिला कम होता गया। काम का बोझ, मीटिंग्स और नए रिश्तों की चमक में गांव की वो धूल भरी यादें धुंधली पड़ने लगीं। अब वो महीनों में एक खत लिखता। फिर सालों में एक।
सफलता की कीमत
रोहन ने एक छोटी सी कंपनी शुरू की, जो आज एक मल्टीनेशनल कॉरपोरेशन बन चुकी थी। पैसा, शोहरत, ताकत, उसके पास सब कुछ था। लेकिन इस सफर में उसने कई रिश्ते बनाए और तोड़े। लेकिन एक रिश्ता था जिसका कर्ज उसकी आत्मा पर हर पल भारी होता गया।
कभी-कभी देर रात जब वो अकेला होता, तो उसे श्याम का चेहरा याद आता। वो चेहरा जिसमें उसके लिए निस्वार्थ प्रेम और विश्वास था। वह सोचता, “श्याम अब कैसा होगा? क्या उसने शादी कर ली होगी? क्या उसके बच्चे होंगे?” फिर वह खुद को तसल्ली देता, “मैं जल्द ही जाऊंगा। मैं उसके लिए इतना कुछ कर दूंगा कि उसकी सारी तकलीफें दूर हो जाएंगी।”
लेकिन वह जल्द कभी नहीं आया। 25 साल बीत गए। एक पूरी पीढ़ी जवान हो गई। रोहन की दुनिया पूरी तरह बदल चुकी थी। लेकिन उसका अतीत एक परछाई की तरह उसके साथ चलता रहा। आज उस सफल सौदे के बाद जब उसे अपने जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि का जश्न मनाना चाहिए था, उसे अपने जीवन की सबसे बड़ी हार का एहसास हो रहा था।
गांव की यादें
उसे लगा कि उसने सब कुछ कमा लिया, लेकिन वह दोस्ती हार गया जो उसकी असली दौलत थी। उसने महसूस किया कि श्याम ने सिर्फ अपनी जमीन नहीं बेची थी। उसने अपना भविष्य, अपनी खुशियां सब कुछ रोहन के सपनों के लिए दाम पर लगा दिया था। और उसने बदले में क्या दिया? गुमनामी, खामोशी, एक दर्द की लहर उसके सीने में उठी।
यह दर्द किसी बीमारी का नहीं था। यह आत्मा का दर्द था। यह उस कर्ज का दर्द था जो 25 साल से नासूर बन चुका था। रोहन अपनी कीमती कुर्सी से उठा। उसने अपने सेक्रेटरी को फोन किया, “मेरे अगले 1 महीने के सारे अपॉइंटमेंट्स, सारी मीटिंग्स, सब कुछ कैंसिल कर दो।”
गांव की यात्रा
“लेकिन सर, वो इंटरनेशनल डेलीगेशन…” “मैंने कहा सब कुछ कैंसिल कर दो।” रोहन की आवाज में एक ऐसी दृढ़ता थी जो उसके सेक्रेटरी ने पहले कभी नहीं सुनी थी। “और मेरे गांव बिसरक जाने के लिए टिकट बुक करो।” नहीं फ्लाइट नहीं। ट्रेन का टिकट सबसे साधारण दर्जे का।
जब रोहन ने जनरल डिब्बे के खचाखच भरे माहौल में कदम रखा, तो एक पल को उसका दम घुट गया। पसीने, मसालों और इंसानी वजूद की मिली-जुली गंध ने उसे झकझोर दिया। उसके महंगे इटालियन सूट और चमचमाते जूतों पर पड़ती सैकड़ों आंखें उसे किसी दूसरे ग्रह का प्राणी समझ रही थीं।
गांव की ओर बढ़ते कदम
ट्रेन जब शहर की ऊंची इमारतों को पीछे छोड़कर गांवों और खेतों के बीच से गुजरने लगी, तो रोहन की आंखों के सामने अतीत किसी फिल्म की तरह चलने लगा। हर खेत, हर पेड़, हर कच्चा रास्ता उसे श्याम की याद दिला रहा था। जैसे-जैसे उसका स्टेशन करीब आ रहा था, उसके दिल की धड़कनें तेज हो रही थीं।
एक अनजाना सा डर उसे घेर रहा था। “क्या होगा अगर श्याम वहां ना मिला? क्या होगा अगर गांव वालों ने उसे पहचानने से इंकार कर दिया? क्या होगा अगर श्याम ने उसे देखकर मुंह फेर लिया?” इन सवालों का बोझ उसके कंधों पर भारी हो रहा था।
बिसरक में वापसी
बिसरक नाम का छोटा सा फीका पड़ा बोर्ड दिखाई दिया। ट्रेन रुकी। रोहन एक गहरी सांस लेकर नीचे उतरा। प्लेटफार्म वही था, लेकिन अब पहले से ज्यादा वीरान और टूटा फूटा लग रहा था। उसने एक ऑटो वाले को रोका और कहा, “गांव के अंदर चलोगे? मुनीम जी का घर जानते हो?”
