“Collector Madam पानीपुरी खा रही थीं, पुलिस ने थप्पड़ मार दिया! 😱

.

.

कलेक्टर मैडम: एक आम औरत की असाधारण लड़ाई

शाम का वक्त था। शहर की गलियों में रोशनी बिखर चुकी थी। दुकानों के बाहर लटकते बल्ब जगमग कर रहे थे, ठेले वालों की आवाजें हवा में तैर रही थीं और भीड़ अपनी-अपनी भागदौड़ में लगी थी। कहीं चाट की खुशबू थी, कहीं जलेबी की मीठी महक। इसी भीड़ में एक साधारण सी महिला नजर आ रही थी—साधारण सूती साड़ी, माथे पर हल्की बिंदी, सिर पर पल्लू और आंखों पर मोटा चश्मा। पहली नजर में कोई भी कह देता कि यह कोई आम गृहिणी है, लेकिन सच्चाई कुछ और थी। यह महिला जिले की जिलाधिकारी थी, जो आज अपने असली नाम या पहचान के साथ नहीं, बल्कि आम नागरिक बनकर निकली थीं। उनका इरादा था देखना कि आम लोगों के साथ कैसा व्यवहार होता है।

भीड़ से गुजरते हुए उनकी नजर एक ठेले पर पड़ी—पानीपुरी वाला। गोलगोल कुरकुरी पूरियां, आलू, प्याज और मसाले, तीन अलग-अलग स्वाद का पानी। महिला मुस्कुराई और ठेले के पास जाकर बोली, “भैया, जरा तीखे वाली बनाना।” पानीपुरी वाला हंसते हुए बोला, “अभी बना देता हूं बहन जी। मजा आ जाएगा।” उसने पूरी बनाकर दी, महिला ने जैसे ही पहली पूरी मुंह में डाली, उनके चेहरे पर हल्की सी चमक आ गई। स्वाद वाकई कमाल का था। उन्होंने एक और का इशारा किया। कुछ देर तक वे खामोश खड़ी होकर खाते-खिलाते इस ठेले वाले को देखती रहीं। वह हर ग्राहक से मीठे लहजे में बात करता, पैसे में ज्यादा कम होने पर भी मुस्कुरा देता। यह देखकर महिला के मन में सम्मान सा जगा।

तभी माहौल अचानक बदल गया। सड़क पर मोटरसाइकिलों की गड़गड़ाहट सुनाई दी। चार पुलिस वाले वर्दी में वहां आ धमके। उनमें से एक ने ठेले की तरफ इशारा करते हुए कड़क आवाज में कहा, “अबे, तेरा ठेला यहां कैसे लगा है? कितनी बार समझाया कि सड़क घेरना मना है।” बेचारा ठेले वाला दोनों हाथ जोड़कर बोला, “साहब, मैं गरीब आदमी हूं, यही काम करके बच्चों का पेट भरता हूं।” लेकिन पुलिस वालों ने उसकी एक भी नहीं सुनी। उनमें से एक ने ठेले को लात मार दी। सारी पानीपुरी जमीन पर बिखर गई। भीड़ सहमी हुई देख रही थी, किसी में बोलने की हिम्मत नहीं थी। ठेले वाला गिड़गिड़ा रहा था, “साहब, मेरा माल बर्बाद हो गया।”

महिला का खून खोल उठा। उन्होंने कदम बढ़ाकर पुलिस वालों से कहा, “आप ऐसा कैसे कर सकते हैं? किसी गरीब की मेहनत को यूं बर्बाद कर देना कौन सा कानून है?” पुलिस वाले ठिठक कर उसकी तरफ मुड़े। एक ने ऊपर से नीचे तक उसे देखा, फिर हंसते हुए बोला, “ओहो, यहां तो नई नेता आ गई है। मैडम जी, अपने घर जाइए। यह हमारा मामला है।” महिला का चेहरा सख्त हो गया। उन्होंने गहरी सांस लेते हुए कहा, “कानून का काम सुरक्षा करना है, न कि लोगों की रोजी-रोटी छीनना। आपने गलत किया है।” यह सुनकर पुलिस वाला तिलमिला गया। गुस्से से लाल होकर उसने उनके गाल पर जोरदार थप्पड़ जड़ दिया। सन्नाटा छा गया। भीड़ की आंखें फटी रह गईं। किसी ने सोचा भी नहीं था कि एक महिला से ऐसा बर्ताव होगा।

थप्पड़ की चोट से उनका चश्मा नीचे गिर गया, गाल लाल पड़ गया, लेकिन उन्होंने खुद को संभाल लिया। पुलिस वाले गुर्राए, “बहुत कानून की बात करती है। चल थाने चल।” वे उनका हाथ पकड़कर घसीटने लगे। महिला कुछ पल सोच में पड़ गईं। यह वक्त था अपनी पहचान उजागर करने का, मगर उन्होंने चुप्पी साध ली। उनके मन में एक ही ख्याल था—अगर मैं अभी सच बता दूं तो ये लोग डरकर रुक जाएंगे, लेकिन मुझे देखना है कि एक आम औरत के साथ ये कहां तक जा सकते हैं।

