89 साल के Dharmendra ने कहा अलविदा, सुबह घर पर ली आखिरी सांस। लंबे वक्त से वेटिंलेटर पर थे।
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अंतिम विदाई में सबसे बड़ी नाइंसाफी: धर्मेंद्र देओल का अलविदा
मुंबई: भारतीय सिनेमा के दिग्गज अभिनेता धर्मेंद्र देओल ने 89 साल की उम्र में अपनी अंतिम सांस ली। उनके निधन से पूरा देश शोकाकुल है। धर्मेंद्र जी ने अपनी जिंदगी के अंतिम दिन वेंटिलेटर पर बिताए, और 31 अक्टूबर को तबीयत बिगड़ने के बाद उन्हें मुंबई के ब्रिज कैंडी हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था।
धर्मेंद्र जी का निधन 24 नवंबर की सुबह उनके घर पर हुआ, जहाँ उन्होंने अपनी इच्छा के अनुसार अंतिम सांस ली। उनके जाने से न केवल उनके परिवार बल्कि पूरे बॉलीवुड में मातम पसर गया।
बीमारी और संघर्ष
धर्मेंद्र जी की तबीयत लंबे समय से नासाज चल रही थी। उन्हें सांस लेने में कठिनाई हो रही थी, और उनकी स्वास्थ्य स्थिति को लेकर परिवार में चिंता बढ़ गई थी। अस्पताल में भर्ती होने के बाद, उनकी स्थिति में सुधार की उम्मीद की गई थी। परिवार ने 8 दिसंबर को उनके 90वें जन्मदिन की तैयारी भी शुरू कर दी थी। लेकिन दुर्भाग्यवश, ऐसा नहीं हो सका।
उनकी पत्नी हेमा मालिनी और बेटी ईशा देओल ने जब अंतिम संस्कार में भाग लिया, तो वहाँ एक नाइंसाफी हुई जिसने सबको चौंका दिया। जब धर्मेंद्र जी की पहली पत्नी प्रकाश कौर और उनका परिवार अंतिम संस्कार की रस्में निभा रहा था, तो हेमा और ईशा को अपमान का सामना करना पड़ा।

अंतिम संस्कार की नाइंसाफी
धर्मेंद्र जी के अंतिम संस्कार में प्रकाश कौर ने अपने पूरे परिवार के साथ भाग लिया। हेमा मालिनी और ईशा देओल ने जब वहाँ पहुंची, तो उन्हें धर्मेंद्र जी के अंतिम दर्शन से दूर रखा गया। पंडित जी ने जब अंतिम रस्में कराने के लिए पत्नी को बुलाया, तो प्रकाश कौर को आगे किया गया।
हेमा मालिनी ने यह सब देखा और उनकी आँखों में आंसू आ गए। उनका दिल टूट गया, क्योंकि उन्हें अपने पति के अंतिम समय में सम्मान के साथ शामिल नहीं होने दिया गया। यह नाइंसाफी केवल व्यक्तिगत नहीं थी, बल्कि यह एक बड़े सामाजिक ढांचे का हिस्सा थी, जहाँ एक पत्नी की पहचान उसके पति की पहचान से जुड़ी होती है।
परिवार का दर्द
ईशा देओल अपनी माँ के साथ इस अपमान को सहन नहीं कर सकीं। उनकी आँखों में आँसू थे, और उन्हें अपने पिता को अंतिम विदाई देने का हक नहीं मिला। हेमा मालिनी ने तुरंत वहाँ से निकलने का फैसला किया। वह अपनी कार की तरफ बढ़ीं, और मीडिया की निगाहों के सामने फूट-फूट कर रोने लगीं।
यह घटना न केवल धर्मेंद्र जी के परिवार के लिए बल्कि पूरे समाज के लिए एक बड़ा संदेश थी। यह दर्शाता है कि समाज में कितनी भी भेदभाव और नाइंसाफियाँ क्यों न हों, एक महिला की पहचान और उसकी गरिमा हमेशा महत्वपूर्ण होती है।
समाज की धारणाएँ
यह घटना हमें यह सिखाती है कि हमें अपने पूर्वाग्रहों को छोड़कर सच्चाई को स्वीकार करना चाहिए। हमें यह समझना चाहिए कि हर व्यक्ति की कहानी महत्वपूर्ण है, और हमें एक-दूसरे के प्रति सहानुभूति और सम्मान के साथ पेश आना चाहिए।
धर्मेंद्र जी की अंतिम विदाई ने यह साबित कर दिया कि बरसों पुराना बैर और बँटवारा, प्यार और सम्मान की भावना पर भारी पड़ गया। एक पत्नी, एक माँ, को अपने पति और पिता को अंतिम विदाई देने का हक नहीं मिला।
निष्कर्ष
धर्मेंद्र जी के निधन ने सभी को यह सोचने पर मजबूर किया कि जीवन में क्या वास्तव में महत्वपूर्ण है। क्या धन, प्रसिद्धि, और सामाजिक मान्यता हमारी पहचान को परिभाषित करते हैं, या हमारे रिश्ते, हमारे परिवार, और हमारी मानवीयता?
इस नाइंसाफी ने यह सवाल खड़ा किया कि क्या एक पत्नी को अपने पति के अंतिम संस्कार में सम्मान के साथ शामिल होने का हक नहीं है? क्या समाज ने यह तय कर लिया है कि एक पत्नी की पहचान उसके पति की पहचान से अलग नहीं हो सकती?
धर्मेंद्र जी की अंतिम विदाई में यह नाइंसाफी एक बार फिर साबित कर गई कि प्यार और सम्मान की भावना हमेशा सबसे महत्वपूर्ण होती है।
(आप इस पर क्या कहेंगे? क्या हेमा मालिनी के साथ यह नाइंसाफी सही थी? क्या उन्हें पत्नी होने के नाते अंतिम रस्में निभाने का हक मिलना चाहिए था? कमेंट के थ्रू आप हमें यह बात ज़रूर बताएँ। और ज़्यादा अपडेट्स के लिए, चैनल को सब्सक्राइब करना न भूलें।)
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