“Bete aur Bahu ne Maa par Kiya Zulm — Un par Aaya Allah ka Aazaab”Allah Ka dardnak Azaab
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“Bete aur Bahu ne Maa par Kiya Zulm — Un par Aaya Allah ka Azaab”
भूमिका
सुबह 4:00 बजे उठती थी खदीजा। अंधेरे में ही चूल्हा जलाती, हाथ कांपते थे। पर रईस के नाम की दो सूखी रोटियां कभी कम नहीं पड़ती थीं। जहां भी काम मिल जाता, किसी ने ₹50 पकड़ा दिए, किसी ने 100, कभी किसी के घर बचे हुए सब्जी के दो चम्मच मिल जाते, कभी दिन में आटे की मुट्ठी। खदीजा कभी मोलतोल नहीं करती थी। लेकिन रईस की बीवी उसे अपने घर में रहने नहीं देती थी। गालियां देती, बुढ़िया मर क्यों नहीं जाती? बात-बात पर जलील करती, रसोई से निकाल देती, कभी झाड़ू से मार देती, कभी कपड़े फेंक देती बाहर।
खदीजा का दिल पत्थर नहीं था, पर उसने अपना दर्द चूल्हे की आग में रोज जला दिया था। वो बस इतना कहती, “रब्बा, मेरे बच्चे को खुश रखना।” और फिर वो दिन आया जब अल्लाह की पकड़ उतरी। जिस बहू ने खदीजा को घर से निकाला था, इस कहानी में हर आंसू एक सच्चाई बयां करता है। यह कहानी सिर्फ सुनने के लिए नहीं है। इसे महसूस करना होगा। तो आइए इस सन्नाटे में छुपी सिसकियों को सुनिए।
गांव का दृश्य
गांव का नाम था सुल्तानपुर। चारों तरफ सरसों के पीले-पीले खेत, बीच में एक टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडी और उस पगडंडी के आखिरी छोर पर एक कच्चा सा घर था। दीवारें मिट्टी की थीं जिनमें बारिश ने सालों साल दरारें डाल दी थीं। छत पर खपरैल के टूटे-फूटे टुकड़े थे जिनके बीच से रात को तारे झांकते थे। हवा चलती तो दीवारें कांपती जैसे बूढ़ी हो चुकी हों और अब ज्यादा दिन ना ठहर सकें।
घर के बाहर एक नीम का पेड़ था जिसकी छांव में गर्मियों में गांव के बच्चे खेलते थे। लेकिन घर के अंदर सिर्फ दो लोग रहते थे। खदीजा और उसका बेटा रईस। खदीजा की उम्र 50 के करीब थी, लेकिन उसके चेहरे पर झुर्रियां उससे कहीं ज्यादा गहरी थीं। सूरज ने उसके रंग को भूरा कर दिया था। हाथों की हथेलियां पत्थर की तरह सख्त। फिर भी उसकी आंखों में एक ऐसी चमक थी जो रात के अंधेरे में भी टिमटिमाती रहती थी। गांव वाले कहते थे, “खदीजा के घर में बिजली नहीं पर रोशनी बहुत है।” वो रोशनी थी उसका बेटा रईस। उसकी आंखों का नूर, उसके दिल का सुकून, उसकी जिंदगी की आखिरी दौलत।
खदीजा का संघर्ष
खदीजा के शौहर गुजरे 10 साल हो चुके थे। एक सर्दी की रात में बुखार ने उन्हें उठा लिया था। उस रात खदीजा ने सारी रात अपने शौहर का सिर गोद में रखा था। माथे पर गीला कपड़ा रखती रही थी और जब सुबह हुई तो सिर्फ लाश बची थी। उस दिन के बाद से खदीजा ने कभी रंगीन कपड़े नहीं पहने। बस एक सादी सफेद साड़ी जिसमें सालों से पैबंद पर पैबंद लगते चले गए।
उसके बाद उसने अपने बेटे को कंधे पर उठाया और जीना शुरू किया। सुबह 4:00 बजे उठती थी खदीजा। अंधेरे में ही चूल्हा जलाती। दो सूखी रोटियां बनाती। एक अपने लिए, एक रईस के लिए। फिर टिफिन में वही रोटी और प्याज डालकर रईस के हाथ में थमा देती। रईस उस वक्त 10 साल का था। स्कूल की यूनिफार्म फटी हुई। लेकिन खदीजा हर रात उसे धोकर सिलकर तैयार रखती।
रईस की शिक्षा
रईस जब घर से निकलता तो खदीजा दरवाजे पर खड़ी होकर देखती रहती। जब तक वह पगडंडी के मोड़ से गायब नहीं हो जाता। फिर वह खुद अपने झजर झोले में पुराना झाड़ू और पोछा डालकर निकल पड़ती। आज किसके घर जाना है? किसके यहां बर्तन मांझने हैं? गांव में 10-12 घर ऐसे थे जहां खदीजा काम करती थी। कोई ₹50 देता, कोई 100। कभी-कभी कोई बची हुई सब्जी या आटा दे देता। खदीजा कभी मोलतोल नहीं करती थी। बस सिर झुका कर ले लेती और लौटते वक्त रास्ते में दुआ मांगती।
खदीजा की मेहनत
या अल्लाह, मेरे रईस को इतना देना कि उसे कभी किसी के सामने हाथ ना फैलाना पड़े। दोपहर को जब सूरज सिर पर होता, खदीजा लौटती। रास्ते में कुएं पर पानी भरती। मटका सिर पर रखकर चलती तो पीठ में दर्द होता पर वह कभी शिकायत नहीं करती। घर पहुंचकर सबसे पहले रईस के स्कूल बैग को देखती। किताबें सही हैं या नहीं? कॉपी में क्या लिखा है?
