SP मैडम सादे कपड़े में पानी पूरी खा रही थी महिला दरोगा ने साधारण महिला समझ कर बाजार में मारा थप्पड़

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SP मैडम सादे कपड़े में पानी पूरी खा रही थी, महिला दरोगा ने साधारण महिला समझ कर बाजार में मारा थप्पड़

भूमिका

क्या आपने कभी सोचा है कि जो महिला साधारण कपड़ों में सड़क किनारे पानी पूरी खा रही हो, वह असल में कोई आम औरत नहीं बल्कि एसपी मैडम भी हो सकती है? जी हां, यह कोई कहानी नहीं बल्कि एक असली वाकया है जब एक महिला दरोगा ने बाजार में खड़ी एक साधारण सी महिला को भीड़ के बीच थप्पड़ जड़ दिया। उसे क्या पता था कि जिसके गाल पर उसका हाथ पड़ा है, वो उसी की सीनियर अफसर है, जिसके एक इशारे पर उसकी वर्दी भी उतर सकती है।

पृष्ठभूमि

जिला बरेली की हवा में इन दिनों एक अजीब सी बेचैनी थी। यह बेचैनी इसलिए नहीं कि कोई बड़ा जुर्म हो गया था, बल्कि इसलिए कि जिले को एक नई एसपी मिली थी। नाम था नैना राठौर। फाइलों में उनका रिकॉर्ड खुद गवाही दे रहा था कि वह कितनी सख्त और ईमानदार अफसर हैं। नैना राठौर सख्त, ईमानदार और काम करने का तरीका बिल्कुल अलग रखती थी। उनके आने की खबर से सबसे ज्यादा बेचैनी खुद पुलिस महकमे में थी। पुराने जमे-जमाए अफसर और सिपाही जानते थे कि जब कोई नया अफसर आता है तो कुछ दिनों तक सब कुछ बदल जाता है। कम से कम दिखावे के लिए ही सही, ईमानदारी का नाटक करना पड़ता है।

नैना का फैसला

नैना राठौर ने बरेली एएसपी का चार्ज संभाले हुए 3 दिन पूरे कर लिए थे। इन 3 दिनों में उन्होंने सिर्फ फाइलें देखी। पुराने केसों को समझा और अपने मातहत अफसरों के साथ लंबी मीटिंग की। हर अफसर उनके सामने बिल्कुल मैम कहता जा रहा था। हर कोई उन्हें यकीन दिला रहा था कि बरेली में सब कुछ ठीक है। क्राइम कंट्रोल में है। पब्लिक खुश है और पुलिस दिन रात उनकी सेवा में लगी है। नैना बड़ी सी कुर्सी पर बैठी थी। सामने फाइलों का ढेर लगा था। वह मीटिंग में कहे गए शब्दों को याद कर रही थी। डीएसपी साहब ने बड़ी सफाई से कहा था, “मैम हमारे यहां तो पुलिस और पब्लिक का रिश्ता एकदम दोस्ताना है।”

लेकिन नैना के चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान तैर गई। वह जानती थी कि बंद कमरों में जो कहानियां सुनाई जाती हैं, असलियत की गलियों में उनका दम घुट जाता है। यह सच उन्होंने अपने पिता से सीखा था, जो खुद एक मामूली हवलदार के पद से रिटायर हुए थे। पिता हमेशा कहते थे, “बेटा, वर्दी की असली इज्जत कुर्सी पर नहीं होती। अगर सच जानना है तो कभी अपनी कुर्सी और वर्दी छोड़कर लोगों के बीच जाकर बैठना।” आज वही बात उनके दिल दिमाग में घूम रही थी। उन्होंने तय कर लिया कि अब फाइलों से नहीं, अपनी आंखों से सच्चाई देखने का वक्त आ गया है।

