कहानी: गुम हुआ मोबाइल और अधूरी ज़िन्दगी

उज्जैन की सुबह और अर्जुन की तन्हाई

उज्जैन की सर्द सुबह थी। गेहूं के खेतों में ओस की बूंदें चमक रही थीं और हवा में हल्की ठंडक थी। अर्जुन ठाकुर अपने छोटे से घर के बाहर खड़ा था, कंधे पर हल्की ऊनी शॉल डाले। उसकी आँखों में अकेलापन साफ़ झलक रहा था। एक साल पहले तक इसी सुबह में उसकी पत्नी की हँसी गूंजती थी, लेकिन अब घर में खामोशी थी। उसका बेटा वेद स्कूल के लिए तैयार हो रहा था। अर्जुन ने वेद के बालों पर हाथ फेरा, उसे टिफिन दिया और खुद खेत की ओर निकल पड़ा।

खेत की मेड़ पर चलते हुए अर्जुन ने अपनी ज़िन्दगी के बारे में सोचा। पत्नी की मौत के बाद सब बदल गया था। पहले हर सुबह एक नई उम्मीद लेकर आती थी, अब हर दिन एक बोझ सा लगता था। खेत, मवेशी, बाज़ार—सब चलता था, लेकिन दिल के भीतर खालीपन था।

सड़क किनारे एक टूटा मोबाइल

उस दिन अर्जुन खेत से लौट रहा था, जब उसकी नजर सड़क के किनारे पड़ी एक चीज़ पर गई। धूल और ओस से भीगा हुआ, टूटी स्क्रीन वाला एक स्मार्टफोन। अर्जुन ने उसे उठाया। स्क्रीन में हल्की रोशनी थी। लॉक स्क्रीन पर एक तस्वीर थी—एक मुस्कुराती महिला, माथे पर बिंदी, साथ में एक पुरुष और उनके बीच सात-आठ साल का बच्चा। तीनों की आँखों में ऐसी चमक थी, जैसे ज़िन्दगी ने कोई बड़ी खुशखबरी सुनाई हो।

अर्जुन के मन में एक क्षण के लिए लालच आया—फोन वेद के लिए ठीक रहेगा, या बहन को दे दूँ। लेकिन तुरंत ही अपनी सोच पर झिझक हुई। “मालिक मिलेगा तो लौटा दूँगा,” उसने खुद से कहा। मोबाइल बंद करके घर ले आया।

यादों का बोझ

कुछ दिन तक अर्जुन ने फोन को छुपाकर रखा। रात को जब वेद पढ़ते-पढ़ते सो जाता, अर्जुन उस फोन की ओर देखता और फिर नजरें चुरा लेता। पंद्रहवें दिन उसने फोन चार्ज पर लगाया। स्क्रीन जगी, लॉक नहीं था। होम स्क्रीन खुलते ही तस्वीरों की एक लंबी नदी सामने आ गई। पहले कुछ फोटो—शादी, परिवार, हँसी, खुशियाँ। फिर अचानक एक फ्रेम अटक गया—सफेद चादर, फूल, भीड़, और वही पुरुष अब मुस्कान के बिना।

अर्जुन की सांस अटक गई। अगले वीडियो में महिला रो रही थी, “आदित्य, पापा को नमस्ते बोलो।” बच्चा सिसकते हुए कैमरे की तरफ हाथ जोड़ता है, “पापा जल्दी घर आओ।” अर्जुन की उंगलियाँ काँप गईं। उस आवाज़ में उसे अपनी बिछड़ी पत्नी की परछाई दिखी। वो रात याद आई जब भागती सांसों के साथ उसने पत्नी का हाथ थामा था, और सुबह होने से पहले ही शब्द सूख गए थे।

इसानियत की आवाज़

अर्जुन ने फोन में आए मिस्ड कॉल्स देखे—2530 कॉल्स एक ही नंबर से। उसने उस नंबर पर कॉल किया। दूसरी ही घंटी में एक कांपती आवाज़ आई, “भैया, मेरा फोन आपके पास है क्या? प्लीज दे दीजिए। मेरा बच्चा खाना नहीं खाता, उसमें पापा की वीडियो देखे बिना रोने लगता है।”

अर्जुन ने बहुत धीमे कहा, “हाँ बहन, फोन मेरे पास है। कल सुबह उज्जैन से देवास रोड आ रहा हूँ, आप जहाँ कहेंगी, वहीं दे दूँगा।”

रात भर अर्जुन सोचता रहा—क्या सिर्फ लौटा देना काफी होगा? उसने अपनी बचत में से थोड़ा पैसा निकाला और एक नया फोन भी खरीदा। “उसकी यादें सुरक्षित रहें और बच्चे की हँसी भी,” उसने मन ही मन कहा।