रईस जब लौटता तो खदीजा उसके लिए गुड़ की चाय बनाती। गुड़ भी हमेशा नहीं होता था। कई बार सिर्फ गर्म पानी में नमक डालकर दे देती और कहती, “पी ले बेटा, पेट को आराम मिलेगा।” रात को खाना बनाते वक्त खदीजा गाती भी थी। पुरानी लोरी जो उसकी अपनी मां ने उसे सिखाई थी। आवाज में मिठास थी पर उदासी भी छुपी रहती थी।
सफलता और कठिनाई
रईस खाना खाकर सो जाता और खदीजा बर्तन मांझती। कपड़े धोती फिर लालटेन की मध्यम रोशनी में रईस की किताबें देखती। कई बार नींद से लड़ते-लड़ते उसकी आंखें बंद हो जातीं। सिर किताब पर ही गिर जाता। सुबह फिर वही सिलसिला। गांव के लोग खदीजा से प्यार भी करते थे और तरस भी खाते थे। कोई कहता, “खदीजा, तू इतना मत मेहनत कर। रईस बड़ा हो जाएगा, तेरी जिंदगी संवर जाएगी।”
खदीजा मुस्कुरा कर कहती, “मेरी जिंदगी तो मेरा रईस है। जब तक वह पढ़ नहीं लेता, मेरी सांसे नहीं रुकनी चाहिए।”
रईस की सफलता
रईस धीरे-धीरे बड़ा होने लगा। उसकी आंखों में एक चमक थी जो खदीजा ने सालों की मेहनत से डाली थी। दसवीं में उसने पूरे तहसील में टॉप किया। जब रिजल्ट आया तो गांव में ढोल बजे। खदीजा ने किसी को कुछ नहीं कहा। बस मस्जिद में जाकर सजदा किया और रोई। उस रात उसने रईस को गले लगाया और कहा, “बेटा, आज मेरी सारी मेहनत रंग लाई।”
रईस ने 12वीं भी अच्छे नंबरों से पास की। अब कॉलेज का नंबर था। गांव से दूर शहर में खदीजा के पास पैसे नहीं थे। उसने अपना आखिरी सोने का कंगन बेच दिया जो उसके शौहर ने शादी में दिया था। कंगन बिका ₹15,000 में। खदीजा ने सारे पैसे रईस के हाथ पर रख दिए और कहा, “जा बेटा, पढ़ाई कर। मां को कुछ नहीं चाहिए। बस तू बड़ा आदमी बन जा।”
रईस का कॉलेज जीवन
रईस शहर गया। हॉस्टल में रहा। खदीजा हर हफ्ते उसे चिट्ठी लिखती। चिट्ठी में लिखती, “बेटा, यहां सब ठीक है। तू पढ़ाई पर ध्यान दे। खाना ठीक से खाया कर। मां दुआ करती है।” रईस जवाब में लिखता, “अम्मी, मैं बहुत मेहनत कर रहा हूं। जल्दी ही आपको यहां ले आऊंगा।”
साल बीते। रईस ने इंजीनियरिंग की। कैंपस प्लेसमेंट में अच्छी कंपनी में नौकरी लगी। जब उसे अपॉइंटमेंट लेटर मिला तो उसने सबसे पहले खदीजा को फोन किया। खदीजा फोन पर कुछ बोल नहीं पाई। बस रोती रही। उस रात उसने रईस के लिए नई-नई चीजें बनाईं। सेवियाओं, बिरयानी, शीर खुरमा।
रईस खाता कम फोन पर ज्यादा लगा रहता। खदीजा चुपचाप देखती और सोचती, “मेरा रईस भी ऐसा ही था। उछलता-कूदता मेरे आंचल में छुप जाता था।”
रईस की शादी
रात को जब सब सो जाते, खदीजा चुपके से बाहर निकलती। आंगन में बैठकर तारों को देखती और फुसफुसाती। “या अल्लाह, मेरे बेटे को हिदायत दे। उसे समझ दे। खदीजा अपने छोटे से बक्से में दो साड़ियां, एक पुराना स्वेटर, रईस की बचपन की एक फटी हुई कमीज जो वह कभी फेंक नहीं पाई थी और कुरान शरीफ लेकर अपनी बड़ी बहन सलीमा के घर पहुंची।
