“Ami Humein Bhook Lagi Hai… Wapas Aa Jayein 😭 Yateem Bachiyon Ki Faryad
एक छोटे से गांव में, दो मासूम 5 साल की बच्चियां, फातिमा और अस्मा, अपनी मां की कब्र के सिरहाने बैठी हुई थीं। वे रोते हुए कह रही थीं, “अम्मा वापस आ जाओ। हमें भूख लगी है। चाची हमें मारती है। हम आपको याद करते हैं।” यह दृश्य दिल दहला देने वाला था। दिन का वक्त था, सूरज अपनी पूरी रोशनी के साथ चमक रहा था, लेकिन इन नन्हीं बच्चियों के चेहरे पर थकान और बेबसी की लकीरें साफ नजर आ रही थीं।
भाग 2: चाची की कठोरता
फातिमा और अस्मा ने कुएं से पानी की बाल्टियां भरकर घर लाने की कोशिश की। जब वे घर के आंगन में आईं, तो चाची की चीख गूंजी, “अंदर आने का किसने कहा था? जाओ, पहले काम खत्म करो!” दोनों बच्चियों ने शर्म और थकान के साथ जवाब दिया, “चाची, हम काम कर लिया है, बस भूख लगी है।” चाची का गुस्सा और बढ़ गया। “भूख तो तुम लोगों को हर वक्त लगती है। जाओ, पहले कपड़े धो, फिर खाना मिलेगा।”
भाग 3: मां की याद
फातिमा और अस्मा ने अपने छोटे-छोटे हाथों से कपड़े धोने शुरू कर दिए। उनकी जिंदगी एक सख्त इम्तिहान थी, जहां हर लम्हा जद्दोजहद और सब्र की डगर पर गुजरता था। एक महीना पहले ही उनके वालिदैन का इंतकाल हो गया था। मां के जाने के बाद जिंदगी उनके लिए बेरहम हो गई थी। वे अपनी चाची के रहमोकरम पर निर्भर हो गई थीं, जो निहायत ही सख्त और क्रूर औरत थी।
भाग 4: कब्र पर जाने का फैसला
एक दिन, कुएं पर पहुंचकर आसमा ने कहा, “फातिमा, अम्मा की बहुत याद आ रही है और बहुत भूख भी लगी है। चलो, अम्मा की कब्र पर चलते हैं।” फातिमा ने कहा, “अगर लेट हो गए तो चाची से डांट पड़ेगी।” लेकिन आसमा की जिद के आगे फातिमा को हार माननी पड़ी और दोनों कब्रिस्तान की तरफ चल पड़ीं।
भाग 5: सूखी रोटियां
रास्ते में उन्हें जमीन पर दो सूखी रोटियां मिलीं। उन्होंने झुककर उन्हें उठा लिया, क्योंकि रिजका की कदर उन्हें थी। रोटियां हाथ में लिए वे कब्रिस्तान पहुंचीं। मां की कब्र के पास आते ही उनकी आंखों से बेख्तियार आंसू बहने लगे। दोनों रोते हुए कहने लगीं, “अम्मा, वापस आ जाइए। देखें, आपकी बेटियां आपको याद करती हैं। हमें बहुत भूख लगी है। चाची हमें बहुत मारती है।”
भाग 6: चाची की बेरुखी
फिर वे उठीं और कुएं से पानी भरकर घर वापस आ गईं। चाची ने पूछा, “अभी तक क्या कर रही थी तुम दोनों?” फातिमा ने कहा, “चाची, वो कुएं पर और भी गांव की औरतें थीं, इसीलिए पानी भरने में लेट हो गए।” चाची ने बचा-कुचा खाना उनके सामने रख दिया। दोनों बहनों ने सब्र और शुक्र के साथ किचन में बैठकर खाना खाया।
भाग 7: अस्मा की तबीयत
एक रोज, अस्मा की तबीयत बेहद खराब थी। रात भर उसे खांसी और बुखार रहा। फातिमा उसके सिरहाने बैठी रही। सुबह फातिमा ने चाची से कहा, “चाची, अस्मा की तबीयत बहुत खराब है। बुखार है और खांसी भी है। उसे डॉक्टर के पास ले चलें।” चाची ने गुस्से से कहा, “तुम्हारे पास पैसे हैं कि डॉक्टर के पास जाना है? कुछ नहीं होता तुम जैसी मनहूसों को। चल जाओ और अपना काम करो, खुद ही ठीक हो जाएगी।”
भाग 8: अस्मा की मौत
दुखी दिल के साथ फातिमा वहां से पलट गई और आंगन में बर्तन धोने लगी। मगर उसका ज़हन बार-बार अस्मा की तरफ जा रहा था। जैसे ही फातिमा अंदर गई, उसे देखकर दिल दहल गया। अस्मा चारपाई पर बेहोश पड़ी थी, आंखें बंद और जिस्म ठंडा पड़ चुका था। फातिमा ने अस्मा को हिलाया और चीखें मारी, “अस्मा, उठो! क्या हुआ है तुम्हें?” चाची भी वहां आ गईं। जब नब्ज़ चेक की गई, तो मालूम हुआ कि अस्मा इस दुनिया से हमेशा के लिए रुखसत हो गई है।
भाग 9: फातिमा का अकेलापन
फातिमा रो-रो कर बेहाल हो गई। अपनी बहन को खो देने का गम उसके लिए नाकाबिल-ए-बर्दाश्त था। पहले मां और अब बहन भी इस बेरहम दुनिया में वह अकेली रह गई थी। वक्त गुजरता गया, और फातिमा जवान हो गई। उसकी खूबसूरती उसकी मां की तरह बेमिसाल थी। चाची और उसकी बेटी नजमा हमेशा फातिमा की खूबसूरती से जलती थीं।