उन्होंने विरोध नहीं किया। हाथों में हथकड़ी डाली गई। भीड़ के सामने उन्हें धकेलकर जीप में बैठाया गया। रास्ते भर पुलिस वाले हंसी-ठिठोली करते रहे। लगता है किसी बड़े घर से भागी हुई औरत है। थाने पहुंचते ही उन्हें लॉकअप में डाल दिया गया। अंदर पहले से कुछ महिलाएं और थीं। एक ने पास आकर पूछा, “बहन, तुझे किस बात पर पकड़ा है?” उन्होंने धीमी आवाज में कहा, “गलती बस इतनी थी कि एक गरीब का साथ दे दिया।” बाकी औरतें कड़वाहट भरी हंसी हंसने लगीं, “यहां गरीब की मदद करने की सजा यही मिलती है।”

महिला अब मन ही मन ठान चुकी थी—वे जानना चाहती थीं कि एक आम कैदी की तरह थाने में कैसा व्यवहार किया जाता है। उन्होंने खुद से वादा किया, जब तक बहुत जरूरी न हो, मैं अपनी पहचान किसी को नहीं बताऊंगी। लॉकअप की हालत किसी को भी झकझोर देने वाली थी—टपकती छत, दीवारों पर पान की पीक, पेशाब और गंदगी की बदबू, अंदर बैठी औरतों के चेहरों पर थकान और डर साफ झलक रहा था।

थोड़ी देर बाद एक इंस्पेक्टर अंदर आया। उसका चेहरा रबदार था। उसने मैडम की ओर इशारा करते हुए कहा, “वह औरत बाहर निकालो इसे।” दो सिपाही आए और उन्हें पकड़कर बाहर ले गए। इंस्पेक्टर ने हंसते हुए कहा, “तो मैडम जी, बहुत समाज सेवा का शौक है। चलो, यह बयान पर साइन कर दो कि तुमने सरकारी काम में बाधा डाली। नहीं तो रात भर सड़ोगी यहीं।” मैडम ने दृढ़ आवाज में कहा, “मैंने कोई गलती नहीं की तो मैं झूठ क्यों मानूं?” इंस्पेक्टर का चेहरा तमतमा गया। उसने मेज पर जोर से हाथ पटका और चिल्लाया, “तेरी इतनी हिम्मत! ओए सिपाही, इसे सबक सिखाओ।”

तुरंत दो सिपाही आगे बढ़े। उनमें से एक ने मैडम के बालों को जोर से पकड़कर पीछे खींचा। दर्द से आंखें भर आईं, लेकिन उन्होंने आवाज नहीं निकाली। इंस्पेक्टर गरजा, “अब करेगी साइन या और मार पड़वाऊं?” मैडम ने दांत भींचकर कहा, “अन्याय के आगे झुकना मुझे मंजूर नहीं।” सिपाही ठहाका मारकर हंसा, “बड़ी आई न्याय की देवी। यहां हमारा कानून चलता है।”

उन्होंने मैडम का हाथ पकड़कर जबरदस्ती कागज पर निशान लगवाने की कोशिश की, लेकिन मैडम ने पूरी ताकत से अपना हाथ पीछे खींच लिया और चिल्लाई, “नहीं!” इंस्पेक्टर और ज्यादा गुस्से में आ गया। उसने आदेश दिया, “ले जाओ इसे और समझाओ अच्छी तरह से।” सिपाही मैडम को धकेलते हुए एक अंधेरे कमरे में ले गए। उन्होंने उन्हें जोर से जमीन पर गिरा दिया। अब बता, मान जाएगी या और तरीके अपनाएंगे। मैडम ने माथे से पसीना पोंछा और आंखों में आंखें डालकर कहा, “तुम लोग चाहे जितनी ताकत दिखा लो, सच कभी हारता नहीं।”

लेकिन तभी बाहर से किसी के तेज कदमों की आवाज आई। दरवाजा खुला और एक वरिष्ठ अफसर अंदर आए। उनकी नजर मैडम पर पड़ी और फिर इंस्पेक्टर पर टिक गई। “यह सब क्या हो रहा है?” उन्होंने कड़क आवाज में पूछा। इंस्पेक्टर हड़बड़ाया, “सर, यह औरत बहुत बदतमीज है। सरकारी काम में बाधा डाल रही थी।” वरिष्ठ अफसर ने संदेह भरी नजर से मैडम को देखा। मैडम ने शांत स्वर में कहा, “अगर आपको कानून की थोड़ी भी समझ है तो आप जानते होंगे कि बिना सबूत के किसी महिला को यूं प्रताड़ित करना अपराध है।”

