Registan mein chhupi kahani मध्यरात में लड़की अकेली बूढ़े के पास गई उसके बाद जो हुआ, यकीन नहीं करोगे
रूपा एक अत्यंत सुंदर और युवा लड़की थी। रात की खामोशी में वह चुपके से अपने घर से निकली और चलते-चलते एक सुनसान समुद्र तट के किनारे आ पहुंची। रात का 1:00 बज चुका था। चारों ओर सन्नाटा और अंधेरा छाया हुआ था। रूपा नरम रेत के टीले पर पैर रखकर ऊपर चढ़ने लगी। ठंडी हवा का झोंका उसके बालों से खेल रहा था। कुछ देर बाद वह टीले की चोटी पर पहुंच गई। वहां से दूर लकड़ी से बनी एक पुरानी झोपड़ी दिखाई दे रही थी।
भाग 2: झोपड़ी की ओर
रूपा धीरे-धीरे उस झोपड़ी की ओर बढ़ने लगी। अंधेरा गहरा हो गया था। झोपड़ी के दरवाजे तक पहुंचकर वह रुकी। दरवाजा बंद था। उसने एक छेद से अंदर झांका। फिर पर्स से आईना निकालकर अपने बाल ठीक किए। कपड़े दुरुस्त किए जैसे खुद को तैयार कर रही हो। संतुष्ट होकर उसने धीरे से दरवाजे पर दस्तक दी। रूपा लगातार दरवाजा खटखटा रही थी और साथ ही साथ आईने में खुद को संवार रही थी।
भाग 3: बूढ़े का स्वागत
अचानक दरवाजा चरमरा कर खुल गया और अंदर से लगभग 80 साल का एक कमजोर बूढ़ा बाहर निकला। जैसे ही उसकी नजर रूपा पर पड़ी, वह कुछ पल उसे देखता ही रहा जैसे किसी सपने में खो गया हो। रूपा हल्की मुस्कान के साथ आगे बढ़ी। उसकी आंखों में आंखें डालकर नरम लहजे में बोली, “मैं दोस्तों के साथ घूमने आई थी, लेकिन वे मुझे यहां भूलकर चले गए हैं। क्या आज रात के लिए तुम मुझे अपनी झोपड़ी में पनाह दे सकते हो?”
बूढ़ा एक पल के लिए चुप रहा। फिर उसके चेहरे पर एक धीमी मुस्कान खिल उठी। उसकी आंखों में एक अजीब सी चमक थी। वह रूपा के चारों ओर घूमने लगा। उसे सिर से पांव तक देखते हुए रूपा ने हंसकर कहा, “क्या देख रहे हो?” बूढ़ा जैसे ही उसके पीछे आकर खड़ा हुआ, रूपा मुड़कर बोली, “तो क्या सोचा? मुझे आज रात यहीं रहने दोगे?”
भाग 4: झोपड़ी में रात
यह सुनकर बूढ़ा जैसे पागल हो गया। उसने उत्साह से कहा, “हां, क्यों नहीं? अंदर आओ।” रूपा चुपचाप झोपड़ी में घुस गई और बूढ़ा भी उसके पीछे आकर दरवाजे की कुंडी लगाकर बोला, “यहां रात में चोरों का डर रहता है।” रूपा थोड़ा चौंक गई लेकिन कुछ नहीं बोली। बूढ़े ने कहा, “इसलिए कुंडी लगाई।” रूपा ने हल्का सा हंसकर कहा, “अच्छा।”
झोपड़ी के अंदर दो छोटे कमरे थे। वह एक कमरे से दूसरे कमरे में गई और बोली, “मैं कहां सोऊंगी?” बूढ़े ने हंसकर कहा, “जहां मन चाहे वहीं सो जाओ।” रूपा ने नरम लहजे में कहा, “तो फिर एक कमरे में तुम सो जाओ और दूसरे कमरे में मैं सो जाती हूं।”
भाग 5: डर का एहसास
बूढ़ा कुछ देर उसकी आंखों में देखता रहा। फिर बोला, “ठीक है। जैसी तुम्हारी इच्छा।” बूढ़ा अपने कमरे में जाकर लेट गया। लेकिन उसके ख्यालों में सिर्फ रूपा ही थी। रूपा भी अपने बिस्तर पर करवटें बदलने लगी। अचानक बाहर कुत्तों के भौकने की आवाज सुनकर वह घबरा गई। उठकर जल्दी से बूढ़े के कमरे में पहुंची।
“उठो, उठो। मुझे डर लग रहा है,” उसने कांपती हुई आवाज में कहा। बूढ़ा हड़बड़ा कर उठ बैठा। “क्या हुआ?” रूपा बोली, “मैं अकेले नहीं सो सकती। मैं यहीं तुम्हारे साथ रहना चाहती हूं।” बूढ़े के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई। रूपा की आंखों में देखकर वह मुस्कुराया।
भाग 6: एक नया खेल
लेकिन यहां तो एक ही बिस्तर है। उसने कहा, “तुम कहां सोओगी?” रूपा ने कोई जवाब नहीं दिया। बस उसका हाथ पकड़ कर बोली, “चलो बाहर चलते हैं। मेरा दम घुट रहा है।” बूढ़ा तुरंत उठकर बोला, “चलो, मैं तुम्हें बाहर ले चलता हूं।” रूपा ने बूढ़े का हाथ कसकर पकड़ लिया और दोनों झोपड़ी से बाहर आ गए। रात गहरी और शांत थी।
सिर्फ रेत पर हवा की सरसराहट सुनाई दे रही थी। वे हाथ में हाथ डाले चलते-चलते एक ऊंचे टीले के पास पहुंचे जिसके नीचे गहरी खाई थी। रूपा टीले के किनारे रुक कर मुस्कुराई और बोली, “देखो, मैं सुंदर नहीं लग रही? बताओ कैसी लग रही हूं?” बूढ़ा उसकी सुंदरता में खोकर धीरे-धीरे बोला, “बहुत प्यारी, बहुत सुंदर।”
भाग 7: गुफा का रहस्य
फिर वह जोश में आगे बढ़कर रूपा को गोद में उठा लिया और बोला, “चलो अंदर चलते हैं। तुम बहुत सुंदर हो। बिल्कुल परी जैसी।” रूपा चुपचाप मुस्कुराती रही। लेकिन झोपड़ी के पास पहुंचते ही बूढ़ा अचानक रुक गया। उसने रूपा को नीचे उतारा। कुछ शक भरी नजरों से उसे देखकर बोला, “पहले यह बताओ तुम कौन हो? इतनी अचानक यहां कैसे आ गई?”
रूपा ने नर्म लहजे में कहा, “मैंने तो बताया, मेरे घरवाले मुझे भूलकर चले गए हैं। तुम शक क्यों कर रहे हो?” बूढ़े ने कुछ पल उसे देखा। फिर बोला, “ठीक है। चलो अंदर। बहुत रात हो गई है।” रूपा ने हंसकर कहा, “इतनी जल्दी क्या है? पहले तट पर थोड़ा घूम लेते हैं।”
भाग 8: खतरे की आहट
बूढ़े ने हंसते हुए कहा, “चलो। जैसी तुम्हारी मर्जी।” दोनों फिर हाथ में हाथ डालकर टीले की ढलान से नीचे उतरने लगे। रात का आखिरी पहर था। आसमान काले अंधकार में डूबा हुआ था। चलते-चलते बूढ़े की नजर अचानक किनारे पर बनी एक अंधेरी गुफा पर पड़ी। बूढ़े ने जैसे ही वह गुफा देखी, उसकी आंखों में चमक आ गई।
वह उत्साहित होकर बोला, “आओ रूपा, उस गुफा के अंदर चलते हैं।” रूपा थोड़ा झिझकते हुए बोली, “नहीं, वहां बहुत अंधेरा होगा।” बूढ़े ने हंसकर कहा, “आओ तो सही, मैं हूं ना तुम्हारे साथ।” दोनों धीरे-धीरे तट के किनारे उस गहरी गुफा के पास पहुंचे।

भाग 9: गुफा के अंदर
बूढ़े ने हंसकर कहा, “तुम पहले चलो।” रूपा ने एक बार इधर-उधर देखा, फिर गुफा में कदम रखा। बूढ़ा भी उसके पीछे अंदर चला गया। गुफा लंबी और संकरी थी। दीवारों से ठंडी और सीलन महसूस हो रही थी। रूपा सावधानी से आगे बढ़ रही थी और बूढ़ा ठीक उसके पीछे।
कुछ दूर जाकर बूढ़ा एक जगह रुका जहां एक बड़ा पत्थर पड़ा था। उसने कहा, “तुम जरूर थक गई होगी। इस पर बैठकर थोड़ा आराम कर लो।” रूपा मुस्कुराई और बोली, “हां, सच में बहुत थक गई हूं।” वह पत्थर पर बैठ गई। फिर धीरे-धीरे लेट गई। गुफा में सन्नाटा था।
भाग 10: खेल का समय
सिर्फ हवा की हल्की सरसराहट आ रही थी। बूढ़ा धीरे-धीरे उसके पास आने लगा। रूपा उसका इरादा समझकर अचानक उठ खड़ी हुई और बोली, “चलो वापस चलते हैं। यह जगह ठीक नहीं लग रही।” बूढ़ा हंसा। “अच्छा, तुम कहती हो तो चलो।”
दोनों गुफा से निकलकर फिर झोपड़ी की ओर बढ़ने लगे। रात गहरी थी और हवा में ठंडक घुल गई थी। झोपड़ी के पास पहुंचकर रूपा रुकी और अपने कपड़े झाड़ते हुए बोली, “अरे, मेरे कपड़े में कुछ घुस गया है।” बूढ़ा पास आकर बोला, “क्या हुआ? दिखाऊं।”
भाग 11: योजना बनाना
वह उसके कपड़े झाड़ने लगा और रूपा हल्का सा मुस्कुराई। फिर बोली, “तुम यहीं रुको, मैं अंदर से ठीक करके आती हूं।” बूढ़ा रूपा को देखता रहा और वह धीरे-धीरे झोपड़ी के अंदर चली गई और दरवाजे की कुंडी लगा दी। अंदर पहुंचकर उसने चारों ओर नजर दौड़ाई जैसे कुछ ढूंढ रही हो।
कुछ देर बाद वह मुस्कुराते हुए बाहर आई और बूढ़े के सामने आकर खड़ी हो गई। बूढ़े ने कहा, “हां, क्या निकला?” रूपा ने हंसकर कहा, “कुछ नहीं। यह कपड़ा बहुत तंग है। तुम्हारे पास किसी लड़की का कपड़ा हो तो दो, मैं पहन लेती हूं।”
भाग 12: सच्चाई का खुलासा
यह सुनकर बूढ़ा चौंक गया। “मेरे पास लड़की का कपड़ा कहां से आएगा? तुम आखिर हो कौन?” रूपा ने नरम लहजे में कहा, “अरे, मैंने तो यूं ही कहा, शायद कोई पुराना कपड़ा पड़ा हो।” बूढ़ा सोच में पड़ गया। फिर झोपड़ी के एक कोने में गया। अलमारी खोलकर वहां से लाल रंग का एक पुराना सलवार कमीज निकालकर उसके हाथ में दिया।
“ये लो,” उसने कहा, “लोग पुराना सामान दे जाते हैं। शायद किसी ने यह भी छोड़ दिया हो।” रूपा ने वह पोशाक देखकर उसकी धड़कनें बढ़ गईं। लेकिन उसने हंसकर कहा, “अच्छा, मैं यह पहनकर आती हूं।” वह दूसरे कमरे में चली गई।
भाग 13: बूढ़े की चालाकी
बूढ़ा वहीं बैठकर बड़बड़ाने लगा। “लड़की तो बहुत सुंदर है। पता नहीं कहां से आ गई।” कुछ देर बाद रूपा वो लाल पोशाक पहनकर बाहर आई। खिड़की से आती चांद की रोशनी में वो सचमुच चांद जैसी लग रही थी। बूढ़ा उसे देखकर स्थिर हो गया और बोला, “वाह, इस पोशाक में तो तुम बिल्कुल चांद लग रही हो।”
रूपा हल्का सा मुस्कुरा कर बोली, “और तुम भी बहुत अच्छे लग रहे हो।” बूढ़ा खुश होकर बोला, “चलो अब सो जाते हैं। बहुत रात हो गई है।” रूपा ने धीरे से कहा, “लेकिन मुझे बहुत भूख लगी है। कुछ खाने को मिलेगा?”
भाग 14: भोजन का प्रस्ताव
बूढ़ा उसकी आंखों में देखकर तुरंत उठा। झोपड़ी के एक कोने में गया और एक टोकरी से रोटी निकालकर उसके हाथ में दी। रूपा हंसकर रोटी खाने लगी और बूढ़ा उसे चुपचाप देखता रहा। रूपा ने पूछा, “क्या हुआ? ऐसे क्यों देख रहे हो?” बूढ़े ने धीमी आवाज में कहा, “तुम बहुत प्यारी लग रही हो। अब और इंतजार नहीं होता।”
रूपा ने शरारती लहजे में कहा, “क्यों? कभी कोई लड़की नहीं देखी?” बूढ़ा थोड़ा पीछे हटकर बोला, “कहां से देखूंगा? यहां तो मैं अकेला ही रहता हूं।” रूपा ने इधर-उधर नजर घुमाई, तो कोने में रखी लड़कियों की जूतियां देखकर ठिठक गई।
भाग 15: जूतियों का राज़
वो आगे बढ़ी। एक जूती उठाकर बोली, “यह यहां क्या कर रही है?” बूढ़ा घबरा कर जल्दी से बोला, “मैंने तो कहा, लोग अपना पुराना सामान दे जाते हैं।” रूपा मुस्कुराई। “ठीक है।” वह जूती रखकर दूसरे कमरे में चली गई और बूढ़ा उसके पीछे-पीछे वहां पहुंचा।
रूपा ने महसूस किया कि वह अब बहुत करीब खड़ा है। बूढ़े ने धीरे से कहा, “अब और समय बर्बाद मत करो। रात हो गई है। आओ।” रूपा ने उसकी आंखों में देखकर हाथ उठाया। अपनी हथेली खोली जिसमें एक छोटी सी शीशी थी और हंसकर बोली, “ठीक है, लेकिन पहले यह खा लो। इससे तुम्हें शांति मिलेगी।”
भाग 16: अंत का समय
बूढ़ा जो अब पूरी तरह से पागल हो चुका था, बिना सोचे समझे उसे खा गया। कुछ ही पलों में उसका सिर चकराने लगा। आंखें धुंधला गईं। वह लड़खड़ाते हुए बोला, “तुम बहुत सुंदर हो। तुम्हारे जैसा कोई नहीं।” रूपा ने हंसकर कहा, “झूठ बोल रहे हो? तुमने मुझसे भी ज्यादा सुंदर किसी को देखा है?”
बूढ़े ने नशे में डूब कर कहा, “नहीं, जितने भी आए तुमसे कम ही थे। तुम तो एक जीती-जागती मुसीबत हो।” रूपा ने उसकी आंखों की गहराई में देखा और बोली, “अभी भी झूठ।” बूढ़े का गला अब टूटने लगा था और उसके पैर लड़खड़ा रहे थे। तभी रूपा दीवार की ओर गई और वहां से वह चीज उठा ली जो उसने कुछ देर पहले अपने पर्स से निकालकर रखी थी।
भाग 17: सच्चाई का सामना
वो एक खुफिया कैमरा था जिसमें उस आदमी के सभी अपराधों का कुबूलनामा रिकॉर्ड हो चुका था। रूपा ने एक और जोरदार थप्पड़ उसके मुंह पर मारा और ऊंची आवाज में बोली, “मैं एक पुलिस ऑफिसर हूं। यह पूरा ऑपरेशन मेरी निगरानी में हुआ है। हमें शिकायतें मिल रही थीं कि तुम मासूम लड़कियों के साथ गंदा खेल खेलते हो। इसलिए मैंने यह पूरा जाल बिछाया ताकि तुम अपने मुंह से अपना जुर्म कुबूल करो और किसी भी तरह से मुकर न सको।”
भाग 18: अंत की शुरुआत
यह सुनकर बूढ़े के भेष में छिपा वो दरिंदा हक्का-बक्का रह गया। कमांडो उसे जमीन पर घसीटते हुए बाहर ले गए और गाड़ी में डाल दिया। कुछ दिनों बाद उसे अदालत में पेश किया गया। वीडियो और ऑडियो सबूतों के सामने उसके झूठ टिक नहीं सके। वह एक शातिर अपराधी साबित हुआ और अदालत ने उसे कठोर सजा सुनाई।
इस तरह एक बूढ़े के भेष में छिपा दरिंदा अपने अंजाम तक पहुंचा और रूपा ने अपनी हिम्मत और बुद्धिमानी से यह साबित कर दिया कि सच्चाई और ईमानदारी की हमेशा जीत होती है। बुरी ताकत चाहे कितना भी नकाब क्यों न पहन ले, एक दिन उसका असली चेहरा जरूर सामने आता है।
अंत
रूपा की कहानी यह दर्शाती है कि साहस और बुद्धिमानी से किसी भी समस्या का सामना किया जा सकता है। जब हम सच्चाई के साथ खड़े होते हैं, तो दुनिया में अच्छे और बुरे के बीच का अंतर स्पष्ट हो जाता है। हर महिला को रूपा की तरह साहसी बनना चाहिए और अपने अधिकारों के लिए खड़ा होना चाहिए।
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