Police Officer Ne DM Madam Ki Maa Ko Aam Boodi Samajh Kar Laat Maari… Phir Us Ka Saath Kya Hua!
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पुलिस अधिकारी ने डीएम मैडम की मां को आम बूढ़ी समझकर थप्पड़ मारा… फिर उसका साथ क्या हुआ!
प्रस्तावना
किसी भी समाज में कानून का राज होना अनिवार्य है, लेकिन जब वही कानून का रखवाला अपने पद का दुरुपयोग करने लगे, तब स्थिति गंभीर हो जाती है। यह कहानी एक साधारण महिला माघमा देवी और उनकी बेटियों की है, जिन्होंने अपने जीवन में संघर्ष किया, लेकिन जब एक पुलिस इंस्पेक्टर ने उनकी इज्जत को ठेस पहुंचाई, तो उनकी बेटियों ने अपने अधिकारों के लिए खड़े होकर एक बड़ा सबक सिखाया।
माघमा देवी का संघर्ष
बाजार की एक सड़कों पर माघमा देवी रोज की तरह अपनी छोटी सी टोकरी लेकर मीठे पके हुए अमरूद बेच रही थी। उनकी दो बेटियां थीं। बड़ी बेटी नंदिनी सिंह देश की सरहद पर फौज में अफसर थी, जबकि छोटी सावित्री सिंह उसी शहर की डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट यानी डीएम थी। माघमा देवी को अपनी बेटियों पर बहुत नाज था। जब भी कोई पूछता, “अम्मा, आपकी बेटियां क्या करती हैं?” तो उनका सीना फक्र से चौड़ा हो जाता। वह कहतीं, “एक देश की रक्षा करती है और दूसरी जिले की।”
लेकिन माघमा देवी आज भी कभी-कभी बाजार में अमरूद बेचने बैठ जाती। मगर अपनी बेटियों को कभी नहीं बताती। सब कुछ ठीक चल रहा था। तभी एक इंस्पेक्टर जिसका नाम अरुण चौधरी था, अपनी बुलेट मोटरसाइकिल पर वहां आया। उसने बाइक सड़क किनारे रोकी और सीधा माघमा देवी की टोकरी के पास आकर खड़ा हो गया।
पुलिस का दुरुपयोग
अरुण ने टोकरी में से एक अमरूद उठाया और बगैर कुछ कहे मुंह में डाल लिया। माघमा देवी थोड़ी सकुचाई और बोली, “साहब, अमरूद मीठे हैं। आप चाहे तो तौल दूं।” अरुण चौधरी ने अकड़ते हुए जवाब दिया, “हां हां, दे 1 किलो।” माघमा देवी ने कांपते हाथों से अमरूद तौलकर पॉलिथीन में डाल दिए।
अरुण ने पैकेट लिया। फिर से एक अमरूद निकाला और वहीं काटकर खाने लगा। कुछ देर चबाने के बाद उसने मुंह बनाते हुए कहा, “हम यह क्या बेचा है तूने? बिल्कुल बेस्वाद अमरूद। मीठा तो बिल्कुल भी नहीं है।” माघमा देवी घबरा कर बोली, “नहीं साहब, बहुत मीठे हैं। आप चाहे तो दूसरा चक्कर देख लीजिए।” लेकिन अरुण चौधरी ने हंसते हुए कहा, “चुप! तेरे अमरूद का एक दाना भी मीठा नहीं। तूने मुझे बेवकूफ बनाया है।”
