SP साहब को देखकर… भीख मांगने वाले बच्चे ने कहा आप तो मेरे पापा हो, फिर जो हुआ… | Emotional Story
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डीएसपी विक्रम सिंह और सूरज की मार्मिक कहानी
सर्दियों की एक ठंडी शाम थी। डीएसपी विक्रम सिंह अपनी गाड़ी में किसी महत्वपूर्ण बैठक के लिए जा रहे थे। सड़कों पर हल्की भीड़ थी और ट्रैफिक धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था। अचानक उनकी गाड़ी के पास एक आठ साल का बच्चा, फटे पुराने कपड़े और नंगे पैर, भीख मांगने लगा। “साहब, कुछ पैसे दे दो, दो दिन से भूखा हूं,” उसकी आवाज में दर्द था। विक्रम ने शीशा नीचे किया, जेब से पैसे निकालने ही वाले थे कि बच्चे ने उनकी आंखों में देखा और चौंकते हुए बोला, “आप तो मेरे पापा हो!”
विक्रम के हाथ कांप गए। बच्चे की आंखों में वर्षों का इंतजार था। विक्रम ने पूछा, “कौन हो तुम? किसने बताया?” बच्चा रोने लगा, “मेरा नाम सूरज है। मां ने बताया था कि मेरे पापा पुलिस में हैं, पर उन्होंने हमें छोड़ दिया था। मां अब नहीं रही।” विक्रम के दिल में पुरानी यादें जाग उठीं। सीमा… उसका पहला प्यार, कॉलेज की दोस्त। विक्रम ने उससे शादी का वादा किया था, लेकिन पुलिस में सिलेक्शन के बाद परिवार ने उसे मजबूर कर दिया कि वह सीमा से दूर हो जाए। सीमा गर्भवती थी, लेकिन विक्रम ने करियर और समाज के डर से उसे छोड़ दिया।
वर्तमान में विक्रम के सामने उसका बेटा खड़ा था। विक्रम गाड़ी से उतरकर सूरज के सामने घुटनों पर बैठ गया, “बेटा, मुझे माफ कर दे।” सूरज हैरान था, किसी ने पहली बार उसे बेटा कहा था। विक्रम ने कहा, “अब मैं तुम्हें अकेला नहीं छोडूंगा।” लेकिन सूरज की आंखों में सवाल थे, “अब क्यों आए हो पापा? जब मां जिंदा थी तब कहां थे?”
सूरज ने बताया, “मां बीमार थी, भूखी थी, पर मुझे अपने हिस्से का खाना दे देती थी। जब मां मर गई, तब मैं फुटपाथ पर सोने लगा। मंदिर के बाहर, होटल के पीछे। कभी-कभी भूखा भी सो जाता हूं।” विक्रम का दिल टूट गया। एक डीएसपी का बेटा सड़कों पर भीख मांग रहा था। विक्रम ने पूछा, “मां ने आखिरी बार कुछ कहा था?” सूरज ने कहा, “मां ने कहा था, अगर कभी पापा मिले तो कहना कि मैंने उन्हें कभी दोष नहीं दिया। बस इतना कहना कि सूरज को अकेला मत छोड़ना।”
विक्रम की आंखों से आंसू बह निकले। उसने सूरज को सीने से लगा लिया, “अब तुझे कोई भूखा नहीं सोने देगा।” लेकिन सूरज ने हाथ छुड़ा लिया, “अब मुझे अपने साथ मत ले जाओ पापा। मुझे आदत हो गई है इस जिंदगी की।” विक्रम गिड़गिड़ाया, “प्लीज, मुझे एक मौका दे दे।” सूरज ने कहा, “क्या आप मेरी मां को लौटा सकते हैं?” विक्रम के पास कोई जवाब नहीं था। सूरज भीड़ में गुम हो गया। विक्रम जड़ होकर खड़ा रह गया।
