रिश्तों की अदालत: थाने में रिपोर्ट लिखाने आई पत्नी के सामने बैठा उसका तलाकशुदा पति SP

अधूरी शिकायत – एक रिश्ता, एक कसक

बारिश की रात थी। शहर के पुलिस स्टेशन में हलचल थी। बाहर तेज़ बारिश हो रही थी, और अंदर हर कोई अपने काम में व्यस्त था। तभी एक महिला, अंजलि, कांपते हाथों से अपनी साड़ी का पल्लू ठीक करती हुई थाने में दाखिल हुई। उसकी आँखों में डर और चेहरे पर चिंता साफ़ झलक रही थी।

.

.

.

डेस्क पर बैठे कांस्टेबल ने पूछा, “क्या काम है?”
अंजलि ने घबराते हुए कहा, “मुझे रिपोर्ट दर्ज करवानी है। मेरे मकान मालिक ने मुझसे जबरदस्ती की कोशिश की और मुझे व मेरे बेटे को घर से निकालने की धमकी दी।”

कांस्टेबल ने मामले को सीनियर अफसर के पास भेज दिया। अंजलि धीमे कदमों से उस कमरे की ओर बढ़ी, जहाँ थाने का इंचार्ज बैठा था। दरवाज़ा खोलते ही उसके कदम थम गए। सामने विक्रम था – उसका पूर्व पति। दोनों की आँखें मिलीं, और सालों का फासला एक पल में मिट गया।

एक समय था जब अंजलि और विक्रम एक-दूसरे के लिए पूरी दुनिया थे। लेकिन हालात ऐसे बने कि वे अलग हो गए। आज, इतने सालों बाद, अंजलि को उसी आदमी से मदद मांगनी पड़ी, जिससे उसने कभी रिश्ता तोड़ लिया था।

कमरे में सन्नाटा छा गया। विक्रम ने भावनाओं को नियंत्रित करते हुए पूछा, “आप किसलिए आई हैं?”
अंजलि ने आँसू रोकते हुए कहा, “मैं शिकायत दर्ज करवाने आई हूँ। एक इंस्पेक्टर के तौर पर तुम मेरी मदद करोगे ना?”

विक्रम ने गहरी साँस ली, और मामले की पूरी जानकारी ली। अंजलि ने सबूत के तौर पर एक ऑडियो रिकॉर्डिंग पेश की, जिसमें मकान मालिक की धमकी साफ़ सुनाई दे रही थी। विक्रम ने तुरंत मकान मालिक को गिरफ्तार करने का आदेश दिया।

मामला सुलझ गया, लेकिन कमरे में अब भी एक अजीब सी खामोशी थी। अंजलि ने विक्रम से कहा, “मुझे एहसान नहीं चाहिए, बस न्याय चाहिए।”
विक्रम की आँखों में दर्द था – उसने कभी सोचा नहीं था कि अंजलि एक शिकायतकर्ता बनकर उसके सामने आएगी।

तभी दरवाज़े पर एक छोटा लड़का, आरव, खड़ा था – अंजलि का बेटा। विक्रम ने उसकी ओर देखा, “यह तुम्हारा बेटा है?”
अंजलि ने धीमे स्वर में कहा, “हाँ, हमारा बेटा।”
विक्रम की आँखों में पछतावा और दर्द था। उसने महसूस किया कि उसने सिर्फ अंजलि ही नहीं, बल्कि अपने बेटे को भी खो दिया था।

अंजलि बेटे का हाथ पकड़कर बाहर चली गई। विक्रम वहीं खड़ा रह गया, यादों के बोझ तले दबा हुआ। उसे एहसास हुआ कि ड्यूटी के चक्कर में उसने अपना परिवार खो दिया।

अगले कुछ दिन विक्रम के लिए मुश्किल थे। वह रोज़ स्कूल के बाहर अंजलि और आरव को देखता, लेकिन उनसे बात नहीं कर पाता। एक दिन बारिश में अंजलि और आरव बस स्टॉप पर भीग रहे थे। विक्रम ने उन्हें अपनी कार में बैठाया। रास्ते भर चुप्पी रही।
विक्रम ने कहा, “मुझे नहीं पता था कि तुम मां बनने वाली थी। काश मैं जानता, काश मैं उस समय तुम्हारे साथ होता।”

अंजलि ने जवाब दिया, “पर तुम वहाँ नहीं थे, विक्रम। जब मुझे तुम्हारी सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी, तुम अपनी ड्यूटी में उलझे थे।”

विक्रम ने माफ़ी माँगी, लेकिन अंजलि ने कोई जवाब नहीं दिया।
आरव ने पूछा, “मम्मा, यह अंकल कौन हैं?”
अंजलि ने कहा, “बस एक पुराने जानने वाले।”

विक्रम ने एक आखिरी कोशिश की, “क्या मैं कभी आरव से मिल सकता हूँ?”
अंजलि बिना जवाब दिए घर के अंदर चली गई।

रात को अंजलि बालकनी में खड़ी थी, हाथ में अपनी शादी की पुरानी तस्वीर। उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करना सही है। विक्रम की कार अब भी नीचे खड़ी थी।

अगली सुबह, आरव ने कहा, “मम्मा, कल जो अंकल मिले थे, वह अच्छे हैं। मुझे उनसे फिर मिलना है।”
अंजलि का दिल एक पल को रुक गया। क्या उसे बेटे को पिता से दूर रखना सही होगा?

कुछ दिनों बाद, अंजलि ने विक्रम से मिलने का फैसला किया।
“मैं आरव को तुमसे दूर नहीं रखूंगी, विक्रम। वह तुम्हारा भी बेटा है। लेकिन मेरे और तुम्हारे रिश्ते के बारे में मैं अभी कुछ नहीं कह सकती।”
विक्रम की आँखों में चमक आ गई। “मुझे बस यही चाहिए था – एक मौका।”

शायद समय हर ज़ख्म नहीं भरता, लेकिन कुछ रिश्तों को एक और मौका देना ज़रूरी होता है।
अंजलि और विक्रम की अधूरी कहानी को अब एक नई शुरुआत मिल रही थी – बेटे के प्यार के साथ।

अगर आपको इसे और छोटा या किसी खास शैली में चाहिए, तो बताएं!