बाजार की ओर यात्रा

शाम के करीब 5:00 बजे थे। आसमान में बादल घिरे हुए थे और दिन में ही शाम का एहसास होने लगा था। नैना ने अपनी वर्दी उतार दी। एक साधारण सा सलवार सूट पहना – पीला कुर्ता, काली सलवार और एक काला दुपट्टा। बालों को भी बहुत सादगी से बांध लिया। महंगी घड़ी उतारकर नैना ने एक पुरानी घड़ी पहन ली। पर्स में सिर्फ कुछ रुपए, एक मोबाइल और सबसे जरूरी चीज, अपना आईडी कार्ड बेहद अंदर की जेब में संभाल कर रख लिया।

जब वह अपने बंगले से बाहर निकली तो गेट पर खड़े सिपाही ने सैल्यूट करने के लिए हाथ उठाया। लेकिन उसे साधारण कपड़ों में देखकर थोड़ी हिचकिचाहट हुई। वो बोला, “अरे मैम, आप…”

नैना ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, “मैं बस यूं ही बाहर टहलने जा रही हूं। किसी को बताने की जरूरत नहीं और ना ही कोई गाड़ी चाहिए।” सिपाही हैरान जरूर था लेकिन अफसर का हुक्म था। नैना बंगले के गेट से बाहर निकली और सड़क पर आ गई। उन्होंने एक ऑटो रिक्शा रोका। नरम आवाज में पूछा, “भैया, किला बाजार चलोगे?” उसकी आवाज में कहीं भी अफसर होने का गुरूर नहीं था। बस एक आम लड़की की सादगी थी। ऑटो वाला मुस्कुरा कर बोला, “हां जी, बैठिए।” ऑटो चल पड़ा।

किला बाजार की हलचल

किला बाजार बरेली का सबसे भीड़भाड़ वाला इलाका था। शाम के वक्त यहां पैर रखने की भी जगह नहीं होती। छोटी बड़ी दुकानें, ठेलों की कतारें और खरीदारों का शोर हर तरफ फैला था। दिन में हुई हल्की बारिश की वजह से हवा में मिट्टी की ताजी खुशबू थी। ऑटो रुकते ही नैना ने होठों पर हल्की मुस्कान लाते हुए पैसे दिए और भीड़ में शामिल हो गई। वह इधर-उधर घूमती रही। लोगों को गौर से देखती रही। उनकी बातें सुनती रही। उसे यह सब बेहद अच्छा लगता था।

तभी नैना की नजर एक कोने में लगे पानी पूरी के ठेले पर पड़ी। ठेले वाला एक अधेड़ उम्र का आदमी था। उसके चेहरे पर मेहनत की थकावट और चिंता की गहरी लकीरें साफ झलक रही थी। उसका नाम था राम लहरिया। वह बड़ी सफाई और सलीके से लोगों को पानी पूरी परोस रहा था। उसके पास दो-चार महिलाएं और कुछ बच्चे खड़े थे। नैना को भी बचपन की अपनी पसंद याद आ गई। उसे पानी पूरी का स्वाद बहुत पसंद था। वह ठेले के पास जाकर खड़ी हो गई और मुस्कुरा कर बोली, “एक प्लेट लगाना भैया।”

पुलिस की दखलंदाजी

राम लहरिया ने सिर उठाकर देखा। सामने एक भोली-भाली सी लड़की खड़ी थी। उसने भी मुस्कुरा कर कहा, “हां बिटिया, अभी देता हूं।” उसने पत्तों से बने धोने धोएं सूजी के कुरकुरे गोलगप्पे निकाले। उनमें आलू चने का मसाला भरा और फिर चटपटे पानी में डुबोकर नैना की तरफ बढ़ा दिया। नैना ने पहला गोलगप्पा खाया और मन ही मन सोचा, “वाह, क्या स्वाद है।”

