सब हँस रहे थे… जब एक छोटी लड़की ने मिनटों में लग्ज़री कार चालू कर दी!
दिल्ली की तपती दोपहर थी। सड़क के किनारे एक बड़ी सी काली Mercedes एस क्लास धूप में चमक रही थी। लेकिन इंजन ठप पड़ा था। उसके पास ही खड़े थे मिस्टर अर्जुन कपूर, जो शहर के नामी बिजनेसमैन थे। पसीने में भीगे माथे से उनका गुस्सा साफ झलक रहा था। पास में कुछ लोग जमा हो गए थे—ऑटो ड्राइवर, राहगीर और दुकान के कुछ लड़के जो हमेशा कुछ ना कुछ तमाशा देखने को तैयार रहते थे।
“अरे भाई, इतनी महंगी कार लेकर घूमते हैं और अब सड़क पर खड़ी है जैसे पुरानी टैक्सी,” एक आदमी ने हंसते हुए कहा। दूसरे ने बोला, “लगता है इसमें कोई लोकल मिस्त्री का पेंच है।” सबके चेहरे पर हंसी थी। मिस्टर कपूर नाराज नजरों से सबको देखने लगे। “भाई, अगर किसी को कार ठीक करनी आती है तो बुलाओ। यह तमाशा मत लगाओ,” उन्होंने चिढ़कर कहा।
एक अनजान आवाज
इसी बीच भीड़ के पीछे से एक हल्की सी आवाज आई, “साहब, अगर मैं कोशिश करूं?” सबकी नजरें उस तरफ घूम गईं। वहां एक छोटी लड़की खड़ी थी, मुश्किल से 10-11 साल की। उसके बाल धूल से भरे थे। दुपट्टा पुराना था और हाथ में एक लोहे का टूलबॉक्स था। वो बड़ी मासूम पर आत्मविश्वास से भरी दिख रही थी।
लोगों में ठहाके गूंजने लगे। “अरे, यह बच्ची कार ठीक करेगी? भाई, इस उम्र में तो गुड़िया गुड़िया खेलनी चाहिए। यह इंजन खोलने चली है,” एक दुकानदार ने मजाक में कहा। मिस्टर कपूर भी मुस्कुराए बिना नहीं रह सके। उन्होंने हल्के लहजे में कहा, “बेटा, यह कोई खिलौना नहीं है। यह लाखों की कार है। इसे ठीक करने के लिए एक्सपर्ट चाहिए।”
लड़की ने बिना डरे कहा, “साहब, अगर मैं इसे ठीक कर दूं…” फिर से भीड़ में हंसी गूंजी। एक दुकानदार बोला, “अगर इसने कर दिया तो मैं आज से इसे गुरु मान लूं।” लड़की ने बस मुस्कुराकर अपने टूलबॉक्स को खोला और बोली, “मुझे इनाम नहीं चाहिए। बस मेरे पापा का नाम याद रखना।” उसकी आंखों में आत्मविश्वास और एक पुरानी पीड़ा की चमक थी।
हिम्मत की कहानी
मिस्टर कपूर के चेहरे का भाव धीरे-धीरे बदलने लगा। उन्होंने कहा, “ठीक है, कर लो कोशिश। लेकिन अगर और खराब कर दिया तो आपकी कार फिर से आपके एक्सपर्ट ही देखेंगे।” लड़की ने बीच में बात काट दी। उसकी हिम्मत पर सबको हैरानी हुई। वह धीरे-धीरे कार के पास पहुंची। उसकी नन्ही उंगलियां बड़े ध्यान से इंजन के तारों को छूने लगीं। उसने बोनट खोला, अंदर झांका और कुछ देर तक चुपचाप देखती रही जैसे मशीन से बात कर रही हो।
मिस्टर कपूर ने फुसफुसाते हुए अपने ड्राइवर से कहा, “देखना कहीं यह कुछ तोड़ ना दे।” ड्राइवर बोला, “सर, बच्चे को खेलने दीजिए। वैसे भी कार तो बंद ही है।” भीड़ अब पूरी तरह खामोश हो चुकी थी। सिर्फ इंजन के हिस्सों की आवाजें आ रही थीं जब लड़की एक-एक करके स्क्रू खोल रही थी। धूल उड़ रही थी। उसकी उंगलियों पर ग्रीस लग गया, लेकिन वह परवाह नहीं कर रही थी।
