DM की माँ जब पैसा निकालने बैंक गई तो भिखारी समझकर स्टाप ने लात मारा,फिर जो हुआ?
जब जिले की सबसे बड़ी अफसर डीएम नुसरत की मां, नुसरत बाई, साधारण कपड़ों में गरीब महिला की तरह एक बड़े सरकारी बैंक में पैसे निकालने गईं, तब बैंक के सभी अफसरों ने उन्हें भिखारिन समझकर अपमानित किया। कोई सोच भी नहीं सकता था कि यह साधारण सी महिला असल में जिले की डीएम मैडम की मां है। सभी ने उन्हें तिरस्कार की नजरों से देखा और सोचने लगे कि ऐसी औरत इतने बड़े बैंक में क्या करने आई है।
अपमान का सामना
इसी बीच वह महिला धीरे-धीरे काउंटर की ओर बढ़ने लगी। काउंटर पर कल्पना नाम की एक सुरक्षा गार्ड बैठी थी। वह बुजुर्ग महिला से बोली, “बेटी, मुझे बैंक से पैसे निकालने हैं। यह रहा चेक।” कल्पना ने चेक देखे बिना ही महिला को कहना शुरू कर दिया, “तुम्हारी इतनी हिम्मत कैसे हुई बैंक आने की? यह बैंक तुम्हारे जैसे लोगों के लिए नहीं है। भिखारिन, यहां क्यों आई हो? यह बैंक बड़े लोगों का है। यहां बड़े-बड़े लोगों के अकाउंट हैं। तुम्हारे जैसी औरत की तो ऐसे बैंक में खाता खुलवाने की औकात ही नहीं है। निकल जाओ यहां से नहीं तो मार कर भगा दूंगी।”
महिला बोली, “बेटी, तुम पहले चेक तो देखो। मुझे ₹5 लाख नकद निकालने हैं।” यह सुनते ही कल्पना गुस्से से आग बबूला हो गई। उसने कहा, “यह कोई मजाक करने की जगह है क्या? क्या सोच रही हो तुम? तुम जो कहोगी मैं मान लूंगी। तुम्हारे जैसी औरत की इतनी औकात नहीं। और क्या कहा 5 लाख? जिंदगी में कभी इतने पैसे देखे हैं? जल्दी से यहां से निकल जाओ। नहीं तो धक्का मार कर बाहर फेंक दूंगी।”
ठीक उसी समय, बैंक मैनेजर अपने केबिन से बाहर झांकते हुए बोले, “कौन इतना हंगामा कर रहा है?” कल्पना तुरंत बोली, “कोई भिखारीन औरत है, सर। जा नहीं रही है।” बैंक मैनेजर गुस्से से बाहर आए और बिना कुछ पूछे उस बुजुर्ग महिला को एक जोरदार थप्पड़ मार दिया। थप्पड़ इतना जोर का था कि महिला लड़खड़ा कर जमीन पर गिर पड़ी। फिर मैनेजर ने सिक्योरिटी गार्ड को बुलाकर कहा, “क्या कर रही हो तुम? घसीट कर बाहर निकालो इस औरत को। पता नहीं कहां-कहां से ऐसे लोग आ जाते हैं।”
कल्पना ने जबरदस्ती उस महिला को बैंक से धक्का देकर बाहर निकाल दिया। वहां मौजूद सभी ग्राहक और कर्मचारी चुपचाप सब कुछ देख रहे थे। कोई नहीं जानता था कि यह महिला जिले की डीएम नुसरत की मां है और यह पूरी घटना बैंक के सीसीटीवी कैमरे में रिकॉर्ड हो रही थी।
डीएम का गुस्सा
घर लौटकर वह महिला रोते-रोते अपनी बेटी डीएम नुसरत को फोन कर पूरी घटना बताती है। कैसे बैंक में उनके साथ अपमान किया गया। कैसे उन्हें जलील करके बाहर निकाल दिया गया। यह सुनकर नुसरत अंदर से कांप उठीं। उनके लिए यह आग से भी कम ना था। वह रोते हुए अपनी मां से बोलीं, “मां, कल मैं खुद आ रही हूं और तुम्हारे साथ जाकर उसी बैंक से पैसे निकालूंगी।”