रात गहरी हो चुकी थी। विक्रम घर पहुंचा, लेकिन अब घर घर नहीं लग रहा था। उसकी अलमारी में मेडल थे, ट्रॉफियां थीं, लेकिन दिल खाली था। उसने सीमा की तस्वीर निकाली, आंसू बहने लगे। तभी फोन आया, “साहब, फुटपाथ पर एक लड़का बेहोश पड़ा है।” विक्रम दौड़ता हुआ पहुंचा, सूरज ठंड में सिकुड़ा हुआ था। विक्रम ने उसे गोद में उठाया, अस्पताल ले गया। डॉक्टरों ने कहा, “हमें तुरंत खून चढ़ाना होगा, इसका ब्लड ग्रुप रेयर है।” विक्रम बोला, “मेरा खून ले लीजिए।”
विक्रम स्ट्रेचर पर लेटा, उसका खून सूरज के शरीर में गया। एक पिता अपने खून से बेटे की जिंदगी बचाने की कोशिश कर रहा था। सूरज की धड़कनें स्थिर होने लगीं, लेकिन आंखें बंद थीं। विक्रम उसका हाथ थामे बैठा रहा, “अब तुझे कोई तकलीफ नहीं होगी।” सूरज ने कमजोर आवाज में कहा, “पापा, अब आप मुझे छोड़कर नहीं जाएंगे?” विक्रम ने आंसू बहाते हुए कहा, “नहीं बेटा, अब कभी नहीं।”
लेकिन सूरज की हालत बिगड़ती गई। डॉक्टरों ने वेंटिलेटर लगाया, सीपीआर दिया, इंजेक्शन लगाए, लेकिन अंत में डॉक्टर ने सिर झुका लिया, “सॉरी, हमने पूरी कोशिश की लेकिन हम इसे बचा नहीं सके।” विक्रम का दिल टूट गया। उसने सूरज को सीने से लगा लिया, “बेटा, एक बार पापा कहकर पुकार ले।” लेकिन सूरज हमेशा के लिए चला गया।
अस्पताल के सफेद कमरे में सन्नाटा था। विक्रम ने सूरज को अपनी गोद में उठाया और उसी फुटपाथ पर गया, जहां पहली बार सूरज मिला था। वहां बैठकर उसने सूरज का चेहरा सहलाया, “भगवान, तुझे मेरे बेटे की जिंदगी छीननी थी? मेरी सजा मेरे बेटे को क्यों मिली?” तभी पास के मंदिर की एक बूढ़ी औरत आई, “तेरा बेटा तो चला गया, लेकिन कितने सूरज अभी भी अंधेरे में भटक रहे हैं। क्या तू नहीं चाहता कि कोई और अनाथ ना हो?”
विक्रम के अंदर कुछ जागा। उसने पुलिस की नौकरी छोड़ दी, अपने सारे पैसे निकालकर बेसहारा बच्चों के लिए अनाथालय बनवाया – सूरज बाल सदन। अब हर बेसहारा बच्चे को वहां छत, खाना, प्यार और एक पिता का सहारा मिलता। विक्रम ने अपने गुनाहों का प्रायश्चित किया, हर बच्चे के लिए पिता बना। लेकिन उसके दिल के एक कोने में सूरज की यादें हमेशा जिंदा रहीं।
रात को विक्रम अनाथालय के कमरे में बैठा, दीवार पर सूरज की तस्वीर थी। उसने तस्वीर को सीने से लगाया, “बेटा, मैंने कोशिश की कि कोई और सूरज भूखा ना सोए, कोई और बच्चा अपने पिता की राह ना देखे। लेकिन मैं तुझे वापस नहीं ला सका। काश मैंने पहले तुझे पहचान लिया होता।” उसकी आंखें बंद हो रही थीं। तभी उसे लगा कोई पास खड़ा है। उसने आंखें खोली, सूरज मुस्कुरा रहा था, “अब तुम अकेले नहीं हो पापा। अब मैं तुम्हें लेने आया हूं।” विक्रम की आंखों से आंसू गिरते रहे, लेकिन होठों पर सुकून की मुस्कान थी।
सालों बाद सूरज और विक्रम फिर से मिले, जहां दर्द और पश्चाताप नहीं था, सिर्फ प्यार था।
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