Patni Ne kidni dekar Pati ki jaan bachai,hosh mein aate hi Diya patni ko talaq,wajah Samne I to

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मालती ने किडनी देकर पति की जान बचाई, पर जब होश में आया तो पति ने दिया तलाक — वजह जानकर हर कोई दंग रह गया

अस्पताल के सन्नाटे भरे कमरे में जब मालती की आंखें खुलीं, तो उसे पेट के बाएं ओर तेज चुभता हुआ दर्द महसूस हुआ। दर्द इतना तीव्र था कि उसका शरीर कांप उठा। फिर भी उसके दिमाग में एक ही नाम गूंज रहा था — विकास। “विकास ठीक है न?” उसने कमजोर आवाज़ में पूछा। पास खड़ी नर्स ने उसका माथा पोंछते हुए मुस्कुराते हुए कहा, “चिंता मत कीजिए, मालती जी। ऑपरेशन पूरी तरह सफल रहा। आपके पति खतरे से बाहर हैं, बस अभी उन्हें होश नहीं आया है।”

मालती के लिए यह शब्द किसी अमृत से कम नहीं थे। उसका दिल जो कई घंटों से डर और बेचैनी में डूबा था, अब हल्का महसूस कर रहा था। “मुझे उनसे मिलना है,” उसने जिद भरी आवाज़ में कहा। लेकिन डॉक्टर ने कमरे में आकर नरम लेकिन दृढ़ स्वर में कहा, “अभी नहीं, मालती जी। आपने अपनी एक किडनी दान की है। आपका शरीर अभी ऑपरेशन से गुजरा है। आपको और विकास दोनों को आराम की जरूरत है। आप दोनों अलग-अलग रिकवरी रूम में हैं और हम आपकी निगरानी कर रहे हैं।”

मालती का दिल बेचैन था। वह विकास को अपनी आंखों से देखना चाहती थी, उसका हाथ थामना चाहती थी, यह बताना चाहती थी कि वे इस जंग में एक साथ जीत गए हैं। लेकिन डॉक्टर की बात में तर्क था, इसलिए उसने खुद को समझाया और हर पल को काटने लगी। उसका इंतजार उस पल का था जब वह विकास के सामने होगी, उसकी आंखों में देखेगी और कहेगी, “देखो, हमने कर दिखाया।”

अंततः वह दिन आ गया। डॉक्टर ने मालती को विकास के कमरे में जाने की इजाजत दी। दर्द के बावजूद उसका दिल खुशी से उछल रहा था। वह सोच रही थी कि विकास उसे देखकर क्या कहेगा, शायद उसकी आंखें नम हो जाएंगी, शायद वह उसका हाथ थाम कर कहेगा, “तुम मेरे लिए सब कुछ हो।”

मालती नर्स के सहारे कमजोर कदमों से विकास के बिस्तर के पास पहुंची। विकास की आंखें खुली थीं, लेकिन वह छत को देख रहा था जैसे उसका मन कहीं और भटक रहा हो। विकास की आवाज में खुशी और दर्द का मिश्रण था। उसने अपना हाथ बढ़ाया, विकास का हाथ थामने के लिए, लेकिन जो हुआ, उसने कभी कल्पना भी नहीं की थी। विकास ने झटके से अपना हाथ खींच लिया। उसकी आंखों में कोई गर्मजोशी नहीं, बल्कि ठंडी, अनजानी खामोशी थी। बिना मालती की ओर देखे, उसने सपाट और बेरुखी भरी आवाज में कहा, “मालती, मुझे तुमसे तलाक चाहिए।”

यह शब्द मालती के लिए बिजली के करंट की तरह थे। उसका दिल एक पल के लिए रुक गया, शरीर सुन्न पड़ गया और आंखों के सामने अंधेरा छा गया। वह समझ नहीं पा रही थी कि यह क्या हो रहा है। नर्स ने उसे व्हीलचेयर में वापस उसके कमरे तक पहुंचाया। बिस्तर पर लेटते ही वह छत को घूरने लगी, जैसे जवाब वहां कहीं लिखे हों। उसके दिमाग में एक ही सवाल बार-बार गूंज रहा था — क्यों? आखिर क्यों? क्या गलती थी उसकी? क्या उसका प्यार, उसका त्याग इतना कमजोर था कि विकास ने उसे इस तरह ठुकरा दिया?