अपमान का सामना
सुनते ही अरुण का पारा चढ़ गया। उसने गुस्से में झुककर पूरी टोकरी उठाई और सड़क की दूसरी तरफ जोर से फेंक दी। टोकरी पलट गई और सारे अमरूद सड़क, गाड़ियों और नाली में बिखर गए। माघमा देवी सन्न रह गईं। उनकी आंखों में आंसू भर आए। उनकी मेहनत और इज्जत दोनों ही सड़क पर कुचली जा रही थी।
आसपास भीड़ जमा हो गई थी। लोग तमाशा देख रहे थे। कोई हंस रहा था और कोई सिर्फ देख रहा था। लेकिन किसी की हिम्मत नहीं हुई कि उस वर्दी वाले से कुछ कहे। फिर अरुण चौधरी ने अपनी मूछों पर ताव दिया। बाइक स्टार्ट की और वहां से ऐसे चला गया जैसे कुछ हुआ ही ना हो।
रोहित का वीडियो
भीड़ में से एक युवक रोहित यह सब कुछ अपने मोबाइल फोन में रिकॉर्ड कर रहा था। उसका खून खौल रहा था। उसने माघमा देवी को बचपन से जानता था और उनका बहुत एहतराम करता था। उसने वीडियो रिकॉर्ड करना बंद किया और सोचने लगा कि इस वीडियो का क्या करें। जाने के बाद उसे पता था कि माघमा देवी की एक बेटी फौज में है।
उसने कहीं से उनका नंबर जुगाड़ किया था। उसने फौरन वह वीडियो नंदिनी सिंह के हैंडसेट पर भेज दी और नीचे एक छोटा सा मैसेज लिखा, “नंदिनी दीदी, देखें आज बाजार में आपकी मां के साथ क्या हुआ।”
नंदिनी का गुस्सा
हजारों किलोमीटर दूर बर्फीली पहाड़ियों के बीच बॉर्डर की एक चौकी पर नंदिनी सिंह अपनी राइफल साफ कर रही थी। तभी उसके फोन पर हैंडसेट का मैसेज टोन बजा। उसने फोन उठाकर देखा तो एक अनजान नंबर से वीडियो आया था। उसने वीडियो प्ले किया। जैसे-जैसे वीडियो आगे बढ़ा, नंदिनी के चेहरे का रंग बदलता गया। उसकी शांति आंखें गुस्से से लाल पड़ गईं।
जब उसने इंस्पेक्टर अरुण चौधरी को अपनी मां की टोकरी उठाकर फेंकते देखा तो उसके हाथ कांपने लगे। उसकी मां, जिसने उसे और उसकी बहन को पालने के लिए अपनी पूरी जिंदगी लगा दी थी, आज सड़क पर बेबस रो रही थी। उसके अंदर का सिपाही जाग उठा।
सावित्री की तैयारी
उसने फौरन वह वीडियो अपनी छोटी बहन डीएम सावित्री सिंह को फॉरवर्ड कर दी। नंदिनी ने अपने दफ्तर में एक जरूरी मीटिंग में थी। उसने अपनी बड़ी बहन का फोन देखा तो मीटिंग रोक कर फोन उठाया और पूछा, “हां दीदी, सब ठीक है? कोई बात तो नहीं?”
