SP मैडम को आम लड़की समझ कर जब इंस्पेक्टर नें थप्पड़ मारा फिर इंस्पेक्टर के साथ….
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शहर के पश्चिमी छोर पर, जहाँ रिहायशी इलाके की हरियाली खेतों को छूती थी, एक साधारण नीले रंग की स्कूटर धीरे-धीरे चल रही थी। स्कूटर चला रही थी मीरा वर्मा, उम्र करीब 28 साल। सादे सलवार-कमीज पहने, मीरा वर्मा इसी जिले की पुलिस अधीक्षक (एसपी) थी। उस दिन मीरा ने अपनी वर्दी नहीं पहनी थी। वह अपनी मां, शारदा देवी के साथ निकली थी, जो पीछे बैठी हुई थीं। शारदा देवी हमेशा अपनी बेटी की इस सादगी को सराहती थीं। उनका मानना था कि वर्दी के बिना भी अधिकारी को अपने काम की पहचान होनी चाहिए।
शारदा देवी ने हंसते हुए कहा, “मीरा, तुम अपनी यह पुरानी स्कूटर क्यों नहीं बदलती? कम से कम एक छोटी कार तो ले लो। इतनी बड़ी अफसर हो।” मीरा ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “मां, इस स्कूटर में ही मज़ा है। आम लोगों के बीच रहने का मौका मिलता है और मुझे कोई पहचानता भी नहीं।”
जैसे ही वे शहर की तरफ मुड़ीं, सड़क पर एक पुलिस बैरियर दिखाई दिया। यह एक पुराना चेकिंग पॉइंट था, लेकिन आज का माहौल कुछ अलग था। सड़क पर गाड़ियों की कतारें लगी थीं। एक जीप के बोनट पर पैर रखे बैठा था इंस्पेक्टर सुनील मलिक, जिसके मूंछों पर ताव दिया हुआ था और उसकी वर्दी पर उसके अहंकार का दाग साफ दिखता था। मीरा की पैनी नजर ने तुरंत भांप लिया कि यह जांच कम, जबरन वसूली ज्यादा हो रही है। दो हवलदार लोगों को धमका रहे थे और चालान के नाम पर पैसे खींच रहे थे। यह नजारा देखकर मीरा का माथा ठनका। उसने तय किया कि वह एक आम नागरिक बनकर इस व्यवस्था को देखेगी।
शारदा देवी थोड़ी घबराईं, “मीरा, रास्ता बदल लेते हैं।” मीरा ने सिर हिलाया, “नहीं मां, आज तो यहीं से जाना है।” उसने स्कूटर धीमी कर दी और बैरियर की ओर बढ़ गई, जहाँ इंस्पेक्टर सुनील मलिक का अहंकार उनका इंतजार कर रहा था।
मीरा ने स्कूटर रोकी। सामने इंस्पेक्टर सुनील मलिक ने उसे एक साधारण डरी हुई लड़की समझा। उसने अपनी आवाज ऊंची करते हुए गुर्राया, “ए स्कूटर वाली, साइड में लगा इसे। कहां से आ रही है और इतनी तेजी क्यों है? कागजात दिखा।”
मीरा ने शांति से जवाब दिया, “जी सर, कागजात हैं। हम बाजार से लौट रहे हैं।” इंस्पेक्टर ने उसकी ओर घूरा। उसे मीरा का आत्मविश्वास पसंद नहीं आया। उसने सोचा कि यह लड़की रब में आने वाली नहीं है। “ओहो, आवाज तो देखो, बड़ी तेजी है जुबान में। तेरी जैसी लड़कियां ही शहर का माहौल खराब करती हैं। यह बुरिया कौन है पीछे? कौन से चोरी के अड्डे से आ रही है?” सुनील मलिक ने जानबूझकर अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया।
शारदा देवी सहम गईं। उन्होंने अपनी बेटी की कमीज को हल्के से खींचा, जैसे कह रही हो कि बहस मत करो। मीरा की आंखों में अब ठंडा गुस्सा उतर आया। ‘बुरिया’ शब्द ने उसके सम्मान पर चोट की थी। एक एसपी होने के बावजूद वह अपनी पहचान छिपाए हुए थी ताकि इस सिस्टम का असली चेहरा देख सके। मीरा ने अपनी आवाज को स्थिर करते हुए कहा, “आप जुबान संभालकर बात कीजिए। यह मेरी मां है। आप अपना काम कीजिए, कागजात देखिए और हमें जाने दीजिए।”