अफसर ने इंस्पेक्टर को आदेश दिया, “इसे लॉकअप में रखो लेकिन हाथ मत लगाना। कुछ घंटे बाद छोड़ देना।” मैडम को फिर से लॉकअप में डाल दिया गया। अंदर की महिलाएं हैरानी से देख रही थीं। एक ने धीरे से पूछा, “बहन, तू इतनी हिम्मत से कैसे बोल लेती है? हम तो डर जाते हैं।” मैडम ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, “सच के लिए आवाज उठाना डर से बड़ा होना चाहिए। यही फर्क लाता है।”

रात गहराती गई। सिपाही जानबूझकर उन्हें गंदा बदबूदार कंबल दे गए, खाने में बासी रोटी और पानी दिया। लेकिन मैडम के चेहरे पर शिकन तक नहीं आई। वे सब सह रही थीं क्योंकि वे जानना चाहती थीं गरीब लोग किन हालात से गुजरते हैं।

सुबह का सूरज उगते ही इंस्पेक्टर फिर लॉकअप के बाहर आया। वो हंसते हुए बोला, “आज तेरी किस्मत अच्छी है। तेरी जमानत हो गई।” मैडम ने हैरानी से पूछा, “मेरी जमानत किसने कराई?” इंस्पेक्टर ने कंधे उचका दिए, “कोई होगा, हमें क्या लेना?” जैसे ही उन्हें बाहर लाया गया, वहां एक पत्रकार खड़ा मिला। कैमरा हाथ में था और आंखों में जिज्ञासा। उसने तुरंत सवाल दागा, “मैडम, पुलिस ने आपको किस आधार पर पकड़ा? क्या आपके साथ अनुचित व्यवहार हुआ?”

भीड़ भी जुटने लगी। सबकी नजरें उस महिला पर टिक गईं, जिसने कल बाजार में पुलिस से भिड़ने की हिम्मत दिखाई थी। मैडम ने गहरी सांस ली। अब उन्हें लगने लगा कि शायद सच उजागर करने का समय करीब आ गया है। थाने के बाहर माहौल गर्म था। एक तरफ पुलिस वाले अकड़ में खड़े थे, तो दूसरी तरफ पत्रकार ने कैमरा ऑन कर दिया था।

पत्रकार ने पास आकर सीधा सवाल किया, “आप बताइए पुलिस ने किस आधार पर आपको पकड़ा? क्या यहां आपके साथ गलत व्यवहार हुआ?” कुछ पल के लिए वे चुप रहीं। भीड़ की आंखें टिक गईं। फिर हल्की मुस्कान के साथ बोलीं, “सही वक्त आने दो, तब सब जान जाएंगे कि सच क्या है।”

उनकी यह बात पुलिस वालों के लिए चुभने वाली थी। इंस्पेक्टर गुर्राया, “बहुत चालाकी दिखा रही है। ले जाओ इसे अंदर।” लेकिन पत्रकार बीच में आ गया, “नहीं साहब, यह गलत है। जनता के सामने जवाब दीजिए। आपने किस जुर्म में इसे पकड़ा?” माहौल अब पुलिस वालों के खिलाफ जाता दिख रहा था।

मैडम ने शांत स्वर में कहा, “तुम चाहो तो मुझे जितना प्रताड़ित करना है कर लो, लेकिन याद रखना सच ज्यादा देर तक दब नहीं सकता।” इंस्पेक्टर का चेहरा और लाल हो गया। उसने अपने सिपाहियों को इशारा किया, “इसे फिर से लॉकअप में डालो और इस बार अच्छी तरह संभालना।”

बाकी महिलाएं जो पहले से बंद थीं, हैरान होकर देख रही थीं। एक ने धीरे से कहा, “बहन, लगता है तू कोई बड़ी हस्ती है। वरना इतनी हिम्मत कोई नहीं करता।” मैडम मुस्कुरा दीं, “बड़ी हस्ती नहीं हूं, लेकिन हिम्मत हर किसी में होती है। फर्क सिर्फ इतना है कि कोई डर के कारण चुप रह जाता है।”

इसी बीच इंस्पेक्टर और उसके साथी नए खेल शुरू कर चुके थे। उन्होंने उन्हें खाने में बचा खुचा बासी खाना दिया, रात में सोने के लिए इतना गंदा और बदबूदार कंबल फेंक दिया। लेकिन मैडम का चेहरा अब भी संयमित था। वे सब सह रही थीं। अंदर से उनका मन बार-बार कह रहा था, यही मौका है, यही समय है। मुझे खुद महसूस करना होगा कि आम नागरिक किस हाल से गुजरते हैं।

