CEO सिस्टम बंद होने पर हो जाते हैं पैनिक — तब सफाईकर्मी की बेटी सिस्टम ठीक करके सभी को चौंका देती है
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सफाईकर्मी की बेटी: प्रतिभा की असली पहचान
मुंबई की सबसे बड़ी टेक कंपनी “सिस्टम्स एंड लिमिटेड” का 27वां फ्लोर रोज की तरह व्यस्त था। सीईओ राजवीर सिंह अपनी टीम के साथ जापानी निवेशकों के साथ 500 करोड़ की डील के लिए तैयार थे। कंपनी की सैकड़ों नौकरियां, अरबों का भविष्य सब दांव पर था। लेकिन सुबह 9:02 पर अचानक कंपनी के सभी कंप्यूटर स्क्रीन नीली हो गईं—सिस्टम क्रैश। कर्मचारियों के मोबाइल पर सिक्योरिटी ब्रिज अलर्ट आ गया। अफरातफरी मच गई, सायरन बजने लगे। हर कोई पैनिक में था।
मनोज, कंपनी का सफाईकर्मी, अपनी 16 साल की बेटी काव्या को ऑफिस दिखाने लाया था। जैसे ही सिस्टम डाउन हुआ, मनोज डर गया। “चलो बेटा, हमें यहां से निकलना होगा,” उसने कहा। लेकिन काव्या वहीं रुक गई। उसकी नजरें भागते इंजीनियरों पर थीं, जिनकी तकनीकी बातें वह अक्सर छिपकर सुनती थी। काव्या ने खुद से बुदबुदाया—”यह कोई साइबर अटैक नहीं, नेटवर्क कॉन्फ़िगरेशन की गलती है।”
तभी काव्या ने अपने पिता का हाथ छुड़ाया और सर्वर रूम की ओर दौड़ गई। वहां सीईओ, मैनेजर्स, इंजीनियर्स सभी हैरान थे कि एक सफाईकर्मी की बेटी यहां क्या कर रही है। सिक्योरिटी गार्ड्स उसे बाहर निकालने ही वाले थे कि उसने कहा, “अगर मुझे अभी सिस्टम पर काम करने नहीं देंगे, तो 5 मिनट में आपकी पूरी कंपनी का डाटा खत्म हो जाएगा।”
कमरे में सन्नाटा छा गया। सीईओ राजवीर ने पूछा, “तुम्हें कैसे पता?” काव्या ने स्क्रीन पर नजरें टिकाई और बताया कि कोड में जानबूझकर एक लाइन डाली गई है, जिससे जापानी सर्वर से कनेक्शन होते ही सिस्टम क्रैश हो जाता है। विकास मेहता, कंपनी के सबसे वरिष्ठ इंजीनियर, बोले, “अगर इस लड़की को कुछ पता है, तो सुनना चाहिए।”
राजवीर ने अनिच्छा से दो मिनट का समय दिया। काव्या कंप्यूटर के सामने बैठी, उसकी उंगलियां कांप रही थीं, लेकिन आंखों में दृढ़ता थी। उसने जल्दी-जल्दी कोड टाइप करना शुरू किया। सब लोग हैरान थे कि यह लड़की कैसे इतने जटिल कोड लिख रही है।
काव्या ने एक पुरानी फाइल देखी, जिसमें मैलेशियस कोड छिपा था। “यह टाइम बम है,” उसने बताया। किसी ने जानबूझकर कंपनी के डाटा को नष्ट करने की साजिश रची थी। राजवीर ने गुस्से में सिक्योरिटी को काव्या को बाहर निकालने का आदेश दिया, लेकिन काव्या चिल्लाई, “अगर अभी सर्वर रिबूट किया, तो जो डाटा बचा है वो भी खत्म हो जाएगा।”