सुनील मलिक का अहंकार चरम पर था। एक मामूली लड़की उसे तहजीब सिखा रही थी। उसे लगा कि उसका रब कम हो रहा है। “चुप, तू हमें सिखाएगी? तू जानती भी है कि मैं कौन हूं। निकाल अपने कागज और दिखा कि तेरी औकात क्या है।” वह चिल्लाया।
मीरा ने स्कूटर की डिग्गी से अपना ड्राइविंग लाइसेंस और रजिस्ट्रेशन पेपर निकाले और सुनील की ओर बढ़ा दिए। वह पूरी प्रक्रिया का पालन कर रही थी ताकि उसके पास कानूनी आधार रहे। सुनील मलिक ने कागजात लिए, उन्हें बिना देखे हवा में उठाया और गुर्राकर जमीन पर फेंक दिया। “क्या समझती हो तुम? यह नकली कागजात दिखाकर निकल जाओगी? हम तेरी चालाकी नहीं चलने देंगे।”
मीरा को गुस्सा आ गया। उसने सीधे आंख में आंख डालकर कहा, “सर, बदतमीजी मत करिए। अगर कोई कमी है तो चालान काटिए। हम चालान भरने को तैयार हैं, पर इस तरह का दुर्व्यवहार बर्दाश्त नहीं होगा।” मीरा का यह वाक्य इंस्पेक्टर के लिए लाल झंडा था। उसका अहंकारी दिमाग फट पड़ा। वह इसे अपनी पुलिस या ताकत पर सीधी चुनौती मान बैठा। “तू हमें सिखाएगी? तेरी इतनी हिम्मत?” बिना देर किए सुनील मलिक आगे बढ़ा और जोरदार तरीके से मीरा के चेहरे पर थप्पड़ जड़ दिया।
थप्पड़ की आवाज सड़क के सन्नाटे को चीर गई। आसपास खड़े लोग सहम गए। मीरा का सिर झटक गया। उसके होंठ के किनारे से हल्का खून आ गया। उसकी आंखों में पल भर के लिए अविश्वसनीय पीड़ा और फिर ज्वालामुखी जैसा गुस्सा कौंधा। पीछे खड़ी शारदा देवी चीख पड़ीं, “अरे मेरी बेटी को क्यों मारा? यह क्या कर रहे हो तुम लोग? भगवान के लिए इसे छोड़ दो।”
सुनील मलिक ने शारदा देवी को कंधे से धक्का दिया, “चुप बुढ़िया, ज्यादा बोलेगी तो तू भी हवालात में सड़ेगी।” मीरा ने अपने गाल को छुआ। थप्पड़ का निशान साफ उभर आया था। उसका दिल धधक रहा था। उसके दिमाग में तुरंत ख्याल आया कि एक एसपी पर हाथ उठाने की सजा इन लोगों को क्या मिलेगी? उसका हाथ भी पलट कर जवाब देने के लिए उठा, लेकिन वह एक ट्रेंड अफसर थी। वह इन तीनों को मिनटों में धूल चटा सकती थी, लेकिन उसने खुद को रोका। वह जानती थी कि अगर उसने वर्दी में मौजूद इन गुंडों पर हाथ उठाया तो मामला पुलिस पर हमला का बनेगा और उसकी यह जंग जो सिस्टम के लिए थी, व्यक्तिगत बदले में बदल जाएगी। उसने अपने गुस्से को निगला। उसकी आंखें अब लाल नहीं थीं बल्कि एक ठोस बर्फीली नफरत से भरी थीं।
इंस्पेक्टर सुनील मलिक अपनी जीत पर गुर्राता हुआ चिल्लाया, “बहुत हो गया नाटक। इन दोनों को गाड़ी में ठूंसो। ले चलो थाने। वहां हम बताएंगे कि असली सत्ता क्या होती है।” हवलदार तुरंत आगे बढ़े और मां-बेटी को धक्के मारकर जीप में ठूंसने लगे। भीड़ में कुछ लोग वीडियो बना रहे थे, लेकिन कोई भी आगे आने की हिम्मत नहीं कर रहा था। उस भीड़ में एक आदमी दूर खड़ा था जो वीडियो रिकॉर्ड कर रहा था, जो जल्द ही विस्फोट करने वाला था।
जीप में मीरा ने अपनी मां को सहारा दिया। शारदा देवी रो रही थीं और अपनी बेटी के थप्पड़ वाले गाल को सहला रही थीं। मीरा की आवाज दबी हुई थी लेकिन दृढ़ थी, “मां, अगर मैं अपनी पहचान बता देती तो इन लोगों को सजा तो मिलती पर सिस्टम नहीं बदलता। मैं देखना चाहती थी कि यह लोग एक आम महिला के साथ क्या करते हैं।”