एक नई पहचान
पास खड़ा एक आदमी बोला, “किसकी बेटी है यह?” किसी ने जवाब दिया, “सामने वाले मोहल्ले में रहती है। सुना है इसके पापा भी मैकेनिक थे।” यह सुनकर लड़की ने सिर उठाया और कहा, “हां, मेरे पापा Mercedes में काम करते थे। उन्होंने ही मुझे सिखाया है कि मशीनें भी बात करती हैं। अगर आप ध्यान से सुनो, तो…”
भीड़ फिर चुप हो गई। अब किसी को हंसी नहीं आ रही थी। हर नजर उस छोटी सी लड़की पर थी जो एक ऐसी कार के सामने खड़ी थी जिसे बड़े-बड़े इंजीनियर भी खोलने से डरते हैं। मिस्टर कपूर की भौंहें सिकुड़ीं, लेकिन उनके दिल में एक अजीब सा एहसास हुआ—सम्मान का और थोड़े गर्व का भी। कौन जानता था कि सड़क के किनारे खड़ी यह छोटी सी बच्ची जल्द ही सबको हैरान कर देने वाली थी।
कार की कहानी
लड़की ने धीरे-धीरे अपना पुराना टूलबॉक्स खोला। अंदर कुछ पुराने चंग लगे औजार थे—एक स्पैनर, एक प्लायर, कुछ स्क्रू ड्राइवर और एक छोटी टॉर्च। वो इतने आत्मविश्वास से सब निकाल रही थी जैसे उसे पहले से पता हो कि कहां क्या करना है। मिस्टर कपूर और बाकी लोग अब चुपचाप उसे देख रहे थे। अभी कुछ देर पहले जिस भीड़ में हंसी गूंज रही थी, अब वहां सन्नाटा छा गया था। हर कोई जानना चाहता था, यह छोटी सी लड़की आखिर करने क्या जा रही है?
लड़की ने झुककर Mercedes के इंजन को ध्यान से देखा। उसने बोनट खोला, कुछ तारों को छुआ और फिर नीचे झुककर कुछ देर तक नट बोल्ट घुमाती रही। उसके हाथ तेजी से चल रहे थे, लेकिन चेहरे पर गजब की शांति थी। “बेटा, तुझे पता भी है यह कितना कॉम्प्लेक्स इंजन है?” मिस्टर कपूर ने थोड़े घबराए लहजे में पूछा। लड़की ने ऊपर देखे बिना जवाब दिया, “साहब, जब दिल से सुनो तो हर मशीन अपनी बात खुद बता देती है।”
एक नया मोड़
भीड़ में खड़ा एक ऑटो ड्राइवर बोला, “सुनो तो, जरा, ऐसे बोल रही है जैसे Mercedes उसकी पुरानी दोस्त हो।” दूसरा आदमी बोला, “शायद वाकई इसके अंदर हुनर है। बच्चे तो यूं ही नहीं बोलते।” लड़की ने फिर हाथों से इंजन के पास एक तार निकाला। उसे साफ किया और वापस लगाया। फिर कुछ मिनट तक वह कुछ गिनती रही, जैसे किसी पुराने फार्मूले को याद कर रही हो।
“अब क्या कर रही है?” मिस्टर कपूर ने पूछा। “एक सेंसर अटका हुआ है,” लड़की बोली, “इसे रिसेट करना होगा।” उसने अपनी छोटी टॉर्च उठाई और इंजन के अंदर झांकते हुए किसी तार को हल्के से हिलाया। तभी क्लिक की आवाज आई। “बस, अब ठीक है,” उसने कहा।
चमत्कार
मिस्टर कपूर ने हैरानी से पूछा, “इतनी जल्दी?” और वह बोली, “आप कोशिश कीजिए, गाड़ी स्टार्ट कीजिए।” मिस्टर कपूर को अब भी यकीन नहीं था लेकिन उन्होंने चाबी घुमाई। एक पल को सबने सांस रोक ली। कार ने जोर से आवाज की और इंजन चालू हो गया, जैसे कोई सोई हुई दानव फिर से जिंदा हो गई हो। तालियों की गड़गड़ाहट उठी। “वाह रे बच्ची, क्या कमाल कर दिया इसने! यह तो जीनियस है!”