सलीमा का घर गांव से 10 कोस दूर था। वहां भी मिट्टी का घर था। पर छत पक्की थी। सलीमा ने दरवाजा खोला तो खदीजा को देखकर उसकी आंखें भर आईं। खदीजा, तू यहां? रईस ने कुछ कहा। खदीजा ने बस सिर हिलाया और अंदर चली गई। उसने झूठ बोला। नहीं बहन, बस कुछ दिन की बात है।
खदीजा का दर्द
नाजिया नई-नई है। उसे एडजस्ट करने में टाइम लगेगा। रईस ने चुप रहा। उसका चेहरा बादल हो गया। उसने सिर्फ इतना कहा, “अम्मी, मैं नाजिया से शादी करूंगा। वो मेरे लायक है।” खदीजा ने सिर झुका लिया। उस रात वो सो नहीं पाई। चांदनी में बाहर बैठी रही। नीम के पेड़ के नीचे जमीन पर बैठकर रोई।
रोते-रोते उसने अल्लाह से बस यही दुआ मांगी। मेरे बेटे को खुश रख। उसे सही रास्ता दिखा दे। शादी की तारीख तय हो गई। नाजिया के घर वाले बड़े धूमधाम से शादी करना चाहते थे। रईस ने खदीजा को फोन किया।
“अम्मी, आप तैयार रहिए। मैं आपको लेने आऊंगा।” खदीजा ने अपनी पुरानी सफेद साड़ी धोई स्त्री की और एक छोटा सा बक्सा तैयार किया। उसमें दो जोड़ी कपड़े, रईस की बचपन की तस्वीरें और एक कुरान शरीफ। शादी का दिन आया। नाजिया के घर में लाइटों की झालरें, फूलों की मालाएं, डीजे, डांस।
खदीजा जब वहां पहुंची तो उसे लगा जैसे वह किसी दूसरे संसार में आ गई हो। लोग उसे देखकर फुसफुसाने लगे। यह कौन है? कोई रिश्तेदार? नाजिया की मां ने ऊपर से नीचे तक देखा और मुस्कुरा कर टाल दिया। खदीजा चुपचाप एक कोने में बैठ गई। निकाह के वक्त वो आगे आई। रईस के बगल में खड़ी हुई। जब मौलवी साहब ने पूछा, “खदीजा बिंत अब्दुल रहमान, क्या आप अपने बेटे की निकाह की इजाजत देती हैं?” तो खदीजा की आवाज कांप गई।
अल्लाह का आशीर्वाद
उसने कहा, “हां, मैं रजा देती हूं।” कहते वक्त उसकी आंखों से आंसू गिर रहे थे। एक दिन नाजिया ने साफ कह दिया, “तुम्हारी मां को गांव भेज दो। यहां वो बोर हो जाएंगी।” रईस ने खदीजा से कहा, “अम्मी, आप कुछ दिन सलीमा खाला के यहां चली जाइए। जैसे ही सब सेटल हो जाएगा, मैं आपको परमानेंट ले आऊंगा।”
खदीजा ने सिर हिलाया। उस रात उसने अपने बिस्तर के नीचे हाथ डालकर रईस की बचपन की फटी कमीज को निकालती। उसे सीने से लगाकर रोती और दुआ मांगती। “या अल्लाह, मेरे बेटे को हिदायत दे। वो भटक गया है। उसे मेरी कदर समझा दे।”
अचानक हुआ हादसा
रईस की शादी के बाद सब कुछ ठीक चल रहा था। लेकिन एक दिन रईस का फोन आया। “अम्मी, मुझे तुमसे कुछ कहना है। मैं नाजिया से अलग होना चाहता हूं।”
खदीजा का दिल एक पल के लिए ठहर गया। “बेटा, क्यों?”
