Police Officer Ne DM Madam Ki Maa Ko Aam Boodi Samajh Kar Laat Maari… Phir Us Ka Saath Kya Hua!
बाजार की एक सड़कों पर माघमा देवी रोज की तरह अपनी छोटी सी टोकरी लेकर मीठे पके हुए अमरूद बेच रही थी। उनकी दो बेटियां थीं, जो हीरे की तरह पली-बढ़ी थीं। बड़ी बेटी नंदिनी सिंह देश की सरहद पर फौज में अफसर थी, जबकि छोटी सावित्री सिंह उसी शहर की डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट यानी डीएम थी। माघमा देवी को अपनी बेटियों पर बहुत नाज था। जब भी कोई पूछता, “अम्मा, आपकी बेटियां क्या करती हैं?” तो उनका सीना फक्र से चौड़ा हो जाता। वो कहतीं, “एक देश की रक्षा करती है और दूसरी जिले की।”
माघमा देवी का जीवन
माघमा देवी आज भी कभी-कभी बाजार में अमरूद बेचने बैठ जातीं, लेकिन अपनी बेटियों को कभी नहीं बतातीं। सब कुछ ठीक चल रहा था कि तभी एक इंस्पेक्टर, जिसका नाम अरुण चौधरी था, अपनी बुलेट मोटरसाइकिल पर वहां आया। उसने बाइक सड़क किनारे रोकी और सीधा माघमा देवी की टोकरी के पास आकर खड़ा हो गया। अरुण ने टोकरी में से एक अमरूद उठाया और बगैर कुछ कहे मुंह में डाल लिया।
माघमा देवी थोड़ी सकुचाई और बोली, “साहब, अमरूद मीठे हैं। आप चाहें तो तौल दूं।” अरुण चौधरी ने अकड़ते हुए जवाब दिया, “हां हां, दे 1 किलो।” माघमा देवी ने कांपते हाथों से अमरूद तौलकर पैकेट में डाल दिए। अरुण ने पैकेट लिया, फिर से एक अमरूद निकाला और वहीं काट कर खाने लगा। कुछ देर चबाने के बाद उसने मुंह बनाते हुए कहा, “हम यह क्या बेचा है तूने? बिल्कुल बेस्वाद। अमरूद मीठा तो बिल्कुल भी नहीं है।”
अपमान का सामना
माघमा देवी घबरा कर बोली, “नहीं साहब, बहुत मीठे हैं। आप चाहें तो दूसरा चक्कर देख लीजिए।” लेकिन अरुण चौधरी हंसते हुए बोला, “चुप! तेरे अमरूद का एक दाना भी मीठा नहीं। तूने मुझे बेवकूफ बनाया है और सुन, मैं एक भी नहीं दूंगा। समझी?” माघमा देवी ने हिम्मत करके हाथ जोड़ते हुए कहा, “साहब, मेहनत से लाए हैं। कुछ तो पैसे दे दीजिए बस।”
यह सुनते ही अरुण चौधरी का पारा चढ़ गया। उसने गुस्से में झुककर पूरी टोकरी उठाई और सड़क की दूसरी तरफ जोर से फेंक दी। टोकरी पलट गई और सारे अमरूद सड़क, गाड़ियों और नाली में बिखर गए। माघमा देवी सन्न रह गईं। उनकी आंखों में आंसू भर आए। होठ कांपने लगे। उनकी मेहनत और इज्जत दोनों ही सड़क पर कुचली जा रही थी।
आसपास भीड़ जमा हो गई थी। लोग तमाशा देख रहे थे। कान्हा फूंसी कर रहे थे, लेकिन किसी की हिम्मत नहीं हुई कि उस वर्दी वाले से कुछ कहे। फिर अरुण चौधरी ने अपनी मूछों पर ताव दिया, बाइक स्टार्ट की और वहां से ऐसे चला गया जैसे कुछ हुआ ही न हो। भीड़ में से किसी ने माघमा देवी की मदद नहीं की।
रोहित की प्रतिक्रिया
लेकिन पास ही एक घर की छत पर खड़ा एक नौजवान लड़का रोहित यह सब कुछ अपने मोबाइल फोन में रिकॉर्ड कर रहा था। उसका खून खौल रहा था। वो माघमा अम्मा को बचपन से जानता था और उनका बहुत एहतराम करता था। उसने वीडियो रिकॉर्ड करना बंद किया और सोचने लगा कि इस वीडियो का क्या करें। जाने के बाद उसे पता था कि माघमा अम्मा की एक बेटी फौज में है। उसने कहीं से उनका नंबर जुगाड़ किया था।