अगले दिन सुबह नुसरत ने एक सादा सूती साड़ी पहनी और अपनी मां के साथ बैंक जाने के लिए तैयार हुईं। मां-बेटी एक-दूसरे को गले लगाती हैं। उनकी आंखों में आंसू थे। गर्व के भी और पीड़ा के भी। नुसरत की मां अपनी बेटी पर गर्वित थीं। उन्होंने कितने संघर्षों से उसे पालापोसा, पढ़ाया, और आज इतने ऊंचे पद पर पहुंचाया।
बैंक में प्रवेश
सुबह ठीक 11:00 बजे मां-बेटी बैंक के बाहर पहुंचीं। बैंक अब तक नहीं खुला था, जबकि बैंक खुलने का समय 10:00 बजे था। नुसरत शांति से दरवाजे के पास बैठकर इंतजार करने लगीं। थोड़ी देर बाद जब बैंक खुला, तो वे दोनों अंदर प्रवेश करती हैं। दोनों के कपड़े इतने साधारण थे कि वहां मौजूद ग्राहक और कर्मचारी उन्हें एक सामान्य ग्रामीण महिला और युवती समझकर भ्रमित हो गए। कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था कि यही नुसरत जिले की डीएम है।
धीरे-धीरे वे काउंटर की ओर बढ़ीं। वहां वही कल्पना बैठी थी। नुसरत विनम्रता से बोलीं, “मैम, हमें पैसे निकालने हैं। मां की दवाई लेनी है और कुछ जरूरी काम भी हैं। यह रहा चेक। कृपया देख लीजिए।” कल्पना ने दोनों महिलाओं को सिर से पांव तक देखा। साड़ी में एक वृद्ध महिला और साधारण कपड़ों में एक युवती। किसी भी हाल में वे अधिकारी नहीं लग रही थीं। उसने व्यंग में कहा, “आप शायद गलत बैंक में आ गई हैं। यह शाखा हाई प्रोफाइल क्लाइंट्स के साथ काम करती है।”
धैर्य और संयम
नुसरत मुस्कुराकर जवाब देती हैं, “एक बार चेक करके देख लीजिए, मैडम। अगर ना हो तो हम चले जाएंगे।” अनच्छा से कल्पना ने लिफाफा लिया और बोली, “थोड़ा समय लगेगा। वेटिंग चेयर पर बैठिए।” नुसरत अपनी मां का हाथ पकड़कर एक खाली कुर्सी पर बैठ गईं। उन्होंने मां को पानी दिया और खुद भी शांत भाव से बैठी रहीं।
बैंक में मौजूद लोग उनकी ओर देख रहे थे। वहां आमतौर पर सिर्फ अमीर व्यापारी, अफसर और प्रभावशाली लोग आते थे। महंगी गाड़ियों में, चमचमाते कपड़ों में। इसलिए साधारण कपड़ों में बैठी मां-बेटी सबको अजीब लग रही थीं। चारों ओर कानाफूसी शुरू हो गई। “किस गांव से आई हैं? शायद पेंशन के लिए आई होंगी। यहां इनका खाता होने का तो सवाल ही नहीं है।”
नुसरत सब कुछ सुन रही थीं, लेकिन शांत बनी रहीं। उनकी मां थोड़ी असहज हो रही थीं, लेकिन अपनी बेटी का धैर्य देखकर खुद को संभाल लिया। कुछ देर बाद नुसरत ने कल्पना से कहा, “अगर आप व्यस्त हैं तो कृपया मैनेजर से मिलने की व्यवस्था कर दीजिए। मुझे एक जरूरी बात करनी है।” कल्पना झुंझलाकर फोन उठाती है और मैनेजर के केबिन में कॉल करती है। “सर, एक महिला आई हैं। कह रही है कि आपसे मिलना है। भेज दूं?”