थाने पहुंचते ही सुनील मलिक के आदेश पर दोनों को सीधे हवालात में बंद कर दिया गया। एक गंदी, बदबूदार कोठरी जहां सीलन और मच्छरों का राज था। दरवाजा बंद होते ही शारदा देवी का दम घुटने लगा। उन्हें पहले से ही सांस की तकलीफ थी और इस घुटन भरे माहौल में उनकी हालत बिगड़ने लगी। वह जोर-जोर से खांसने लगीं। मीरा घबरा गई। उसने जोर-जोर से दरवाजा पीटना शुरू कर दिया, “दरवाजा खोलो। मेरी मां की तबीयत खराब हो रही है। इन्हें बाहर निकालो या डॉक्टर को बुलाओ।”
बाहर एक सिपाही चाय पी रहा था। उसने बेपरवाही से चिल्लाया, “अबे चुपचाप पड़ी रह। सुबह से पहले कोई दरवाजा नहीं खुलेगा। ज्यादा नाटक मत कर।” मीरा का दिल कांप गया। वह अपनी मां का सिर अपनी गोद में लेकर सहलाने लगी। रात भर वह मच्छरों और घुटन के बीच अपनी मां को हिम्मत देती रही। एक तरफ उसकी वर्दी उसे तुरंत एक्शन लेने को कह रही थी, दूसरी तरफ उसका संकल्प उसे शांत रहने को मजबूर कर रहा था। मीरा की आंखें रात भर जलती रहीं, ना तो नींद से, ना आंसू से, बल्कि रोश और बेबसी की आग से।
बाहर इंस्पेक्टर सुनील मलिक ने अपने एक खास हवलदार से कहा, “सुबह तक इनकी सारी अकड़ टूट जाएगी। फिर देखते हैं कि कौन चालान भरने को तैयार होता है और कौन नहीं।” उसे बिल्कुल अंदाजा नहीं था कि वह रात उसके जीवन की सबसे काली रात साबित होगी। रात को रिकॉर्ड किया गया वीडियो सोशल मीडिया पर आग की तरह फैल चुका था। पुलिस की गुंडागर्दी, सड़क पर थप्पड़ और मां-बेटी को जेल। लोग गुस्से से भड़के हुए थे। कमेंट्स की बाढ़ आ गई थी। लोग सिस्टम को गालियां दे रहे थे, अपनी आपबीती सुना रहे थे।
यही वीडियो घूमता-घूमता जिले के दबंग विधायक अरुण सिंह तक पहुंचा। अरुण सिंह, जो अपनी अवैध गतिविधियों को इंस्पेक्टर सुनील मलिक जैसे लोगों के सहारे चलाता था, उसने वीडियो देखा और मुस्कुराया। उसने तुरंत सुनील मलिक को फोन किया, “शाबाश सुनील, यह हुई ना बात। इन शहर की लड़कियों को लगता है कि इन्हें कोई छू नहीं सकता। दो को सबक सिखा दिया, अब कोई शोर नहीं मचाएगा। मैं आईजी से तुम्हारी बात करूंगा। तुम्हें इनाम मिलेगा।” विधायक ने इंस्पेक्टर के अहंकार को और हवा दी।
लेकिन तभी वह वीडियो आईजी ऑफिस के पर्सनल WhatsApp ग्रुप में पहुंचा। आईजी, जो मीरा के वरिष्ठ थे, अपनी मॉर्निंग वॉक से लौटे ही थे। उन्होंने वीडियो देखा। शुरू में उन्हें लगा कि यह कोई आम शिकायत है, लेकिन जैसे ही उन्होंने उस थप्पड़ खाते चेहरे पर ध्यान केंद्रित किया, उनके हाथ से मोबाइल छूट गया। “अरे यह तो मीरा है। एसपी मैडम।” आईजी के पीए जो वीडियो देख रहे थे, चीख पड़े, “सर, यह तो मैडम हैं। उनकी मां भी पीछे बैठी हैं।”
आईजी का चेहरा गुस्से और सदमे से पीला पड़ गया। उनके पैरों तले जमीन खिसक गई। एक मिनट पहले तक वह जिले के सबसे पावरफुल पुलिस अफसर थे, अब उन्हें लग रहा था कि उनकी कुर्सी, वर्दी और पूरा करियर खतरे में है। उन्हें पता था कि मीरा वर्मा सिर्फ एक एसपी नहीं बल्कि बेहद ईमानदार और बेदाग रिकॉर्ड वाली अफसर थी।
आईजी ने कांपते हाथों से तुरंत अपने हेड कांस्टेबल को फोन लगाया, “तुरंत पता लगाओ यह किस थाने का वीडियो है और एसपी मैडम कहां हैं? एक भी मिनट की देरी हुई तो मैं पूरे थाने को सस्पेंड कर दूंगा।” पूरी आईजी टीम में हड़कंप मच गया। यह मामला सड़क पर हुई एक छोटी-मोटी बहस का नहीं बल्कि पुलिस बल के सबसे बड़े अपमान का बन चुका था।