उसने फौरन वो वीडियो नंदिनी सिंह के हैंडसेट पर भेज दी और नीचे एक छोटा सा मैसेज लिखा, “नंदिनी दीदी, देखें आज बाजार में आपकी मां के साथ क्या हुआ।”
नंदिनी का गुस्सा
हजारों किलोमीटर दूर, बर्फीली पहाड़ियों के बीच, बॉर्डर की एक चौकी पर नंदिनी सिंह अपनी राइफल साफ कर रही थी। तभी उसके फोन पर हैंडसेट का मैसेज टोन बजा। उसने फोन उठाकर देखा तो एक अनजान नंबर से वीडियो आया था। उसने वीडियो प्ले किया। जैसे-जैसे वीडियो आगे बढ़ा, नंदिनी के चेहरे का रंग बदलता गया। उसकी आंखें गुस्से से लाल पड़ गईं।
जब उसने इंस्पेक्टर अरुण चौधरी को अपनी मां की टोकरी उठाकर फेंकते देखा तो उसके हाथ कांपने लगे। उसकी मां, जिसने उसे और उसकी बहन को पालने के लिए अपनी पूरी जिंदगी लगा दी थी, आज सड़क पर बेबस रो रही थी और लोग तमाशा देख रहे थे। उसके अंदर का सिपाही जाग उठा। उसका मन किया कि अभी यहां से जाए और उस इंस्पेक्टर की वर्दी नोच ले। उसने दांत भी लिए। सांसें तेज हो गईं।
सावित्री की तैयारी
उसने फौरन वह वीडियो अपनी छोटी बहन डीएम सावित्री सिंह को फॉरवर्ड कर दी। वीडियो भेजते ही उसने सावित्री को फोन किया। सावित्री उस वक्त अपने दफ्तर में एक जरूरी मीटिंग में थी। उसने अपनी बड़ी बहन का फोन देखा तो मीटिंग रोक कर फोन उठाया और पूछा, “हां दीदी, सब ठीक है। कोई बात तो नहीं?”
नंदिनी की आवाज में गुस्सा और दर्द साफ झलक रहा था। “मैंने तुझे एक वीडियो भेजा है। उसे अभी के अभी देखो।” सावित्री ने फोन होल्ड पर रखा और WhatsApp खोला। वीडियो देखते ही उसके पैरों तले जमीन खिसक गई। उसकी मां, उसकी प्यारी मां सड़क पर बिखरे अमरूद के लिए रो रही थी।
सावित्री का निर्णय
एक मामूली इंस्पेक्टर ने उसकी मां की इज्जत को सड़क पर रौंद दिया था। सावित्री की आंखों में भी आंसू आ गए। मगर उसने खुद को संभाला। वो एक डीएम थी। उसे जज्बात में बहने का हक नहीं था। सावित्री ने कांपती आवाज में कहा, “दीदी, मैं बर्दाश्त नहीं कर सकती यह सब।”
यह सुनते ही नंदिनी फोन पर गुस्से में बोली, “मैं आ रही हूं छुट्टी लेकर। मैं उसे नहीं छोड़ूंगी।” सावित्री नरम आवाज में बोली, “नहीं दीदी, आपकी जरूरत देश की सरहद पर है। यह मेरा इलाका है। यह लड़ाई मैं लूंगी। मां को कानून के तरीके से इंसाफ दिलवाऊंगी।”
नंदिनी कुछ देर चुप रही। वो अपनी बहन की आवाज में छिपे इरादे को समझ गई। बोली, “ठीक है, लेकिन उसे ऐसी सजा मिलनी चाहिए कि उसकी रूह कांप जाए।” सावित्री ने कहा, “आप चिंता मत करो दीदी। अब यह मेरा काम है।”
सावित्री का प्लान
उस रात सावित्री ने पूरा प्लान बनाया। वह जानती थी कि अगर वह डीएम बनकर थाने जाएगी तो सारे पुलिस वाले उसके पैरों में गिर जाएंगे और असल मुजरिम कभी सामने नहीं आएगा। उसे उन्हें अपने हाथों पकड़ना था। अगली सुबह उसने पीला सलवार सूट पहना और अपने सबसे भरोसेमंद अफसर विकास को फोन किया।