अपमान का प्रतिशोध
मैनेजर काम करते हुए झांक कर देखता है। सामने साधारण कपड़ों में एक महिला अपनी मां के साथ बैठी है। उसे बिल्कुल भी अवसर नहीं लग रही थी। वह ठंडे स्वर में बोला, “मुझे फालतू लोगों के लिए वक्त नहीं है। कह दो बैठे रहें।” कल्पना बोली, “आप वेटिंग चेयर पर बैठिए सर, थोड़ी देर में फ्री होंगे।” नुसरत कुछ नहीं बोलीं। बस मां का हाथ पकड़कर शांत भाव से बैठी रहीं।
एक अफसर की मर्यादा और एक बेटी का धैर्य। नुसरत तब भी पूरी तरह शांत और संयमित थीं। लेकिन मां की बेचैनी और लोगों की कानाफूसी देखकर उन्होंने मां का हाथ कस के पकड़ लिया और बोलीं, “मां, लग रहा है इन लोगों को कोई फर्क नहीं पड़ता। अब मुझे ही कुछ करना होगा।” वह धीरे से उठीं। साड़ी का पल्लू ठीक किया और सीधा मैनेजर के केबिन की ओर बढ़ गईं।
मैनेजर जो अब तक कांच के पीछे से उन पर नजर रखे हुए था, घबरा गया। वह जल्दी से बाहर आया और नुसरत का रास्ता रोक कर बोला, “हां, बोलिए क्या काम है?” नुसरत ने वह लिफाफा आगे बढ़ाकर कहा, “मुझे पैसे निकालने हैं। मां की दवाई लेनी है और भी बहुत काम है। यह रहा चेक, देख लीजिए।”
संघर्ष का परिणाम
मैनेजर ने लिफाफा लिए बिना ही झुंझला कर कहा, “जब अकाउंट में पैसे ही नहीं होते तो ट्रांजैक्शन कैसे होगा? तुम्हें देखकर तो नहीं लगता कि तुम्हारे खाते में पैसे होंगे। बड़ी आई हो पैसे निकालने।” नुसरत अब भी बेहद शांत स्वर में बोलीं, “अगर आप एक बार चेक करके देख लेते तो बेहतर होता। इस तरह अंदाजा लगाना ठीक नहीं।”
मैनेजर अब खुलकर हंसने लगा। “भाई साहब, मेरे पास इतनी अनुभव है कि चेहरे देखकर ही समझ जाता हूं कि किसके पास क्या है। रोज ही तुम्हारे जैसे लोग आते हैं। तुम्हारे खाते में कुछ होगा, मुझे तो नहीं लगता। अब और भीड़ मत करो। देखो सब तुम्हें ही देख रहे हैं। माहौल खराब हो रहा है। अच्छा होगा अगर तुम अभी चली जाओ।”
नुसरत का चेहरा अब भी स्थिर था। लेकिन उसकी आंखों में एक अलग चमक आ गई थी। जहां पहले शांति थी, अब वहां कठोरता उतर आई थी। उन्होंने बिना कुछ कहे लिफाफा मेज पर रख दिया और शांत स्वर में बोलीं, “ठीक है, जा रही हूं, लेकिन एक अनुरोध है, इस लिफाफे में जो जानकारी है, कृपया एक बार जरूर पढ़िएगा। शायद आपके किसी काम आ जाए।”
इतना कहकर उन्होंने अपनी मां का हाथ थामा, चेहरा मोड़ा और दरवाजे की ओर बढ़ गईं। लेकिन दरवाजे पर पहुंचकर वह मुड़ी और गहरी नजर डालते हुए बोलीं, “बेटा, इस व्यवहार का अंजाम तुम्हें भुगतना पड़ेगा। वक्त सब कुछ समझा देगा। पूरा बैंक…” कुछ क्षणों के लिए पूरा बैंक एक पल के लिए निस्तब्धता में डूब गया। ना कोई आवाज, ना कोई गुस्सा, सिर्फ मर्यादा में लिपटी एक चेतावनी जो किसी आंधी से कम नहीं थी।
बदलाव की शुरुआत