लेकिन तभी बाजार में एक तेज ब्रेक लगने की कर्कश आवाज गूंजी। सभी लोगों ने एक साथ मुड़कर देखा। यह पुलिस की जीप थी। उसके रुकते ही पूरे बाजार में सन्नाटा फैल गया। जैसे किसी शिकारी के कदमों की आहट जंगल में हो और जानवर खुद को छिपा लें। अब शाम गहराने लगी थी, और थोड़ा अंधेरा होने लगा था। दुकानदारों ने अपने ठेलों को और सलीके से सजाना शुरू कर दिया। जीप से चार पुलिस वाले उतरे। तीन पुरुष और एक महिला।

वो महिला थी सब इंस्पेक्टर अर्चना चौहान। अर्चना चौहान अपने इलाके में अपनी दबंग और तेजतर्रार छवि के लिए जानी जाती थी। लंबा कद, आंखों पर काला चश्मा, एकदम कड़क वर्दी और हाथ में एक मजबूत डंडा, जिसे वह अक्सर हवा में घुमाती रहती थी।

अर्चना का आतंक

अर्चना चौहान की सीधी नजर राम लहरिया के ठेले पर पड़ी। वो अपने सिपाहियों के साथ बिल्कुल फिल्मी विलेन की तरह सीधे उस ठेले की तरफ बढ़ी गई। जो लोग वहां पानी पूरी खा रहे थे, वे डर कर किनारे हट गए। अर्चना चौहान ने डंडे से ठेले को ठकठकाया और तेज आवाज में बोली, “ओए राम लहरिया, निकाल आज का हफ्ता जल्दी निकाल।”

राम लहरिया का हंसता हुआ चेहरा अचानक पीला पड़ गया। उसके हाथ कांपने लगे। डरते-डरते हाथ जोड़कर वह बोला, “मैडम जी, आज कमाई नहीं हुई। सुबह से बारिश हो रही थी। दुकान भी देर से लगाई।”

अर्चना चौहान ने उसकी बात सुनी और जोर से हंस पड़ी। मगर उसकी हंसी में दया नहीं थी बल्कि अपमान छिपा था। “कमाई नहीं हुई तो क्या? मैं मान लूं यह जो लोग तेरे ठेले पर अभी खड़े थे, यह सब फ्री में खा रहे थे क्या? नाटक मत कर। चल फटाफट पैसे निकाल।”

राम लहरिया अब लगभग रोने ही वाला था। कांपती आवाज में उसने कहा, “मैडम, सच कह रहा हूं। घर में बच्ची की तबीयत खराब है। उसकी दवा भी ले जानी है। कल पक्का दे दूंगा, मैडम। भगवान कसम।”

यह सुनकर अर्चना चौहान का पारा और चढ़ गया। उसका चेहरा गुस्से से लाल हो उठा। उसने दांत भीतते हुए कहा, “तेरी हिम्मत कैसे हुई? मुझे कल की तारीख देने की। तू मुझे सिखाएगा कि मुझे मेरा पैसा कब मिलेगा। कमाया हो या ना कमाया हो। पुलिस का हफ्ता तो फिक्स है। इसे अपने दिमाग में डाल ले।” इतना कहकर अर्चना चौहान ने गुस्से में राम लहरिया के ठेले को एक जोरदार धक्का मार दिया। ठेले पर रखे गोलगप्पे, मसालों के बर्तन और पानी से भरे मटके सब जमीन पर बिखर गए।

नैना का प्रतिरोध

नैना थोड़ी दूर खड़ी यह सब देख रही थी। उसका खून खल उठा। उसने अपने हाथ में पकड़ा हुआ गोलगप्पा कसकर भी लिया। वो देख रही थी कि कैसे वर्दी का रोब एक गरीब की रोजी रोटी को कुचल रहा था। अब आसमान साफ था और लोग चुपचाप खड़े तमाशा देख रहे थे। किसी की हिम्मत नहीं हुई कुछ कहने की। सब की आंखों में बस डर ही डर था।