“विकास, मैं तुम्हें एक काम दे रही हूं और यह बात हम दोनों के बीच ही रहेगी।” विकास ने कहा, “जी मैडम, हुक्म कीजिए।” सावित्री बोली, “मैं अभी सिविल ड्रेस में शहर के कोतवाली थाने में एक शिकायत दर्ज करवाने जा रही हूं। अपनी पहचान छिपाकर मैं चाहती हूं कि 2 घंटे बाद तुम जिले के एसपी, डीएसपी और बाकी बड़े पुलिस अफसरों की टीम के साथ थाने पहुंचो। जब तक मैं इशारा ना करूं, कोई कदम नहीं उठाना।”
विकास ने कहा, “ठीक है मैडम। जैसा आप कहें।” सावित्री ने फोन रख दिया।
थाने में कार्रवाई
दोस्तों, अब खेल शुरू होने वाला था। सावित्री ने एक सादा सा पीला सलवार सूट पहना। चेहरे पर दुपट्टा डाला और एक आम नागरिक की तरह आंखों में नकाब लिए कोतवाली थाने पहुंची। थाने का माहौल वैसा ही था जैसा उसने सोचा था। एक हवलदार ऊंघ रहा था और संदीप राणा चाय पीते हुए हंसी-मजाक कर रहे थे। इंस्पेक्टर अरुण चौधरी भी मौजूद थे।
सावित्री डरते-डरते उनकी मेज के पास गई। “जी, मुझे एक शिकायत दर्ज करवानी है।” संदीप राणा ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा और पूछा, “क्या हुआ? किसने परेशान किया?” “कल बाजार में इंस्पेक्टर साहब ने…” जैसे ही उसने इंस्पेक्टर का नाम लिया, अरुण चौधरी चौकन्ना हो गया।

सावित्री का साहस
उसने सावित्री को घूर कर देखा, “क्या? इंस्पेक्टर साहब का नाम लिया तूने? और किस इंस्पेक्टर की बात कर रही है?” “जी, आप ही थे। आपने कल बाजार में एक बुजुर्ग औरत के अमरूद की टोकरी सड़क पर फेंकी थी। मैं उनकी बेटी हूं।” सावित्री ने अपनी आवाज में थोड़ी घबराहट लाने की कोशिश की।
यह सुनते ही अरुण और संदीप जोर-जोर से हंसने लगे। “ओहो, तो तू उस बुढ़िया की बेटी है।” अरुण ने मजाक उड़ाते हुए कहा, “तो क्या हुआ? सड़क पर गंदगी फैलाएगी तो लाठी पड़ेगी ना। चल भाग यहां से। कोई एफआईआर नहीं लिखी जाएगी।”
कानून का सामना
सावित्री ने जरा सा हौसला दिखाते हुए कहा, “लेकिन यह गैर कानूनी है। आपने वर्दी का गलत इस्तेमाल किया है।” एसएचओ संदीप गुस्से में बोला, “चुप! हमें कानून सिखाएगी तू। ज्यादा जुबान चलाई तो तुझे ही अंदर कर दूंगा। सरकारी काम में रुकावट डालने के जुर्म में निकल यहां से।”
मगर सावित्री वहीं खड़ी रही और बोली, “मैं रिपोर्ट लिखवाए बिना नहीं जाऊंगी।” बहस बढ़ ही रही थी कि तभी एक हवलदार हाफता हुआ अंदर आया। सांस फूली हुई थी। “सर, गंगा प्रसाद यादव जी थाने में आ रहे हैं।”
गंगा प्रसाद का आगमन
गंगा प्रसाद यादव का नाम सुनते ही अरुण और संदीप दोनों के चेहरे का रंग उड़ गया। गंगा प्रसाद शहर का एक बहुत बड़ा और दबंग लीडर था, जिसके इशारे पर पुलिस वाले नाचते थे। दोनों इंस्पेक्टर अपनी कुर्सियों से ऐसे उछले जैसे करंट लग गया हो। “अरे जल्दी करो, गेट खोलो।” संदीप ने हवलदार को डांटा और दोनों भागकर गेट की तरफ गए जैसे कोई बहुत बड़ा साहब आ रहा हो।
एक सफेद सफारी गाड़ी थाने के अंदर आकर रुकी। उसमें से सफेद कुर्ता पायजामा पहने गंगा प्रसाद यादव उतरा। अंदर आते ही उसने अपने मजाक भरे अंदाज में कहा, “क्या हाल है चौधरी? कामधाम ठीक चल रहा है ना? कोई मुर्गा वर्गा फंसाया कि नहीं आज?”
