Dharmendra के आखिरी वक्त में क्या हुआ था !Deol Family के नौकर ने किया बड़ा खुलासा

.
.

धर्मेंद्र के आख़िरी वक़्त की अनसुनी दास्तान: नौकर का दावा, “हेमा जी से मिलने की ख्वाहिश अधूरी रह गई”

धर्मेंद्र के निधन को अब कुछ समय बीत चुका है, लेकिन उनसे जुड़ी नई–नई बातें आज भी सामने आ रही हैं। हाल ही में देओल परिवार से जुड़ी एक चौंकाने वाली कहानी ने सोशल मीडिया और फैंस के बीच हलचल मचा दी है। यह कहानी किसी पत्रकार, किसी सेलिब्रिटी या रिश्तेदार की नहीं, बल्कि परिवार के एक पुराने नौकर के बयान पर आधारित बताई जा रही है, जिसने पहली बार चुप्पी तोड़ते हुए धर्मेंद्र के आख़िरी दिनों और आख़िरी घंटों को लेकर कई दावे किए हैं।

ध्यान रहे कि यह सब बातें अभी तक आधिकारिक रूप से परिवार की ओर से न तो स्वीकार की गई हैं, न ही खारिज, लेकिन भावनात्मक स्तर पर ये खुलासे लोगों के दिल को ज़रूर छू रहे हैं और बहुतों को सोचने पर मजबूर कर रहे हैं।

आख़िरी दिनों की हालत: कमज़ोरी, बेचैनी और एक अधूरी ख्वाहिश

नौकर के अनुसार, धर्मेंद्र के आख़िरी दिनों में उनका स्वास्थ्य निरंतर गिर रहा था।

वे बेहद कमज़ोर हो चुके थे,
खाना–पीना लगभग बंद हो चुका था,
दो दिनों से उनकी तबीयत लगातार नाज़ुक बनी हुई थी।

इन सबके बीच, सबसे प्रमुख बात जो वह बार–बार जताते रहे, वह थी हेमा मालिनी से मिलने की ख्वाहिश

नौकर का दावा है कि धर्मेंद्र बार–बार यही कहते कि अगर संभव हो, तो वे हेमा जी से एक बार मिलना चाहते हैं। यह वही रिश्ता था, जिसकी वजह से देओल परिवार दो हिस्सों में बँट गया था—एक तरफ़ प्रकाश कौर और उनके बच्चे, दूसरी तरफ़ हेमा और उनकी बेटियाँ। लेकिन जीवन के अंतिम पड़ाव पर भी यह रिश्ता पूरी तरह जुड़ नहीं सका।

नौकर के मुताबिक़, धर्मेंद्र का मन बेचैन था। स्वास्थ्य की गिरावट के बावजूद वे उम्मीद लगाए बैठे थे कि शायद हेमा उनसे मिलने आ जाएँ। लेकिन यह इच्छा उनके साथ ही चली गई।

24 नवंबर की रात: आख़िरी सांसों तक

बताया जाता है कि 24 नवंबर की रात लगभग 3 बजे धर्मेंद्र की तबीयत अचानक बिगड़ गई।

उन्हें तेज़ सांस लेने में तकलीफ़ होने लगी,
तुरंत डॉक्टर को बुलाया गया,
बॉबी देओल ने डॉक्टर से संपर्क किया और थोड़ी ही देर में डॉक्टर घर पहुँच गए।

डॉक्टर ने स्थिति देखकर परिवार को जो बात बताई, उसने सभी को भीतर तक हिला दिया—
धर्मेंद्र के फेफड़े (lungs) लगभग 90% फेल हो चुके थे, और उन्हें बचा पाना अब बेहद मुश्किल था।

डॉक्टर ने साफ़–साफ़ कह दिया कि अगर किसी करीबी को बुलाना हो, तो अभी बुला लीजिए, क्योंकि उनकी सांसें अब धीरे–धीरे थमने की तरफ़ बढ़ रही हैं।

नौकर के अनुसार, उस समय घर में सनी, बॉबी और बाकी सदस्य तो मौजूद थे, लेकिन किसी अतिरिक्त व्यक्ति को फोन करने की पहल सीमित रही। दावा किया गया कि सनी ने सिर्फ़ बॉबी को फोन किया, और परिवार ने स्थिति को बहुत “क्लोज़्ड सर्कल” में संभालने की कोशिश की।

सुबह करीब 6 बजे धर्मेंद्र ने एक गहरी सांस ली, फिर दूसरी… और फिर हमेशा के लिए शांत हो गए। घर में सन्नाटा फैल गया, रोने की आवाजें गूँजने लगीं। सनी और बॉबी ने पिता के पार्थिव शरीर को संभाला। वही इंसान, जो पर्दे पर हमेशा मजबूत, जिंदादिल और अडिग नज़र आता था, अब अपने पीछे अधूरे रिश्तों और अधूरे सवालों का संसार छोड़ गया था।

अंतिम संस्कार को “प्राइवेट” रखने का फैसला क्यों?