नैना अब और बर्दाश्त नहीं कर सकी। उसे पता था कि अगर आज वह चुप रह गई तो अपनी ही नजरों में गिर जाएगी। उसी वक्त उसके कानों में पिता की आवाज गूंजी। “जब जुल्म करने वाला गुनाह करता है, उससे बड़ा गुनाहगार वो होता है जो चुपचाप खड़ा सब देखता है।”

उसने गहरी सांस ली और धीरे-धीरे कदम बढ़ाए। उसके कदमों में कोई डर नहीं था। बस एक अजीब सी शांति और दृढ़ता थी। वो सीधे अर्चना चौहान के सामने जाकर खड़ी हो गई।

सामना

अर्चना चौहान ने उसे देखकर चौंक गए। नैना ने बहुत ही सीधी लेकिन सख्त आवाज में कहा, “एक्सक्यूज मी ऑफिसर।”

अर्चना चौहान ने उसे ऊपर से नीचे तक घूरा और कड़क लहजे में पूछा, “क्या है?”

नैना ने सड़क पर बिखरे सामान की तरफ इशारा किया और शांत लेकिन तीखे स्वर में बोली, “आप इनसे किस कानून के तहत पैसे वसूल रही हैं और आपको किसने यह हक दिया कि आप इनकी रोजी रोटी को इस तरह बर्बाद करें।”

अर्चना का अहंकार

नैना का सवाल सीधा और सटीक था। यह सुनते ही अर्चना चौहान का अहंकार तिलमिला उठा। आज तक किसी ने उसकी आंखों में आंखें डालकर ऐसे सवाल करने की जुर्रत नहीं की थी। वो भी एक मामूली सी दिखने वाली लड़की ने।

अर्चना चौहान गुस्से से कांपते हुए चिल्लाई, “तू कौन होती है मुझसे सवाल करने वाली? बड़ी आई वकील, तेरे बाप का ठेला है क्या जो बीच में बोल रही है?”

एक सिपाही ने आगे बढ़कर नैना को डराने की कोशिश की। उसने ऊंची आवाज में कहा, “ए लड़की, चलती बन यहां से वरना थाने ले जाकर तेरी अक्ल ठिकाने लगा देंगे।”

लेकिन नैना अपनी जगह से 1 इंच भी नहीं हिली। उसकी आंखें सीधी अर्चना चौहान की आंखों में थीं। उन नजरों में डर की जगह सिर्फ एक गहरी चुनौती साफ दिखाई दे रही थी।

नैना का साहस

नैना ने शांत लेकिन ठोस आवाज में कहा, “मैं इस देश की एक आम नागरिक हूं और एक नागरिक होने के नाते मुझे यह सवाल पूछने का पूरा हक है। आप वर्दी में हैं? कानून की रक्षक हैं? भक्षक नहीं। इंडियन पीनल कोड के किस सेक्शन में लिखा है कि पुलिस किसी गरीब से हफ्ता वसूलेगी?”

इंडियन पीनल कोड सेक्शन जैसे शब्द सुनकर अर्चना चौहान और भी तिलमिला गई। उसे लगा यह लड़की कुछ ज्यादा ही पढ़ी-लिखी है और अब उसे कानून सिखा रही है।

थप्पड़ की आवाज

अर्चना चौहान ने आव देखा ना ताव। गुस्से में कांपते हुए अपना हाथ पूरी ताकत से हवा में घुमाया और झटके से एक जोरदार थप्पड़ नैना के गाल पर जड़ दिया। थप्पड़ की आवाज इतनी तेज थी कि पूरे बाजार में गूंज उठी। चारों तरफ एक पल के लिए सन्नाटा छा गया। वक्त जैसे थम गया हो। नैना का सिर झटके से एक तरफ घूम गया। उसके कान में अजीब सी सनसनाहट होने लगी। गाल पर तेज जलन थी। लेकिन यह थप्पड़ सिर्फ उसके गाल पर नहीं, उसकी वर्दी पर पड़ा था। उसके पद पर पड़ा था। और इस देश के कानून पर पड़ा था।