सावित्री की ताकत
अरुण और संदीप हाथ जोड़कर मुस्कुराने लगे। “अरे साहब, आपकी कृपा है। आइए बैठिए।” लेकिन तभी गंगा प्रसाद की नजर कोने में खड़ी सावित्री पर पड़ी। सावित्री को देखते ही उसके चेहरे की हंसी गायब हो गई। माथे पर पसीना आ गया और होश उड़ गए।
वो जिस लड़की को एक आम सी औरत समझ रहा था, उसे पहचानते ही उसकी सिट्टी गुम हो गई। वह तेजी से आगे बढ़ा और सावित्री के सामने जाकर हाथ जोड़कर खड़ा हो गया। “नमस्ते मैडम, आप यहां इस वक्त तो आप मुझे फोन कर लेती। मैं खुद हाजिर हो जाता।” उसकी आवाज में हकलाहट साफ थी।
गंगा प्रसाद की हार
इंस्पेक्टर अरुण और एसएचओ संदीप हैरान रह गए। उनकी आंखें फटी की फटी रह गईं। यह क्या हो रहा है? यह तो उस बुढ़िया की बेटी है। गंगा प्रसाद जी इसके सामने हाथ क्यों जोड़े खड़े हैं? जिस गंगा प्रसाद यादव के आगे पूरा झेला झुकता है, वह इस साधी सी लड़की के सामने हाथ जोड़े क्यों खड़ा है?
अरुण ने धीरे से संदीप से पूछा, “यह क्या हो रहा है?” संदीप ने भी घबराहट में सर हिला दिया। इससे पहले कि वह कुछ समझ पाते, थाने के बाहर गाड़ियों के रुकने की आवाजें आने लगीं। एक के बाद एक लाल बत्ती वाली गाड़ियां थाने के सामने आकर रुक गईं।
कानून का राज
गाड़ियों से डीएसपी, एसडीएम और जिले के कई बड़े आईएएस और आईपीएस अफसर उतरे और तेजी से थाने के अंदर दाखिल हुए। वह सब आकर चुपचाप सावित्री के पीछे कतार में खड़े हो गए। जैसे अपने सीनियर अफसर को सलामी देने आए हों। अब थाने में सन्नाटा छा गया था। सिर्फ पंखे की घर-घर की आवाज आ रही थी।
अरुण चौधरी और संदीप राणा पत्थर के बुत बन चुके थे। उनके हलक सूख गए थे। माथे पर पसीने की बूंदें चमक रही थीं। तभी डीएसपी ने आगे बढ़कर गुस्से में अरुण चौधरी की तरफ देखते हुए कहा, “इंस्पेक्टर, तमीज से खड़े हो जाओ। तुम जिले की डीएम मैडम सावित्री सिंह के सामने खड़े हो।”
सावित्री का आदेश
डीएम मैडम यह शब्द किसी बम की तरह थाने में फटा। अरुण और संदीप के पैरों तले जमीन खिसक गई। उन्हें लगा जैसे किसी ने उनके कानों में पिघला हुआ शीशा डाल दिया हो। वो कांपते हुए सावित्री को देखने लगे। जिसे कुछ देर पहले वो अमरूद वाली की बेटी कहकर बेइज्जत कर रहे थे।
सावित्री की आंखों में अब एक आम लड़की की घबराहट नहीं थी, बल्कि एक डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट का रब और गुस्सा था। उसने अपनी ठंडी मगर कड़क आवाज में कहा, “इंस्पेक्टर अरुण चौधरी और एसएचओ संदीप राणा।” यह नाम सुनते ही दोनों की रूह कांप गई।
न्याय का समय
सावित्री ने हुक्म दिया, “एसपी साहब, इन दोनों के खिलाफ वर्दी का रब दिखाने, एक आम नागरिक को अपमानित करने, अपनी ड्यूटी में लापरवाही बरतने के जुर्म में फौरन मुकदमा दर्ज कीजिए। साथ ही इनके खिलाफ एक विभागीय जांच भी बैठाई जाए।”