मिस्टर कपूर की आंखें चौड़ी रह गईं। उन्होंने कार का एक्सीलरेटर दबाया। इंजन की आवाज पहले जैसी स्मूथ थी। कोई झटका नहीं, कोई रुकावट नहीं। वो बाहर निकले और बोले, “यह कैसे किया तूने?” लड़की ने मुस्कुराते हुए कहा, “साहब, Mercedes में जो साउंड सेंसर होता है ना, वह ओवरलोड हो गया था। पापा कहते थे, जब वो ब्लिंक करे तो उसे थोड़ा आराम चाहिए। बस मैंने वही किया।”
सम्मान और प्यार
भीड़ पूरी तरह उसके इर्द-गिर्द थी। एक बुजुर्ग आदमी ने कहा, “बेटी, तू तो अपने बाप का नाम रोशन कर रही है।” वह हल्के से मुस्कुराई। “पापा कहते थे, मशीनें भी इंसानों जैसी होती हैं। उन्हें गुस्से से नहीं, प्यार से ठीक करना चाहिए।”
मिस्टर कपूर ने अपने ड्राइवर की तरफ देखा। “देखा, तूने? हमारे एक्सपर्ट्स को समझ नहीं आया और इस बच्ची ने 5 मिनट में ठीक कर दिया।” ड्राइवर ने सिर हिलाया। “सर, ऐसे बच्चे बहुत कम मिलते हैं। दिल से काम करने वाले।”
विदाई
भीड़ में कुछ लोग अब उसकी तारीफ कर रहे थे। कुछ वीडियो बना रहे थे। लेकिन लड़की को इन सब बातों से कोई मतलब नहीं था। उसने शांति से अपने औजार वापस बॉक्स में रखे। कपड़े से अपने ग्रीस लगे हाथ पोंछे और बस इतना कहा, “अब आपकी गाड़ी ठीक है साहब, मैं चलती हूं।”
मिस्टर कपूर ने तुरंत कहा, “रुक, तू ऐसा कैसे जा सकती है? तूने मेरी कार बचा ली है। कुछ तो लेना होगा।” लड़की मुस्कुराई, “मुझे इनाम नहीं चाहिए। बस जब किसी गरीब बच्चे को सड़क किनारे औजार लिए देखो तो उसे छोटा मत समझना।” यह कहकर वह मुड़ी और धीरे-धीरे भीड़ में खो गई।

नई सोच
मिस्टर कपूर बहुत देर तक उसे जाते हुए देखते रहे। एक छोटी सी बच्ची जिसने मिनटों में उनकी लग्जरी कार को जिंदा कर दिया था और साथ ही इंसानियत का सबक भी दे गई थी। अब वह वही कार नहीं थी जो बंद पड़ी थी। और मिस्टर कपूर भी वही इंसान नहीं रहे जो दूसरों पर हंसते थे।
इस घटना ने उन्हें यह सिखाया कि असली प्रतिभा कभी भी किसी भी रूप में आ सकती है, और हमें दूसरों की कद्र करनी चाहिए, चाहे वह कितने भी छोटे क्यों न हों। उन्होंने अपने दिल में एक नया एहसास पाया—सम्मान और प्यार का।
एक नई शुरुआत
इसके बाद, मिस्टर कपूर ने अपनी कंपनी में एक नई नीति बनाई। उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि उनकी कंपनी में सभी कर्मचारियों को समान अवसर मिले, चाहे उनकी पृष्ठभूमि कुछ भी हो। उन्होंने उन बच्चों के लिए एक विशेष कार्यक्रम शुरू किया जो तकनीकी कौशल सीखना चाहते थे, ताकि वे भी अपने सपनों को पूरा कर सकें।
लड़की की मासूमियत और प्रतिभा ने न केवल मिस्टर कपूर का जीवन बदला, बल्कि उनके आस-पास के लोगों की सोच भी बदल दी। अब वे किसी भी छोटे बच्चे को हल्के में नहीं लेते थे।
अंत
इस तरह, एक छोटी सी लड़की ने एक बड़ी कार को ठीक करके न केवल अपनी प्रतिभा साबित की, बल्कि समाज को यह भी सिखाया कि असली अमीरी वही है जो दूसरों की मदद करने में है। मिस्टर कपूर ने यह तय किया कि वह हमेशा उन बच्चों की मदद करेंगे जो अपनी मेहनत और प्रतिभा से आगे बढ़ना चाहते हैं।
इस कहानी ने यह साबित कर दिया कि कभी-कभी सबसे बड़ी सीख सबसे छोटे लोगों से मिलती है। और इसी तरह, एक छोटी सी बच्ची ने न केवल एक कार को चालू किया, बल्कि एक बड़े बिजनेसमैन के दिल में इंसानियत और सहानुभूति का दीप जलाया।
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