अर्चना का डर

अर्चना चौहान ने हाथ झटकते हुए तुच्छता से कहा, “यह है मेरे कानून का सेक्शन। अब दफा हो जा यहां से वरना दूसरा गाल भी लाल कर दूंगी।”

चारों ओर खड़ी भीड़ में फुसफुसाहट शुरू हो गई। कुछ लोगों को उस लड़की के लिए बुरा लग रहा था तो कुछ सोच रहे थे कि इसे पुलिस से पंगा लेने की क्या जरूरत थी। राम लहरिया की आंखों में आंसू आ गए। उसे महसूस हुआ कि उसकी वजह से एक बेकसूर लड़की को मार खानी पड़ी।

नैना का प्रतिरोध

नैना कुछ पल चुप रही। उसने धीरज से अपना चेहरा सीधा किया। उसके गाल पर पांचों उंगलियों के निशान छप गए थे। लेकिन उसकी आंखों में ना तो गुस्सा था और ना ही दर्द बल्कि एक अजीब सी ठंडक थी। वैसी ठंडक जैसी किसी बड़े तूफान से पहले की हवा में होती।

उसने अर्चना चौहान की तरफ देखा जो अब भी जीत के घमंड में खड़ी थी। फिर उसने उन सिपाहियों को देखा जो मंद-मंद मुस्कुरा रहे थे। और फिर उसने उस डरी सहमी भीड़ को देखा जो न्याय की उम्मीद छोड़ चुकी थी। नैना ने एक गहरी सांस ली। अब समय था नाटक खत्म करने का।

एक नई शुरुआत

नैना ने बहुत ही शांत ढंग से अपना साधारण सा पर्स खोला। अर्चना चौहान और उसके साथी सोच रहे थे कि शायद अब यह लड़की पैसे निकाल कर ठेले वाले को देने वाली है।

लेकिन नैना ने पर्स से पैसे नहीं निकाले। उसने पर्स की अंदर वाली खुफिया जेब में हाथ डाला और वहां से एक कार्ड बाहर निकाला। वो कार्ड गहरे नीले रंग का था जिस पर सुनहरे अक्षरों में बना हुआ था अशोक स्तंभ। नैना ने वो कार्ड धीरे से आगे बढ़ाया। ठीक अर्चना चौहान की आंखों के सामने।

अर्चना का अहंकार टूटना

अर्चना चौहान ने झुनझुनाकर कार्ड की तरफ देखा। पहले तो कुछ समझ में नहीं आया। लेकिन जैसे ही उसकी नजर कार्ड पर लिखे नाम और पद पर पड़ी, उसके पैरों तले से जमीन खिसक गई। कार्ड पर साफ-साफ लिखा था “नैना राठौर, आईपीएस, पुलिस अधीक्षक, जिला बरेली।”

यह पढ़ते ही अर्चना चौहान के चेहरे का रंग उड़ गया। उसकी आंखों के सामने अंधेरा छा गया। जिस औरत को उसने अभी-अभी पूरे बाजार के सामने थप्पड़ मारा था, वह कोई आम लड़की नहीं थी बल्कि उसी जिले की सबसे बड़ी पुलिस अफसर नई एसपी नैना राठौर थी।

अर्चना का आत्मसमर्पण

उस क्षण अर्चना चौहान के हाथ से डंडा छिन की आवाज के साथ जमीन पर गिर गया। उसके शरीर की सारी अकड़, सारा गुरूर एक ही पल में भांप बनकर उड़ गया। उसके हाथ पैर कांपने लगे। “मैम,” उसकी आवाज उसके गले में ही अटक गई। नैना ने बहुत ही ठंडे चेहरे के साथ अपना कार्ड वापस पर्स में रखा।