एसपी साहब ने फौरन अपने मातहतों को इशारा किया। लम्हों में दोनों इंस्पेक्टरों की बेल्ट और टोपी उतार ली गई। कल तक जो शेर बने घूम रहे थे, आज भीगी बिल्ली की तरह सर झुकाए खड़े थे। तभी नेता गंगा प्रसाद यादव ने हिम्मत करके कहा, “मैडम, नादान हैं। गलती हो जाती है। माफ कर दीजिए। मैं समझा दूंगा इनको।”
गंगा प्रसाद की हार
सावित्री ने घूमकर गंगा प्रसाद को ऐसी नजरों से देखा कि वह कांप गया। “नेताजी, यह नादान नहीं। सरकारी वर्दी में छिपे गुंडे हैं और जहां तक समझाने की बात है, अब इन्हें कानून समझाएगा। बेहतर होगा कि आप इस मामले से दूर रहें वरना जांच की आंच आप तक भी पहुंच सकती है।”
गंगा प्रसाद यादव का चेहरा सफेद पड़ गया। वो समझ गया कि इस नई डीएम से टकराना आसान नहीं है। वो चुपचाप सर झुकाकर वहां से निकल गया। लेकिन उसकी आंखों में एक अजीब सी नफरत और गुस्सा था जिसे सावित्री ने महसूस कर लिया था।
सावित्री का साहस
अगली सुबह सब लोग यही समझ रहे थे कि डीएम बेटी ने अपनी मां को इंसाफ दिला दिया। सब कुछ ठीक लग रहा था। मगर उस रात जब सावित्री खाना खा रही थी तभी उसके पर्सनल फोन पर एक अनजान नंबर से कॉल आई। उसने फोन उठाया। “हेलो?” दूसरी तरफ से कोई कुछ नहीं बोला। सिर्फ भारी सांसों की आवाज आ रही थी। फिर एक बदली हुई मशीन जैसी आवाज सुनाई दी।
“डीएम साहिबा, शहर में ज्यादा उड़ने की कोशिश मत करो। इंस्पेक्टर तो बस मोहरे थे। खेल तो अब शुरू होगा।” सावित्री ने कड़क आवाज में पूछा, “कौन बोल रहा है?” जवाब आया, “वही जिसकी दुम पर तुमने पैर रख दिया है।” और अगले ही लम्हे फोन कट गया।
खतरा बढ़ता है
सावित्री के माथे पर फिक्र की लकीरें उभर आईं। वो समझ गई थी कि गंगा प्रसाद यादव इतनी आसानी से हार मानने वालों में से नहीं है। यह लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई थी। बल्कि अब तो असली खेल शुरू होने वाला था। खतरनाक होने वाली थी। अब उसे सिर्फ अपनी मां की इज्जत ही नहीं बल्कि उनकी जान की भी फिक्र होने लगी थी।
उसने फौरन एसपी को फोन किया और अपनी मां के घर के आसपास सादा वर्दी में दो पुलिस अहलकारों को तैनात करने का हुक्म दिया। वो अपनी मां को डराना नहीं चाहती थी, लेकिन कोई भी खतरा मोल लेना भी नहीं चाहती थी। अगले कुछ दिन शांति से गुजरे। सावित्री को लगा शायद उसकी चेतावनी काम कर गई है और गंगा प्रसाद यादव पीछे हट गया है।
माघमा देवी की गिरफ्तारी
लेकिन वह तो तूफान से पहले की खामोशी थी। एक सुबह जब माघमा देवी बाजार में अपनी अमरूद की टोकरी लगाकर बैठी ही थी कि अचानक पुलिस की तीन गाड़ियां वहां आकर रुक गईं। उनमें से एक नया इंस्पेक्टर उतरा जिसे सावित्री नहीं जानती थी। उसने माघमा देवी की टोकरी की तरफ इशारा करते हुए कहा, “हमें सूचना मिली है कि इन अमरूदों की आड़ में नशीली अशियाओं की तस्करी हो रही है। तलाशी लो।”
इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता, एक सिपाही ने अमरूदों के नीचे से भूरे रंग का पैकेट निकाला और चिल्लाया, “सर, मिल गया नशीला पदार्थ।” बाजार में हड़कंप मच गया। लोग गानाफूसी करने लगे, “देखो, डीएम की मां नशीला सामान बेचती है।” माघमा देवी सन्न रह गईं।