देवास रोड की यात्रा

अगली सुबह अर्जुन ने अपनी पुरानी बाइक स्टार्ट की। वेद दरवाजे पर खड़ा बोला, “बाबा, आप जल्दी आ जाना।” अर्जुन मुस्कुराया, “जरूर।” उज्जैन की सीमाएँ पीछे छूटती गईं। देवास रोड की झलक आगे फैलती गई। हर मोड़ पर उसे उस बच्चे का चेहरा दिखता—आँखों में उम्मीद और खोए हुए पिता की परछाई।

करीब 35 किलोमीटर के बाद वह एक तंग गली में पहुँचा। दीवारों पर उखड़ा हुआ रंग, छोटे-छोटे मकान और बच्चों की खिलखिलाहट। लेकिन कहीं ना कहीं उस माहौल में एक थकान थी। सामने एक टूटा हुआ नीला दरवाजा दिखाई दिया। दरवाजे के पास बैठा एक छोटा लड़का मिट्टी से कुछ बना रहा था। वह वही बच्चा था जिसे अर्जुन ने तस्वीरों में देखा था।

मुलाकात और अपनापन

अर्जुन ने धीरे से पुकारा, “आदित्य।” बच्चे ने चौंक कर ऊपर देखा, फिर अंदर भागा। “मम्मी, कोई अंकल आए हैं।” दरवाजे से माधवी निकली। एक सादी साड़ी, बाल हल्के बिखरे, चेहरे पर थकान लेकिन आँखों में गहराई। उसे देखते ही अर्जुन की सांस थम गई। कुछ पल को वो बोल ही नहीं पाया। वो वही चेहरा था जो अब तक तस्वीरों और वीडियो में आंसुओं में भीगा हुआ दिखता था। अब सामने खड़ी थी—असली, जिंदा, टूटी हुई लेकिन गरिमा से भरी।

“आप अर्जुन भैया?” उसने धीमे से पूछा। अर्जुन ने सिर हिलाया और फोन उसकी तरफ बढ़ाया। माधवी की आँखें नम हो गईं। उसने दोनों हाथों से फोन पकड़ा जैसे किसी अपने की राखी पकड़ रही हो। कुछ पल तक वो कुछ नहीं बोली। बस फोन को सीने से लगा लिया। फिर कांपती आवाज में बोली, “भैया, मुझे लगा था अब यह कभी नहीं मिलेगा। मेरे पति के आखिरी वीडियो, बेटे की तस्वीरें सब इसमें हैं। मैं हर दिन भगवान से यही दुआ करती थी कि किसी अच्छे इंसान को मिले।”

अर्जुन ने डिब्बा निकाला, “यह एक और फोन है। छोटा सा गिफ्ट। इसमें आपकी पुरानी सिम डाल लीजिए ताकि बच्चा मोबाइल के बिना उदास ना हो।” माधवी चौंक गई। “नहीं, नहीं, मैं ऐसा नहीं ले सकती। आप पहले ही इतना बड़ा उपकार कर चुके हैं।” अर्जुन मुस्कुराया, “इसे उपकार मत समझिए। शायद यह मेरे ही किसी अधूरे रिश्ते का कर्ज था।”

चाय और संवाद

माधवी ने अर्जुन को अंदर बुलाया। छोटा सा कमरा, टूटी मेज, एक कोने में जलता चूल्हा। लेकिन उस घर में कुछ सच्चा था। चाय की भाप के साथ उसकी आँखों में आँसू झिलमिलाए। “लोग कहते हैं जिसने सब खो दिया वो भगवान पर भरोसा छोड़ देता है, पर आज लगता है भगवान कभी हमें अकेला नहीं छोड़ता। बस किसी इंसान के रूप में भेज देता है।”

अर्जुन ने कहा, “अगर कभी किसी काम की जरूरत हो, बस याद कर लेना। मैं थोड़ा सहारा जरूर बन सकता हूँ।” माधवी ने पहली बार हल्की मुस्कान दी।

गाँव की बातें और संघर्ष

धीरे-धीरे दोनों के बीच संवाद बढ़ा। आदित्य और वेद एक ही स्कूल में पढ़ने लगे। एक दिन स्कूल की टीचर ने पूछा, “क्या यह दोनों जुड़वा हैं?” जन्मतिथि भी एक ही—15 मई 2016। अर्जुन और माधवी हैरान रह गए। अर्जुन ने बताया, उसकी पत्नी की मौत 12 जनवरी 2024 को हुई थी। माधवी ने रोते हुए कहा, “मेरे पति की मौत भी उसी दिन हुई थी।”

कुछ दिन बाद माधवी के मकान मालिक ने किराया मांगा। तीन महीने से बाकी था। अर्जुन ने अपनी जेब से पैसे निकालकर दे दिए। “यह मत समझना कि मैं एहसान कर रहा हूँ। समझो जैसे एक भाई अपनी बहन को मुश्किल वक्त में सहारा दे रहा है।”

माधवी ने अर्जुन के खेत पर काम करना शुरू किया। सुबह बेटे को स्कूल भेजती, फिर बगीचे में आ जाती। अर्जुन उसे देखकर सोचता, “जिस इंसान में इतनी तकलीफें हों और फिर भी मुस्कुराना न छोड़े, वही सच्चा साहसी होता है।”

