5 साल बाद तलाकशुदा पत्नी SDM बनी पति ट्रेन में चाय पकौड़ा बेचता मिला | फिर जो हुआ
अमन साधारण परिवार से था। उसके पिता का रेलवे स्टेशन के बाहर एक छोटा-सा चाय का खोखा था। पढ़ाई-लिखाई में उसका ज़्यादा मन नहीं लगता था, लेकिन मेहनती और ज़िम्मेदार था। आंचल उसी मोहल्ले में रहती थी। पढ़ाई में तेज़, आत्मनिर्भर बनने का सपना देखने वाली लड़की। दोनों की मुलाक़ातें धीरे-धीरे दोस्ती में बदलीं और फिर शादी तक पहुँचीं।
शादी के शुरुआती दिन सपनों जैसे थे। अमन आंचल की हर इच्छा पूरी करने की कोशिश करता, आंचल भी उसकी ख़ुशियों में शामिल रहती। लेकिन समय बीतने के साथ-साथ दरारें दिखने लगीं।
अविश्वास की दरार
अमन का स्वभाव शक़ करने वाला था। जब भी आंचल फ़ोन पर ज़्यादा समय बिताती या देर रात तक पढ़ाई करती, वह ताने मारता।
“तुम्हें मुझसे ज़्यादा किताबें और मोबाइल अच्छे लगते हैं,” वह अक्सर कहता।
आंचल लाख समझाती कि वह सिर्फ़ प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रही है, लेकिन अमन का दिल मानने को तैयार नहीं था। छोटी-छोटी बातें बड़े झगड़े में बदल जातीं। घर का माहौल कड़वा होने लगा।
आंचल के लिए पढ़ाई ज़रूरी थी, वह अपने भविष्य को संवारना चाहती थी। लेकिन अमन की बंदिशें और संदेह उसे घुटन देने लगे। आख़िरकार, एक दिन उसने अपने मायके लौटने का फ़ैसला कर लिया। जाते समय उसने साफ़ कहा –
“अब मैं वापस नहीं आऊँगी।”
दो रास्ते, दो जिंदगियाँ
आंचल ने मायके में रहकर पूरी मेहनत से पढ़ाई की। कई बार असफल हुई, लेकिन हार नहीं मानी। सालों की मेहनत रंग लाई और वह एसडीएम (उप ज़िलाधिकारी) बन गई। यह उसके परिवार और गाँव के लिए गर्व की बात थी।
दूसरी ओर, आंचल के जाने के बाद अमन टूट गया। उसने पिता की चाय की दुकान छोड़ दी और दिन-रात उदासी में डूबा रहा। धीरे-धीरे घर की हालत बिगड़ने लगी। पिता की मौत ने उसे और झकझोर दिया। बूढ़ी माँ के सहारे के लिए उसने फिर से चाय और पकौड़े बेचने शुरू किए। लेकिन अब वह रेलवे स्टेशन और ट्रेनों में घूम-घूमकर सामान बेचने लगा।
तक़दीर का मोड़
पाँच साल बाद, एक सर्द सुबह, अमन अपनी बाल्टी और केतली लेकर कानपुर जाने वाली ट्रेन में चढ़ा। वह कोच-कोच घूमकर आवाज़ लगा रहा था –
“चाय, पकौड़े! गरमा-गरम चाय, गरमा-गरम पकौड़े!”
उसी कोच में आंचल भी बैठी थी। परदा ओढ़े, किताब पकड़े, वह अपने पुराने पति को पहचान चुकी थी। अमन को देख उसका दिल धक से रह गया।
कुछ देर उसने चुपचाप उसे देखा – वही चेहरा, वही चाल, बस अब थकान और संघर्ष की रेखाएँ गहरी हो गई थीं।
जब अमन उसके पास पहुँचा और पकौड़े बढ़ाए, उसने हल्की आवाज़ में पूछा –
“नाम क्या है तुम्हारा?”
अमन चौंका। “क्यों पूछ रही हो? तुम्हें क्या लेना-देना?”
तभी आंचल ने धीरे-धीरे अपना चेहरा ढकने वाला परदा हटाया।
अमन की आँखें फैल गईं, उसके हाथ से केतली छूटकर ज़मीन पर गिर गई। यात्रियों की निगाहें उन दोनों पर टिक गईं।
आँसुओं का सैलाब
आंचल बोली –
“हाँ अमन, मैं आंचल हूँ। वही आंचल, जिसे तुमने शक़ और ग़लतफ़हमियों में खो दिया था। आज मैं एसडीएम हूँ। लेकिन तुम्हें इस हाल में देखकर मेरा दिल टूट गया।”
अमन रो पड़ा। उसने कहा –
“आंचल, मैं ग़लत था। पिता के जाने के बाद मैंने सब खो दिया। माँ बूढ़ी है, वही सहारा है। मैं मजबूरी में चाय बेच रहा हूँ।”
आंचल की आँखों से भी आँसू बह निकले। उसे अपने ससुर की याद आई, जिन्होंने हमेशा उसे बेटी की तरह चाहा था।
वह बोली –
“मुझे तुम्हारे घर चलना है। माँ से मिलना है।”
घर वापसी
जब आंचल अमन के साथ उसके घर पहुँची, बूढ़ी माँ ने उसे देखते ही गले से लगा लिया। पाँच सालों का इंतज़ार और दर्द आँसुओं के साथ बह निकला। माँ ने रोते हुए कहा –
“बेटी, पिछले ग़म भूल जाओ। जो हुआ, उसे किस्मत मान लो। अब मत जाओ।”
आंचल ने चुपचाप सिर झुका लिया। उसके भीतर का गुस्सा और शिकायतें उस माँ के आँसुओं के सामने पिघल गईं।
कहानी का सबक
अमन और आंचल की यह मुलाक़ात किसी चमत्कार से कम नहीं थी। ट्रेन में बैठे यात्री भी इस दृश्य को देखकर भावुक हो गए। कई लोगों की आँखों में आँसू थे।
यह कहानी हमें सिखाती है कि अविश्वास और ग़लतफ़हमियाँ किसी भी रिश्ते को बर्बाद कर सकती हैं, लेकिन अगर इंसान अपनी ग़लतियों को मान ले और समय मौका दे, तो तक़दीर भी पुराने बिछड़े रिश्तों को जोड़ सकती है।
ज़िंदगी हमेशा आसान नहीं होती, लेकिन माफ़ी और समझ रिश्तों को फिर से जीवित कर सकते हैं।
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