माघमा देवी का अपमान
वह रोते हुए बोली, “नहीं साहब, यह मेरा नहीं है। किसी ने मुझे फंसा दिया है।” लेकिन किसी ने उनकी एक ना सुनी। पुलिस ने उन्हें जबरदस्ती जीप में बिठाया और ले गई। यह खबर आग की तरह पूरे शहर में फैल गई। न्यूज़ चैनलों पर ब्रेकिंग न्यूज़ चलने लगी, “डीएम सावित्री सिंह की मां नशीला पदार्थ रखने के इल्जाम में गिरफ्तार।”
यह गंगा प्रसाद यादव का मास्टर स्ट्रोक था। उसने सावित्री पर सीधा हमला नहीं किया था, बल्कि उसकी सबसे बड़ी ताकत और सबसे बड़ी कमजोरी यानी उसकी मां पर वार किया था। अब सावित्री एक अजीब दो राह में फंस गई थी। अगर वह अपनी शक्ति का इस्तेमाल करके मां को छुड़ाती तो उस पर अहदे का गलत इस्तेमाल करने का इल्जाम लगता।
सावित्री का संघर्ष
और अगर वह चुप रहती तो उसकी बेगुनाह मां जेल में सड़ती। सावित्री के दफ्तर में फोन की घंटियां बजने लगीं। मीडिया, मंत्री, सीनियर अफसर सब उससे जवाब मांग रहे थे। तभी उसकी बहन आर्मी ऑफिसर नंदिनी का फोन आया। उसकी आवाज में गुस्सा और बेचैनी थी। “बहन, यह क्या हो रहा है? मैं आ रही हूं। मैं इस गंगा प्रसाद को नहीं छोड़ूंगी।”
सावित्री ने गहरी सांस ली और अपनी आवाज को संभालते हुए कहा, “नहीं दीदी, तुम्हें आने की जरूरत नहीं है। अगर हम भी उनकी तरह गैर कानूनी काम करेंगे, तो उनमें और हम में क्या फर्क रह जाएगा? यह लड़ाई अब कानून के दायरे में ही लड़ी जाएगी और जीतेगी भी।”
प्रेस कॉन्फ्रेंस
सावित्री ने फौरन एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई। पूरा मीडिया हॉल खचाखच भरा हुआ था। कैमरों की फ्लैश लाइट उसकी आंखों में चुभ रही थी। उसने माइक संभाला और कहा, “मैं जानती हूं आप सबके मन में क्या सवाल है। मेरी मां पर गंभीर इल्जाम लगे हैं। कानून सबके लिए बराबर है। चाहे वह एक आम नागरिक हो या डीएम की मां। इसलिए मैं…”
वो रुक गई क्योंकि उसके दिल में तूफान मचा था। “लड़ाई अब कानून के दायरे में ही लड़ी जाएगी और जीतेगी भी।” उसने फौरन रोहित को बुलाया। वही लड़का जिसने पहला वीडियो बनाया था।
रोहित की मदद
सावित्री ने कहा, “रोहित, मुझे तुम्हारी मदद चाहिए। तुम बाजार में रहते हो। वहां की हर हरकत पर तुम्हारी नजर रहती है। मालूम करो उस दिन मां की टोकरी के पास कौन-कौन आया था। कोई भी अजीब हरकत, कोई नया चेहरा, मुझे हर छोटी बड़ी जानकारी चाहिए।” रोहित फौरन तैयार हो गया।
उसने बाजार के दूसरे दुकानदारों और दोस्तों से पूछना शुरू किया। दो दिन की कड़ी मेहनत के बाद उसे एक सुराग मिला। पास की एक दुकान के बाहर खड़ा एक आदमी माघमा देवी की टोकरी के पास कुछ रखते हुए दिखा था। उसका चेहरा साफ नहीं था। लेकिन वही आदमी था जिसे लोग कई बार मुअत्तल इंस्पेक्टर अरुण चौधरी के साथ देखा करते थे।
गंगा प्रसाद की साजिश
