DM मैडम रात में शादी से लौट रहीं थी पुलिस ने बीच सड़क पर रोका और गंदी हरकत करने लगे फिर जो हुआ…
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DM मैडम रिदा वर्मा की रात
उत्तर प्रदेश के सरायपुर गांव की मिट्टी में जन्मी रिदा वर्मा ने अपनी मेहनत और लगन से आईएएस की परीक्षा पास की थी। वे अब जिले की डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट थीं, लेकिन उनके दिल में गांव की खुशबू और बचपन की यादें हमेशा ताजा रहती थीं। शहर की भागदौड़ और सरकारी जिम्मेदारियों के बीच जब उनकी चचेरी बहन अनन्या की शादी का निमंत्रण आया, रिदा ने एक महीने की छुट्टी लेने का फैसला किया। यह छुट्टी उन्हें अपनी जड़ों से जोड़ने वाली थी।
गांव पहुंचते ही परिवार ने उनका स्वागत किया। मां ने माथे पर टीका लगाया, पिता ने गले लगाया और अनन्या ने शादी की तैयारियों की लंबी सूची सुनाई। रिदा ने तय किया कि वे अपनी DM वाली पहचान छुपाकर, सादा सलवार-सूट पहनकर, बिना मेकअप के घर में घुल-मिल जाएंगी। दिनभर वे रिश्तेदारों के साथ हंसी-मजाक, मेहंदी, मिठाइयों और शादी की रस्मों में व्यस्त रहीं। शाम को गांव की गलियों में टहलते हुए बचपन की यादें ताजा हो जातीं। शादी का माहौल उत्साह और उमंग से भरा था।
लेकिन एक रात उनकी जिंदगी बदलने वाली थी। शादी से दो दिन पहले रिदा को नींद नहीं आ रही थी। उन्होंने सोचा, बाहर टहलने से मन हल्का हो जाएगा। रात के करीब दस बजे वे चुपके से घर से निकल गईं। सादे कपड़ों में, बिना किसी आभूषण के, वे गांव की सुनसान सड़क पर चलने लगीं। चांद की हल्की रोशनी सड़क पर बिखरी थी। दूर कहीं कुत्ते भौंक रहे थे। रिदा ने सोचा, बस थोड़ा घूमकर लौट जाएंगी।
तभी अचानक एक पुलिस जीप की रोशनी उनकी आंखों में पड़ी। जीप रुकी और उसमें से चार पुलिस वाले उतरे – दरोगा राम सिंह, कांस्टेबल विजय, राजेश और सुरेश। उनकी नजरें रिदा पर टिक गईं। राम सिंह ने कड़क आवाज में पूछा, “इतनी रात को अकेली लड़की कौन हो तुम?”
रिदा ने संयमित स्वर में जवाब दिया, “मैं यहीं की हूं, शादी में आई हूं।”
पुलिस वालों की मुस्कान में कुछ गलत था। रिदा ने उनकी संदिग्ध नजरों को भांप लिया, लेकिन खुद को संयमित रखा।
राम सिंह ने आगे बढ़कर फिर पूछा, “नाम क्या है? इतनी रात को बाहर क्यों घूम रही हो?”
रिदा ने सोचा, अगर वे अपनी DM वाली पहचान बता देंगी तो गांव में बात फैल जाएगी। उन्होंने शांत स्वर में कहा, “मेरा नाम रिदा है। बहन की शादी के लिए आई हूं, बस थोड़ा घूमने निकली हूं।”
उनकी सादगी भरी बात सुनकर कांस्टेबल विजय हंसा, “शादी में ऐसे कपड़े, कुछ तो गड़बड़ है।” बाकी पुलिस वाले भी हंसने लगे। रिदा असहज महसूस करने लगीं। राम सिंह ने टॉर्च उनकी तरफ घुमाई, “आईडी दिखाओ।”
रिदा के पास कोई पहचान पत्र नहीं था। वे तो बस यूं ही घर से निकली थीं।
“मेरे पास अभी आईडी नहीं है।”
पुलिस वालों की नजरें और सख्त हो गईं। “बिना आईडी के रात को घूम रही हो? चलो थाने चलो।”
रिदा ने विरोध किया, “मैंने कुछ गलत नहीं किया।”
लेकिन पुलिस वाले नहीं माने। कांस्टेबल राजेश ने उनका हाथ पकड़ लिया और जबरदस्ती जीप की तरफ खींचने लगा। रिदा ने खुद को छुड़ाने की कोशिश की, लेकिन चार मर्दों के सामने उनकी ताकत कम थी। जीप में बिठाते समय सुरेश ने उनके कंधे पर हाथ रखा और हंसते हुए भद्दी टिप्पणी की। रिदा का गुस्सा बढ़ रहा था, लेकिन वे शांत रहीं।
थाने पहुंचने पर रिदा को एक छोटे कमरे में ले जाया गया। राम सिंह ने कुर्सी पर बैठकर फिर पूछा, “अब सच बोलो, तुम कौन हो?”