मालती की आंखों के सामने सब धुंधला हो गया। वह अतीत की उन गलियों में खो गई जहां सब कुछ खूबसूरत था। छह महीने पहले तक मालती और विकास की दुनिया किसी परीकथा से कम नहीं थी। लखनऊ के एक छोटे से मोहल्ले में विकास अपनी ज्वेलरी की दुकान चलाता था और मालती प्राइमरी स्कूल में शिक्षिका थी। उनकी शादी को ढाई साल हुए थे और उनका प्यार हर दिन गहरा होता जा रहा था। वीकेंड पर वे गोमती नदी के किनारे लंबी सैर पर जाते, चाय की टपरी पर घंटों बातें करते और भविष्य के सपने बुनते।

विकास अक्सर कहता, “तुम मेरी ताकत हो, मालती। तुम्हारे बिना मैं अधूरा हूं।” लेकिन उनकी खुशहाल दुनिया पर काले बादल मंडराने लगे। विकास की सेहत में अजीब गिरावट आने लगी। वह पहले जैसा चुलबुला और हंसमुख नहीं रहा। दुकान से लौटते ही थक कर चूर हो जाता। कभी-कभी हल्का बुखार रहता, जिसे वह काम के तनाव का नतीजा मानकर टाल देता। पैरों में सूजन दिखने लगी, जिसे वह लंबे समय तक खड़े रहने का परिणाम समझता। मालती बार-बार चिंता जताती, लेकिन विकास उसकी फिक्र को हंसी में उड़ा देता, “अब तुम डॉक्टर बनने की कोशिश मत करो।”

एक दिन दुकान पर सीढ़ियां चढ़ते वक्त विकास की सांस फूल गई, उसकी आंखों के सामने अंधेरा छा गया और वह बेहोश होकर गिर पड़ा। आसपास के दुकानदारों ने उसे तुरंत लखनऊ के एक नामी अस्पताल में भर्ती कराया। मालती स्कूल से छुट्टी लेकर बदहवास हालत में वहां पहुंची। डॉक्टरों ने कई टेस्ट किए और अगले दिन सीनियर नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ. शर्मा ने उन्हें बुलाया। रिपोर्ट्स दिखाते हुए डॉ. शर्मा ने गहरी सांस ली, “मिस्टर विकास, खेद है, आपकी एक किडनी पूरी तरह फेल हो चुकी है और दूसरी भी 45% खराब है।”

यह सुनकर विकास को लगा जैसे जमीन उसके पैरों तले खिसक गई हो। मालती ने अविश्वास से डॉक्टर की ओर देखा, “डॉक्टर साहब, कोई गलती तो नहीं? विकास तो सिर्फ 33 साल का है। हमने सभी टेस्ट दोबारा चेक किए हैं।”

डॉ. शर्मा ने सहानुभूति भरे स्वर में कहा, “अब हमारे पास दो ही रास्ते हैं — या तो आजीवन डायलिसिस या किडनी ट्रांसप्लांट।” विकास का चेहरा पीला पड़ गया, गला सूख गया। उनके सपने — अपना घर, बच्चे, खुशहाल परिवार — सब एक पल में बिखर गए। मालती की आंखों से आंसू छलक पड़े, लेकिन उसने खुद को संभाला, “डॉक्टर साहब, कोई रास्ता तो होगा, कृपया बताएं।”

“किडनी ट्रांसप्लांट ही एकमात्र स्थायी समाधान है, लेकिन इसके लिए डोनर ढूंढना होगा और यह आसान नहीं है।”

घर लौटने पर माहौल बदला हुआ था। विकास का डायलिसिस शुरू हो गया — हफ्ते में तीन बार पांच-पांच घंटे की थकाऊ प्रक्रिया। मशीनें शरीर से जहरीले पदार्थ निकालती, पर जिंदादिली वापस नहीं ला पा रही थीं। उसका चेहरा पीला, आंखें धंसी हुई, और वह पहले जैसा हंसता-खेलता विकास नहीं रहा था।

डोनर की तलाश शुरू हुई। माता-पिता उम्र के कारण डोनर नहीं बन सके, बहन का ब्लड ग्रुप अलग था। रिश्तेदारों और दोस्तों में भी कोई डोनर नहीं मिला। विकास का नाम नेशनल ऑर्गन एंड टिश्यू ट्रांसप्लांट ऑर्गेनाइजेशन की वेटिंग लिस्ट में डाल दिया गया, जो अंतहीन इंतजार थी। हर साल हजारों लोग किडनी के इंतजार में दम तोड़ देते।

