कावड़ यात्रा में काशी विश्वनाथ मंदिर में भक्तो के साथ जो चमत्कार हुआ, उसे देखकर लोगों के पसीने छूट गए

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सावन का महीना था। आसमान पर हल्की-हल्की धूप थी, कहीं बादल, कहीं नीली चमकती किरणें। गाँव-गाँव से बोल बम के जत्थे निकल रहे थे। ढोल-नगाड़े, डमरू, शिव-भक्ति गीतों की धुन पर हर ओर एक ही स्वर गूंज रहा था— “बोल बम! हर हर महादेव!”

भागलपुर (बिहार) का एक छोटा-सा गाँव। सुबह के लगभग पाँच बजे का समय। हवा में ठंडक थी, पर गाँव के एक घर के आँगन में भक्ति और उल्लास की लहर दौड़ रही थी। घर की बेटी गुड़िया, 16 साल की एक मेधावी और धार्मिक प्रवृत्ति की छात्रा, जिसने हाल ही में दसवीं की परीक्षा में पूरे गाँव में टॉप किया था, आज अत्यंत प्रसन्न थी। उसके चेहरे पर चमक थी, आँखों में भक्ति का रंग।

वर्षों पहले उसने बाबा बैजनाथ से मन्नत माँगी थी— “अगर मैं परीक्षा में पास हो जाऊँ, तो सावन में जल लेकर आपके दरबार आऊँगी।”
आज वही दिन था। वचन निभाने का दिन।

गुड़िया ने अपने चारों सहेलियों— रिंकी, ममता, श्वेता और काजल—के साथ यात्रा का प्रण लिया। पाँचों ने नए भगवा रंग के सलवार-सूट पहने थे, गले में बोल बम का दुपट्टा, माथे पर भस्म और पीठ पर टंगा हुआ कांवड़। चेहरे पर श्रद्धा की ऐसी आभा थी, मानो भोलेनाथ की कृपा उन पर बरस रही हो।

घरवाले भी गर्वित थे। माँ ने गुड़िया को काला टीका लगाते हुए कहा—
“जल्दी लौट आना बेटी, भोलेनाथ तुम्हारी रक्षा करेंगे।”
बापू ने कांवड़ में बेलपत्र और गंगाजल की जगह बनाई। पूरा माहौल शुभ संकेतों से भरा था।

यात्रा की शुरुआत

सूरज की पहली किरण के साथ पाँचों सहेलियाँ जत्थे में शामिल होकर सुल्तानगंज की ओर निकल पड़ीं। सैकड़ों कांवड़िये उनके साथ थे। रास्ते में डमरू की थाप, भजन, जयघोष से वातावरण शिवमय हो उठा था।

सुबह नौ बजे जब वे गंगा घाट पहुँचीं, तो सबने स्नान कर जल भरा। गंगा की लहरें उनके पैरों से टकराकर आशीर्वाद दे रही थीं। गुड़िया ने आँखे बंद कर प्रार्थना की—
“हे भोलेनाथ, आपने पढ़ाई में मुझे सफल बनाया। यह यात्रा आपके चरणों में समर्पित है।”

फिर शुरू हुआ कठिन पैदल सफर—105 किलोमीटर लंबा। धूप की तपिश, पसीने की बूंदें, पैरों की थकान… पर चेहरों पर सिर्फ विश्वास और भक्ति।

सुनसान जंगल का मोड़

दोपहर लगभग 1:15 बजे, जत्था कहलगाम रोड के पास से गुजर रहा था। यह जगह जंगल से घिरी और थोड़ी सुनसान थी। धीरे-धीरे जत्था आगे बढ़ गया और गुड़िया अपनी सहेलियों संग थोड़ी पीछे रह गई।

तभी झाड़ियों के पीछे से तीन लड़के निकले। मैले कपड़े, गले में मोटी चैन, आँखों में दुष्टता।
“अरे ओ बहनों, रुक जाओ जरा…” उनमें से एक ने कुटिल आवाज़ में कहा।

गुड़िया ने सहेलियों को पास खींचते हुए कहा, “जल्दी चलो, इनसे नजरें मत मिलाना।”
पर वे लड़के पीछा करने लगे।

एक ने रास्ता रोक लिया। उसकी आवाज़ में जहरीली हँसी थी—
“इतनी जल्दी कहाँ जा रही हो? बाबा से मिलने या किसी और से?”
दूसरा बोला—“हम भी तो बाबा हैं, यहीं मिल लो।”

उनकी हँसी दरिंदगी से भरी थी। सहेलियाँ काँप गईं। रिंकी की आवाज़ काँपते हुए निकली—“प्लीज़ हमें जाने दो, हम सिर्फ जल चढ़ाने आए हैं।”