“अम्मी, नाजिया अब मुझसे प्यार नहीं करती। वह सिर्फ पैसे के लिए मेरे पास है।”
खदीजा ने कहा, “बेटा, हर शादी में उतार-चढ़ाव आते हैं। धैर्य रखो।”
लेकिन रईस ने कहा, “नहीं अम्मी, मैं अब और नहीं सह सकता। मैं तुम्हारे पास आ रहा हूं।”
खदीजा ने कहा, “बेटा, मुझे छोड़कर मत जाना।”
खदीजा का संघर्ष
खदीजा ने रईस को समझाने की कोशिश की लेकिन वह नहीं माना। उसने कहा, “मैं तुम्हारी दुआ करता हूं। तुम हमेशा मेरे दिल में रहोगी।”
उस रात खदीजा ने फिर से अल्लाह से दुआ की। “या अल्लाह, मेरे बेटे को खुश रखना। उसे सही रास्ता दिखा दे।”
कुछ दिन बाद रईस का फोन आया। “अम्मी, मुझे एक और मौका देना। मैं नाजिया को समझाने की कोशिश करूंगा।”
खदीजा ने कहा, “बेटा, मैं तुम्हारे साथ हूं। तुम जो भी फैसला लोगे, मैं तुम्हारे साथ रहूंगी।”

अंतिम फैसला
दिन बीतते गए। रईस ने नाजिया को समझाने की कोशिश की लेकिन वह नहीं मानी। एक दिन उसने कहा, “तुम्हारी मां अब मेरी जिंदगी में नहीं है। मैं तुम्हारी मां को गांव भेज दूंगी।”
खदीजा ने कहा, “बेटा, मैं तुम्हारे साथ हूं। तुम जो भी फैसला लोगे, मैं तुम्हारे साथ रहूंगी।”
सच्चाई का सामना
कुछ महीनों बाद रईस ने अपनी मां को फोन किया। “अम्मी, मुझे तुमसे कुछ कहना है। मैं नाजिया से अलग होना चाहता हूं।”
खदीजा का दिल एक पल के लिए ठहर गया। “बेटा, क्यों?”
“अम्मी, नाजिया अब मुझसे प्यार नहीं करती। वह सिर्फ पैसे के लिए मेरे पास है।”
खदीजा ने कहा, “बेटा, हर शादी में उतार-चढ़ाव आते हैं। धैर्य रखो।”
लेकिन रईस ने कहा, “नहीं अम्मी, मैं अब और नहीं सह सकता। मैं तुम्हारे पास आ रहा हूं।”
खदीजा ने कहा, “बेटा, मुझे छोड़कर मत जाना।”
खदीजा का साहस
खदीजा ने रईस को समझाने की कोशिश की लेकिन वह नहीं माना। उसने कहा, “मैं तुम्हारी दुआ करता हूं। तुम हमेशा मेरे दिल में रहोगी।”
उस रात खदीजा ने फिर से अल्लाह से दुआ की। “या अल्लाह, मेरे बेटे को खुश रखना। उसे सही रास्ता दिखा दे।”
कुछ दिन बाद रईस का फोन आया। “अम्मी, मुझे एक और मौका देना। मैं नाजिया को समझाने की कोशिश करूंगा।”
खदीजा ने कहा, “बेटा, मैं तुम्हारे साथ हूं। तुम जो भी फैसला लोगे, मैं तुम्हारे साथ रहूंगी।”
समापन
इस कहानी ने हमें यह सिखाया है कि सच्चा परिवार खून के रिश्ते से नहीं बल्कि देखभाल, निस्वार्थ प्रेम और मजबूत इरादों से बनता है। खदीजा ने अपने बेटे को हमेशा प्यार दिया और उसकी खुशियों की दुआ की।
यह कहानी हमें याद दिलाती है कि समाज में कई बच्चे हैं जो गरीबी और बेघर होने की सजा भुगत रहे हैं। खदीजा ने दिखाया कि करुणा ही न्याय का सबसे बड़ा रूप है।
दोस्तों, आपको यह कहानी कैसी लगी? अपनी राय हमें कमेंट में जरूर बताइए। अगर कहानी अच्छी लगी हो तो वीडियो को लाइक कीजिए और अपने दोस्तों के साथ शेयर करना ना भूलिए।
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