प्रस्तावना
बारिश की हल्की बूँदें, कब्रिस्तान की वीरान पगडंडियां, और एक चुपचाप बैठा आदमी—यह कहानी है एक अरबपति की, जिसकी जिंदगी दौलत, शक्ति और प्रसिद्धि से भरी थी, लेकिन दिल में एक गहरा खालीपन था। उसकी पत्नी की मृत्यु के बाद, वह अक्सर उसकी कब्र पर आता, चुपचाप बैठता, लेकिन आज की शाम कुछ अलग थी। आज उसकी दुनिया बदलने वाली थी।
पहला दृश्य: कब्रिस्तान में मुलाकात
उस शाम, काले सूट में सजे अरबपति, भारी कदमों से कब्रिस्तान की ओर बढ़ रहा था। उसके चमकदार जूते गीली मिट्टी पर निशान छोड़ रहे थे। हवा पेड़ों के बीच से बह रही थी, सूखी पत्तियाँ सरसराती थीं। सैकड़ों पुरानी और नई कब्रों के बीच, वह अपनी पत्नी की कब्र के पास पहुँचा, जहां एक दुबला-पतला लड़का घुटनों के बल बैठा था। उसके हाथों में सफेद चावल का कटोरा था, बगल में केले के पत्ते में लिपटे कुछ सादे व्यंजन रखे थे।
अरबपति थोड़ी नाराजगी के साथ बोला, “बेटा, तुम इस कब्र पर खाना क्यों चढ़ा रहे हो? यह मेरी पत्नी की कब्र है।”
लड़के ने सिर उठाया, उसकी आँखों में घबराहट थी। “मैं हर दिन यहाँ आता हूँ क्योंकि किसी ने मुझसे वादा किया था कि वह मेरे साथ खाने के लिए वापस आएगी।”
अरबपति सन्न रह गया। बारिश तेज हो गई। उसकी छाती में अजीब-सी सिहरन दौड़ गई। लड़के की आँखों में एक गहरा दुख छिपा था।
छिपा हुआ सच
अरबपति ने लड़के से पूछा, “किसने तुमसे वादा किया था?”
लड़के ने सिर झुका लिया, “एक बहुत ही नेक औरत थी। उन्होंने कहा कि वह मुझसे प्यार करती हैं। उन्होंने वादा किया था कि कभी मुझे अकेले खाना नहीं खाने देंगी।”
अरबपति का दिल धड़क उठा। वह लड़खड़ाकर कब्र के पत्थर का सहारा लेने लगा। तस्वीर में वही चेहरा था, उसकी पत्नी। लड़के में उसकी पत्नी की झलक थी—छोटी नाक, उदास आँखें, बैठने का तरीका।
लड़के ने धीमी आवाज में कहा, “हर शाम मैं यहाँ खाना लाता हूँ। उन्होंने कहा था कि वह मेरे साथ बैठकर खाना खाएँगी ताकि मुझे अकेलापन महसूस न हो।”
बारिश की बूँदें भारी हो गईं। अरबपति को पत्नी के आखिरी शब्द याद आए—“मुझे माफ कर दो।”
रहस्य का खुलना
अरबपति घुटनों के बल बैठ गया, “तुम्हारा नाम क्या है?”
लड़के ने कहा, “रोहन। उन्होंने मुझे गले लगाया था, रोई थी और कहा था कि वह मेरी सबसे बड़ी गुनहगार हैं।”
अरबपति के हाथ बच्चे के कंधे पर थे, लेकिन उसे गले लगाने की हिम्मत नहीं हुई। पूरा कब्रिस्तान खामोशी में डूब गया।
“उन्होंने कहा कि जब वह नहीं रहेंगी, तो हर दिन के भोजन में मेरे साथ रहेंगी।”
अरबपति की आँखों में आँसू थे। “तो इतने सालों से तुम कहाँ रह रहे थे?”
“मेरा कोई नहीं है। मैं बाजार में छोटे-मोटे काम करता हूँ, दुकानों से बचा हुआ खाना माँगता हूँ। कभी-कभी वह आकर मुझे पैसे देती थीं, कपड़े खरीदती थीं।”
अरबपति टूट गया। उसकी पत्नी के दिल में इतना बड़ा रहस्य था, एक बेटा जिसे दुनिया से छुपाया गया।
सामना और स्वीकारोक्ति
“अंकल, क्या आप उन्हें जानते हैं?”
“मैं उनका पति हूँ…”
लड़का चौंक गया। बिजली चमकी। दो चेहरे—एक बूढ़ा, एक जवान—एक दूसरे को देख रहे थे।
अरबपति को लगा, उसकी बनाई दुनिया ढह रही है।
“क्या उन्होंने कभी आपके बारे में बात की थी?”
“हाँ, उन्होंने कहा कि आप अच्छे आदमी हैं, लेकिन बहुत व्यस्त हैं। उन्होंने आपके साथ बहुत गलत किया है।”
अरबपति को वे साल याद आए जब वह पत्नी को अकेला छोड़कर काम में डूबा रहता था। उसने सिर पकड़ लिया, “हे भगवान, मैंने क्या किया?”