नंदिनी की आवाज में गुस्सा और दर्द साफ झलक रहा था। “मैंने तुझे एक वीडियो भेजा है। उसे अभी के अभी देखो।” सावित्री ने फोन होल्ड पर रखा और WhatsApp खोला। वीडियो देखते ही उसके पैरों तले जमीन खिसक गई। उसकी मां, उसकी प्यारी मां सड़क पर बिखरे अमरूद के लिए रो रही थी।
सावित्री का संकल्प
सावित्री की आंखों में भी आंसू आ गए। लेकिन उसने खुद को संभाला। वो एक डीएम थी। उसे जज्बात में बहने का हक नहीं था। सावित्री ने कांपती आवाज में कहा, “दीदी, मैं बर्दाश्त नहीं कर सकती यह सब। यह सुनते ही नंदिनी फोन पर गुस्से में बोली, “मैं आ रही हूं छुट्टी लेकर। मैं इस गंगा प्रसाद को नहीं छोडूंगी।”
सावित्री ने नरम आवाज में बोली, “नहीं दीदी, आपकी जरूरत देश की सरहद पर है। यह मेरा इलाका है। यह लड़ाई मैं लूंगी।” नंदिनी कुछ देर चुप रही। वो अपनी बहन की आवाज में छिपे इरादे को समझ गई।
सावित्री की योजना
अगली सुबह सावित्री ने पीला सलवार सूट पहना और अपने सबसे भरोसेमंद अफसर विकास को फोन किया। उसने कहा, “विकास, मैं तुम्हें एक काम दे रही हूं और यह बात हम दोनों के बीच ही रहेगी। मैं अभी सिविल ड्रेस में शहर के कोतवाली थाने में एक शिकायत दर्ज करवाने जा रही हूं। अपनी पहचान छिपाकर मैं चाहती हूं कि 2 घंटे बाद तुम जिले के एसपी, डीएसपी और बाकी बड़े पुलिस अफसरों की टीम के साथ थाने पहुंचो। जब तक मैं इशारा ना करूं, कोई कदम नहीं उठाना।”
विकास ने कहा, “ठीक है मैडम। जैसा आप कहें।” सावित्री ने फोन रख दिया। दोस्तों, अब खेल शुरू होने वाला था। सावित्री ने एक सादा सा पीला सलवार सूट पहना। चेहरे पर दुपट्टा डाला और एक आम नागरिक की तरह आंखों में नखाब लिए कोतवाली थाने पहुंची।
थाने की स्थिति
थाने का माहौल वैसा ही था जैसा उसने सोचा था। एक हवलदार ऊंघ रहा था और संदीप राणा चाय पीते हुए हंसी-ज़ाक कर रहे थे। इंस्पेक्टर अरुण चौधरी भी मौजूद थे। सावित्री डरते-डरते उनकी मेज के पास गई। “जी, मुझे एक शिकायत दर्ज करवानी है।” संदीप राणा ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा और पूछा, “क्या हुआ? किसने परेशान किया?”
“कल बाजार में इंस्पेक्टर साहब ने…” जैसे ही उसने इंस्पेक्टर का नाम लिया, अरुण चौधरी चौकन्ना हो गया। उसने सावित्री को घूर कर देखा। “क्या? इंस्पेक्टर साहब का नाम लिया तुमने? और किस इंस्पेक्टर की बात कर रही हो?”

सावित्री का साहस
“जी, आप ही थे। आपने कल बाजार में एक बुजुर्ग औरत के अमरूद की टोकरी सड़क पर फेंकी थी। मैं उनकी बेटी हूं।” सावित्री ने अपनी आवाज में थोड़ी घबराहट लाने की कोशिश की। यह सुनते ही अरुण और संदीप जोर-जोर से हंसने लगे। “ओहो, तो तुम उस बुढ़िया की बेटी हो। चल भाग यहां से। कोई एफआईआर नहीं लिखी जाएगी।”
गंगा प्रसाद का हस्तक्षेप
सावित्री वहीं खड़ी रही और बोली, “मैं रिपोर्ट लिखवाए बिना नहीं जाऊंगी।” बहस बढ़ ही रही थी कि तभी एक हवलदार हाफता हुआ अंदर आया। “सर, सर गंगा प्रसाद यादव जी थाने में आ रहे हैं।”
गंगा प्रसाद यादव का नाम सुनते ही अरुण और संदीप दोनों के चेहरे का रंग उड़ गया। गंगा प्रसाद शहर का एक बहुत बड़ा और दबंग नेता था। जिसके इशारे पर पुलिस वाले नाचते थे। दोनों इंस्पेक्टर अपनी कुर्सियों से ऐसे उछले जैसे करंट लग गया हो।