बाहर पुलिसकर्मियों का एक गुट जो सुनील मलिक की तारीफ कर रहा था, अचानक चुप हो गया। उन्हें लगा कि उन्होंने कोई अशुभ बात कह दी है। आईजी को कुछ ही मिनटों में पता चल गया कि यह वीडियो इंस्पेक्टर सुनील मलिक के थाने पटेल नगर का है और दोनों महिलाएं रात भर से हवालात में बंद हैं। यह सुनते ही आईजी का गुस्सा बेकाबू हो गया। “हवालात में बंद किया मेरी एसपी को!” आईजी ने दहाड़ा।
उन्होंने तुरंत एसएसपी को फोन लगाने की सोची, लेकिन फिर रुक गए। उन्हें पता था कि इस मामले की गंभीरता मुख्यमंत्री तक पहुंच चुकी होगी। उन्हें पहले मीरा को सुरक्षित बाहर निकालना था।
अंदर हवालात में मीरा की बेबसी चरम पर थी। मां शारदा देवी को अब सांस लेने में सचमुच दिक्कत हो रही थी। वह धीरे-धीरे मीरा की गोद में बेहोश होती जा रही थीं। मीरा ने रोश से आंखें मूंद लीं। उसने मन ही मन खुद से कहा, “मां, बस थोड़ी देर और। मुझे पता है कि अब तूफान आने वाला है।”
बाहर इंस्पेक्टर सुनील मलिक चाय की दूसरी चुस्की ले रहा था। उसे आईजी या किसी बड़े अफसर के फोन की कोई चिंता नहीं थी। विधायक अरुण सिंह की शाबाशी उसके दिमाग में गूंज रही थी। तभी उसके फोन की घंटी बजी। स्क्रीन पर आईजी सर का नाम फ्लैश हो रहा था। सुनील मलिक अकड़ कर उठा, अपनी मूंछों को ताव दिया और फोन उठाया। “जय हिंद सर। जी, मैं सुनील मलिक बोल रहा हूं। सब ठीक है सर। बस रात को दो-तीन खास बदमाश पकड़े थे। सुबह तक उनका सारा नशा उतर जाएगा।” उसने आत्मविश्वास से कहा।
दूसरी तरफ से आईजी की आवाज आई, जो इतनी ठंडी और गुस्से से भरी थी कि सुनील के कान सुन्न हो गए। आईजी ने धीमी लेकिन जानलेवा आवाज में कहा, “सुनील, तूने क्या किया? तेरी हिम्मत कैसे हुई मेरी एसपी मैडम मीरा वर्मा पर हाथ उठाने की और उनकी मां को रात भर हवालात में रखा।”
सुनील मलिक का शरीर जड़ हो गया। आईजी के मुंह से मीरा का नाम सुनते ही उसका हाथ से फोन छूट गया। एसपी मैडम मीरा वर्मा उसके दिमाग में हथौड़े चल रहे थे। उसका चेहरा अचानक खून से खाली हो गया। उसका सारा अहंकार पल भर में मिट्टी में मिल गया। उसे याद आया कि मीरा ने उसे सिर्फ कागजात देखने और चालान काटने को कहा था। उसने एक आम लड़की समझकर उस पर हाथ उठाया था।
इंस्पेक्टर सुनील मलिक ने लड़खड़ाती आवाज में कहा, “सर, सर, सर, मुझे नहीं पता था। उन्होंने बताया नहीं सर। वह सादे कपड़ों में थी।” आईजी का गुस्सा चरम पर था। “चुप हो जा। तूने सिर्फ उन पर हाथ नहीं उठाया, तूने पूरी पुलिस फोर्स की इज्जत मिट्टी में मिला दी है। अगर तेरी हिम्मत होती तो तूने एक आम नागरिक के साथ भी ऐसा नहीं किया होता। अभी इसी वक्त दरवाजा खोल और उन्हें बाहर निकाल। अगर मैडम को या उनकी मां को कुछ भी हुआ तो मैं तुझे अपनी हाथों से फांसी चढ़ा दूंगा।” आईजी ने बिना और कुछ कहे फोन काट दिया।
इंस्पेक्टर सुनील मलिक की पैंट गीली हो गई। वह पागलों की तरह अपनी कुर्सी से भागा, “चाबी, चाबी लाओ जल्दी। हवालात का दरवाजा खोलो।” हवलदार जो कुछ देर पहले हंस रहे थे अब कांप रहे थे। उन्होंने तुरंत चाबी लाकर दी। दरवाजा खुलते ही अंदर का मंजर देखकर सुनील मलिक की रूह कांप गई। एसपी मीरा वर्मा जमीन पर बैठी थीं। उनकी गोद में मां शारदा देवी बेहोश पड़ी थीं। घुटन के कारण उनकी सांसे बहुत धीमी चल रही थीं।