ऑटो वाले ने हैरानी से उसे देखा। “कौन मुनीम जी? यहां तो कई सालों से कोई मुनीम नहीं रहता। उनका घर तो कब का बिक गया। अब वहां लाला धनीराम की कोठी बन गई है।” यह रोहन के लिए पहला झटका था।
श्याम का हाल
“और राम भरोसे काका का घर? उनका बेटा श्याम?” रोहन ने हिचकिचाते हुए पूछा। ऑटो वाले के चेहरे पर एक उदासी छा गई। “राम भरोसे काका, भगवान उनकी आत्मा को शांति दे। बेचारे बहुत भले आदमी थे।”
“रहे श्याम की बात तो बाबूजी, वो कहानी तो बड़ी दर्द भरी है।” रोहन का दिल डूबने लगा। ऑटो वाला उसे गांव के सरपंच के पास ले गया, जिसने पूरी कहानी बताई। रोहन के जाने के बाद श्याम के परिवार पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा था।
श्याम की मेहनत
“जमीन बिक जाने के बाद राम भरोसे काका एक लंबी बीमारी के बाद चल बसे। सारी जिम्मेदारी अकेले श्याम के कंधों पर आ गई।” सरपंच ने कहा। “उस लड़के ने बहुत मेहनत की। वो दिन रात मजदूरी करता। कभी किसी के सामने हाथ नहीं फैलाया। स्वाभिमानी बहुत है। उसने अपनी बहन की शादी की। मां का ख्याल रखा।”
“कुछ साल पहले गांव में भयंकर सूखा पड़ा। जब बच्चों के भूखे मरने की नौबत आ गई, तो उसे भी गांव छोड़ना पड़ा। अब वो पास के शहर रामपुर में रेलवे लाइन के पास एक मजदूरों की बस्ती में रहता है और मंडी में पल्लेदारी का काम करता है।”
आंसुओं की बारिश
सरपंच की हर बात रोहन के सीने में किसी खंजर की तरह उतर रही थी। उसका दोस्त जिसने उसे शहर भेजने के लिए अपने खेत बेच दिए थे, आज वह खुद एक झोपड़ी में रहने को मजबूर था। रोहन की आंखें आंसुओं से भर गईं।
रोहन रामपुर की उस गंदी और उपेक्षित बस्ती में पहुंचा। उसने लोगों से श्याम का पता पूछा और एक टूटी फूटी झोपड़ी के पास रुका। वह झोपड़ी उसे घर कहना भी घर शब्द का अपमान था—फटे हुए त्रपाल, पुरानी बोरियों और टूटी फूटी लकड़ियों से बनी एक अस्थाई संरचना। दरवाजे की जगह एक फटा हुआ पर्दा लटका था।
रोहन वहीं जम गया। उसे लगा जैसे यह झोपड़ी नहीं बल्कि उसके जमीर का आईना है जो उसे उसकी असली औकात दिखा रहा है। उसने फैसला किया कि वो यहीं इंतजार करेगा। वो पास में एक टूटी हुई चबूतरी पर बैठ गया।
दोस्त की वापसी
शाम को, एक थकी हुई परछाई गली में मुड़ी। श्याम ने उसे देखते ही आवाजें दी। “श्याम!” आवाज सुनते ही श्याम के कदम वहीं रुक गए। उसने पलट कर देखा। 25 साल का फासला एक पल में सिमट गया। रोहन बिना कुछ कहे श्याम को अपनी बाहों में भर लिया।
रोहन की सिसकियां बंध गई थीं। वो बस इतना ही कह पा रहा था, “मुझे माफ कर दे। श्याम, मुझे माफ कर दे।” श्याम ने कुछ नहीं कहा। उसने बस रोहन की पीठ को धीरे-धीरे थपथपाया। उसकी अपनी आंखों से भी आंसू बह रहे थे। लेकिन यह आंसू शिकायत के नहीं थे। यह सालों के इंतजार के खत्म होने के आंसू थे।
