DM मैडम को नहीं पता था भीख मांगता बच्चा उनका अपना बेटा है जो 7 साल पहले खो गया था |

आठ सालों की तलाश, अनगिनत आंसू और फिर अचानक हुई सबसे बड़ी मुलाकात। यह कहानी है डीएम दीक्षा कुमारी की, जो एक दिन सड़क पर एक घायल बच्चे से मिली। किसे पता था कि वही बच्चा उनका खोया हुआ बेटा होगा।

सुबह के 7:00 बजे थे जब दीक्षा कुमारी अपनी सफेद इनोवा कार में बैठकर जिले के दौरे पर निकली थीं। आज का दिन उनके लिए बेहद महत्वपूर्ण था क्योंकि राज्य सरकार के एक बड़े प्रोजेक्ट का उद्घाटन होना था। उनके चेहरे पर हमेशा की तरह गंभीरता थी, लेकिन आंखों में एक अजीब सी उदासी भी छुपी हुई थी। पिछले 8 सालों से वह इसी तरह अपने काम में खुद को व्यस्त रखती आई थीं, जैसे कि किसी दर्द से बचने की कोशिश कर रही हों।

एक अनहोनी

उनका ड्राइवर रामू धीरे-धीरे गाड़ी चला रहा था क्योंकि सड़कों पर सुबह की भीड़ थी। दीक्षा जी खिड़की से बाहर देख रही थीं, जहां बच्चे स्कूल जा रहे थे और हर बच्चे को देखकर उनके दिल में एक टीस सी उठती थी। वह ना चाहते हुए भी अपने अतीत की यादों में खो जाती थीं। आज भी कुछ ऐसा ही हो रहा था जब अचानक सामने की सड़क पर एक अजीब सा शोर सुनाई दिया।

“मैडम, आगे कुछ गड़बड़ लग रही है,” रामू ने घबराहट में कहा। सड़क पर लोगों की भीड़ जमा हो रही थी और सभी एक ही दिशा में दौड़े जा रहे थे। दीक्षा जी ने तुरंत गाड़ी रोकने का इशारा किया। “देखिए, क्या हुआ है,” उन्होंने कहा और खुद भी गाड़ी से उतरने लगीं।

घायल बच्चे की मदद

जैसे ही वह भीड़ के पास पहुंचीं, तो देखा कि सड़क के बीच में एक छोटा सा लड़का बेहोश पड़ा हुआ था। उसके कपड़े फटे हुए थे और सिर से खून बह रहा था। आसपास खड़े लोग सिर्फ तमाशा देख रहे थे। कोई भी आगे बढ़कर मदद करने की हिम्मत नहीं कर रहा था।

“यह क्या हो रहा है यहां?” दीक्षा जी ने सख्त आवाज में पूछा। एक बुजुर्ग आदमी ने कांपती आवाज में बताया, “मैडम, एक ट्रक वाले ने इस बच्चे को टक्कर मारी और भाग गया। यह बच्चा पिछले 10 मिनट से यहीं पड़ा है।” दीक्षा जी का दिल जोर से धड़कने लगा।

उन्होंने तुरंत बच्चे के पास जाकर घुटने टेककर बैठ गईं। लड़का लगभग 8 साल का था। उसके चेहरे पर गंदगी और खून था, लेकिन फिर भी वह बहुत सुंदर लग रहा था। जब उन्होंने उसके चेहरे को देखा, तो एक अजीब सी कंपकंपी उनके पूरे शरीर में दौड़ गई। यह चेहरा और यह आंखें उनके मन में कुछ अजीब सा लगा। लेकिन वक्त इतना नहीं था कि वह इस पर सोच सकें।

अस्पताल की दौड़

उन्होंने तुरंत अपना फोन निकाला और एंबुलेंस को कॉल किया। “हेलो, यह डीएम दीक्षा कुमारी बोल रही हूं। मुझे तुरंत एंबुलेंस चाहिए। मेन रोड पर एक बच्चे का एक्सीडेंट हुआ है।” फोन रखने के बाद उन्होंने भीड़ से कहा, “आप सभी लोग पीछे हट जाइए। बच्चे को सांस लेने दीजिए।”

लेकिन एंबुलेंस का इंतजार करना खतरनाक था। बच्चे की सांस धीमी पड़ रही थी। “रामू, तुरंत गाड़ी लेकर आओ,” दीक्षा जी ने चिल्लाकर कहा। वह बहुत सावधानी से बच्चे को उठाने लगीं। जैसे ही उन्होंने उसे अपनी बाहों में लिया, तो एक अजीब सा एहसास हुआ, जैसे कि यह सब कभी पहले भी हुआ हो। बच्चे का वजन बिल्कुल वैसा ही था जैसा 8 साल पहले उनके बेटे का था।