सुनील मलिक दौड़ते हुए अंदर गया और मीरा के पैरों में गिर गया। वह हाथ जोड़कर लगभग रोते हुए गिड़गिड़ाने लगा, “मैडम, मैडम, मुझे माफ कर दीजिए। मैं आपका नौकर हूं। मुझे सच में नहीं पता था। प्लीज मुझे एक मौका दीजिए।” मीरा ने कोई जवाब नहीं दिया। उसने अपनी मां की नब्ज़ टटोली। वह लगभग रुक चुकी थी। मीरा ने इंस्पेक्टर की तरफ देखा। उसकी आंखें नफरत से भरी थीं, लेकिन अब उनमें गुस्सा नहीं बल्कि निर्णायक कार्यवाही का आदेश था। मीरा की आवाज बिना किसी भाव के बर्फ की तरह ठंडी थी, “बाहर निकलो और तुरंत एंबुलेंस बुलाओ।”
एक मिनट के अंदर पावर पूरी तरह से शिफ्ट हो चुकी थी। इंस्पेक्टर सुनील मलिक ने रोते कांपते हुए एंबुलेंस को फोन किया। पांच मिनट के अंदर एंबुलेंस थाने के गेट पर थी। शारदा देवी को स्ट्रेचर पर लिटाया गया। मीरा भी उनके साथ एंबुलेंस में बैठ गई। उसका चेहरा पत्थर जैसा था। आंखें सिर्फ अपनी मां पर टिकी थीं। उसने एंबुलेंस ड्राइवर से कहा, “तेज चलो, सीधे आईसीयू।”
अस्पताल पहुंचते-पहुंचते शारदा देवी की हालत नाजुक हो गई। डॉक्टर ने तुरंत उन्हें आईसीयू में भर्ती किया और बताया कि घुटन और मानसिक आघात के कारण उन्हें गंभीर अस्थमा अटैक आया है। यह सुनकर मीरा टूट गई। वह कॉरिडोर में एक कोने में सिमट गई और फूट-फूट कर रोने लगी। एक एसपी जिसने थप्पड़ का जवाब देने से इंकार कर दिया था, अपनी मां की हालत देखकर बेबस हो गई थी। यह थप्पड़ सिर्फ उसके गाल पर नहीं बल्कि उसके न्याय और कर्तव्य के संकल्प पर लगा था।
कुछ ही देर में आईजी, एसएसपी और अन्य अधिकारी अस्पताल पहुंचे। आईजी ने मीरा को देखा। उन्हें अपनी बेटी जैसी लगने वाली इस युवा अफसर को इस हाल में देखकर गहरा दुख हुआ। मीरा ने तुरंत खुद को संभाला। उसका चेहरा आंसुओं से भीगा था, लेकिन आवाज में फौलादी दृढ़ता थी। उसने अपने वरिष्ठ की तरफ देखा। उसे अब कोई माफी या दिलासा नहीं चाहिए था। उसे न्याय चाहिए था और सिस्टम में बदलाव।
आईजी ने मीरा के पास आकर अपनी बेबसी और शर्मिंदगी व्यक्त की, “मीरा, मैं बहुत शर्मिंदा हूं। हमारी लापरवाही का यह परिणाम है। तुम चिंता न करो। इंस्पेक्टर सुनील मलिक और उसके साथियों को तुरंत बर्खास्त किया जा रहा है।” मीरा ने आईजी की ओर देखा। उसकी आंखों में अब आंसू नहीं बल्कि एक एसपी का ठंडा प्रशासनिक गुस्सा था। “सर,” उसकी आवाज कठोर थी, “यह सिर्फ लापरवाही नहीं है, यह गुनाह है। यह पुलिस बल की सड़ी हुई मानसिकता है कि वह वर्दी पहनकर खुद को कानून से ऊपर समझता है। और यह निलंबन या बर्खास्तगी सिर्फ एक मरी हुई मछली को हटाने जैसा है। पूरा तालाब गंदा है।”

आईजी ने सिर झुका लिया। उन्हें पता था कि मीरा सही कह रही थी। “मेरी मां को इसलिए अपमानित होना पड़ा क्योंकि मैंने अपनी पहचान नहीं बताई। मैं देखना चाहती थी कि एक आम नागरिक के साथ कैसा व्यवहार किया जाता है और मैंने जो देखा वह यह है कि आपके अफसर बिना किसी वजह के लोगों को पीटते हैं, धमकाते हैं और उन्हें मौत के मुंह में धकेल देते हैं।”
एसपी और डीआईजी भी वहां मौजूद थे। मीरा ने उनकी तरफ मुड़कर कहा, “सर, यह सिर्फ एक व्यक्तिगत झगड़ा नहीं है। मैं इस घटना को पुलिस सिस्टम में सुधार लाने का हथियार बनाऊंगी। मैं चाहती हूं कि आप ईमानदारी से मुझे समर्थन दें।” आईजी ने दृढ़ता से कहा, “मीरा, तुम्हें हमारा पूरा समर्थन है। जो कार्रवाई तुम चाहोगी वह होगी।”