उसका चेहरा अब भी सपाट था। लेकिन उसकी आवाज लोहे की तरह सख्त और ठंडी हो गई थी। “खड़ी हो जाओ।” अर्चना कांपते हुए खड़ी हुई। सिर नीचे झुका हुआ था। नजरें उठाने की हिम्मत तक नहीं बची थी।

नैना ने उसकी ओर देखते हुए कहा, “तुमने मुझे पहचाना नहीं, इसीलिए तुमने मुझे थप्पड़ मारा। अगर पहचान लेती तो सैल्यूट करती। यही है तुम्हारी दिक्कत। तुम्हारी वफादारी कानून से नहीं, पद से है। तुम वर्दी की इज्जत नहीं करती। तुम सिर्फ रैंक से डरती हो।”

नैना का संदेश

उसने एक पल के लिए विराम लिया। फिर ठंडे स्वर में कहा, “नहीं पता था। इसीलिए ही तो तुम जैसे लोग वर्दी पहनकर वर्दी को गंदा कर रहे हो। आज एक गरीब से वसूली कर रही हो। कल किसी की इज्जत का सौदा भी कर लोगी। तुम जैसी पुलिस वाली इस विभाग पर एक कलंक हो।”

यह कहते हुए नैना ने अपने पर्स से अपना पर्सनल मोबाइल फोन निकाला। उसने एक नंबर डायल किया। “कंट्रोल रूम, मैं एएसपी नैना राठौर बोल रही हूं।” दूसरी तरफ से जो भी ऑपरेटर था, उसकी आवाज में हड़बड़ाहट साफ सुनाई दे रही थी।

“किला बाजार में जहां पानी पूरी का कोना है, वहां तुरंत एक पीसीआर वैन और एसएओ को भेजो।” तत्काल फोन काटकर उसने उन चारों की तरफ देखा। “तुम चारों को अभी और इसी वक्त सस्पेंड किया जाता है। लाइन हाजिर हो जाओ और तुम सब इंस्पेक्टर अर्चना चौहान, तुम्हारे ऊपर विभागीय जांच आज से ही शुरू होगी। एक्सटॉशन, अवैध वसूली, पब्लिक सर्वेंट ड्यूटीज का दुरुपयोग और एक नागरिक पर हाथ उठाने के जुर्म में तुम्हारे ऊपर चार्जशीट भी तैयार होगी। अब तुम अपनी सफाई जांच कमेटी को देना।”

नैना की जीत

कुछ ही मिनटों में पुलिस की दो गाड़ियां सायरन बजाती हुई बाजार में आ पहुंची। उनमें से इलाके के एसएओ उतरे। उन्होंने जब अपनी नई एसपी को साधारण कपड़ों में गाल पर थप्पड़ के निशान के साथ देखा, तो उनके होश उड़ गए।

उन्होंने कांपते हुए सैल्यूट किया। नैना ने आदेश दिया, “एसएओ साहब, इन चारों को यहां से ले जाइए और जो मैंने कहा है, उस पर तुरंत कार्रवाई शुरू कीजिए।”

एसएओ ने अर्चना चौहान और बाकी सिपाहियों की ओर देखा। जिनके चेहरों पर हवाइयां उड़ रही थीं। उन्होंने उन चारों को जीप में बैठने का इशारा किया। कल तक जो पुलिस वाले बाजार में रब जमाते थे, आज वे मुजरिमों की तरह सिर झुकाए जीप में बैठ रहे थे।

नैना का संदेश

जब वे जा रहे थे तब नैना ने अर्चना चौहान से आखिरी बार कहा, “यह थप्पड़ मुझे नहीं, इस वर्दी को पड़ा है। और इस वर्दी का सम्मान कैसे वापस लाना है, यह मुझे अच्छी तरह पता है।”