गंगा प्रसाद का आगमन
गाड़ी के अंदर झांकते ही उनके होश उड़ गए। उन्होंने देखा कि गंगा प्रसाद यादव थाने में घुसते ही सावित्री को देखकर उनके चेहरे की हंसी गायब हो गई। उसने अपने माथे पर पसीना आ गया और होश उड़ गए। वो जिस लड़की को एक आम सी औरत समझ रहा था, उसे पहचानते ही उसकी सिट्टी गुम हो गई।
वह तेजी से आगे बढ़ा और सावित्री के सामने जाकर हाथ जोड़कर खड़ा हो गया। “नमस्ते मैडम, आप यहां इस वक्त तो आप मुझे फोन कर लेती। मैं खुद हाजिर हो जाता।” उसकी आवाज में हकलाहट साफ थी। इंस्पेक्टर अरुण और एसएचओ संदीप हैरान रह गए।
सावित्री की शक्ति
यह क्या हो रहा है? यह तो उस बुढ़िया की बेटी है। गंगा प्रसाद जी इसके सामने हाथ क्यों जोड़े खड़े हैं? सावित्री ने अपनी आंखों में ठंडा लेकिन कड़क तेज डाला और बोली, “अब कानून बोलेगा गंगा प्रसाद यादव। जिस खेल की बिसात तुमने बिछाई थी अब उसी पर तुम्हें मात मिलेगी।”
सावित्री ने अपनी आंखों में कठोरता लिए कहा, “खेल खत्म हो गया। नेताजी, आपके मोहरे पकड़े जा चुके हैं और उन्होंने आपके सारे राज उगल दिए हैं।”
गिरफ्तारी का आदेश
गंगा प्रसाद यादव का चेहरा सफेद पड़ गया। वो समझ गया कि इस नई डीएम से टकराना आसान नहीं है। उसने चुपचाप सर झुकाकर वहां से निकल गया। लेकिन उसकी आंखों में एक अजीब सी सिहरन और गुस्सा था जिसे सावित्री ने महसूस कर लिया था।
अगली सुबह सब लोग यही समझ रहे थे कि डीएम बेटी ने अपनी मां को इंसाफ दिला दिया। सब कुछ ठीक लग रहा था। मगर उस रात जब सावित्री खाना खा रही थी तभी उसके पर्सनल फोन पर एक अनजान नंबर से कॉल आई।
सावित्री का संकल्प
उसने दरवाजा खोला तो सामने डीएम सावित्री सिंह एसपी और भारी पुलिस फोर्स को देखकर उसके होश उड़ गए। वह हकलाते हुए बोला, “यह क्या हो रहा है मैडम?” सावित्री ने अपनी आंखों में ठंडा लेकिन कड़क तेज डाला और बोली, “अब कानून बोलेगा गंगा प्रसाद यादव। जिस खेल की बिसात तुमने बिछाई थी अब उसी पर तुम्हें मात मिलेगी।”
सावित्री ने अपनी आंखों में कठोरता लिए कहा, “खेल खत्म हो गया। नेताजी, आपके मोहरे पकड़े जा चुके हैं और उन्होंने आपके सारे राज उगल दिए हैं।”
निष्कर्ष
यह कहानी हमें यह सिखाती है कि किसी भी परिस्थिति में हमें अपने सिद्धांतों पर खड़ा रहना चाहिए। सावित्री ने साबित कर दिया कि मेहनत और ईमानदारी से हासिल किया गया ज्ञान कभी भी व्यर्थ नहीं जाता।
जब हम एक-दूसरे का समर्थन करते हैं, तो हम समाज में एक सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं। यह कहानी हमें यह भी याद दिलाती है कि कोई भी व्यक्ति, चाहे वह कितना भी ताकतवर क्यों न हो, अंततः सच्चाई के सामने झुकता है।
इसलिए, हमें हमेशा सच्चाई के साथ खड़ा रहना चाहिए और अन्याय के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए। यह कहानी हमें यह भी याद दिलाती है कि कोई भी व्यक्ति, चाहे वह कितना भी ताकतवर क्यों न हो, अंततः सच्चाई के सामने झुकता है।
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