उसी समय इंस्पेक्टर सुनील मलिक को उसके थाने में ही निलंबन का आदेश थमाया गया। वह गिड़गिड़ा रहा था, अपने वरिष्ठों को फोन लगा रहा था, लेकिन कोई सुनने वाला नहीं था। दबंग विधायक अरुण सिंह ने भी फोन उठाना बंद कर दिया था। सुनील मलिक को एहसास हुआ कि सत्ता में बैठे लोग सिर्फ चढ़ते सूरज को सलाम करते हैं।
मीरा ने अस्पताल में ही तय किया कि अब वह सिर्फ अफसर नहीं बल्कि एक आंदोलन बनेंगी। अगले दिन शाम को मीरा वर्मा ने एसपी कार्यालय में एक स्पेशल प्रेस कॉन्फ्रेंस रखी। मीरा ने माइक थाम कर कहा, “मैं आज यहां इसलिए खड़ी हूं क्योंकि मैं चाहती हूं कि हर कोई यह जान ले कि पुलिस का काम सेवा करना है, डर पैदा करना नहीं। यह घटना मेरे लिए एक चेतावनी थी कि हम अपने ही लोगों से डर कर जी रहे हैं।”
उसने जिले की पुलिसिंग में बदलाव की एक श्रृंखला की घोषणा की। हर थाने में शिकायतकर्ता के लिए सम्मान प्रोटोकॉल लागू होगा और आम जनता से फीडबैक लिया जाएगा। पूरी जनता मीरा के समर्थन में खड़ी हो गई। सोशल मीडिया पर #JusticeForSPMeera ट्रेंड करने लगा। लोगों को लगा कि उन्हें पहली बार कोई ऐसा अवसर मिला है जो उनकी आवाज बन सकता है।
लेकिन जैसा होता है, सुधार हमेशा विरोध पैदा करता है। दबंग विधायक अरुण सिंह तिलमिला उठा। उसके काले कारोबार पर अब सीधा खतरा था। उसने राजधानी में अपने आकाओं से संपर्क किया और मीडिया के सामने आकर बयान दिया, “यह सब भावनाओं का नाटक है। एसपी मैडम व्यक्तिगत बदला ले रही हैं और अपनी वर्दी का दुरुपयोग कर रही हैं। हम इस युवा अफसर को जिले की कानून व्यवस्था खराब नहीं करने देंगे। मैं जल्द ही उनके ट्रांसफर की मांग करूंगा।”
राजनीतिक गलियारों में हलचल मच गई। कुछ मंत्री इस बात से सहमत थे कि एक युवा अफसर को इतना अधिकार नहीं मिलना चाहिए कि वह पूरे सिस्टम को कटघरे में खड़ा कर दे। मीरा को भी अपने खिलाफ हो रही साजिशों की भनक लगी, लेकिन वह विचलित नहीं हुई। उसने अपने आईजी को स्पष्ट कह दिया, “सर, मेरा ट्रांसफर हो जाए तो भी चलेगा, लेकिन मेरा मिशन नहीं रुकना चाहिए। मेरी लड़ाई कुर्सी के लिए नहीं है।”
मीरा ने अगले कुछ दिन अस्पताल और पुलिस कंट्रोल रूम में बिताए। उसने अपनी आईटी टीम को आदेश दिया कि वे जिले के सभी 30 थानों का पिछले एक साल का डाटा खंगालें। “मुझे हर वह शिकायत चाहिए जो दर्ज नहीं हुई। हर वह मामला जिसमें शिकायतकर्ता को थाने से डराकर भगा दिया गया। मुझे पता लगाना है कि उत्पीड़न का केंद्र कहां है।”
पूरी टीम ने रात भर काम किया। सुबह तक मीरा के सामने एक भयावह रिपोर्ट थी। सबसे ज्यादा उत्पीड़न और भ्रष्टाचार 10 थानों में हो रहा था। अगले ही दिन मीरा ने एक आपातकालीन वीडियो कॉन्फ्रेंस बुलाई। जिले के सभी थाना इंचार्ज स्क्रीन पर थे। मीरा ने उन्हें बिना किसी भूमिका के डाटा दिखाया। “यह आंकड़े झूठ नहीं बोलते। आप लोग आम जनता को अपनी जागीर समझते हैं। लेकिन अब यह नहीं चलेगा।”
