DM मैडम सादे कपड़ो में फल बेच रही थी दरोगा आकर अवैध वसूली करने लगा फिर DM ने पूरी हेकड़ी निकाल दी
डीएम नंदिनी एक ईमानदार और निडर अधिकारी थी, जिसने अपने शहर को भ्रष्टाचार से मुक्त करने का बीड़ा उठाया था। एक दिन उसने साधारण वेश में बाजार का निरीक्षण करने का फैसला किया, जहां उसे पता चला कि एक दरोगा विक्रम रात में दुकानदारों से अवैध वसूली करता है। जो नहीं देता, उसकी दुकान जला दी जाती है और उसे बेरहमी से मारा जाता है।
नंदिनी ने भेष बदलकर खुद फल बेचने वाली बनकर विक्रम की हरकतों को कैमरे में कैद किया। उसने देखा कि कैसे विक्रम एक दुकानदार रमेश की दुकान में आग लगवा देता है, क्योंकि उसने वसूली देने से इनकार कर दिया था। नंदिनी का खून खौल उठा, लेकिन उसने संयम रखा और सबूत इकट्ठा किए।
नंदिनी ने अपने भरोसेमंद असिस्टेंट राजेश को विक्रम की हर गतिविधि पर नजर रखने को कहा। राजेश ने एक गोदाम में विक्रम के काले कारनामों का वीडियो रिकॉर्ड किया, लेकिन पकड़ा गया और उसे बुरी तरह मारा गया। नंदिनी ने राजेश की कुर्बानी को बेकार नहीं जाने दिया और उसने प्लान बनाया विक्रम को पकड़ने का।
नंदिनी ने शहर के दुकानदारों को एक गुप्त बैठक में बुलाया और उन्हें अपने साथ आने को कहा। उन्होंने विक्रम और उसके आकाओं के खिलाफ सबूत इकट्ठे किए और एक बड़े ऑपरेशन की योजना बनाई।
ऑपरेशन के तहत विक्रम, एसपी और एक मंत्री को गिरफ्तार कर लिया गया। शहर में लोग सड़कों पर उतर आए और नंदिनी की जयकार करने लगे। लेकिन नंदिनी जानती थी कि लड़ाई अभी बाकी है, क्योंकि असली ताकतवर लोग अभी भी छिपे हुए थे।
नंदिनी ने एक हेल्पलाइन नंबर जारी किया, जिससे लोग गुप्त रूप से अपनी बात कह सकें। धीरे-धीरे 342 गवाही और 109 नाम सामने आए। एक 13 साल की बच्ची ने बताया कि कैसे उसके पिता की दुकान जलाई गई थी। नंदिनी ने शहर के हर गली-मोहल्ले में जन सुनवाई शुरू की।
नंदिनी पर दबाव बढ़ने लगा, लेकिन उसने हार नहीं मानी। उसने स्कूलों में ईमानदारी सप्ताह शुरू किया, जहां बच्चे भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलना सीखें। शहर बदलने लगा, लोग खुलकर बोलने लगे।
तभी एक गुमनाम चिट्ठी आई, जिसमें एक शख्स का जिक्र था जो देश के चार शहरों में ऐसे ही नेटवर्क चला रहा था – कोड नेम यू 42। नंदिनी ने अपनी टीम को अलर्ट किया और एक नए ऑपरेशन की तैयारी शुरू की।
नंदिनी ने कहा, “यह लड़ाई अब चार शहरों की होगी। हम शहरों के साथ लड़ेंगे, बिना छिपे। क्योंकि अब हमें सिर्फ सड़कों से नहीं, सोच से लड़ना है।”
कहानी यहीं खत्म नहीं हुई, यह तो बस पहला अध्याय था। सिस्टम को झटका मिला है, लेकिन जड़ें अब भी हैं। नंदिनी तैयार है, राजेश तैयार है, और शायद अगली बार आप भी होंगे। क्योंकि बदलाव वहीं से शुरू होता है जहां डर खत्म होता है।
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