रिदा ने वही जवाब दोहराया। लेकिन पुलिस वालों का रवैया बदल गया। विजय ने टिप्पणी की, “ऐसी लड़कियां रात में बाहर घूमती हैं तो कुछ ना कुछ गलत ही करती हैं।”
रिदा ने गुस्से से जवाब दिया, “मैं सम्मानजनक औरत हूं, आप गलत बोल रहे हैं।”
राम सिंह ने टेबल पर हाथ मारा, “झूठ मत बोलो।”
अब पूछताछ के नाम पर छेड़छाड़ शुरू हो गई। राजेश ने रिदा का दुपट्टा छूने की कोशिश की। रिदा ने उसे धक्का दिया, लेकिन विजय ने उनका हाथ पकड़ लिया। रिदा चीखी, “यह गलत है, मुझे छोड़ दो।” उनकी आवाज दीवारों से टकराकर लौट आई। पुलिस वालों की हिम्मत बढ़ती जा रही थी। रिदा अपनी पहचान बताने के बारे में सोचने लगीं, लेकिन अपमान और गुस्से ने उन्हें चुप रहने पर मजबूर कर दिया।
रात गहराती जा रही थी। थाने का माहौल भयावह था। दरोगा राम सिंह की आंखों में अजीब चमक थी। कांस्टेबल विजय और राजेश रिदा के इर्द-गिर्द मंडरा रहे थे। सुरेश दरवाजे पर खड़ा होकर हंस रहा था। रिदा ने फिर कहा, “मैंने कुछ गलत नहीं किया, मुझे जाने दो।”
राम सिंह ने हंसते हुए कहा, “जाने देंगे, लेकिन पहले सच तो बोलो। ऐसी लड़कियां रात में सड़कों पर नहीं घूमती।”
रिदा का गुस्सा उबल रहा था, लेकिन वे जानती थीं कि यहां चिल्लाने से कुछ नहीं होगा।
विजय ने उनके करीब आकर कहा, “तो शादी में ऐसे कपड़े, कोई मेकअप नहीं, कोई गहना नहीं, कुछ तो गड़बड़ है।”
उसने रिदा के दुपट्टे को खींचने की कोशिश की। रिदा ने तुरंत अपना दुपट्टा पकड़ा और पीछे हटी। लेकिन राजेश ने उनका रास्ता रोक लिया, “कहां भाग रही हो मैडम?”
रिदा ने जोर से कहा, “मुझे छूने की हिम्मत मत करना।”
राम सिंह ने कुर्सी से उठकर रिदा की तरफ कदम बढ़ाया, “तुम जितना चिल्लाओगी उतना बुरा होगा। चुपचाप सच बोल दो।”
रिदा ने गहरी सांस ली, “मैं सच बोल रही हूं।”
तभी विजय ने उनका हाथ जोर से पकड़ा। रिदा ने उसे धक्का दे दिया। इससे पुलिस वालों का गुस्सा भड़क गया।
राम सिंह ने चिल्लाकर कहा, “हमें धक्का देगी? तुझे सबक सिखाते हैं।”
उसने रिदा को थप्पड़ मार दिया। रिदा का चेहरा दर्द से लाल हो गया, लेकिन उन्होंने आंसू नहीं आने दिए।
राजेश और सुरेश ने भी हिम्मत पकड़ी और रिदा को धक्का देकर दीवार की तरफ खींचा।
रिदा चीखी, “यह गलत है! तुम लोग कानून तोड़ रहे हो!”
विजय ने उनका दुपट्टा फिर से खींचा और इस बार वह फट गया। रिदा ने अपने कपड़ों को पकड़ने की कोशिश की, लेकिन पुलिस वालों की ताकत के सामने वे असहाय थीं।
राम सिंह ने लाठी उठाई और रिदा के कंधे पर मारी। दर्द से रिदा कराह उठी, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।
“तुम्हें इसकी सजा मिलेगी!” उन्होंने कांपती आवाज में कहा।
पुलिस वालों ने हंसते हुए कहा, “यहां हमारा राज है।”
रिदा को जबरदस्ती एक छोटे से सेल में ले जाया गया, हथकड़ी लगाकर अंदर बंद कर दिया गया।
सेल की दीवारें ठंडी थीं, फर्श गंदा। रिदा ने दीवार के सहारे बैठकर अपने दर्द को सहा। उनके कपड़े फटे हुए थे, चेहरा लाल और शरीर पर चोट के निशान। लेकिन उनके मन में गुस्सा और इंसाफ का जज्बा था। वे सोच रही थीं, क्या उन्हें अपनी पहचान बता देनी चाहिए थी? रात गहराती जा रही थी और थाने में सन्नाटा था। लेकिन सुबह एक नया तूफान लाने वाली थी।
सुबह सफाई वाला कर्मचारी आया। उसने रिदा को देखा और पहचान लिया, “यह तो DM मैडम हैं!”