पुलिस की गाड़ियां चली गईं। बाजार में अभी भी खामोशी थी, लेकिन अब यह डर की नहीं, आश्चर्य और सम्मान की खामोशी थी। लोगों ने आज तक ऐसा सीन सिर्फ फिल्मों में देखा था। आज वे अपनी आंखों से हकीकत में देख रहे थे।

अब नैना उस ठेले वाले राम लहरिया की तरफ मुड़ी, जो अभी तक सदमे में खड़ा सब कुछ देख रहा था। उसकी आंखों में आंसू थे। लेकिन अब यह बेबसी के नहीं कृतज्ञता के आंसू थे। नैना ने उसके कंधे पर हाथ रखा। उसकी आवाज में अब वही पुरानी नरमी लौट आई थी। “बाबा, आपका नाम क्या है?”

उसने कांपती आवाज में कहा, “जी राम लहरिया।”

“राम लहरिया जी, जो आपका नुकसान हुआ है उसकी भरपाई सरकार करेगी और आज के बाद आपसे कोई भी पुलिस वाला अगर एक भी मांगे या आपको डराए धमकाए, तो आप डरना मत। सीधा मेरे ऑफिस आना। मेरा दरवाजा आपके जैसे शरीफ लोगों के लिए हमेशा खुला है।”

उसने अपनी जेब से ₹500 का एक नोट निकाला और उसकी हथेली पर रख दिया। “यह मेरी तरफ से है। आपके नुकसान के लिए नहीं, आपकी बेटी की दवाई के लिए। जाइए और अपनी दुकान फिर से लगाइए।”

समापन

राम लहरिया की आंखों से झर-झर आंसू बहने लगे। वो कुछ बोल नहीं पाया। बस हाथ जोड़कर खड़ा रहा। नैना ने भीड़ की तरफ देखा और ऊंची आवाज में कहा, “आप सब लोग गवाह हैं कि आज यहां क्या हुआ? डरिए मत। पुलिस आपकी सुरक्षा के लिए है। आपको लूटने के लिए नहीं। अगर कोई भी वर्दी वाला अपनी ताकत का गलत इस्तेमाल करता है, तो चुप मत रहिए। आवाज उठाइए। मैं आपके साथ हूं।”

यह कहकर नैना मुड़ी और धीरे-धीरे भीड़ से बाहर निकल गई। वैसे ही जैसे वो आई थी। लेकिन अब वो सिर्फ एक आम लड़की नहीं थी। वो बरेली के लोगों के लिए उम्मीद की एक किरण बन गई थी।

उस रात जब नैना राठौर अपने बंगले पर लौटी, तो उसने आईने में अपना चेहरा देखा। गाल पर अभी भी हल्का सा निशान था। लेकिन आज उसे उस निशान में दर्द नहीं, एक सुकून दिख रहा था। उसे लगा कि आज उसने सच में अपनी वर्दी का कर्ज चुकाया है।

यह खबर पूरे जिले में आग की तरह फैल गई। हर पुलिस वाले के दिल में यह बात बैठ गई कि नई एएसपी सिर्फ ऑफिस में बैठने वाली अफसर नहीं है। वह सड़कों पर घूमकर न्याय करने वाली अफसर है।

निष्कर्ष

इस घटना ने बरेली जिले के पुलिस महकमे को हिलाकर रख दिया था। नैना राठौर ने साबित कर दिया कि एक सही कदम हजारों कदम आगे बढ़ा सकता है। वह सिर्फ एक अफसर नहीं, बल्कि एक मिसाल बन गई थी। उसकी कहानी ने यह दिखाया कि सच्चाई की लौ जब जलती है, तो अंधेरा खुद ब खुद पीछे हट जाता है।

तो दोस्तों, इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि यदि हम अपने अधिकारों के लिए खड़े होते हैं, तो हम बदलाव ला सकते हैं। नैना राठौर की तरह हमें भी अन्याय के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए।

समाप्त

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