उन्होंने अपने मन से इन ख्यालों को झटक दिया। अभी सिर्फ इस बच्चे की जान बचाना जरूरी था। गाड़ी आते ही उन्होंने बच्चे को पीछे की सीट पर लिटाया और खुद उसके पास बैठ गईं। “सीधा सिटी हॉस्पिटल चलो,” और जितनी तेज हो सके उन्होंने रामू से कहा।

अस्पताल में

रास्ते भर वह बच्चे का माथा सहलाती रहीं और उसकी नब्ज़ चेक करती रहीं। “बेटा, आंख खोलो। कुछ नहीं हुआ है, सब ठीक हो जाएगा,” वह बार-बार कह रही थीं। उनकी आवाज में एक मां की चिंता साफ झलक रही थी। हॉस्पिटल पहुंचते ही दीक्षा जी ने तुरंत इमरजेंसी वार्ड के डॉक्टर्स को बुलाया। “डॉक्टर साहब, इस बच्चे का तुरंत इलाज शुरू करिए। पैसों की कोई चिंता नहीं है,” उन्होंने कहा।

बच्चे को तुरंत आईसीयू में ले जाया गया। दीक्षा जी बाहर बेंच पर बैठकर इंतजार करने लगीं। उनके हाथ कांप रहे थे। डॉक्टर ने बताया था कि बच्चे के सिर में चोट आई है लेकिन खतरा टल गया है। 3 घंटे बाद जब बच्चा होश में आया, तो सबसे पहले उसने दीक्षा जी को ही देखा।

“आंटी, मैं कहां हूं?” उसकी आवाज बहुत कमजोर थी। “बेटा, तुम हॉस्पिटल में हो। तुम्हें चोट लगी थी, लेकिन अब तुम बिल्कुल ठीक हो,” दीक्षा जी ने प्यार से कहा। “मेरा नाम हर्षित है,” बच्चे ने धीरे से कहा। यह नाम सुनते ही दीक्षा जी के दिल की धड़कन तेज हो गई। 8 साल पहले उन्होंने अपने बेटे का नाम भी हर्षित ही रखा था।

खोया हुआ बेटा

“हर्षित कितना प्यारा नाम है,” दीक्षा जी ने कहा, लेकिन उनकी आंखों में आंसू आ गए। “तुम्हारे मम्मी-पापा कहां हैं बेटा?” जब उन्होंने यह सवाल पूछा, तो हर्षित की आंखें भर आईं। “मेरे मम्मी-पापा नहीं हैं आंटी। मैं अनाथ आश्रम में रहता हूं,” उसने रोते हुए कहा। यह सुनकर दीक्षा जी का दिल टूट गया।

“कोई बात नहीं बेटा, अब मैं हूं ना तुम्हारे साथ,” उन्होंने हर्षित का हाथ पकड़ते हुए कहा। हर्षित ने पहली बार मुस्कुराने की कोशिश की। अगले दो दिनों तक दीक्षा जी हर्षित के पास ही रहीं। वह उसके लिए खाना लाती थीं, कहानियां सुनाती थीं और रात में उसे सुलाती थीं।

हर्षित भी उनसे बहुत लगाव महसूस करने लगा था। डॉक्टर्स भी हैरान थे कि एक अजनबी बच्चे के लिए डीएम साहिबा इतनी चिंता क्यों कर रही हैं? तीसरे दिन जब हर्षित को हॉस्पिटल से छुट्टी मिल गई, तो दीक्षा जी के सामने एक बड़ा सवाल था।

नया जीवन

हर्षित को वापस अनाथ आश्रम भेजना होगा। डॉक्टर ने कहा, लेकिन दीक्षा जी का दिल इसके लिए तैयार नहीं था। पिछले तीन दिनों में वह हर्षित से इतना लगाव हो गया था कि अब उसे छोड़ना मुश्किल लग रहा था। “डॉक्टर साहब, क्या मैं इस बच्चे को अपने साथ रख सकती हूं? मैं इसकी सारी जिम्मेदारी उठा सकती हूं,” उन्होंने पूछा।

डॉक्टर चौंक गए। “लेकिन मैडम, यह तो कानूनी प्रक्रिया का मामला है। आपको अनाथ आश्रम से बात करनी होगी।” दीक्षा जी तुरंत अनाथ आश्रम गईं और वहां के सुपरिंटेंडेंट से मिलीं। “सर, मैं हर्षित को अडॉप्ट करना चाहती हूं। मैं सारी लीगल फॉर्मेलिटीज पूरी कर दूंगी,” उन्होंने कहा।