मैनेजर एक पल के लिए ठहर गया। फिर हंसते हुए बोला, “बुढ़ापे में लोग कुछ भी कह जाते हैं। चलो जाने दो,” और वापस जाकर अपनी कुर्सी पर बैठ गया। उसके सामने वही लिफाफा भी मेज पर पड़ा था। बिना पढ़ा अनदेखा। उसे यह अंदाजा नहीं था कि उस लिफाफे में ऐसा एक सच छुपा है जो उसकी दुनिया को उलट कर रख देगा।
अगले दिन बैंक का वही पुराना रूटीन शुरू हुआ। क्लर्क अपने काम में, कैशियर अपनी गिनती में, और मैनेजर अपनी पुरानी अहंकार में डूबा हुआ। लेकिन इस बार एक फर्क था। वही वृद्ध महिला, जिसके साथ एक दिन पहले अपमान की सारी हदें पार कर दी गई थीं, फिर से उसी बैंक में दाखिल हुईं। मगर इस बार वह अकेली नहीं थीं। उनके साथ था एक तेजतर्रार अफसर जो सूट-बूट में चमक रहा था। उनके हाथ में था एक चमचमाता ब्रीफ केस।
उनके प्रवेश के साथ ही पूरा बैंक उसी दिशा में देखने लगा। किसी को कुछ कहे बिना सीधे मैनेजर के केबिन की ओर बढ़ी। मैनेजर उन्हें पहले पहचान नहीं पाया, लेकिन जैसे-जैसे वह करीब आईं, उनका चेहरा साफ होता गया। वही महिला जिसकी फाइल उसने कल लौटा दी थी। जिसकी साड़ी पर वह हंसा था, जिससे कहा था, “तुम जैसे ग्राहक नहीं चाहिए,” और जिसे उसने बाहर निकाल दिया था। अब उसके चेहरे पर डर की परछाई उभरने लगी।
सच्चाई का सामना
घबराकर वह खुद ही केबिन से बाहर आ गया। महिला के चेहरे पर अब आत्मविश्वास और गरिमा की चमक थी। वह नहीं रुकी। सीधे मैनेजर के सामने खड़ी होकर तीखे स्वर में बोलीं, “मैनेजर साहब, मैंने कल ही कहा था, आपको अपने व्यवहार का परिणाम भुगतना पड़ेगा। आपने सिर्फ मुझे नहीं, मेरे जैसे हजारों सामान्य नागरिकों को तुच्छ समझने की कोशिश की है। अब समय आ गया है कि आप सजा भुगतें।”
मैनेजर स्तब्ध होकर बोला, “आप कौन हैं जो मुझे सिखाने आई हैं? यह आपका घर नहीं है। यह बैंक है और आप यहां मेरा क्या कर सकती हैं?” महिला उसकी बात बीच में ही रोक कर मुस्कुरा उठीं। फिर अपने साथ आए अफसर की ओर इशारा करते हुए बोलीं, “यह मेरे कानूनी सलाहकार हैं और मैं नुसरत, इस जिले की प्रशासक, डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट यानी डीएम और इस बैंक की 8% शेयरहोल्डर। और यह मेरी मां हैं, जिनके साथ आपने और आपके स्टाफ ने बेहद अपमानजनक व्यवहार किया है।”
न्याय की स्थापना
एक पल के लिए पूरे बैंक में सन्नाटा छा गया। सभी कर्मचारी, ग्राहक, यहां तक कि दरवाजे के पास खड़े सुरक्षा गार्ड भी हैरान रह गए। मैनेजर के चेहरे का रंग उड़ गया। वह कुछ कह पाता, इससे पहले ही नुसरत फिर बोलीं, “तुम्हें तुरंत बैंक मैनेजर के पद से हटाया जा रहा है। अब तुम्हारी पोस्टिंग फील्ड में होगी, जहां तुम्हें हर दिन सामान्य जनता से मिलकर रिपोर्ट बनानी होगी।”
नुसरत ने ब्रीफ केस खोला और उसमें से दो दस्तावेज निकाल कर सामने रख दिए। पहला था मैनेजर का ट्रांसफर ऑर्डर, दूसरा कारण बताओ नोटिस जिसमें लिखा था कि उसका व्यवहार बैंक की नीति के खिलाफ पाया गया है। मैनेजर पसीने से तर-बतर हो गया था। कांपते स्वर में बोला, “मैडम, मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गई। मैं शर्मिंदा हूं। बीते कल की घटना के लिए दिल से माफी चाहता हूं।”