इतने बड़े सुपरस्टार के लिए आमतौर पर राजकीय सम्मान, सार्वजनिक अंतिम यात्रा और खुले दर्शन की उम्मीद की जाती है। दिलीप कुमार, राजेश खन्ना, श्रीदेवी जैसे कई दिग्गजों को ऐसी ही राजकीय/सार्वजनिक विदाई मिली थी।

लेकिन धर्मेंद्र के मामले में परिवार ने उल्टा रास्ता चुना—

कोई सार्वजनिक अंतिम यात्रा नहीं,
कोई सरकारी या भव्य फिल्मी शो–डाउन नहीं,
मीडिया को दूर रखने की भरसक कोशिश।

इसके पीछे, नौकर और कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक, कई कारण बताए जा रहे हैं:

1. दो परिवारों की संवेदनशीलता

अगर सार्वजनिक अंतिम यात्रा रखी जाती, तो स्वाभाविक रूप से उसमें हेमा मालिनी, ईशा और अहाना की मौजूदगी भी ज़रूरी और “अवॉइड न की जा सकने वाली” होती।

परिवार नहीं चाहता था कि:

उस भावुक क्षण में प्रकाश कौर के सामने हेमा–ईशा–अहाना का सार्वजनिक रूप से आना–जाना हो,
मीडिया इस मौके पर “पहली पत्नी बनाम दूसरी पत्नी” की बहस छेड़े,
पुराने विवाद और निजी बातें फिर से उछाली जाएँ।

कहा जा रहा है कि सनी–बॉबी ने मां प्रकाश कौर की भावनाओं को सर्वोच्च प्राथमिकता दी और इसी वजह से अत्यधिक सीमित और निजी अंतिम संस्कार का निर्णय लिया गया।

2. मीडिया से तनावपूर्ण रिश्ते

देओल परिवार और मीडिया के बीच पहले भी कई बार तनाव की स्थिति रही है। धर्मेंद्र के अंतिम दिनों से लेकर निधन की ख़बर तक, सोशल मीडिया पर अफवाहों और झूठी रिपोर्ट्स ने परिवार को परेशान किया।

इसलिए उन्होंने तय किया कि:

एंबुलेंस पर न कोई बड़ा फोटो लगेगा,
न फूलों से सजी शोभायात्रा होगी,
न ही प्रेस को समय–समय पर सूचना दी जाएगी।

नौकर का दावा है कि एंबुलेंस में धर्मेंद्र के पार्थिव शरीर को बेहद सादगी से, बिना दिखावा किए, ले जाया गया; यह एक सोचा–समझा निर्णय था ताकि मीडिया को तमाशा बनाने का मौका न मिल सके।

फैंस की नाराज़गी और दर्द

धर्मेंद्र के घर के बाहर हमेशा की तरह फैंस मौजूद थे—कुछ लोग रोज़ की तरह बस एक झलक देख लेने की उम्मीद में, कुछ उनके बढ़ते स्वास्थ्य संकट की खबरों के कारण चिंतित।

लेकिन:

उन्हें अंतिम दर्शन का मौका नहीं मिला,
न कोई सार्वजनिक शोक– यात्रा हुई,
न खुला श्मशान–दर्शन जैसा दृश्य, जैसा कई अन्य सितारों के मामले में दिखा था।

कई फैंस ने मोमबत्तियाँ जलाईं, उनके मशहूर संवाद दोहराए, सोशल मीडिया पर अपनी नाराज़गी भी जताई कि:

“धर्मेंद्र जैसा बड़ा कलाकार इस तरह चुपचाप विदा कर दिया गया, उन्हें वह सार्वजनिक सम्मान नहीं मिला जिसके वे हकदार थे।”

कुछ ने यह भी तुलना की कि जिस तरह राजेश खन्ना, श्रीदेवी या दिलीप कुमार को व्यापक सार्वजनिक श्रद्धांजलि दी गई, वैसा मंच धर्मेंद्र को नहीं दिया गया।

क्या हेमा से दूरी जानबूझकर रखी गई?

नौकर की कहानी का सबसे भावनात्मक हिस्सा यह दावा है कि धर्मेंद्र, अंतिम दिनों में हेमा से मिलना चाहते थे लेकिन यह संभव नहीं हो पाया।

इसके साथ ही यह भी जोड़ा जा रहा है कि:

न अंतिम रात उन्हें बुलाया गया,
न अंतिम संस्कार और अस्थि–विसर्जन में हेमा–ईशा–अहाना की सक्रिय भूमिका रही,
बाद की रस्में भी दोनों परिवारों ने अलग–अलग निभाईं।

इसी संदर्भ में यह तर्क दिया जा रहा है कि:

परिवार (विशेषकर पहले परिवार) नहीं चाहता था कि अंतिम घड़ियों में “दो पत्नियों” की मौजूदगी से माहौल और जटिल हो जाए,
इसलिए सब कुछ “पहले घर” के दायरे में ही रखा गया।