मीरा ने कुछ ऐतिहासिक और सख्त आदेश जारी किए। सीसीटीवी लाइव फीड। सभी थानों के सीसीटीवी कैमरों की लाइव फीड सीधे एसपी ऑफिस और आईजी ऑफिस से जोड़ी जाएगी। कोई भी कोना अंधेरा नहीं रहेगा। हिरासत में किसी भी व्यक्ति को बिना एफआईआर या ठोस दस्तावेज के थाने में एक घंटे से ज्यादा नहीं रोका जाएगा। अगर ऐसा हुआ तो संबंधित इंचार्ज को सीधी बर्खास्तगी का सामना करना पड़ेगा। हर 15 दिन में एक सिटीजन ऑन टीम थानों का निरीक्षण करेगी।
यह आदेश पुलिस महकमे में एक बम की तरह गिरे। एक थाना इंचार्ज ने हिम्मत करके कहा, “मैडम, इससे तो हमारे कर्मचारियों का मनोबल टूट जाएगा।” मीरा की आवाज पत्थर जैसी थी, “अगर अन्याय करने से मनोबल बनता है, तो वह मनोबल टूटना ही बेहतर है। अब इस जिले की पुलिस सिर्फ लोगों का सम्मान करना सीखेगी।”
यह प्रशासनिक क्रांति पूरे राज्य में चर्चा का विषय बन गई। मीरा के सख्त आदेशों के तुरंत बाद विधायक अरुण सिंह ने अपनी पूरी राजनीतिक ताकत लगा दी। राजधानी से एक आदेश आया, “एसपी मीरा वर्मा का तत्काल प्रभाव से ट्रांसफर किया जाता है। कारण: प्रशासनिक कार्य में अत्यधिक व्यक्तिगत हस्तक्षेप।”
यह खबर जिले में आग की तरह फैल गई। जनता जो मीरा की फैन बन चुकी थी, सड़कों पर उतर आई। “मीरा मैडम वापस लाओ। ट्रांसफर नहीं, सम्मान दो।” के नारे गूंजने लगे। मीरा ने शांत मन से ट्रांसफर ऑर्डर देखा। वह जानती थी कि यह होना ही था। उसने अपनी मां को खबर दी। मां, शारदा देवी अस्पताल में अब बेहतर महसूस कर रही थीं। उन्होंने बेटी का हाथ थामा, “बेटा, डरना नहीं। मुझे तुझ पर गर्व है। यह कुर्सी वाले लोग सिर्फ अपनी कुर्सी बचाते हैं। तूने जो किया वह तेरी वर्दी से भी बड़ा है।”
मीरा की आंखों में आंसू आ गए। मां का यह समर्थन उसके लिए किसी भी पद से बड़ा था। उसी शाम मीरा को मुख्यमंत्री कार्यालय से फोन आया। उन्हें तुरंत राजधानी बुलाया गया। यह अब सिर्फ एक ट्रांसफर ऑर्डर का मामला नहीं था, यह जनता की भावना बनाम सत्ता का अहंकार बन चुका था।
मीरा ने राजधानी के लिए रवाना होने से पहले अपने आईजी को फोन किया, “सर, जनता को मेरी तरफ से शांति बनाए रखने को कहिएगा। मैं अपने सिद्धांतों पर कोई समझौता नहीं करूंगी।” मीरा वर्मा, जो एक साधारण स्कूटर पर सफर करने वाली एसपी थी, अब पूरे सिस्टम को चुनौती देने के लिए राजधानी जा रही थी।
मीरा वर्मा ने राजधानी के मुख्यमंत्री सचिवालय में प्रवेश किया। मुख्यमंत्री अरुण भटनागर एक अनुभवी राजनेता थे। उन्होंने मीरा को सम्मान से बिठाया, लेकिन उनके चेहरे पर तनाव साफ दिख रहा था। मुख्यमंत्री ने धीमी आवाज में शुरुआत की, “आपने जो किया वह साहसी है, लेकिन आपने पूरे प्रशासनिक ढांचे को हिला दिया है। राजनीतिक दबाव बहुत है। विधायक अरुण सिंह और उनके गुट को लगता है कि आप उनके निजी हितों को नुकसान पहुंचा रही हैं।”
मीरा ने शांत स्वर में जवाब दिया, “सर, मेरा मकसद किसी राजनीतिक गुट को निशाना बनाना नहीं है। मेरा मकसद उस सिस्टम को ठीक करना है जो विधायक अरुण सिंह जैसे लोगों को पनपने देता है। मुझे थप्पड़ इसलिए पड़ा क्योंकि मैं एक आम नागरिक बनकर सफर कर रही थी। मैं एक एसपी हूं और मेरा कर्तव्य है कि मैं उस आम नागरिक के लिए लड़ूं।”
मुख्यमंत्री ने मेज पर रखा ट्रांसफर ऑर्डर उठाया, “हम आपके जज्बे को समझते हैं, लेकिन आपकी व्यक्तिगत लड़ाई को लेकर पुलिस बल में असंतोष है। क्या आप सार्वजनिक रूप से यह कह सकती हैं कि आपका ट्रांसफर सिस्टम की जरूरत थी, ना कि सजा?”