राजवीर रुक गए। विकास मेहता ने भी समर्थन किया। काव्या और उसके पिता को कॉरिडोर में बैठने के लिए कहा गया। मनोज ने पूछा, “तुम्हें कैसे पता चला?” काव्या ने बताया कि वह रात में छिपकर इंजीनियरों को देखती थी, उनकी कमांड्स याद करती थी। उसकी मां ने उसे वादा कराया था कि वह कभी प्रोग्रामिंग सीखना नहीं छोड़ेगी, चाहे हालात जैसे भी हों।
तभी एक और समस्या आई—सुरक्षा प्रणाली भी फेल हो गई थी। कर्मचारी ऊपरी मंजिलों में फंसे थे। विकास मेहता ने कहा, “वह लड़की सही थी।” राजवीर ने हार मानकर काव्या को सर्वर रूम में बुलाया। “अगर तुम इसे ठीक कर सको, मैं जो भी जरूरी होगा करूंगा,” उन्होंने कहा।
काव्या ने काम शुरू किया, लेकिन उसने कहा, “मुझे पूरा एक्सेस चाहिए।” यह कंपनी के सबसे गोपनीय डाटा तक पहुंच था। राजवीर ने अंततः मास्टर पासवर्ड डालकर एक्सेस दे दिया। काव्या ने कोड लिखना शुरू किया, उसकी उंगलियां बिजली की गति से चल रही थीं। उसने पुराने सिस्टम की फाइल देखी और पाया कि तीन साल पहले हुए साइबर अटैक के समय सीईओ ने एक इमरजेंसी ब्लॉक लगाया था, जो अब सिस्टम को कमजोर कर रहा था।
राजवीर को अपनी गलती याद आई। “मुझे माफ कर दो,” वे बोले। काव्या ने अंतिम कमांड टाइप की, मां के लॉकेट को छुआ और एंटर दबा दिया। अचानक पूरी बिल्डिंग की लाइटें बंद हो गईं—ब्लैकआउट। पैनिक फैल गया। लेकिन काव्या ने हार नहीं मानी। उसने एक इमरजेंसी लैपटॉप खोजा और उस पर सिस्टम के बेस कोड को फिर से लिखना शुरू किया।
कमरे में सन्नाटा था। सबकी नजरें काव्या पर थीं। उसके पिता मनोज की आंखों में गर्व और डर था। काव्या ने पुराने सिस्टम के ट्रिगर पॉइंट का इस्तेमाल कर बैकअप से रिस्टोर करने की कोशिश की। उसकी मेहनत रंग लाई—एक-एक करके मॉनिटर जलने लगे, सर्वर्स चालू हो गए, सिस्टम पहले से भी ज्यादा स्टेबल हो गया। कर्मचारी खुशी से गले लगने लगे, जापानी निवेशकों को भरोसा दिलाया गया।
राजवीर सिंह, जो कभी किसी के सामने नहीं झुके थे, आज काव्या के सामने घुटनों पर थे। “तुमने यह सब कैसे सीखा?” उन्होंने पूछा। काव्या ने मां की तस्वीर वाला लॉकेट दिखाया और बताया, “मेरी मां कंप्यूटर सेंटर में काम करती थी, उन्होंने मुझे प्रोग्रामिंग सिखाई थी। जब तक कैंसर ने उन्हें हमसे छीन नहीं लिया।”
कमरे में मौजूद हर व्यक्ति भावुक हो गया। राजवीर ने घोषणा की, “आज से काव्या इस कंपनी की जूनियर डेवलपर होगी, उसकी पढ़ाई का पूरा खर्च कंपनी उठाएगी।” तालियों की गड़गड़ाहट गूंज उठी। मनोज ने बेटी को गले लगा लिया। विकास मेहता ने कहा, “मुझे तुम जैसी प्रतिभा के साथ काम करने में खुशी होगी।”
सुबह की पहली किरणें खिड़की से अंदर आईं। सबने महसूस किया कि वे एक असाधारण घटना के गवाह बने हैं। काव्या ने मां के लॉकेट को छुआ, “मैंने आपका वादा निभाया मां,” उसने मन ही मन सोचा।
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