तीन पीढ़ियों का टकराव
अचानक बारिश में एक बूढ़ा आदमी छाते के साथ आया। उसने रोहन की ओर देखा, “मैं वह व्यक्ति हूँ जिसने इसकी रक्षा करने का वादा किया था। लेकिन उसने अलग रास्ता चुना और अब आखिरी रहस्य भी खुल गया है।”
अरबपति का दिल दहाड़ उठा। बूढ़ा आदमी बोला, “तुमने सिर्फ एक पत्नी नहीं खोई, तुमने उससे कहीं ज्यादा खो दिया। यह सब तुम्हारी खामोशी से शुरू हुआ।”
अरबपति घुटनों के बल गिर गया, “मैंने अपनी पत्नी के अलावा क्या खोया?”
“आपने बहुत पहले ही उसकी आत्मा खो दी थी।”
सच्चाई का सामना
रोहन ने डरते-डरते पूछा, “मैं सच में आपका बेटा हूँ?”
अरबपति का दिल फट गया। वह बच्चे को गले लगाना चाहता था, लेकिन डर रहा था। बूढ़ा आदमी बोला, “तुमने पिता बनने का मौका भी खो दिया है।”
रोहन की आँखों में आँसू थे, “अंकल, क्या आपको सच में मेरी जरूरत नहीं है?”
अरबपति गिर पड़ा, “नहीं, ऐसा नहीं है! मैं सच में नहीं जानता था। अगर जानता, तो तुम्हें एक दिन भी दुख नहीं सहने देता।”
बूढ़ा आदमी बोला, “देर हो चुकी है। सब कुछ बहुत देर हो चुका है।”
आत्मा का प्रतिशोध
अचानक कब्रिस्तान में एक सफेद परछाई दिखी—महिला की आत्मा। अरबपति कांप गया। वह परछाई उसकी मृत पत्नी की थी। उसकी आँखों में दर्द, गुस्सा और माफी का मिश्रण था।
“तुमने एक व्यक्ति को छोड़ दिया और बदले में अपना पूरा परिवार खो दिया।”
अरबपति ने रोहन को कसकर गले लगा लिया, “मुझे माफ कर दो। भले ही देर हो गई हो, मैं तुम्हें फिर कभी अकेला नहीं रहने दूंगा।”
तीन दिन का चक्र
सफेद परछाई बोली, “तुम्हारे पास तीन दिन हैं। सच्चाई को सामने लाने के लिए, नहीं तो मैं सब कुछ ले लूंगी।”
अरबपति ने वादा किया, “मैं सबको सच बताऊँगा।”
अगले दिन, उसने मीडिया के सामने अपने पापों की स्वीकारोक्ति की, अपनी पत्नी, बेटे और अतीत के बारे में सबकुछ बता दिया। समाज में हंगामा मच गया। पुलिस ने जांच शुरू की, प्रेस ने खबर फैलाई।
अंतिम मोड़
सफेद परछाई ने कहा, “यह सिर्फ शुरुआत है। अनसुनी आत्माएँ तुम्हें नहीं छोड़ेंगी।”
बंगले में अराजकता फैल गई। आत्माएँ बाहर निकल आईं। हर कोई अपने-अपने पापों के लिए कीमत चुकाने लगा।
अरबपति ने रोहन को कसकर गले लगाया, “अगर मुझे मरना पड़े तो मैं मरूँगा, लेकिन तुम्हारी रक्षा करूंगा।”
अंतिम दृश्य: सुबह की उम्मीद
सुबह हुई। बारिश थम गई। कब्रिस्तान में रोहन चुपचाप बैठा था, उसके हाथ में चावल का कटोरा। उसने कब्र पर चावल रखा, हाथ जोड़कर प्रार्थना की और पेड़ों के बीच चला गया। उसकी छोटी परछाई धीरे-धीरे सुबह की रोशनी में खो गई।
कहानी का संदेश
पाप, क्षमा और प्रतिशोध का चक्र कभी खत्म नहीं होता। लेकिन देर से मिला प्यार, सच्चाई और स्वीकारोक्ति—यही रास्ता है घर वापसी का।
अगर यह कहानी आपको छू गई हो, तो कमेंट में जरूर बताइए। सच्चाई और माफी की ताकत को कभी कम मत समझिए।
News
करोड़पति महिला और टैक्सी ड्राइवर की कहानी
करोड़पति महिला और टैक्सी ड्राइवर की कहानी लखनऊ शहर की हलचल भरी सड़कों पर एक चमचमाती गाड़ी धीरे-धीरे एयरपोर्ट की…
कब्र के सामने चावल का भोग
कब्र के सामने चावल का भोग बारिश की हल्की बूँदें गिर रही थीं। शाम का समय था, हवा पेड़ों…
गांव से दिल्ली तक – एक सफर इंसानियत का
गांव से दिल्ली तक – एक सफर इंसानियत का उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले के एक छोटे से गांव में,…
सीधी टक्कर: एसडीएम अंजलि वर्मा बनाम दरोगा विक्रम सिंह
सीधी टक्कर: एसडीएम अंजलि वर्मा बनाम दरोगा विक्रम सिंह प्रस्तावना कहानी की शुरुआत होती है एक आम सुबह से, जब…
मीरा के फूल: सपनों की पाठशाला
मीरा के फूल: सपनों की पाठशाला प्रस्तावना मंदिर की सीढ़ियों पर बैठी एक छोटी-सी बच्ची अपनी आँखें मलते हुए फूलों…
मीरा शर्मा: सेवा, पछतावा और माफ़ी की कहानी
मीरा शर्मा: सेवा, पछतावा और माफ़ी की कहानी शुरुआत कभी-कभी किसी की मदद करना सिर्फ एक काम नहीं, बल्कि किस्मत…
End of content
No more pages to load