परंतु उन दुष्टों का मन अब पूरी तरह पाप से भर चुका था। एक ने ममता का हाथ पकड़ लिया, दूसरे ने श्वेता की चप्पल खींच ली। गुड़िया ने कांवड़ को कसकर पकड़ा और दृढ़ स्वर में कहा—
“हटो रास्ते से। यह कांवड़ भोले का है। अगर छुआ, तो भगवान देख रहे हैं।”

लेकिन एक लड़के ने हँसते हुए कांवड़ को झटक कर नीचे गिरा दिया। काजल की आँखों से आँसू बह निकले। मोबाइल निकालने पर भी उन्होंने उसे फेंक दिया।

चमत्कार की आहट

और तभी अचानक वातावरण बदलने लगा।
चिलचिलाती धूप काले बादलों में छिप गई। हवा में अजीब-सी गंध फैली। दूर से गड़गड़ाहट सुनाई दी।

झाड़ियों के पीछे से एक चमकता हुआ त्रिशूल प्रकट हुआ। आग से दहकता, आकाश को चीरता हुआ।
उसके साथ ही प्रकट हुआ—महाकाल का रौद्र रूप।

जटाओं में लहराते नाग, कमर में खप्पर, पैरों में शवों की माला। आँखों में अग्नि और तीसरे नेत्र की ज्वाला।
यह दृश्य इतना भयानक और दिव्य था कि डकैतों की आँखें फटी की फटी रह गईं।

शिवजी की गर्जन करती आवाज़ गूँजी—
“जो स्त्री का अपमान करता है, वह नरक का पात्र है। जो भक्त को रोकता है, उसका संहार निश्चित है।”

डमरू अपने आप बजने लगा। धरती कांप उठी। सर्पों का झुंड चारों ओर से निकलकर उन दुष्टों के पैरों से लिपट गया।

भय और भक्ति का संगम

गुड़िया और उसकी सहेलियाँ भय और भक्ति के बीच खड़ी थीं। आँसू बह रहे थे, दिल काँप रहा था।
नीचे गिरा कांवड़ अब किसी साधारण बांस और कपड़े का नहीं रह गया था। वह स्वयं शिव का प्रतीक बन चुका था।

एक डकैत घुटनों के बल गिर पड़ा—
“हमसे गलती हो गई भोलेनाथ, छोड़ दो।”
दूसरा भागने लगा, पर जमीन फट पड़ी।

तीसरे ने दंभ भरे स्वर में कहा—
“अगर भगवान हो तो मुझे मार के दिखाओ, वरना यह सब छलावा है।”

यह सुनते ही शिव का स्वर गर्जा—
“अहंकार रावण का भी टूटा था।”

क्षणभर में वह युवक जमीन पर गिर पड़ा। उसकी आँखों में अंधकार छा गया।
“मेरी आँखें! मैं कुछ नहीं देख पा रहा… सब अंधेरा…” वह चीखने लगा।

शिव बोले—
“जिसने उजाले का अपमान किया, वह प्रकाश का अधिकारी नहीं।”

बाकी दोनों डकैत भी रोने लगे—
“माफ कर दो महादेव, हमसे गलती हो गई। अब कभी किसी बहन, किसी भक्त को नहीं छुएंगे।”

भक्त की पुकार

गुड़िया काँपते हुए बोली—
“भोलेनाथ, इन्हें छोड़ दीजिए। हम ठीक हैं। बस हमारा कांवड़ हमें वापस मिल जाए।”

शिव का त्रिशूल शांत हुआ। तीसरी आँख धीरे-धीरे बंद हुई।
फिर उन्होंने गंगा जल से भरे उस कांवड़ को उठाकर कोमल स्वर में कहा—
“भक्त का जल कभी गिरता नहीं। मैं स्वयं उसे संभालता हूँ।”

गुड़िया की आँखों से आँसू बह निकले। उसने कांवड़ को माथे से लगाकर प्रणाम किया। सहेलियाँ भी भाव-विभोर थीं।

धीरे-धीरे वह रुद्र रूप विलीन होने लगा। नागों के बीच शिव अदृश्य हो गए।
हवा शांत हो गई, पर वातावरण में अब भी डमरू की मंद गूंज थी।

लोगों का साक्षात्कार

पीछे से आते कांवड़िये भी यह दृश्य देख चुके थे। कुछ ने वीडियो रिकॉर्ड किया, कुछ अवाक् रह गए।
हर ओर से आवाज़ गूँजने लगी—
“बाबा साक्षात प्रकट हुए!”
“हर हर महादेव!”

आँखों में आँसू, दिल में श्रद्धा, और होंठों पर सिर्फ एक ही नाम—“भोलेनाथ।”

उस दिन से कहलगाम रोड की यह घटना पूरे बिहार और झारखंड में चर्चा का विषय बन गई। लोग कहते हैं—
“जहाँ भक्ति सच्ची हो, वहाँ स्वयं भगवान प्रकट होते हैं।”