सबूत मिल चुका था। यह सारा खेल गंगा प्रसाद यादव ने अपने पिट्ठू मुअत्तल इंस्पेक्टरों के जरिए रचा था। अब बारी सावित्री की थी। उसने एसपी के साथ मिलकर एक जाल बिछाया। उन्होंने यह झूठी खबर फैलाई कि सीसीटीवी फुटेज में नशीला पदार्थ रखने वाले का चेहरा साफ-साफ आ गया है और पुलिस उसे पकड़ने ही वाली है।
यह सुनते ही गंगा प्रसाद यादव के कैंप में खलबली मच गई। उसने फौरन अरुण चौधरी को फोन किया। “उस आदमी को पकड़ा नहीं जाना चाहिए। कुछ कर लो वरना हम सब पकड़े जाएंगे।” उस आदमी को ठिकाने लगाने के लिए जैसे ही वह शहर के बाहर एक सुनसान जगह पहुंचे, सावित्री और एसपी ने अपनी पूरी टीम के साथ उन्हें घेर लिया।
गंगा प्रसाद की गिरफ्तारी
हाथों पकड़े जाने पर दोनों ने गंगा प्रसाद यादव के खिलाफ अपना मुंह खोल दिया। अगली सुबह जब गंगा प्रसाद यादव अपने घर पर चाय पी रहा था और अपनी जीत का जश्न मनाने का सोच रहा था, तभी दरवाजे पर जोरदार दस्तक हुई। उसने दरवाजा खोला तो सामने डीएम सावित्री सिंह, एसपी और भारी पुलिस फोर्स को देखकर उसके होश उड़ गए।
न्याय की जीत
वह हकलाते हुए बोला, “ये क्या हो रहा है मैडम?” सावित्री ने अपनी आंखों में ठंडा लेकिन कड़क तेज डाला और बोली, “अब कानून बोलेगा गंगा प्रसाद यादव। जिस खेल की बिसात तुमने बिछाई थी, अब उसी पर तुम्हें मात मिलेगी।” सावित्री ने अपनी आंखों में कठोरता लिए कहा, “खेल खत्म हो गया। नेताजी, आपके मोहरे पकड़े जा चुके हैं और उन्होंने आपके सारे राज उगल दिए हैं।”
गंगा प्रसाद चिल्लाया, “तुम मुझे हाथ नहीं लगा सकती। तुम्हारे पास मेरे खिलाफ कोई सबूत नहीं है।” एसपी आगे बढ़ा और उसके हाथ में गिरफ्तारी वारंट थमाते हुए बोला, “सॉरी लीडर जी। हमारे पास आपकी फोन रिकॉर्डिंग है जिसमें आप एक गवाह को धमकी भरे शब्द बोल रहे हैं। अब आप हमारे साथ थाने चलिए।”
गंगा प्रसाद यादव का राजनीतिक साम्राज्य एक ही पल में ढह गया। उसे हथकड़ियां पहनाकर पुलिस जीप में ले जाया गया। उसी शाम माघमा देवी को बाइज़त बरी कर दिया गया। जब वह जेल से बाहर आई तो सावित्री खुद उन्हें लेने पहुंची। मां-बेटी एक दूसरे के गले लगकर फूट-फूट कर रो पड़ीं।
नई शुरुआत
सावित्री ने धीरे से कहा, “अब आपको अमरूद बेचने की जरूरत नहीं है मां।” अगली सुबह सावित्री ने अपनी मां को गाड़ी में बिठाया और अपनी पोस्टिंग पर वापस ले गई। दोनों साथ रहने लगीं, हंसी-खुशी सुकून से। जब बड़ी बहन नंदिनी को आर्मी से छुट्टी मिलती, वह भी आ जाती। तीनों साथ एक मजबूत प्यार भरा घर बनाकर खुश रहने लगीं।
निष्कर्ष
तो दोस्तों, यह कहानी सिर्फ मनोरंजन और शिक्षा सबक के उद्देश्य से बनाई गई है। इसमें दिखाए गए सभी पात्र, घटनाएं और संवाद, काल्पनिक हैं। किसी भी वास्तविक व्यक्ति, संस्था या घटना से इनका कोई लेना देना नहीं है। कृपया इसे सिर्फ एक कहानी के रूप में देखें और इसका आनंद लें।
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