Qabar Ka Azab: Wo Kon Sa Kaam Tha Jis Ne Is Aurat Ko Churail Bana Diya?

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क़ब्र का अज़ाब: वो कौन सा काम था जिसने इस औरत को चुड़ैल बना दिया?

भाग 1: सुकून के पीछे छुपा सच

एक छोटे से शहर में फिरोजा नाम की लड़की रहती थी। उसके चेहरे पर हमेशा सुकून के बादल छाए रहते थे। उसकी आंखें इबादत में नम रहती थीं। लोग कहते थे कि उसके घर में फरिश्ते उतरते हैं। पिता हाजी गुलाम रसूल रोज फज्र की अज़ान के बाद उसकी कामयाबी की दुआ मांगते थे। मां सरवत बेगम उसे अपनी नाकामियों का दूसरा मौका मानती थीं।

पर बाहर से जितनी परहेजगारी दिखती थी, भीतर उतना ही गहरा अंधेरा था। फिरोजा के दिल में ख्यालों का तूफान चलता रहता था। वह खूबसूरत थी, मोहल्ले की औरतें उसकी तारीफ करती थीं, लेकिन हर तारीफ के पीछे एक छोटा सा हसद भी छुपा होता।

भाग 2: आज़ादी की पहली दरार

एक दिन फिरोजा को एक लड़के का खत मिला—मोहब्बत का इज़हार। उसके हाथ कांप रहे थे। यह पहली बार था जब उसे एहसास हुआ कि उसके हुस्न में कितनी ताकत है। बाप का गुस्सा पूरे घर में गूंजा। उसकी आज़ादी का पहला कदम वहीं कुचल दिया गया। मां ने कहा, “शादी में तुम्हारा हुस्न ही तुम्हारा सहारा होगा।”

हाजी साहब को नेक दामाद चाहिए था। दौलत नहीं, दीनदारी। उन्होंने इब्राहीम को चुना। मां को यह पसंद नहीं था। वह चाहती थीं कि फिरोजा अपनी खूबसूरती से बड़ा घर, बड़ा मुकाम पाए। लेकिन फिरोजा चुप थी—रजामंदी या बगावत का आगाज़?

भाग 3: शादी और नई कैद

शादी की तैयारियां हो रही थीं। हर शख्स अपनी दुनिया में मग्न था। रुखसती के वक्त हाजी साहब की आंखें नम थीं, सरवत बेगम मुस्कुरा रही थीं। फिरोजा के चेहरे पर मुस्कान थी, लेकिन दिल में जंग।

नया घर सादा था। फिरोजा की नजर उसकी कमियों पर थी। यह वह जगह नहीं थी जिसका उसने ख्वाब देखा था। आयशा बीवी (सास) की मुस्कान में खुलूस था, लेकिन फिरोजा ने उसे कमजोरी समझा।

पहली रात फिरोजा की आंखों में नींद नहीं थी। मां के अल्फाज गूंज रहे थे—”मर्द को काबू में रखना है तो झूठ से काम लेना सीखो।”

Qabar Ka Azab: Wo Kon Sa Kaam Tha Jis Ne Is Aurat Ko Churail Bana Diya?

भाग 4: झूठ और फरेब का आगाज़

फिरोजा ने अपनी मां को वही बताया जो वह सुनना चाहती थी। लेकिन उसके दिल की बात अलग थी। उसने पहली चाल चली—चाय में नमक डालना। जब आयशा बीवी ने कहा कि चाय नमकीन है, तो फिरोजा ने मासूमियत से जवाब दिया—शायद हाथ से नमक गिर गया हो।

हर रोज एक फोन, हर फोन पर एक नया सबक। “बेटी वहां अपना रब जमाना,” मां की आवाज फिरोजा के दिल में जहर घोल रही थी।

भाग 5: पहली जंग, पहली जीत

इब्राहीम फल लेकर आया—सब अपनी मां के लिए। फिरोजा के लिए कुछ नहीं। वह टूट गई। उसने मां से मदद मांगी। मां ने कहा—”तुम्हें ऐसा सबक देना होगा कि वह तुम्हें कभी नजरअंदाज ना कर सके।”

फिरोजा ने खाना पकाते वक्त दाल में तीन चम्मच नमक डाल दिया। आयशा बीवी का ब्लड प्रेशर बढ़ गया, अस्पताल जाना पड़ा। डॉक्टर ने कहा—उम्र ज्यादा है, नमक कम खाएं। फिरोजा को राहत मिली—उसका राज महफूज था।