खाने की मिठास
उस रात उस छोटी सी झोपड़ी में रोहन ने अपनी जिंदगी का सबसे यादगार खाना खाया—बाजरे की रोटी और नमक, मिर्च की चटनी। लेकिन उस खाने में जो प्यार और अपनापन था, वो दुनिया के किसी भी फाइव स्टार होटल के खाने में नहीं था। खाते-खाते रोहन ने अपनी कहानी सुनानी चाही और माफी मांगनी चाही।
लेकिन श्याम ने उसे हर बार रोक दिया। “पुरानी बातें छोड़ रोहन। दोस्ती में कोई हिसाब-किताब नहीं होता। तू आज यहां आ गया। मेरे लिए यही बहुत है।”
नया प्रस्ताव
वहीं, अगली सुबह रोहन ने एक नया फैसला लिया। उसने श्याम से कहा, “ठीक है। मैं तुझे पैसे नहीं दूंगा। मैं तुझे एक नौकरी का प्रस्ताव दूंगा।” श्याम हंसा, “मैं अनपढ़ गंगवार। क्या नौकरी करूंगा तेरी कंपनी में?”
“मेरी कंपनी में नहीं,” रोहन ने कहा। “हमारे गांव में। मैं चाहता हूं कि हम दोनों मिलकर बिसरक में एक छोटा सा कारखाना लगाएं। मेरे पास पैसा और टेक्नोलॉजी है और तेरे पास ईमानदारी, मेहनत और गांव के लोगों की समझ है। तू उस कारखाने का मालिक होगा। मैं तेरा पार्टनर।”
एक नई शुरुआत
श्याम अक होकर रोहन को देखता रहा। यह एक भीख नहीं थी। यह एक हक था। यह एक सम्मान था। रोहन उसे दौलत नहीं बल्कि उसकी खोई हुई इज्जत और स्वाभिमान लौटा रहा था। श्याम की आंखों में आंसू आ गए। उसने उठकर रोहन को गले लगा लिया। “इससे बड़ी बात मेरे लिए और क्या हो सकती है मेरे भाई?”
कुछ महीनों बाद बिसरक की तस्वीर बदलने लगी थी। जहां कभी श्याम के खेत थे, आज वहां एक छोटा कारखाना खड़ा था। श्याम अब एक पल्लेदार नहीं, श्याम जी था, जो सैकड़ों लोगों को रोजगार दे रहा था।
दोस्ती की गहराई
रोहन ने अपना ज्यादातर कारोबार मुंबई से समेटकर बिसरक में ही जमा लिया था। वो अक्सर कहता था कि शहर की भीड़ में उसकी आत्मा खो गई थी, जो उसे अपने गांव की मिट्टी में वापस मिली है।
एक दिन दोनों दोस्त उसी बरगद के पेड़ के नीचे बैठे थे, जहां सालों पहले बैठा करते थे। श्याम ने पूछा, “रोहन, अब तो तूने मेरा कर्ज चुका दिया। अब तो तेरे मन को शांति मिली?”
रोहन मुस्कुराया और कहा, “नहीं श्याम, दोस्ती का कर्ज कभी नहीं चुकता। वो तो बस एक से दूसरे के दिल में सफर करता है। मैंने तो बस अपनी जिंदगी की सबसे कीमती चीज को दोबारा हासिल किया है—तेरा साथ।”
समापन
उनकी दोस्ती वक्त की हर परीक्षा को पार करके और भी गहरी और मजबूत हो गई थी। तो दोस्तों, रोहन और श्याम की कहानी हमें सिखाती है कि सच्ची दौलत बैंक बैलेंस या आलीशान महलों में नहीं, बल्कि सच्चे रिश्तों में छुपी होती है। याद रखिए, जिंदगी में कामयाबी का मतलब सिर्फ पैसा कमाना नहीं है, बल्कि वह लोग हैं जो आपके साथ हर कदम पर खड़े हों।
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