गांव के लोग बातें करने लगे—”अर्जुन किसी विधवा को घर में रखे है।” अर्जुन ने सिर्फ इतना कहा, “शर्म तब आती जब किसी का दर्द देखकर भी कुछ ना करता।” लेकिन यह बात वहीं खत्म नहीं हुई। दो दिन बाद माधवी के ससुराल वाले आए। देवर ने ताने मारे। अर्जुन ने उसका हाथ थाम लिया, “अगर इसे छुआ भी तो अंजाम बुरा होगा।”

पुलिस आई। इंस्पेक्टर ने पूछा, “रिश्ता क्या है?” अर्जुन बोला, “अगर इंसानियत कोई रिश्ता नहीं तो मैं कह दूँ, यह मेरी जिम्मेदारी है। और अगर दुनिया नाम पूछती है तो हाँ, मैं इस औरत को अपना मान चुका हूँ।”

माधवी ने कहा, “अगर यह तैयार है, तो मैं भी इनका साथ निभाना चाहती हूँ।” थाने में ही शादी हो गई। बच्चों ने ताली बजाई—”अब हम भाई हैं।”

नई शुरुआत

अर्जुन और माधवी एक ही छत के नीचे रहने लगे। बच्चों को स्कूल भेजते, खेत संभालते और शाम को साथ बैठकर पुराने किस्से सुनते। धीरे-धीरे गांव की बातें भी बंद हो गईं।

एक साल बाद अर्जुन ने गांव में एक छोटा स्कूल शुरू किया। दीवार पर लिखा था—“जिस बच्चे को मुस्कुराना सिखाओ वही तुम्हारा भगवान बन जाता है।” बच्चे आते, खेलते, हँसते और हर दिन उस मिट्टी में नई ज़िन्दगी की खुशबू घुलती।

शाम को अर्जुन और माधवी खेत की मेड़ पर बैठते। हवा में संतरे की महक घुली होती। अर्जुन ने कहा, “कभी-कभी खोई चीजें हमें वह दिल लौटा जाती हैं, जो किस्मत छीन ले गई थी।” माधवी मुस्कुराई। उसकी आँखों में सूरज की परछाई थी। “शायद भगवान ने हमें इसलिए मिलाया ताकि हम दोनों किसी और की उम्मीद बन सके।”

जब दोनों बच्चे खेलते, अर्जुन ने आसमान की तरफ देखा—जैसे किसी अदृश्य आत्मा को धन्यवाद दे रहा हो। अब ज़िन्दगी ना विधवा थी, ना अधूरी। वह पूरी थी—प्रेम, सम्मान और इंसानियत से भरी हुई।

गाँव का मेला और नई पहचान

एक दिन गाँव में मेला लगा। अर्जुन ने बच्चों को झूले पर बैठाया। माधवी ने पहली बार अपने बालों में फूल लगाए। गाँव के लोग अब उनकी कहानी को सम्मान की नजर से देखने लगे थे। स्कूल में बच्चों की संख्या बढ़ने लगी। माधवी ने गाँव की महिलाओं को पढ़ाना शुरू किया। अर्जुन ने खेती के नए तरीके सिखाए।

माधवी ने अर्जुन से कहा, “अगर आप उस दिन मेरा फोन ना लौटाते, तो शायद मैं ज़िन्दगी से हार जाती।” अर्जुन ने मुस्कुरा कर जवाब दिया, “कभी-कभी किसी की खोई चीज़ हमें अपना अधूरा दिल लौटा देती है।”

उम्मीद और इंसानियत

एक शाम अर्जुन ने देखा, आदित्य और वेद दोनों स्कूल के प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे। दोनों की हँसी पूरे घर में गूंज रही थी। माधवी ने चाय बनाई और अर्जुन के पास बैठ गई। “भैया, आपने मुझे नया जीवन दिया है। अब मुझे डर नहीं लगता।”

अर्जुन ने कहा, “हम सब अधूरे हैं। बस किसी की मदद करके ही हम पूरे होते हैं।”

कहानी का अंत, नई शुरुआत

गाँव के चौपाल पर अब लोग अर्जुन और माधवी की मिसाल देते थे। “देखो, कैसे इंसानियत ने दो टूटे दिलों को जोड़ दिया।” अर्जुन ने स्कूल के बच्चों को बताया, “हर खोई चीज़ में एक कहानी छुपी होती है। अगर आप उसे पहचान लें, तो ज़िन्दगी बदल सकती है।”

शाम को जब सूरज ढलता, खेतों में संतरे की महक होती, बच्चे खेलते, और अर्जुन-माधवी अपने-अपने अधूरे दिलों को पूरा होते हुए महसूस करते।

अगर आपको यह कहानी पसंद आई हो तो कमेंट में अपना शहर लिखिए और शेयर करें।