नुसरत की नजर अब भी स्थिर थी, लेकिन उसकी आवाज में वह न्याय का तीखापन था जो एक सच्चे अफसर की पहचान होता है। “किस बात की माफी मांग रहे हो? केवल मेरा अपमान किया था या उन सारे ग्राहकों का जो आम कपड़ों में आते हैं। लेकिन तुम्हारी आंखों में उन्हें सिर्फ उनका पहनावा दिखता है। क्या तुमने कभी बैंक की गाइडलाइन पढ़ी है? उसमें साफ लिखा है हर ग्राहक बराबर है। कोई अमीर गरीब नहीं होता और जो कर्मचारी भेदभाव करेगा, उसके खिलाफ व्यवस्था की जाएगी।”
एक नया अध्याय
एक पल रुककर नुसरत कठोर स्वर में बोलीं, “चाहती तो आज ही तुम्हें सस्पेंड कर सकती थी, लेकिन मैं तुम्हें खुद को सुधारने का एक मौका दे रही हूं। अगली बार तुम्हारा नाम नहीं, तुम्हारा अस्तित्व मिटा दिया जाएगा।” फिर उन्होंने बैंक की सुरक्षा गार्ड कल्पना को बुलाया। कल्पना डरते-डरते आगे आई। उसकी आंखों में आंसू थे। कांपते हाथों से बोली, “मैडम, मुझे माफ कर दीजिए। मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई। अब से किसी को भी ऐसे नहीं आंकूंगी।”
नुसरत ने उसकी तरफ देखा और कहा, “कभी भी किसी को उसके कपड़ों से छोटा मत समझो। आज जो सीख मिली है, उसे सारी जिंदगी याद रखना।” पूरा बैंक स्टाफ उस समय झुके सिर के साथ खड़ा था। नुसरत ने सबकी ओर देखकर कहा, “रास्ता चाल ढाल से नहीं, सोच से तय होता है कि इंसान कितना बड़ा है। जो मानवता को समझता है, वही सच्चा अधिकारी है।”
इतना कहकर नुसरत अपनी मां के साथ बैंक से बाहर निकल गईं। बैंक में कुछ क्षणों के लिए गहरा सन्नाटा छा गया। फिर एक-एक करके सब ने एक-दूसरे की ओर देखा। हर किसी की सोच बदल चुकी थी। उस दिन के बाद से बैंक का माहौल पूरी तरह से बदल गया। अब हर ग्राहक को सम्मान से देखा जाने लगा। किसी की साड़ी देखकर उसे गरीब नहीं कहा गया और हर मन में एक बात बैठ गई। “कभी किसी आम इंसान को तुच्छ मत समझो। शायद अगली बार वही इंसान तुम्हारे सामने खास बनकर खड़ा हो।”
निष्कर्ष
दोस्तों, इस कहानी से हमें एक बहुत बड़ी सीख मिलती है। हमारे देश में अक्सर लोग दूसरों को उनके कपड़ों, हालात या स्थिति से आंकने लगते हैं। लेकिन यह कहानी सिखाती है, कभी किसी को उसकी सादगी या अमीरी के लिए कम मत समझो। हो सकता है वह इंसान तुमसे कहीं ऊंचे पद पर हो या तुमसे कहीं ज्यादा सम्मान के लायक हो। हर इंसान को बराबर सम्मान देना चाहिए। चाहे वह गरीब हो या अमीर। इंसानियत से व्यवहार करना ही असली मानवता है। यही है हमारी संस्कृति, यही है हमारा गौरव।
दोस्तों, आज की कहानी यहीं समाप्त होती है। आशा है आपको यह कहानी पसंद आई होगी। अगर आपको यह कहानी अच्छी लगी हो, तो कृपया इसे साझा करें और अपने विचार हमें बताएं।
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