मीरा ने सीधे मुख्यमंत्री की आंखों में देखा, “सर, मैं झूठ नहीं बोल सकती। मेरा ट्रांसफर सिस्टम की जरूरत नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार की शक्ति थी। मैं जनता को वही बताऊंगी जो सच है। मैं अपने उसूलों के लिए खड़ी हूं। अगर मेरे पद छोड़ने से व्यवस्था में सुधार आता है तो मैं कल ही इस्तीफा दे सकती हूं।”
मीरा की दृढ़ता ने मुख्यमंत्री को चौंका दिया। उन्हें एहसास हुआ कि यह अफसर अपने पद के लालच से बहुत ऊपर थी। मुख्यमंत्री जानते थे कि जनता अब मीरा के साथ है और उन्हें इस लड़ाई में उसका समर्थन करना होगा। “बहुत अच्छा, मीरा जी।” मुख्यमंत्री ने मेज पर रखा ट्रांसफर ऑर्डर वापस रख दिया। “आपकी बात में दम है। आज शाम को ही एक विशेष प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई गई है। आप अपनी बात पूरी ईमानदारी से रखिए। और हां, आपके ट्रांसफर ऑर्डर पर पुनर्विचार किया जा रहा है।”
मीरा ने सम्मानपूर्वक सिर झुकाया। वह जानती थी कि यह जीत उसकी निजी नहीं बल्कि उन हजारों आवाजों की थी जो सड़कों पर उसके समर्थन में उठी थीं।
शाम को राजधानी के सभागार में बड़ी भीड़ जमा थी। मुख्यमंत्री और राज्य के गृह मंत्री मंच पर थे। मुख्यमंत्री ने संक्षिप्त भाषण के बाद मीरा को मंच पर बुलाया। जब मीरा मंच पर आई तो सभागार तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। मीरा ने माइक थाम लिया, “मैं आज यहां एक पुलिस अधिकारी के रूप में नहीं बल्कि एक बेटी के रूप में खड़ी हूं। मुझ पर उठा हाथ सिर्फ एक शारीरिक चोट नहीं था। वह हमारे संविधान द्वारा दिए गए सम्मान के अधिकार पर चोट थी। हमारी पुलिस बल में बहुत से ईमानदार अधिकारी हैं, लेकिन एक सड़ी हुई मछली पूरे तालाब को गंदा कर देती है।”
उसने जोर देकर कहा, “मेरा मकसद किसी को बदनाम करना नहीं बल्कि सिर्फ और सिर्फ सुधार लाना था। और मैं आज आप सब से वादा करती हूं कि चाहे मैं इस जिले में रहूं या कल किसी और जिले में जाऊं, मेरा मिशन नहीं रुकेगा। मैं अपने पद के लिए नहीं बल्कि अपने उसूलों के लिए खड़ी हूं।”
जनता का उत्साह चरम पर था। मीरा के मंच से उतरने के बाद मुख्यमंत्री ने फिर माइक संभाला और ऐतिहासिक घोषणा की, “हम एसपी मीरा वर्मा का ट्रांसफर तत्काल प्रभाव से रद्द करते हैं और उनके दृढ़ संकल्प को सलाम करते हुए हम पूरे राज्य में एक नया अभियान शुरू कर रहे हैं—जन सुरक्षा और सम्मान अभियान। इस अभियान के तहत हर थाने में संवेदनशीलता ट्रेनिंग अनिवार्य होगी और इस अभियान का नेतृत्व हमारी एसपी मीरा वर्मा करेंगी।”
भीड़ में हर कोई खुशी से झूम उठा। उस रात जब मीरा अस्पताल में अपनी मां से मिली तो शारदा देवी की आंखों में आंसू थे—खुशी और गर्व के। उन्होंने अपनी बेटी का हाथ थामा, “मीरा, तुमने सिर्फ अपनी वर्दी नहीं बल्कि हर आम इंसान के विश्वास को बचा लिया।”
उधर निलंबित इंस्पेक्टर सुनील मलिक को तुरंत बर्खास्त कर दिया गया और उस पर विभागीय जांच और आपराधिक मुकदमा दर्ज करने का आदेश दिया गया। विधायक अरुण सिंह की साजिशें विफल हो गईं।
अगले ही दिन से एसपी मीरा वर्मा ने अपने जन सुरक्षा और सम्मान अभियान की शुरुआत कर दी। वह अब और भी ज्यादा सादगी से थानों का दौरा करने लगीं। लेकिन इस बार वह किसी शिकायतकर्ता के रूप में नहीं बल्कि बदलाव की मशाल के रूप में जा रही थीं। शारदा देवी पूरी तरह से स्वस्थ होकर घर लौट आईं।
मीरा वर्मा ने सिद्ध कर दिया था कि एक अफसर की असली शक्ति उसके पद में नहीं बल्कि उसके उसूलों और साहस में होती है। उन्होंने एक थप्पड़ के अपमान को पूरे सिस्टम में एक क्रांतिकारी सुधार में बदल दिया था।
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