भाग 10: शादी का प्रस्ताव
एक दिन, एक अच्छा रिश्ता आ गया। चाची ने सख्ती से फातिमा को मना किया, “मेहमानों के सामने तुम चाय नहीं लाओगी। मेरी बेटी नजमा खुद लेगी।” फातिमा ने खामोशी से सिर हिलाया। मेहमान आए, और नजमा चाय लेकर आई, मगर अचानक चाय उसके हाथ से गिर गई। “फातिमा, यह गंदगी साफ करो। मेरा हाथ जल गया।”
भाग 11: चाची का गुस्सा
फातिमा दौड़ती हुई वहां पहुंची। उसे पता था कि बुलावा सिर्फ उसी की तरफ था। चाची ने गुस्से में आकर फातिमा को जोरदार थप्पड़ मारा और चीखते हुए कहा, “हरामखोर, मना किया था ना कि मेहमानों के सामने मत आना।” फातिमा की आंखों में आंसू भर आए।
भाग 12: चाची का खौफनाक मंसूबा
कुछ दिन बाद, चाची ने एक खतरनाक मंसूबा बनाया। उसके ज़हन में खौफनाक ख्याल परवान चढ़ा। फातिमा को रास्ते से हटाना होगा ताकि नजमा का रिश्ता किसी शानदार घराने में तय हो सके। अगले रोज, चाची ने फातिमा से कहा, “जाओ, कुएं से पानी भरकर लाओ।”

भाग 13: अगवा होना
फातिमा ने खामोशी से घड़ा उठाया और कुएं की तरफ चल पड़ी। पानी भरकर जैसे ही वह वापस पलटी, अचानक किसी ने उसके मुंह पर रुमाल रख दिया। वह घबरा गई, मगर लम्हे भर में ही बेहोश हो गई।
भाग 14: जंगल में
एक रुमाल-पश आदमी फातिमा को उठाकर वहां से चला गया। फातिमा बेहोश थी, दुनिया से बेखबर। जब उसे होश आया, तो वह खुद को एक कमरे में पाई। वह कुर्सी पर बैठी थी और उसके हाथ बंधे हुए थे। उसने अपने हाथ खोलने की कोशिश की और खुशकिस्मती से वह खुल गए।
भाग 15: जंगल में भागना
फातिमा ने बाहर कदम रखा। वह जंगल में थी। अचानक उसकी नजर एक आदमी पर पड़ी जो खाना खा रहा था। वह आदमी फातिमा की तरफ लपका, लेकिन फातिमा जंगल में दौड़ लगाकर भाग गई।
भाग 16: अस्पताल में
अगले ही लम्हे, वह किसी से जोरदार टकराई। जब दोबारा होश आया, तो वह अस्पताल के बेड पर पाई। वहां एक नौजवान आया, वही नौजवान जिससे फातिमा आखिरी बार जंगल में टकराई थी।
भाग 17: नौजवान का सहारा
नौजवान ने नरमी से कहा, “आप घबराइए नहीं, आप सेफ हैं। वो आदमी शायद आपको अगवा कर रहा था। मैंने उसे आपसे बचा लिया।” फातिमा की आंखों से आंसू बहने लगे।
भाग 18: नया जीवन
नौजवान ने कहा, “आप मेरे साथ मेरे घर चलें। मैं वहां अकेला रहता हूं।” फातिमा ने शुक्र भरी निगाहों से उसकी तरफ देखा। दूसरी तरफ, चाची की बेटी नजमा के लिए रिश्ता आया जिसे उन्होंने हां कर दिया।
भाग 19: फातिमा की नई जिंदगी
फातिमा ने नौजवान के साथ रहने का फैसला किया। वह नौजवान बहुत अच्छा था और फातिमा को खुशी से जीने का मौका मिला।
भाग 20: चाची का पछतावा
चाची ने गांव वालों से कहा कि फातिमा अपने किसी आशिक के साथ भाग गई है। लेकिन चाची की बेटी नजमा को तलाक हो गया। नजमा की मां पछताती रही, “यह मैंने क्या कर दिया?”
भाग 21: नजमा की बीमारी
एक रोज, नजमा की तबीयत अचानक बेहद खराब हो गई। तेज बुखार ने उसका चेहरा लाल कर दिया। मगर उसी बुखार ने उसकी जान ले ली। नजमा की मां चीख-चीख कर रोने लगी।
भाग 22: फातिमा का सफल जीवन
फातिमा अब अपने नए जीवन में खुश थी। अल्लाह ने उसे एक बेटे से नवाजा था। वह अपने शौहर शहरोज के साथ एक खुशहाल जिंदगी गुजारने लगी।
भाग 23: चाची की माफी
एक दिन, फातिमा अपनी चाची से मिलने गई। चाची लाचारी से चारपाई पर पड़ी हुई थी। फातिमा ने कहा, “चाची, मैं आपको दिल से माफ करती हूं।” उसी लम्हे चाची ने अपनी जान दे दी।
भाग 24: इंसाफ का दिन
फातिमा को उनके जाने का दुख था, लेकिन वह मुतमिन थी कि अल्लाह ने इंसाफ किया।
अंत
फातिमा ने अपनी मेहनत और संघर्ष के बाद एक नई जिंदगी पाई। उसकी कहानी हमें यह सिखाती है कि कठिनाइयों के बावजूद हमें कभी हार नहीं माननी चाहिए। अगर आपको यह कहानी अच्छी लगी हो, तो कृपया चैनल को सब्सक्राइब करें और कमेंट में बताएं कि कहानी कैसी लगी।
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