सुपरिंटेंडेंट बहुत खुश हुआ क्योंकि एक बच्चे को अच्छा घर मिल रहा था। एक हफ्ते बाद सारी फॉर्मेलिटीज पूरी हो गई और हर्षित दीक्षा जी के घर आ गया। यह एक बड़ा सा बंगला था जिसमें बहुत सारे कमरे थे। लेकिन पिछले आठ सालों से यह घर बिल्कुल सुनसान था।

नया घर

हर्षित के आने से घर में फिर से जिंदगी आ गई थी। दीक्षा जी ने उसके लिए एक खूबसूरत कमरा तैयार किया था। नए कपड़े लाए थे और ढेर सारे खिलौने भी। “यह सब मेरा है?” हर्षित ने बड़ी उत्सुकता से पूछा। “हां बेटा, यह सब तुम्हारा है। अब यह तुम्हारा घर है,” दीक्षा जी ने उसे गले लगाते हुए कहा।

हर्षित की खुशी का ठिकाना नहीं था। पहली बार उसे एक मां का प्यार मिल रहा था। शाम को जब दीक्षा जी ऑफिस से वापस आईं, तो हर्षित दौड़कर उनके पास आया। “मम्मी, आप आ गईं!” उसने बिना सोचे समझे कह दिया।

यह शब्द सुनते ही दीक्षा जी की आंखों से आंसू निकल आए। 8 साल बाद किसी ने उन्हें “मम्मी” कहा था। रात को खाना खाते वक्त हर्षित ने पूछा, “मम्मी, आपके कोई बच्चे नहीं हैं?” यह सवाल सुनकर दीक्षा जी का खाना गले में अटक गया। कुछ देर चुप रहने के बाद उन्होंने कहा, “बेटा, पहले थे लेकिन अब तुम हो ना।”

हर्षित ने इससे ज्यादा कुछ नहीं पूछा क्योंकि वह समझ गया था कि यह टॉपिक उनके लिए दुखदाई है।

अतीत की यादें

उस रात दीक्षा जी अपने कमरे में अकेली बैठकर अपने अतीत के बारे में सोच रही थीं। 8 साल पहले जब उनकी शादी हुई थी, तो वह बहुत खुश थीं। उनके पति आदित्य भी एक आईएएस ऑफिसर थे और दोनों का जीवन बहुत अच्छा चल रहा था। शादी के 2 साल बाद हर्षित का जन्म हुआ था। वह बहुत सुंदर बच्चा था, बिल्कुल आज के हर्षित की तरह।

लेकिन तब वह नहीं जानती थीं कि खुशी इतनी जल्दी छिन जाएगी। एक दिन आदित्य अपने काम से बाहर गए थे और हर्षित को साथ ले गए थे। उस दिन शाम तक वह वापस नहीं आए थे। दीक्षा जी को चिंता हो रही थी क्योंकि आदित्य ने कहा था कि वह दोपहर तक वापस आ जाएंगे।

जब उन्होंने फोन किया, तो आदित्य का फोन बंद आ रहा था। रात के 10:00 बजे तक जब कोई खबर नहीं मिली, तो उन्होंने पुलिस में कंप्लेंट दी। अगली सुबह पुलिस ने बताया कि आदित्य की कार का एक एक्सीडेंट हुआ है। “मैडम, आपके पति का एक्सीडेंट हुआ है। वह अभी भी अस्पताल में है।”

बिखरता संसार

लेकिन पुलिस वाले ने बात अधूरी छोड़ दी। “लेकिन क्या मेरा बच्चा कहां है?” दीक्षा जी चिल्लाई। “मैडम, कार में सिर्फ आपके पति मिले हैं। बच्चे का कोई पता नहीं है। हो सकता है एक्सीडेंट के वक्त वह कार से बाहर निकल गया हो।” यह सुनते ही दीक्षा जी का पूरा संसार हिल गया।

अगले 2 महीने तक पुलिस ने पूरी तलाशी ली लेकिन हर्षित का कोई पता नहीं चला। आदित्य की मौत के बाद दीक्षा जी पूरी तरह टूट गईं। उनका बेटा लापता था और पति भी चल बसे थे। डॉक्टर्स का कहना था कि आदित्य को भी याददाश्त चली गई थी एक्सीडेंट के बाद। इसलिए वह यह भी नहीं बता सके कि हर्षित कहां गया था।

मेहनत और संघर्ष

अगले 6 महीने तक दीक्षा जी ने हर जगह तलाशा। हर अनाथ आश्रम में गईं। हर पुलिस स्टेशन में कंप्लेंट दी, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। धीरे-धीरे वह समझ गईं कि शायद उनका बेटा वापस नहीं आएगा। इसके बाद उन्होंने अपने आप को पूरी तरह काम में डुबो दिया। वह एक सक्सेसफुल डीएम बनीं, लेकिन अंदर से वह हमेशा अधूरी रह गईं।

हर बच्चे को देखकर उन्हें अपने हर्षित की याद आ जाती थी। आज जब इस नए हर्षित से मिलीं, वह नहीं जानती थीं कि यह सच में वही हर्षित हो सकता है जिसे वह 8 साल से ढूंढ रही थीं।

नई शुरुआत

अगली सुबह हर्षित स्कूल जाने के लिए तैयार हो रहा था। दीक्षा जी ने उसके लिए एक अच्छे स्कूल में एडमिशन करा दिया था। “मम्मी, मैं स्कूल जाने से डर रहा हूं। वहां सब बच्चे मुझसे पूछेंगे कि मेरे असली मम्मी-पापा कहां हैं?” हर्षित ने चिंता से कहा।

दीक्षा जी ने उसे गले लगाया। “बेटा, तुम सबसे कह देना कि मैं तुम्हारी मम्मी हूं। तुम्हें किसी से डरने की जरूरत नहीं है।” स्कूल ड्रॉप करने के वक्त प्रिंसिपल ने दीक्षा जी से कहा, “मैडम, हर्षित बहुत इंटेलिजेंट बच्चा है। उसने हमारे एंट्रेंस टेस्ट में बहुत अच्छे मार्क्स लाए हैं।”

यह सुनकर दीक्षा जी को गर्व महसूस हुआ। शाम को जब हर्षित स्कूल से वापस आया, तो वह बहुत खुश था। “मम्मी, मेरे बहुत सारे दोस्त बन गए। टीचर ने भी कहा कि मैं बहुत स्मार्ट हूं,” उसने खुशी से बताया। “सच में मेरा बेटा तो बहुत क्लेवर है,” दीक्षा जी ने प्यार से कहा।

एक नई सूचना

हफ्ते भर बाद दीक्षा जी को ऑफिस में एक फोन आया। “मैडम, मैं अनाथ आश्रम से बोल रहा हूं। हमारे पास हर्षित के बारे में कुछ जानकारी है जो आप जानना चाहेंगी,” सुपरिंटेंडेंट ने कहा। “जी हां, बताइए,” दीक्षा जी ने उत्सुकता से पूछा।

“मैडम, हर्षित को 8 साल पहले हमारे यहां लाया गया था। उस वक्त वह सिर्फ एक साल का था। उसे किसी ने रेलवे स्टेशन के पास छोड़ा था। उसके कपड़े अच्छे थे और वह वेल फेड भी था। इससे लगता था कि वह किसी अच्छे परिवार से है।”

यह सुनकर दीक्षा जी के दिल की धड़कन तेज हो गई। “क्या उसके पास कोई पहचान का सामान था?”

“हां, मैडम, उसके गले में एक छोटी सी चैन थी जिसमें ‘हर्षित’ लिखा हुआ था। हमने उसी के आधार पर उसका नाम रखा था,” सुपरिंटेंडेंट ने कहा। दीक्षा जी का सर चकराने लगा। यह तो वही चैन थी जो उन्होंने अपने बेटे को पहनाई थी।

एक मां की खोज

“वह चैन अभी भी आपके पास है?” दीक्षा जी ने कांपती आवाज में पूछा। “हां, मैडम, हमारे रिकॉर्ड्स में है। क्या आप इसे देखना चाहेंगी?”

“जी हां, मैं अभी आ रही हूं,” कहकर उन्होंने फोन रख दिया। वह तुरंत अनाथ आश्रम की तरफ निकल गईं। वहां पहुंचकर जब सुपरिंटेंडेंट ने वह चैन दिखाई, तो दीक्षा जी की आंखों के सामने अंधेरा छा गया।

यह वही सोने की पतली चैन थी जिस पर “हर्षित” खुदा हुआ था। यह वही चैन थी जो उन्होंने अपने बेटे के जन्म के एक महीने बाद उसे पहनाई थी। “यह यह वही है,” वह बड़बड़ाई।

“क्या कहा मैडम?” “कुछ नहीं। क्या मैं इसे ले जा सकती हूं?” “जी हां, मैडम। यह तो हर्षित की ही चीज है।” दीक्षा जी ने चैन को अपने हाथों में लिया और उनकी आंखों से आंसू बहने लगे।

खोया हुआ बेटा

क्या सच में यह उनका अपना बेटा था जो 8 साल बाद उनके पास वापस आया था? घर वापस आकर दीक्षा जी ने हर्षित को चैन दिखाई। “बेटा, यह तुम्हारी है?” हर्षित की आंखें चमक गईं। “हां मम्मी, यह मेरी चैन है। अनाथ आश्रम वाले अंकल ने कहा था कि यह मेरे साथ मिली थी जब मैं छोटा था।”

दीक्षा जी का दिल जोर से धड़कने लगा। अब उन्हें पूरा यकीन हो गया था कि यह वही हर्षित है। लेकिन एक बात अभी भी अधूरी थी। अगर यह उनका बेटा है, तो इसे कैसे पता चलेगा कि वह उसकी असली मां है?

“क्या हर्षित को कुछ याद है अपने अतीत का?” “हर्षित, क्या तुम्हें कुछ याद है जब तुम बहुत छोटे थे?” उन्होंने सावधानी से पूछा।

यादें

हर्षित ने सोचने की कोशिश की। “मम्मी, मुझे बस एक आंटी याद है जो मुझे बहुत प्यार करती थी। वह हमेशा मुझे कहानियां सुनाती थी। लेकिन उसका चेहरा साफ याद नहीं है।” दीक्षा जी को एक उम्मीद की किरण दिखी। “वह आंटी कैसी दिखती थी?”

“वह आपकी तरह ही सुंदर थी मम्मी और उसके बाल भी आपकी तरह लंबे थे।” उस रात दीक्षा जी को नींद नहीं आई। वह बार-बार यही सोच रही थीं कि क्या वह हर्षित को बताएं कि वह उसकी असली मां है। लेकिन अगर वह गलत साबित हुई, तो हर्षित को कितना दुख होगा।

वह मेडिकल टेस्ट कराने के बारे में सोच रही थीं। लेकिन फिर उन्हें लगा कि इससे हर्षित परेशान हो सकता है। अगली सुबह जब हर्षित नहाकर तैयार हो रहा था, तो दीक्षा जी ने उसकी पीठ पर एक छोटा सा निशान देखा। उनका दिल तेजी से धड़कने लगा।

यह वही निशान था जो उनके बेटे की पीठ पर था। एक छोटा सा तिल जो बिल्कुल स्टार की तरह दिखता था। अब उन्हें कोई संदेह नहीं रह गया था। यह सच में उनका अपना बेटा था। लेकिन अब सवाल यह था कि वह इसे कैसे बताएं?

मेडिकल टेस्ट

क्या हर्षित इस बात को स्वीकार कर पाएगा? क्या वह खुश होगा या परेशान? कुछ दिन बाद दीक्षा जी ने हर्षित के पुराने मेडिकल रिकॉर्ड्स मंगवाए। डॉक्टर से बात करने पर पता चला कि हर्षित का ब्लड ग्रुप बी प्लस था। बिल्कुल वैसा ही जैसा उनके असली बेटे का था।

अब सभी सबूत एक ही तरफ इशारा कर रहे थे। वह अपने पुराने फोटो एल्बम निकाल कर देखने लगीं। जब उन्होंने अपने बेटे की एक साल की फोटो देखी और आज के हर्षित से कंपेयर किया, तो समानता बिल्कुल स्पष्ट थी। वही आंखें, वही स्माइल, वही सा चेहरा।

सच्चाई का सामना

उस दिन शाम को जब हर्षित स्कूल से आया, तो वह बहुत उदास था। “क्या बात है बेटा? तुम परेशान लग रहे हो?” दीक्षा जी ने पूछा। “मम्मी, आज स्कूल में एक बच्चे ने कहा कि मैं अडॉप्टेड हूं। उसने कहा कि आप मेरी असली मम्मी नहीं हैं,” हर्षित ने रोते हुए कहा।

यह सुनकर दीक्षा जी का दिल टूट गया। अब वक्त आ गया था सच बताने का। “हर्षित, यहां आकर बैठो,” दीक्षा जी ने उसे अपने पास बुलाया। “बेटा, मैं तुमसे एक बात कहना चाहती हूं। तुम मेरे लिए सबसे ज्यादा इंपॉर्टेंट हो। चाहे तुम अडॉप्टेड हो या ना हो।”

एक नई पहचान

हर्षित ने उनकी आंखों में देखा। “लेकिन मम्मी, क्या मैं सच में आपका बेटा नहीं हूं?” दीक्षा जी ने एक गहरी सांस ली। “बेटा, मैं तुमसे सच कहती हूं। मुझे लगता है, मुझे पूरा यकीन है कि तुम मेरा असली बेटा हो।”

हर्षित की आंखें बड़ी हो गईं। “क्या मतलब?” “हर्षित, 8 साल पहले मेरा एक बेटा था। उसका नाम भी हर्षित था। एक एक्सीडेंट में वह खो गया था। मैंने उसे बहुत ढूंढा, लेकिन नहीं मिला। और अब जब तुमसे मिली हूं, तो मुझे लगता है कि तुम वहीं हो।”

हर्षित कुछ देर चुप रहा। फिर बोला, “तो मतलब आप सच में मेरी मम्मी हैं?” “हां बेटा, मैं तुम्हारी असली मम्मी हूं,” कहकर दीक्षा जी ने उसे कसकर गले लगा लिया।

भावनाओं का ज्वार

हर्षित को यह बात समझने में थोड़ा वक्त लगा। “लेकिन मम्मी, फिर मैं इतने साल अनाथ आश्रम में क्यों रहा? आप मुझे क्यों नहीं मिलीं?” यह सवाल सुनकर दीक्षा जी की आंखों से आंसू बह निकले।

“बेटा, मैंने तुम्हें बहुत ढूंढा था। पुलिस ने भी बहुत तलाशा था। लेकिन किसी को पता नहीं चला कि तुम कहां हो?” हर्षित ने अपने छोटे से हाथ से दीक्षा जी के आंसू पोंछे। “मम्मी, रोइए मत। अब तो मैं आपके पास हूं ना। मैं आपको कभी नहीं छोडूंगा।”

यह सुनकर दीक्षा जी का दिल भर आया। 8 साल बाद उन्हें अपना खोया हुआ बेटा मिल गया था। “हर्षित, क्या तुम्हें अपने पापा के बारे में कुछ याद है?” “नहीं मम्मी, मुझे सिर्फ एक आंटी याद है जो मुझसे बहुत प्यार करती थी। अब मुझे पता चल गया कि वह आंटी आप ही थीं।”

अतीत की छाया

दीक्षा जी ने उसे बताया कि उसके पापा की एक्सीडेंट में डेथ हो गई थी। अगले दिन दीक्षा जी ने डीएनए टेस्ट कराने का फैसला किया ताकि कोई संदेह न रहे। “मम्मी, यह टेस्ट क्यों जरूरी है? मुझे तो यकीन है कि आप मेरी मम्मी हैं,” हर्षित ने पूछा।

“बेटा, यह सिर्फ कंफर्मेशन के लिए है। इससे ऑफिशियली प्रूफ हो जाएगा कि तुम मेरा बेटा हो,” दीक्षा जी ने समझाया। टेस्ट के रिजल्ट्स आने में तीन दिन लगे। जब डॉक्टर ने फोन किया, तो दीक्षा जी के हाथ कांप रहे थे।

“कांग्रेचुलेशंस मैडम। टेस्ट रिजल्ट्स पॉजिटिव हैं। हर्षित आपका बायोलॉजिकल सन है,” डॉक्टर ने बताया। यह सुनते ही दीक्षा जी खुशी से रो पड़ीं। आठ सालों की तलाश आखिरकार खत्म हो गई थी।

एक नई शुरुआत

जब उन्होंने हर्षित को यह बात बताई, तो वह भी बहुत खुश हुआ। “मम्मी, अब मैं ऑफिशियली आपका बेटा हूं,” उसने खुशी से कहा। “हां बेटा, अब कोई हमें अलग नहीं कर सकता,” दीक्षा जी ने उसे गले लगाते हुए कहा।

इस खुशी की खबर सुनकर पूरे शहर में चर्चा होने लगी। डीएम साहिबा को उनका खोया हुआ बेटा मिल गया था। यह न्यूज़ लोकल अखबारों में भी छपी। अनाथ आश्रम के सुपरिटेंडेंट भी बहुत खुश थे।

“यह तो अविश्वसनीय है मैडम।” हर्षित के स्कूल में भी सब टीचर्स और बच्चे इस बात को जानकर हैरान रह गए। अब कोई भी उससे यह नहीं कहता था कि वह अडॉप्टेड है। प्रिंसिपल ने दीक्षा जी से कहा, “मैडम, हर्षित सच में बहुत लकी है कि उसे आप जैसी मां मिली।”

मां का गर्व

लेकिन दीक्षा जी जानती थीं कि असल में वह ही लकी थीं कि उन्हें उनका बेटा वापस मिल गया था। शाम को घर आकर हर्षित ने बताया, “मम्मी, आज सारे बच्चे मुझसे कह रहे थे कि मैं कितना लकी हूं। मैंने सबको बताया कि आप वर्ल्ड की बेस्ट मम्मी हैं।”

कुछ महीने बाद दीक्षा जी ने हर्षित के साथ अपने पति आदित्य की कब्र पर जाने का फैसला किया। “हर्षित, चलो अपने पापा से मिलने चलते हैं,” उन्होंने कहा। कब्रिस्तान में पहुंचकर हर्षित ने अपने पापा की कब्र पर फूल चढ़ाए।

“पापा, मैं आपका बेटा हर्षित हूं। मैं मम्मी के साथ बहुत खुश हूं। आप चिंता मत करिए। मैं हमेशा मम्मी का ख्याल रखूंगा,” उसने भावुक होकर कहा। दीक्षा जी भी रो रही थीं। “आदित्य, हमारा बेटा वापस आ गया है। अब मैं अकेली नहीं हूं।”

उम्मीद का उजाला

वापसी में हर्षित ने पूछा, “मम्मी, क्या पापा को पता चल गया होगा कि मैं वापस आ गया हूं?” “हां बेटा, पापा को सब पता है। वह भी बहुत खुश होंगे,” दीक्षा जी ने कहा।

उस दिन के बाद से हर्षित अक्सर अपने पापा की फोटो के सामने बैठकर उनसे बात करता था। वह उन्हें अपने स्कूल की बातें बताता था और यह भी कहता था कि वह कितना अच्छा स्टूडेंट बनने की कोशिश कर रहा है।

एक साल बाद हर्षित के बर्थडे पर दीक्षा जी ने एक बड़ी पार्टी ऑर्गेनाइज की। इसमें उसके सारे क्लासमेट्स, टीचर्स, अनाथ आश्रम के बच्चे और शहर के कई इंपॉर्टेंट लोग आए थे।

जश्न का माहौल

“आज मेरे बेटे का नाइंथ बर्थडे है,” दीक्षा जी ने भाषण में कहा। हर्षित भी स्टेज पर आकर बोला, “मैं सबको थैंक यू कहना चाहता हूं। पहले मैं सोचता था कि मैं अकेला हूं, लेकिन अब मुझे पता चला कि मेरी भी एक मम्मी है जो मुझसे बहुत प्यार करती है। मैं प्रॉमिस करता हूं कि मैं बड़ा होकर एक अच्छा इंसान बनूंगा।”

सभी लोगों की आंखों में आंसू आ गए। यह सिर्फ एक बर्थडे पार्टी नहीं थी। यह एक मां और बेटे के मिलन का जश्न था। अनाथ आश्रम के सुपरिटेंडेंट ने कहा, “यह स्टोरी सभी को इंस्पायर करती है कि कभी उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए।”

नई उम्मीदें

हर्षित पढ़ाई में बहुत अच्छा था और हमेशा क्लास में फर्स्ट आता था। दीक्षा जी को उस पर बहुत गर्व था। “मम्मी, मैं बड़ा होकर आप जैसा आईएएस ऑफिसर बनूंगा। फिर मैं गरीब बच्चों की मदद करूंगा,” हर्षित ने एक दिन कहा।

यह बहुत अच्छी बात है बेटा। लेकिन जो भी बनना, एक अच्छा इंसान बनना,” दीक्षा जी ने उसे समझाया। हर्षित ने अपने स्कूल में “हेल्प द नीडी” नाम का एक क्लब भी बनाया था। जहां बच्चे गरीब लोगों के लिए डोनेशन कलेक्ट करते थे।

वह अक्सर दीक्षा जी के साथ अनाथ आश्रम भी जाता था और वहां के बच्चों के साथ खेलता था। “मम्मी, यह बच्चे भी मेरी तरह अकेले हैं। काश इन सबको भी अपने मम्मी-पापा मिल जाए,” वह कहता था।

एक मजबूत बंधन

दीक्षा जी देखती थीं कि उनका बेटा ना सिर्फ इंटेलिजेंट है बल्कि दिल से भी बहुत अच्छा है। “तुम्हारे पापा भी तुम्हें देखकर बहुत प्राउड फील करते होंगे,” वह अक्सर कहती थीं।

2 साल बाद जब हर्षित 11 साल का हो गया, तो उसने अपनी असली स्टोरी के बारे में और जानना चाहा। “मम्मी, उस दिन एक्सीडेंट के बाद मैं कैसे अनाथ आश्रम पहुंचा था?” यह एक डिफिकल्ट सवाल था क्योंकि इसका जवाब किसी के पास नहीं था।

दीक्षा जी ने पुराने पुलिस रिकॉर्ड्स चेक किए। एक रिटायर्ड पुलिस इंस्पेक्टर विराट सिंह से मिलकर उन्होंने पूरी जानकारी ली। “मैडम, उस दिन एक्सीडेंट के बाद आपका बेटा शायद डर से भाग गया होगा। वह छोटा था और कंफ्यूजन में कहीं भटक गया होगा। कोई अच्छा इंसान उसे उठाकर अनाथ आश्रम छोड़ गया होगा,” विराट सिंह ने बताया।

जीवन की सच्चाई

यह एक्सप्लेनेशन लॉजिकल भी था। एक साल का बच्चा एक्सीडेंट की वजह से डर कर भाग सकता था। लेकिन अच्छी बात यह है कि आप दोनों को आखिरकार मिल ही गए।

हर्षित अब एक मैच्योर बच्चा बन गया था। वह समझ गया था कि लाइफ हमेशा इजी नहीं होती। “मम्मी, अब मैं आपकी वैल्यू और भी ज्यादा करता हूं क्योंकि मैं जानता हूं कि मां का प्यार कितना प्रेशियस है,” वह अक्सर कहता था।