भाग 6: गुनाह का बोझ बढ़ता गया

अब हर दिन एक नई चाल। झूठ, ड्रामा, आंसू। फिरोजा ने अपनी मां के कहने पर गहनों की चोरी की। इल्जाम फकीर पर लगाया। पुलिस आई, फकीर को पकड़ लिया गया।

फिरोजा का राज महफूज था, लेकिन उसकी रूह पर बोझ बढ़ गया था। रातों की बेख्वाबी, ख्वाबों में डरावने मंजर, दिन में बेचैनी।

भाग 7: रूहानी अजाब की शुरुआत

फिरोजा के हाथों पर अजीब निशान आ गए। नाखून लंबे हो गए, कटते नहीं थे। होंठ फट गए, चेहरा बिगड़ गया। डॉक्टर ने कहा—एलर्जी है। लेकिन फिरोजा जानती थी कि यह गुनाह का अक्स है।

वजू का पानी हाथों पर पड़ा, लेकिन हाथ साफ नहीं हुए। नमाज शुरू की, लेकिन गिर पड़ी। अब वह खुद से भी दूर होती जा रही थी।

भाग 8: सच का सामना

इब्राहीम ने दरवेश से सलाह ली। दरवेश ने कहा—सच बोलना होगा। सरवत बेगम ने सब कुछ कबूल किया—नमक वाला वाकया, गहनों की चोरी, फकीर पर आरोप।

इब्राहीम ने फिरोजा से कहा—सबके सामने इकरार करो। फिरोजा ने हां में सिर हिलाया। सबके सामने उसने अपने गुनाह कबूल किए। नमक, गहने, फकीर सब।

आयशा बीवी की आंखों में आंसू थे, लेकिन गुस्सा नहीं था। “अल्लाह उसकी तौबा कबूल फरमा,” यह दुआ थी।

भाग 9: मौत से पहले अज़ाब

फिरोजा की हालत बिगड़ती गई। नाखून बहुत लंबे और काले हो गए। चेहरे पर सुकून था, लेकिन जिस्म पर अजाब था। मौत आई, लेकिन मौत राहत थी।

गौसल देते समय एक औरत चीख उठी—देखो उसके नाखून। सबने देखा, नाखूनों ने कफ़न फाड़ दिया। कब्र में लाश की शक्ल बदल गई। चुड़ैल बन गई।

दरवेश ने दुआ की—अल्लाह इस अज़ाब को छुपा दे। शक्ल सामान्य हो गई। लेकिन सबने देख लिया था। अब फिरोजा अपने अज़ाब में थी।

भाग 10: सबक और तौबा

घर खाली था। इब्राहीम ने महसूस किया कि उसकी जिंदगी भी खाली हो गई है। हाजी साहब रो रहे थे—मैंने उसे गलत तालीम दी। सरवत बेगम ने अपनी बाकी जिंदगी गरीबों की सेवा में गुजारी।

इब्राहीम ने अपनी तनख्वाह का एक हिस्सा गरीबों के लिए वफ कर दिया। वह फकीरों को खाना खिलाता, मस्जिद में पढ़ाता।

एक रात इब्राहीम ने सपना देखा—फिरोजा मुस्कुरा रही थी। उसके नाखून सामान्य थे। उसने कहा—”तुम्हारी दुआओं से मेरे अजाब में कमी हुई है।”

भाग 11: कहानी का अंत, सबक की शुरुआत

कब्र का अजाब सिर्फ मरने वालों के लिए नहीं होता। यह जिंदों के लिए भी सबक होता है।

फिरोजा की कहानी हर उस व्यक्ति के लिए है जो जाहिर की साद सज्जा में भीतर की वीरानी छुपाता है। हर उस इंसान के लिए जो झूठ के पहाड़ बनाता है।

याद रखो, कब्र अकेली होती है। हर इंसान अपने आमाल का हिसाब देगा। और इस हिसाब से पहले इस दुनिया में ही अज़ाब का आरंभ हो सकता है।

सच्चाई बोलो, रास्तेबाजी अपनाओ और अल्लाह से डरो। क्योंकि वह हर चीज देख रहा है। हर झूठ, हर धोखा, हर गुनाह। और वह इंसाफ जरूर करेगा।

समाप्त

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