उसने तुरंत बाहर जाकर एक कांस्टेबल को बताया। खबर फैलने लगी। थाने में हड़कंप मच गया। राम सिंह का चेहरा पीला पड़ गया। तभी थाने का फोन बजा, जिला पुलिस अधीक्षक की आवाज थी, “राम सिंह, तुमने क्या किया? सेल में जो लड़की है वह DM रिदा वर्मा है!”
राम सिंह के हाथ से चाय का कप छूट गया। पूरा थाना घबरा गया। रिदा को बाहर निकालने की तैयारी शुरू हो गई।
रिदा को सेल से बाहर निकाला गया। अब पुलिस वालों की हिम्मत जवाब दे रही थी। राम सिंह ने हाथ जोड़कर कहा, “मैडम, हमें माफ कर दीजिए, हमें नहीं पता था कि आप DM हैं।”
रिदा ने ठंडी नजरों से देखा। उनके कपड़े फटे हुए थे, चेहरे पर चोट के निशान और कलाइयों पर हथकड़ी के दाग।
“मुझे माफ करने की बात बाद में होगी,” उन्होंने कड़क स्वर में कहा, “पहले यह बताओ कि तुमने मेरे साथ ऐसा क्यों किया?”
राम सिंह कुछ बोल नहीं पाया। कांस्टेबल विजय, राजेश और सुरेश सिर झुकाए खड़े थे।
रिदा ने अपनी हथकड़ियां दिखाईं, “इन्हें खोलो।”
राम सिंह ने जल्दी से चाबी निकाली और हथकड़ियां खोल दीं।
रिदा ने अपने कपड़े ठीक किए, लेकिन अपमान का दर्द उनके चेहरे पर साफ दिख रहा था।
तभी जिला कलेक्टेट से फोन आया, वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “राम सिंह, तुम्हारा तबादला तय है, और जो इस हरकत में शामिल थे उनकी जांच होगी।”
रिदा ने कहा, “तुमने सिर्फ मुझ पर नहीं, कानून पर हमला किया है। अगर मैं DM ना होती तो क्या होता?”
पुलिस वाले सिर झुकाए खड़े रहे।
रिदा ने फोन मांगा और अपने सहकर्मी को कॉल किया, “मुझे यहां से ले जाओ, और इस थाने की पूरी जांच होनी चाहिए।”
सरकारी गाड़ी आई, रिदा को सम्मान के साथ जिला मुख्यालय ले जाया गया। लेकिन उनके मन में गुस्सा और दर्द था। वे जानती थीं कि यह सिर्फ उनकी कहानी नहीं थी, कई औरतें ऐसी व्यवस्था का शिकार होती हैं।
रिदा ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखा, अपनी घटना और सिस्टम की खामियों को उजागर किया। उन्होंने लिखा, “अगर एक DM के साथ ऐसा हो सकता है तो आम औरतों का क्या हाल होगा?”
मुख्यमंत्री ने मामले को गंभीरता से लिया, उच्च स्तरीय जांच कमेटी गठित की। राम सिंह और उसके साथी सस्पेंड हुए, उनके खिलाफ FIR दर्ज हुई।
रिदा ने गांव में पंचायत बुलाई, अपनी कहानी सुनाई, “मैं आपकी बेटी हूं, आपकी बहन हूं। मेरे साथ जो हुआ वह किसी के साथ भी हो सकता है।”
गांव वालों ने उनकी हिम्मत की तारीफ की।
रिदा ने स्थानीय NGO के साथ मिलकर “सुरक्षित सड़कें, हर औरत का हक” अभियान शुरू किया।
उन्होंने स्कूलों में सेल्फ डिफेंस की व्यवस्था करवाई, हेल्पलाइन नंबर शुरू किया। जिले में जागरूकता शिविर लगाए, पुलिस वालों को संवेदनशीलता की ट्रेनिंग दी।
राम सिंह और उसके साथियों को कोर्ट में 7 साल की सजा मिली।
सरायपुर की सड़कों पर स्ट्रीट लाइट्स, CCTV लगवाए गए।
रिदा की छुट्टियां खत्म हो रही थीं, लेकिन उनकी लड़ाई जारी थी।
मुख्यमंत्री ने उन्हें राज्य स्तर पर सम्मानित किया।
रिदा ने अपनी डायरी में लिखा, “यह मेरी जीत नहीं, हर उस औरत की जीत है जो रात में बिना डर के सड़क पर चलना चाहती है।”
रिदा वर्मा की कहानी अब सिर्फ एक घटना नहीं, आंदोलन बन चुकी थी। उनकी बहादुरी ने हजारों औरतों को आवाज दी, सिस्टम को बदलने की राह दिखाई।
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