समाज के प्रति जिम्मेदारी

दीक्षा जी ने देखा कि आठ साल के सेपरेशन के बावजूद उनके बीच का बॉंड कितना स्ट्रांग था। नेचर और नर्चर दोनों का इफेक्ट होता है। “तुम्हारे अंदर अच्छी वैल्यूज़ हैं और यही सबसे इंपॉर्टेंट है,” वह उसे समझाती थीं।

स्कूल के एनुअल फंक्शन में जब हर्षित ने बेस्ट स्टूडेंट का अवार्ड जीता, तो उसने अपने स्पीच में कहा, “यह अवार्ड सिर्फ मेरा नहीं है। यह मेरी मां का भी है। जिन्होंने मुझे सब कुछ दिया।”

सफलता की सीढ़ी

5 साल बाद जब हर्षित 16 साल का हो गया, तो उसने अपने फ्यूचर प्लांस के बारे में सोचना शुरू किया। “मम्मी, मैं मेडिकल एंट्रेंस एग्जाम देना चाहता हूं। मैं डॉक्टर बनकर लोगों की सर्विस करना चाहता हूं,” उसने अपना डिसीजन शेयर किया।

दीक्षा जी को यह बात सुनकर बहुत खुशी हुई। “यह बहुत अच्छी बात है बेटा। डॉक्टर बनना एक नोबल प्रोफेशन है,” उन्होंने कहा। हर्षित की पढ़ाई के लिए दीक्षा जी ने बेस्ट कोचिंग इंस्टिट्यूट में एडमिशन कराया।

वह देखती थीं कि उनका बेटा कितनी मेहनत से पढ़ता है। “मम्मी, मैं इसलिए डॉक्टर बनना चाहता हूं क्योंकि उस दिन जब मेरा एक्सीडेंट हुआ था, तो डॉक्टर्स ने मेरी जान बचाई थी। अब मैं भी दूसरों की जान बचाना चाहता हूं,” उसने अपनी मोटिवेशन एक्सप्लेन की।

एक नई पहचान

यह सुनकर दीक्षा जी को एहसास हुआ कि लाइफ का हर इवेंट एक रीजन के साथ होता है। “अगर उस दिन तुम्हारा एक्सीडेंट नहीं होता, तो हम मिल ही नहीं पाते,” वह कहती थीं।

हां मम्मी, और फिर मुझे यह भी नहीं पता चलता कि लाइफ में कितने अलग-अलग एक्सपीरियंसेस होते हैं। 2 साल बाद जब हर्षित ने मेडिकल एंट्रेंस एग्जाम क्लियर किया और एक प्रेस्टीजियस मेडिकल कॉलेज में एडमिशन मिला, तो पूरे शहर में सेलिब्रेशन हुई।

“डीएम साहिबा के बेटे ने नीट में टॉप रैंक किया है,” यह न्यूज़ सभी अखबारों में छपी। एडमिशन सेरेमनी में दीक्षा जी ने कहा, “आज मैं एक मां के रूप में सबसे ज्यादा खुश हूं। हर्षित ने प्रूफ कर दिया कि अगर डिटरमिनेशन और हार्ड वर्क हो, तो कुछ भी पॉसिबल है।”

एक नई शुरुआत

हर्षित ने अपने स्पीच में कहा, “मैं सबसे पहले अपनी मां को थैंक करना चाहता हूं। जिन्होंने मुझे एक अनाथ बच्चे से उठाकर आज यहां तक पहुंचाया है। आज मैं जो कुछ भी हूं, वह सिर्फ उनकी वजह से हूं।” यह सुनकर पूरी ऑडियंस इमोशनल हो गई।

अनाथ आश्रम के सुपरिंटेंडेंट भी सेरेमोनी में आए थे। “यह स्टोरी हमेशा याद रखी जाएगी कि कैसे एक मां का प्यार और एक बच्चे की मेहनत मिलकर मिरेकल्स क्रिएट कर सकते हैं,” उन्होंने कहा।

अंत में

उस दिन दीक्षा जी को लगा कि उनकी लाइफ की सबसे बड़ी अचीवमेंट यही है कि उन्हें अपना बेटा मिल गया और वह एक सक्सेसफुल इंसान बन रहा है। हर्षित ने अपने जीवन में जो भी संघर्ष किया, वह उसे और भी मजबूत बना गया।

इस कहानी से यह सिखने को मिलता है कि जीवन में कठिनाइयां आती हैं, लेकिन प्यार और मेहनत से हर मुश्किल का सामना किया जा सकता है। एक मां का प्यार और एक बेटे की मेहनत ने मिलकर एक नई कहानी लिखी, जो हमेशा याद रखी जाएगी।

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