सुबह हुई तो थाने का माहौल बदल चुका था। पत्रकार की रिपोर्ट सोशल मीडिया पर फैल चुकी थी। लोग सवाल उठाने लगे थे कि आखिर पुलिस ने इस महिला को क्यों पकड़ा? इसी दौरान थाने के बाहर अचानक कई गाड़ियां आकर रुकीं। सायरन बज उठा। वरिष्ठ अधिकारी उतरे, उनके पीछे प्रशासनिक स्टाफ था। थाने का माहौल एकदम बदल गया। वे सीधे उस कमरे की ओर बढ़े जहां मैडम को रखा गया था।

अधिकारी ने गंभीर आवाज में पूछा, “आप कौन हैं?” मैडम ने धीरे से सिर उठाया और ठंडी आवाज में कहा, “जब समय आएगा तो आपको खुद पता चल जाएगा।” यह जवाब सुनते ही वहां मौजूद हर कोई ठिठक गया। इंस्पेक्टर के माथे पर पसीना छलक आया। उसके मन में पहली बार शक की लकीरें दौड़ी। कहीं यह कोई बड़ी अफसर तो नहीं?

पत्रकार ने कैमरा उनकी ओर घुमा दिया। कुछ ही मिनटों में थाने के बाहर सायरन बजाती कई गाड़ियां आकर रुकीं। भारी सुरक्षा के बीच जिले के वरिष्ठ अधिकारी उतरे। इंस्पेक्टर अब पूरी तरह पसीने से भीग चुका था। मैडम ने धीरे-धीरे आगे बढ़कर सबके सामने कहा, “अब वक्त आ गया है सच बताने का। मैं इस जिले की जिलाधिकारी हूं।” यह सुनते ही पूरे थाने में सन्नाटा छा गया।

पत्रकार की आंखें चमक उठीं। भीड़ से आवाजें उठीं, “जिलाधिकारी मैडम पुलिस ने डीएम को ही मार दिया!” इंस्पेक्टर के पैरों में कंपन शुरू हो गया। उसका चेहरा सफेद पड़ चुका था। मैडम ने उसकी आंखों में सीधे देखा और कहा, “कल तक तुम मुझे आम औरत समझकर थप्पड़ मार रहे थे, जेल में बंद कर रहे थे। आज जब पता चला कि मैं डीएम हूं तो तुम्हें डर लग रहा है? अगर मैं डीएम ना होती तो क्या तुम मुझे ऐसे ही पीटते रहते?”

इंस्पेक्टर का सिर झुक गया। पत्रकार ने माइक आगे बढ़ाकर कहा, “दर्शकों, आपने देखा जिले की जिलाधिकारी को ही पुलिस वालों ने थाने में प्रताड़ित किया। सोचिए जब डीएम तक सुरक्षित नहीं है तो आम जनता का क्या हाल होगा?”

मैडम ने हाथ उठाकर भीड़ को शांत किया। फिर ठंडी आवाज में बोलीं, “आज मैंने अपनी आंखों से देखा कि आम आदमी के साथ कैसा व्यवहार किया जाता है। गरीबों की सुनवाई नहीं होती, महिलाओं के साथ बदसलूकी की जाती है। यह सब अब और नहीं चलेगा।” वरिष्ठ अधिकारियों ने तुरंत आदेश दिया, “सभी दोषी पुलिस वालों को निलंबित किया जाए, जांच शुरू करो।”

पत्रकार ने कैमरे में सीधा कहा, “आज का दिन ऐतिहासिक है। डीएम मैडम ने खुद भ्रष्टाचार का सामना किया। अपनी पहचान छुपाकर यह देखा कि जनता किस पीड़ा से गुजरती है और अब उन्होंने पूरे जिले को साफ संदेश दिया है—अन्याय बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।”

कुछ दिनों बाद जिले के हालात बदलने लगे। थानों में आने वाले गरीबों को अब नजरअंदाज नहीं किया जाता था। शिकायतें दर्ज होती थीं और हर अधिकारी को डर था कि कहीं फिर से डीएम मैडम अचानक आम नागरिक बनकर ना आ जाए। एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में मैडम ने कहा, “मुझे खुशी है कि अब लोग पुलिस से डरने के बजाय भरोसा करने लगे हैं। लेकिन यह भरोसा बनाए रखना हमारी जिम्मेदारी है। सत्ता और ताकत का मतलब दबाना नहीं, बल्कि सहारा देना है।”

धीरे-धीरे यह कहानी हर गली, हर मोहल्ले में गूंजने लगी। लोग कहते, “अगर अन्याय हो तो चुप मत रहो, सच का साथ दो क्योंकि एक आवाज पूरे समाज को बदल सकती है।” यही इस घटना की सबसे बड़ी सीख थी—ईमानदारी और इंसाफ से बड़ा कोई हथियार नहीं।

.

play video: