Sabzi bechne wale saadharan ladke se college ki karodpati ladki ko hua pyaar… phir jo hua

लखनऊ के एक नामी कॉलेज “एंपायर कॉलेज” की बड़ी-बड़ी इमारतें, चमचमाती कारें और ब्रांडेड कपड़ों में घूमते स्टूडेंट्स देखकर कोई भी सोच सकता था कि यहां सिर्फ अमीरों के बच्चे पढ़ते होंगे। उसी कॉलेज में रोज़ आती थी एक साधारण महिला, शांति देवी, जो कॉलेज की सफाई कर्मचारी थी। उसका बेटा आदित्य, सुबह-सुबह अपनी पुरानी मोटरसाइकिल से मां को कॉलेज छोड़ने आता और शाम को लेने भी आता था।

आदित्य कोई खास नहीं था — मोहल्ले में सब्ज़ी बेचता था, कपड़े साधारण थे, मोटरसाइकिल पुरानी थी, लेकिन दिल से वह बेहद खास इंसान था। मां के लिए उसके दिल में जो इज़्जत और अपनापन था, वो हर किसी को नहीं दिखता — लेकिन किसी एक ने जरूर देखा…

कॉलेज की टॉप स्टूडेंट और शहर के नामी डॉक्टर की बेटी रतिका वर्मा। आलीशान कोठी, महंगी गाड़ियाँ, नौकर-चाकर, हर ऐशो-आराम उसके पास था। लेकिन दिल में एक खालीपन था, जिसे कोई नहीं भर पाया था।

एक दिन कॉलेज के गेट पर खड़ी रतिका की नजर उस लड़के पर पड़ी जो अपनी मां को बड़ी ही मोहब्बत से उतारकर कह रहा था, “मां, ध्यान से उतरिए, मैं बैग ले लेता हूं।”
रतिका ठिठक गई।
उसे पहली बार लगा कि वो भी किसी अनजाने एहसास में बह रही है।

धीरे-धीरे यह एहसास प्यार में बदलने लगा। खिड़की के पास बैठकर आदित्य को देखना, उसके आने-जाने के समय का इंतजार करना — रतिका के दिन का हिस्सा बन गया था। वो जानती थी कि यह सब एक अमीर लड़की और गरीब लड़के की फिल्मी कहानी जैसा लगता है, लेकिन दिल के फैसले तर्क नहीं देखते।

काफी दिन तक सब चुपचाप चलता रहा, लेकिन फिर एक दिन रतिका ने हिम्मत कर ही ली। आदित्य मां को लेने आया ही था कि रतिका उसके पास गई और कहा,
“हाय, आप आदित्य हो न?”
आदित्य थोड़ी देर के लिए चौंक गया।
“जी, लेकिन आप कौन?”
“मैं रतिका… इसी कॉलेज में पढ़ती हूं। मैंने आपको कई बार देखा है, आप अपनी मां को रोज़ छोड़ने आते हैं। बहुत अच्छा लगता है ये देखकर।”

आदित्य थोड़ा झेंप गया। पहली बार किसी अमीर लड़की ने उससे सीधे बात की थी।
उस दिन दोनों के बीच छोटी सी बात हुई, लेकिन वही शुरुआत बन गई उस रिश्ते की जो समाज की हर दीवार तोड़ने को तैयार थी।

इसके बाद रतिका अक्सर बहाने से कैंपस में मिलती, पानी देती, कभी मां शांति देवी से बात करती और फिर आदित्य से। आदित्य पहले तो हिचकिचाया, लेकिन धीरे-धीरे उसके दिल में भी रतिका की मासूमियत जगह बनाने लगी।

एक दिन, कॉलेज के बाहर रतिका ने सीधे कहा,
“आदित्य, तुम्हारे पास पैसे नहीं हैं, गाड़ियाँ नहीं हैं… लेकिन तुम्हारे पास सच्चाई है। आज के समय में सबसे कीमती चीज़।”

आदित्य ने संकोच से कहा,
“हमारी दुनिया अलग है, रतिका। तुम्हारे घरवाले कभी ये रिश्ता नहीं मानेंगे।”
रतिका ने जवाब दिया,
“अगर मेरा दिल तुम्हें चुन चुका है, तो दुनिया की कोई दीवार मुझे रोक नहीं सकती।”

उस रात रतिका ने अपने माता-पिता को सब कुछ बता दिया। पहले तो डॉक्टर वर्मा और अनीता वर्मा आगबबूला हो गए।
“तू एक सब्ज़ी वाले से शादी करेगी?”
“लोग क्या कहेंगे? हमारी इज्ज़त का क्या होगा?”

लेकिन रतिका अडिग रही।
“अगर शादी करूंगी तो सिर्फ आदित्य से।”

आखिरकार, डॉक्टर वर्मा ने शर्त रखी —
“हम उस लड़के से मिलेंगे। अगर वो हमारी उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा, तो तुम्हें यह रिश्ता छोड़ना होगा।”

कुछ दिन बाद, वर्मा परिवार आदित्य के घर पहुंचा। शांति देवी घबरा गईं, हाथ जोड़कर माफी मांगने लगीं। लेकिन डॉक्टर वर्मा ने कहा,
“हम तुम्हारे बेटे से मिलने आए हैं।”

आदित्य सामने आया।
“बेटा, हमारी बेटी तुमसे मोहब्बत करती है। हम जानना चाहते हैं कि क्या तुम उसे खुश रख पाओगे?”
आदित्य की आंखें भर आईं।
“साहब, मेरे पास पैसे नहीं हैं, लेकिन मेरी मोहब्बत सच्ची है। मैं उसे कभी दुखी नहीं होने दूंगा।”

पीछे से रतिका दौड़ती हुई आई और आदित्य का हाथ पकड़ लिया।
“पापा, अगर शादी करूंगी तो सिर्फ आदित्य से। चाहे सारी दुनिया मेरे खिलाफ हो जाए।”

डॉक्टर वर्मा की आंखें भी भर आईं।
“अगर तुम्हारी मोहब्बत इतनी सच्ची है, तो हम इसे मंजूर करते हैं।”

कुछ महीनों बाद, बिना दहेज, बिना तामझाम, रतिका और आदित्य की शादी हुई। वो शादी नहीं, दो दिलों का संगम था।

आदित्य अब एक छोटा व्यवसाय चला रहा था। रतिका ने भी एक सोशल फाउंडेशन शुरू किया, जहां गरीब बच्चों को पढ़ाया जाता है।

उनकी मोहब्बत ने यह साबित कर दिया कि सच्चा प्यार अमीरी-गरीबी, जात-पात या स्टेटस नहीं देखता।

Play video :