मालती हर दिन विकास को टूटते देखती। वह आदमी जो कभी हंसता-खेलता था, अब बिस्तर से उठने में भी हाफने लगा था। उसका स्वभाव चिड़चिड़ा हो गया था, और कभी-कभी वह मालती पर ही भड़क उठता, “मुझे अकेला छोड़ दो, मैं तुम्हारा बोझ नहीं बनना चाहता।”

मालती चुपचाप उसके आंसू पोंछती और कहती, “तुम बोझ नहीं, मेरी दुनिया हो।”

एक रात विकास दर्द से कराह रहा था। मालती ने उसका सिर अपनी गोद में रखा और चुपचाप देखा। चांदनी रात में उसका पीला चेहरा भयावह लग रहा था। उसी पल उसने एक फैसला लिया — एक ऐसा फैसला जो उसकी जिंदगी हमेशा के लिए बदल सकता था।

अगली सुबह नाश्ते की मेज पर परिवार के सामने उसने कहा, “मैं अपनी एक किडनी विकास को दूंगी। टेस्ट हो गए हैं, हमारा ब्लड ग्रुप और टिश्यू पूरी तरह मैच करते हैं।”

कमरे में सन्नाटा छा गया। उसकी मां कांपती आवाज में बोली, “मालती, तू पागल हो गई है। अपनी उम्र और भविष्य के बारे में सोच।”

मालती की आंखों में अटल संकल्प था, “मां, मेरा भविष्य विकास के साथ है। अगर वह नहीं रहा, तो इस जिंदगी का क्या मतलब?”

विकास ने कमजोर आवाज में कहा, “नहीं मालती, मैं तुम्हें इस खतरे में नहीं डाल सकता।”

लेकिन मालती का फैसला पत्थर की लकीर था।

ऑपरेशन की रात मालती और विकास ने एक-दूसरे का हाथ थामे बिताई। विकास ने सिसकते हुए कहा, “मालती, अभी भी वक्त है, मना कर दो। मैं तुम्हारे बिना जीने का बोझ नहीं उठा सकता।”

मालती ने आंसू पोंछे और कहा, “प्यार में बोझ नहीं, साझेदारी होती है। मैं तुम्हें अपनी किडनी नहीं, अपनी आधी जिंदगी दे रही हूं। हम यह जंग साथ लड़ेंगे।”

ऑपरेशन सफल रहा। दोनों सुरक्षित थे। लेकिन जब मालती को विकास से मिलने की इजाजत मिली, तो विकास की ठंडी प्रतिक्रिया ने उसे हिला दिया — “मालती, मुझे तुमसे तलाक चाहिए।”

विकास का यह निर्णय उसके अंदर छिपे दर्द और बीमारी की वजह से था। मालती ने तलाक के कागज फाड़ दिए और उसे गले लगा लिया। “मैंने तुम्हें अपनी किडनी इसलिए दी थी कि हम साथ जिएं, चाहे वह एक दिन हो या सौ साल।”

मालती ने हार नहीं मानी। देश-विदेश के डॉक्टरों से संपर्क किया। अंततः स्विट्जरलैंड के एक रिसर्च सेंटर में इम्यूनोथेरेपी शुरू हुई। थेरेपी के साइड इफेक्ट्स से विकास टूट गया, लेकिन मालती उसकी ढाल बनी रही।

अस्पताल के गलियारों में, नर्स सारा खान ने मालती और विकास का साथ दिया। सारा ने मालती के दर्द को समझा और परिवार जैसी बन गई। धीरे-धीरे विकास की हालत में सुधार आने लगा।

डॉ. मार्टिन ने बताया कि रिसर्च ट्रायल एक आखिरी उम्मीद है। मालती ने हिम्मत जुटाई और ट्रायल के लिए हामी भर दी।

ट्रायल के तीसरे दिन विकास को दौरा पड़ा। डॉक्टरों ने तुरंत इलाज शुरू किया। मालती की दुआओं से विकास ने जंग जीती।

कुछ महीनों बाद विकास पूरी तरह स्वस्थ हो गया। दोनों ने भारत लौटने का फैसला किया। गांव वालों ने उनका गर्मजोशी से स्वागत किया।

विकास ने कहा, “तेरे बिना मैं अधूरा था, अब पूरा हो गया हूं।” मालती ने उसे गले लगाया। उनकी आंखों से बहते आंसू उनके प्यार और संघर्ष की गवाही थे।

उनकी जुदाई की लंबी रात खत्म हुई और एक नया सवेरा आया, जिसमें ना दर्द था, ना जुदाई, बस प्यार, अपनापन और साथ जीने का वादा था।

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