हालाँकि, इस पूरे मुद्दे पर न सनी–बॉबी और न हेमा मालिनी ने सार्वजनिक रूप से कुछ भी ठोस कहा है। इसलिए इन दावों को पूरी तरह सच या झूठ ठहराना अभी संभव नहीं।

धर्मेंद्र का जीवन और जटिल रिश्ते

धर्मेंद्र की निजी ज़िंदगी हमेशा से जटिल रही।

एक तरफ़ पहली पत्नी प्रकाश कौर और चार बच्चे,
दूसरी तरफ़ हेमा मालिनी और उनकी दो बेटियाँ।

वे दोनों परिवारों से प्यार करते थे, दोनों के बीच समय भी बाँटते रहे, लेकिन “पूरा एक परिवार” बनाने में सफल नहीं हो पाए। यही जटिलता उनके निधन के बाद की घटनाओं में भी साफ़ दिखाई दी।

नौकर के कथित बयान के अंतिम हिस्सों में यह बात सामने आती है कि धर्मेंद्र ने अपने जीवन के बारे में कभी भारी–भरकम दर्शन नहीं किया, बल्कि सरलता से कहा:

“ज़िंदगी जैसे आई थी, वैसे ही जाएगी।”

उनके भीतर एक सादगी और गरिमा हमेशा रही—चाहे वे पर्दे पर वीरू हों, या वास्तविक जीवन में एक भावुक पिता और पति।

आलोचना बनाम परिवार की मजबूरी

देओल परिवार पर उठ रहे सवालों—

“क्यों सार्वजनिक अंतिम यात्रा नहीं हुई?”,
“क्यों फैंस को दर्शन नहीं मिले?”,
“क्यों हेमा और बेटियों की भागीदारी कम रही?”—

इन सब पर अगर निष्पक्ष नज़र से देखें, तो दो पक्ष सामने आते हैं:

    फैंस और आम जनता का पक्ष

    वे महसूस करते हैं कि धर्मेंद्र जैसे दिग्गज को बड़े स्तर पर सम्मानित विदाई मिलनी चाहिए थी।
    उन्हें यह भी लगता है कि दो परिवारों के बीच की दूरी का असर एक महान कलाकार के सम्मान पर नहीं पड़ना चाहिए।

    परिवार की भावनात्मक मजबूरी

    प्रकाश कौर की स्थिति,
    पुराने घावों के फिर से हरे होने का डर,
    मीडिया की कड़ी और कभी–कभी निर्दयी नज़र,
    और व्यक्तिगत शोक को तमाशा न बनने देने की इच्छा—

    इन सब कारणों से परिवार ने सादगी और गोपनीयता को चुना।

असली विरासत क्या है?

बहस और अफवाहों के शोर के बीच एक बात नौकर के शब्दों से साफ़ झलकती है—धर्मेंद्र अपने रिश्तों, अपने बच्चों और अपने परिवार के लिए अंत तक चिंतित रहे। वे चाहते थे कि घर न टूटे, परिवार बिखरे नहीं, भले ही वे खुद दो घरों के बीच बँटे रहें।

बॉलीवुड के दिग्गजों ने उन्हें “एक युग का अंत” कहा। सोशल मीडिया पर श्रद्धांजलि देने वाले संदेशों से यही बात सामने आती है कि:

उनकी सादगी,
मेहनत,
रिश्तों के प्रति संवेदनशीलता,
और पर्दे पर निभाए गए यादगार किरदार—

यही उनकी वास्तविक विरासत है।

निष्कर्ष: विवाद नहीं, विरासत याद रखनी होगी

नौकर के यह कथित खुलासे, चाहे पूरी तरह सही हों या आंशिक, हमें एक अहम बात की याद दिलाते हैं—
शोहरत, दौलत और नाम के बावजूद अंत में इंसान सिर्फ़ अपने रिश्तों और यादों के साथ रह जाता है।

धर्मेंद्र की आख़िरी रात, उनके अधूरे मिलने की इच्छाएँ, परिवार की बंद दीवारों के भीतर लिए गए फ़ैसले—ये सब जितने भी जटिल हों, आम लोगों के हाथ में सिर्फ़ एक चीज़ है:

उन्हें प्यार और सम्मान के साथ याद करना।

बहस इस बात पर नहीं होनी चाहिए कि किस रस्म में कौन था, किसे बुलाया गया, किसे नहीं। असली श्रद्धांजलि यह होगी कि हम धर्मेंद्र की फिल्मों, उनके संघर्ष और उनके भावुक इंसान होने की विरासत को याद रखें—और शायद, रिश्तों की अहमियत को थोड़ी और गंभीरता से समझें।

धर्मेंद्र चले गए, लेकिन वे सच–मुच कभी नहीं जाते। वे अपने डायलॉग्स, मुस्कान, सादगी और उन कहानियों में हमेशा ज़िंदा रहेंगे, जो लोगों के दिलों में बसे “धर्म जी” की छवि से जुड़ी हैं।

.